वैसे तो मीडिया की बेशर्मी और मानवता, सरोकार को कलंकित करते रहना कोई घटना न होकर रुटीन का हिस्सा रहा है. अब आए दिन ये उसकी रुटीन में शामिल हो गया है कि कैसे मानवता का,सरोकार का, न्यूनतम स्तर की भी आदमियत का गला घोंटकर पैसे उगाही और मंडी को चमकाने के काम किए जाएं. उत्तराखंड में आयी बाढ़ से तबाही के संदर्भ में हम इसे इन दिनों रोज देख ही रहे हैं. लेकिन
न्यूज एक्सप्रेस चैनल के संवाददाता नारायण वरगाही ने जो कुछ किया है, वो मानवता औऱ सरोकार के दायरे से हटकर बाकायदा कानूनी कार्रवाई की मांग करता है...आप में से जिन लोगों को नारायण पर आस्था है, धक्का लगेगा कि ऐसे भी किसी हायवान का नाम नारायण हो सकता है ? इस हरकत के लिए उन्हें चैनल से तत्काल निलंबित किए जाने और पत्रकारिता के पेशे से चलता कर देने के अलावे शायद ही कोई दूसरी सजा हो. कायदे से प्रावधान ये होनी चाहिए कि नारायण पर वो तमाम धाराएं लगायी जाए जो मानवाधिकार के हनन के अन्तर्गत आते हैं.
इस संवाददाता ने अपने से आधी उम्र और वजन के गरीब,लाचार एक शख्स के कंधे पर चढ़कर न केवल पीटूसी दिया बल्कि वो शख्स बड़ी मुश्किल से आगे बढ़ता रहा और ये बेशर्म उस पर चढ़कर टहल्ला मारता रहा. वो उत्तराखंड सरकार का पर्दाफाश करने निकला है लेकिन इस वीडियो को देखकर किसका क्या औऱ कितना पर्दाफाश हो रहा ये इस संवाददाता को पता नहीं है. ये उसकी उस दासप्रथा के समर्थन का सूचक है जहां हाथ में माइक आते ही बाकी पूरे जमाने को अपना गुलाम समझता है.
अगर ये दलील दी जाए कि संवाददाता अगर खुद पानी में चलकर पीटूसी देता तो दिक्कत होती तो अव्वल ये बेशर्मी के अलावे और कुछ नहीं है. सवाल है कि ऐसी जगह से पीटूसी देने की जरुरत क्यों पड़ गयी और दूसरा कि अगर आप वीडियो को ध्यान से देखें तो पानी इतना भी अधिक नहीं है कि किसी शख्स क्या, दूसरी किसी भी चीज पर चढ़कर दी जाए..बहुत ही आसानी से बिना किसी पर सवार हुए ये काम किया जा सकता था. लेकिन
न्यूज एक्सप्रेस के इस संवाददाता ने जो ये घटिया हरकत की है वो किसी मजबूरी के तहत नहीं बल्कि बाकी संवाददाताओं से अलग दिखने, फैशन के तहत किया गया है. आप गौर करें तो उत्तराखंड और यहां तक कि दिल्ली में भी बाढ़ के नाम पर जो भी खबरें दिखाई जा रही है, इस तबाही के बीच भी चैनल और उनके संवाददाता अपने फैशन औऱ अलग दिखने की हरकत से बाज नहीं आते. आजतक पर अंजना कश्यप जैसी संवाददाता जहां वोटिंग करती नजर आयी तो इधर न्यूज एक्सप्रेस का ये बेशर्म उससे कहीं चार कदम आगे निकलकर सीधे एक कमजोर शख्स के कंधे पर से ही पीटूसी करने लगा. इस वीडियो को देखने के बाद आपको लगता है कि मीडिया के भीतर इंसानियत तो छोड़िए बेसिक दिमाग भी बचा है कि इस तरह की हरकतें करने का क्या अंजाम हो सकता है ? इस तरह के फैशन के तहत पीटूसी करने से हम संवाददाता से कितने गहरे जुड़ पाते हैं, इस सवाल को तो छोड़ ही दीजिए, दर्शक इस मीडिया को कितनी हिकारत की नजर से देखता है और बिना किसी छानबीन के सहज ही अंदाजा लगा लेता है कि वो किस घटिया सोच और स्ट्रैटजी से पत्रकारिता के नाम पर गंध मचाने का काम कर रहा है ?
