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जानती हो, जब मैं इस दिल्ली शहर की एक-एक इंच पर लोगों को अरमानों के दड़बे बनाते, उसके लिए मरते-भागते देखता हूं तो सोचता हूं शहर के लिए जिस स्पेस की उम्मीद हम करते हैं, वो खालीपन बनकर मेरे भीतर घुस गया है, इतना खालीपन की वो जैसे कब्रिस्तान बनकर पसर रहा हो धीरे-धीरे मेरे भीतर.
तुम ऐसा क्यों कहते हो स्तब्ध ? क्या तुम मुझसे खुश नहीं हो, अपनी जिंदगी से नहीं, उस सिली से नहीं जो दिन-रात तुम्हें खोजती रहती है ? तुम्हारे ऑफिस जाने पर जैसे वो आधी सी हो जाती है ? स्तब्ध जब भी तुम ऐसे बात करते हो न, मैं भीतर से डर जाती हूं. मुझे लगता है कहीं मैं ही..

रिक्तिका, प्लीज ! कुछ तो रहने दो मेरे भीतर भी यकीन कि मैं जो और जैसा महसूस करुं, तुम्हें एक दोस्त की हैसियत से बता सकूं ? कहां तो तुम दि हिन्दू, एक्सप्रेस के एक-एक लेख पर घंटों बहस करने लग जाती हो और अंत-अंत तक अपने को सही साबित करने में लगी रहती हो और कहां जब मैं जैसा फील करता हूं, वैसा ही तुमसे शेयर करना चाहता हूं तो टिपिकल सीरियलवाली पत्नियों की तरह शुरु हो जाती हो ? मैं रामकपूर नहीं हूं रिक्तिका. मैं स्तब्ध हूं स्तब्ध. तुम्हारा वो स्तब्ध जो तुमसे जितना लड़ता है, तुम्हें उस पर उतना ही क्रश होता है...एंड लिसन, तुम भी रिक्तिका हो, मैं नहीं चाहता कि पांच औंस भी तुम्हारे भीतर प्रिया भाभी का आ जाए. मैं तो बस इस सवाल पर तुमसे डिस्कस करना चाहता था कि असल में हम अपनी जिंदगी से चाहते क्या हैं ?

देखो न, जब हमारे साथ के लोग मनकंट्रोल डॉट कॉम क्लिक करते हैं तो हम सैन सेरिफ में आंखें गड़ाए होते हैं. जब लोग छुट्टियों के लिए माइट्रिप की बेस्ट डील टटोल रहे होते हैं तो हम फ्लिपकार्ट पर बेस्टसेलर की बढ़ी छूट की संभावना देख रहे होते हैं. वीकएंड में लोग पीवीआर,वेब के लिए मार करते हैं तो हम आलमारी से झाड़कर फिर एल्विन टॉफ्लर पढ़ने लग जाते हैं. स्टेक्स और प्रोपर्टी पर बात करनेवाले अपने कोलिग को कीड़ा करार देते हैं. सबकी पत्नियां मासी,बूआ,जीजा,ताई पता नहीं किस-किसके यहां शादी,पार्टी में जाकर रिश्तेदारी भंजाते हैं तो हमें अपना ये छोटा सा किराये का घर ही सबसे खूबसूरत लगता है. लोगों के बच्चे पैदा होते नहीं, डॉक्टर ने बस एक्सपेक्टेड बताया नहीं कि चिल्ड्रेन प्लान के पीछे पड़ जाते हैं और सिली चार साल की हो गी, चार हजार की भी फ्यूचर प्लान नहीं. हम अपनी बहसों में अक्सर कहा करते हैं कि ये सब जुटा लेने से भी थोड़े ही लोगों को शांति मिल सकती है पर देखता हूं कि उनके भीतर हमारी तरह कम से कम खालीपन तो नहीं है न. मुझे तो लगता कि हम कहीं अलग जीने की कोशिश में पाखंड़ तो नहीं कर रहे ?

बस स्तब्ध,बस . तुम्हें नहीं लग रहा कि अब तुम भी उसी टिपिकल पति और बाप की तरह बात कर रहे हो जिसे तुम अक्चर ब्लैक टी पीते हुए कोसते आए हो. कहां तो तुम खालीपन पर बात कर रहे थे और अपने भीतर इतना कुछ भरकर जीते हो ? तुमने बल्कि हमदोनों ने इसलिए न ऐसी जिंदगी चुनी कि सामने दिखाई देनेवाली चीजों के मुकाबले कई बड़ी चीजें हमारे भीतर रह जाए. हम कम से कम दूसरों की शर्तों पर जिएं. ये जिंदगी किसी की किस्त बनकर न रह जाए..फिर इसे लेकर इतना क्षोभ क्यों ? नहीं स्तब्ध, तुम्हें अपने ये सब बिल्कुल भी नहीं भरना है. इसके भरने से लाख गुना अच्छा है तुम्हारे भीतर कब्रिस्तान का खालीपन. उसके भीतर झाड़ियां उगेगी तो कम से कम क्रिटिकल तो बने रहोगे न, अपने भीतर समतल जमीन न पनपने तो स्तब्ध. तुम इस खालीपन के साथ ही मुझे प्यारे और हॉट :) लगते हो. जिस दिन तुम्हारे भीतर ये सब भरता गया, तुम भीतर से बहुत तंग हो जाओगे..बस ध्यान रखना, तुम्हारे इस खालीपन में कोई और आकर प्लॉट न काट ले.

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1 Response to 'इस खालीपन में झाड़ियों का उगना अच्छा है स्तब्ध( लप्रेक)'
  1. अनूप शुक्ल
    https://taanabaana.blogspot.com/2013/06/blog-post_8.html?showComment=1370769226545#c2211123364863810887'> 9 जून 2013 को 2:43 pm बजे

    खालीपन में कोई प्लॉट न काट ले।

    जय हो!

     

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