प्रिया और टुम्पा जिसे शायद ये भी नहीं पता कि एक्स्ट्रा को कैरिकुलर एक्टिविटी किसे कहते हैं और यदि यही आवाज किसी कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ रही बच्ची की होती तो आज कहां होती ? उसने शायद ही कभी डांस या सिंगिंग फ्लोर का नाम सुना हो..उसके पास जो हुनर है, उसका रास्ता सीधे सारेगमप लिटिल चैम्प्स की तरफ खुलता है. वो बस इतना जानती है कि दरी-चटाई पर बैठी होने के बीच उनकी मैम गाने कहेगी तो पहले थोड़ा लजाते-शर्माते हुए लेकिन फिर बस गा देना है.
बृजकिशोर नेत्रहीन बालिका विद्यालय,रांची में पढ़ाई कर रही टुम्पा जिसकी यूट्यूब पर मूल वीडियो की दो लाख से भी ज्यादा हिट्स मिल चुके हैं और न्यूज चैनलों और अन्य वीडियो को शामिल कर लें तो पांच लाख से भी ज्यादा. आप रियलिटी शो में शामिल किसी बच्चे की वीडियो हिट्स पर गौर करें, शायद ही किसी की हिट्स महज तीन-चार दिनों में इतनी होगी.
प्रिया जो कि पूर्णिया, बिहार में स्कूली पढ़ाई कर रही है..बेंच क्या ढंग की दरी-चटाई भी नहीं है बैठने के लिए..टेलीविजन के रियलिटी शो के बच्चे की तरह बोलने में होशियार नहीं है. फर्राटेदार अंग्रेजी क्या हिन्दी तक ट्यून्ड नहीं है कि गायन भले ही बी ग्रेड की हो लेकिन भाषणबाजी में नंबर वन..वो लजाती है, मासूमियत और एनोसेंसी उससी पूरी बॉडी लैंग्वेज में है. अभी कुछ ही घंटे पहले उसकी वीडियो अपलोड हुई और हिट्स तेजी से बढ़ रहे हैं.
यूट्यूब पर इन दोनों को जो लोग भी सुन रहे हैं और किसी भी रियलिटी शो की वोट से कई गुना ज्यादा हिट्स मिल रहे हैं, उसके लिए किसी ने बार-बार टीवी स्क्रीन पर अपील नहीं की है. रियलिटी शो के आयोजक से लेकर जजेज और खुद प्रतिभागी की पूरी मशीनरी इसके पीछे नहीं लगी है. हम इन्हें सुन रहे हैं क्योंकि ये आवाज कला और दैत्याकार बाजार व्यवस्था के बीच सेंध लगा रही है. ये आवाज ये साफ-साफ इशारा कर रही है कि गायन की जो आखिरी उपलब्धि रियलिटी शो में सेलेक्ट हो जाना हो गया है जिसके पीछे देश के लाखों बच्चे सहित उनके गार्जियन बेतहाशा भाग रहे हैं..जिसके पीछे ट्रेनिंग सेंटर के नाम पर सैंकड़ों दूकानें खुल गई हैं, कला की दुनिया उससे इतर भी आबाद है. ये दोनों और इनकी आवाज एक ही साथ उन कई मान्यताओं को ध्वस्त करती हैं जिसकी फेर में पड़कर पांच-छह साल के बाकी बच्चे तनाव और डिप्रेशन के शिकार हो रहे हैं.
प्रिया और टुम्पा की इस कला के पीछे स्कूल का कोई दावा नहीं है. स्वाभाविक भी है कि जो स्कूल बैठने तक ही बेंच मुहैया नहीं करा सकता, वो किस मुंह से क्रेडिट ले..लेकिन सोचिए जरा उन पब्लिक स्कूलों के बारे में जहां इससे कई गुना कमतर बच्चे किसी शो, प्रतियोगिता के लिए चुन लिए जाते हैं तो उनके नाम पर वो अपनी कैसी ब्रांडिंग करते हैं, फीस बढ़ाने से लेकर आयोजकों से गलबईयां करके कैसे अपना ढांचा मजबूत करते हैं कि आगे चलकर प्रतिभाओं के लिए उसी स्कूल में पढ़ना मुश्किल हो जाता है.
इन ऑर्गेनिक हुनरमंदों का( ग्राम्शी के ऑर्गेनिक इन्टलेक्चुअल से साभार) सोशल मीडिया जैसे मंच पर जहां एक समय के बाद रिश्तेदारियां और रैकेट काम नहीं करते, प्रोत्साहित करना बेहद जरूरी है जिससे कि हम न केवल इन प्रतिभाओं को बल्कि धंधेबाजों के बीच बुरी तरह फंसी प्रतिभाओं का आत्मविश्वास वापस ला सकें..ये मंच भी आखिर काफी हद तक लोकप्रियता का लोकतंत्र तो रचता ही है.
प्रिया को सुनने के लिए चटकाएं-https://www.youtube.com/watch?v=aLQmcVFEWgM
टुम्पा को सुनने के लिए चटकाएं- https://www.youtube.com/watch?v=zOl6N0TTAjA