इस वीडियो में तो सिर्फ संवाददाता दिखाई दे रहा है लेकिन क्या कैमरामैन ने भी यही काम किया और वो भी किसी लाचार और कमजोर के कंधे पर चढ़कर शूट किया..मीडिया के इन घिनौने चेहरे पर सिर्फ विमर्श करने का नहीं बल्कि उस पर लगातार उंगली उठाते रहने का समय है..नहीं तो एक दिन सत्ता, कार्पोरेट और अपने टुच्चे स्वार्थ के आगे मीडिया के ऐसे लोग इस समाज को हमारे जीने लायक नहीं रहने देंगे.
वीडियो लिंक- http://www.facebook.com/photo.php?v=4774292447554
https://taanabaana.blogspot.com/2013/06/blog-post_9369.html?showComment=1371834643440#c7818195616949977021'> 21 जून 2013 को 10:40 pm बजे
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन इस दुर्दशा के जिम्मेदार हम खुद है - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
https://taanabaana.blogspot.com/2013/06/blog-post_9369.html?showComment=1371837555684#c8716375537035897938'> 21 जून 2013 को 11:29 pm बजे
सर ये भी इन बेशर्मो को TRP ही लगेगी, बाजारवाद और साम्यवाद की मिलीजुली तस्वीर हैये लोग,अभी मैं ह्रदय जोशी को देख सोच रहा था की ये रिपोर्टर असहाय महसूस कर रहा है,और डर भी रहा है।
https://taanabaana.blogspot.com/2013/06/blog-post_9369.html?showComment=1371880829341#c8725313722787442875'> 22 जून 2013 को 11:30 am बजे
ज्यादा लानतें मिलने से भी बन्दे बेशर्म हो जाते हैं... और ये तो जन्मजात बेशर्म है.
https://taanabaana.blogspot.com/2013/06/blog-post_9369.html?showComment=1371881844451#c3057312258361973396'> 22 जून 2013 को 11:47 am बजे
मैं सहमत हूँ विनीत के लिखे इस कटाक्ष से ..सही में पत्रकारिता अब सिर्फ की ही पत्रकारिता रह गयी अपितु लोगों ने इसका अब अर्थ ही बदल दिया है... टी आर पी पैसा नाम कुछ हाथ के दिखने की प्रतिस्पर्धा क्या इसको पत्रकारिता कहते हैं ??? इस रिपोर्टर को तो जल्द से जल्द बर्खास्त कर देना चाहिए और साथ ही पत्रकारिता प्रोफेशन से भी बहार कर देना चाहिए..
अमित शंखधार
https://taanabaana.blogspot.com/2013/06/blog-post_9369.html?showComment=1371919558321#c542960262126316505'> 22 जून 2013 को 10:15 pm बजे
शर्मनाक है।
https://taanabaana.blogspot.com/2013/06/blog-post_9369.html?showComment=1372096943170#c3549964555818864156'> 24 जून 2013 को 11:32 pm बजे
बिल्कुल सहमत हूँ आपसे।इसे बर्खास्त ही किया जाना चाहिए।इस रिपोर्टर का काम उन लोगों जितना ही घिनौना हैं जो बाढ़ में फँसे लोगों की मजबूरी का फायदा उठाकर चार सौ रुपये का बिस्किट का पैकेट बेच रहे हैं।
https://taanabaana.blogspot.com/2013/06/blog-post_9369.html?showComment=1372835736136#c2602767425514953067'> 3 जुलाई 2013 को 12:45 pm बजे
विदेशी मिडिया से भारत की कल्याण की बात सोचना गलत होगा जनता को इसका कडा जबाव देना होगा, सरकारके पिच्झ्लगु मिडिया का अंत होना चाहिए।