टेलीविजन के प्राइम टाइम में होनेवाली बहसों के लिए राजनीतिकों ने व्यंग्य और उपहास में ही सही मीडिया द्वारा दूसरी संसद चलाने की कोशिश कहते आए हों लेकिन अक्सर चैनल ऐसी कोशिशें करते दिखाई देते हैं..प्राइम टाइम की बहसों से गुजरते हुए अक्सर आप महसूस करते होंगे कि जब देश के सारे कार्यालय, मंत्रालय और विभाग बंद होते हैं, टीवी स्क्रीन पर एक अलग बहस के लिए अलग संसद, छानबीन के लिए अलग एजेंसियां और फैसला सुनाने के लिए अलग से अदालत बैठ जाती है. दिलचस्प है कि ये असल की संसद की तरह मौनसून और ग्रीष्मकालीन सत्रों में बंटकर नहीं, वर्किंग डे और वीकएंड में बंटकर चलती रहती है..कई बार तो ये सुबह के सात बजे से भी शुरु हो जाती है..
यानी पूरा मामला इस बात पर निर्भर करता है कि देश के नागरिक जिन मुद्दों पर राय जानने,सुनने और समझने के लिए संसद के सत्रों का लंबा इंतजार करें, उससे पहले ही चैनल कैसे उन्हें नागरिक से दर्शक में शिफ्ट करके उसके इस इंतजार पर संसद शुरु कर सकता है..ऐसा करते हुए टेलीविजन के इस संसद में मुद्दों के साथ-साथ दर्शक पर पकड़ बनाए रखने की कोशिश, बाजार,प्रायोजक और टीआरपी को लगातार साधे रखने की कवायदें जारी रहती है.
"टेलीविजन संसदः कितनी खबर,कितनी राजनीति" का ये सत्र इन संदर्भों को शामिल करते हुए एक खुले विमर्श को प्रस्तावित करता है जिसके केन्द्र में ये बात प्रमुखता से शामिल होगी कि ये सब करते हुए टेलीविजन व्यंग्य के लिए इस्तेमाल किए गए मेटाफर "दूसरा संसद" की कैसी शक्ल पेश करता है और इसमे संसद की राजनीति से कितनी अलग राजनीति शामिल होती है ?
ऐसा करते हुए वो मीडिया की अपनी मूल आत्मा से कितना दूर चला जाता है और संसद और राजनीति के गलियारों में चलनेवाली बहसों को कितना सही संदर्भ में पेश कर पाता है क्योंकि यहां उसके लिए संसद में शामिल लोगों की तरह "एलेक्ट्रॉरेल पॉलिटिक्स" नहीं करनी होती बल्कि अपनी बैलेंस शीट और मीडिया फ्लेवर को भी बचाए रखना होता है..प्राइम टाइम में सास-बहू सीरियलों, क्रिकेट ,सिनेमा और रियलिटी शो में एन्गेज दर्शकों को इसका हिस्सा बनाना होता है..यानी पिक्चर ट्यूब की इस संसद में कई चीजें शामिल करने औऱ साधने होते हैं..विमर्श के इन तमाम सिरे से गुजरना एक दिलचस्प अनुभव होगा.
पुष्कर,संपादक मीडियाखबर डॉट कॉम ने इन पूरे मसले पर बातचीत के लिए राजनीति और टेलीविजन के उन भारी-भरकम चेहरों के बीच मुझे सत्र मॉडरेट करने की जिम्मेदारी दे दी है, थोड़ा नर्वस हूं..आपलोग होंगे तो थोड़ी हिम्मत बंधेंगी.
https://taanabaana.blogspot.com/2013/06/blog-post_27.html?showComment=1372302236479#c4721042164176386195'> 27 जून 2013 को 8:33 am बजे
सत्र मॉडरेट करने की जिम्मेदारी अच्छे से निबाहने के लिये शुभकामनायें।
https://taanabaana.blogspot.com/2013/06/blog-post_27.html?showComment=1372418113531#c8459018515223852960'> 28 जून 2013 को 4:45 pm बजे
कुछ ख़रीदे बिके हुए लोगों का जमावड़ा चवन्नी छाप चतुर्थ श्रेणी के नेताओं की बेमतलब कि झाय झाय जिनकी अपनी पार्टी में ही कोई कदर नहीं होती या चापलूस लोग जो आला कमान की नज़रों में चढ़ने के लिए बेतुके कमेंट देते रहते हैं.चैनेलों को भी समय पास करने के लिए कोई झिक झिक करनी ही होती है,अन्यथा 24 घंटे क्या दिखाए?अपनी जिम्मेदारियों से दूर जा कर फालतू की बकवास कभी पैसा मिल जाये तो बहस को उसी के पक्ष में मोड़ना यही है टेलीविज़न संसद.