कल देर रात तक बड़े ही अनमने ढंग से चैनल को बदलता रहा। प्राइम टाइम के कार्यक्रमों की रिकार्डिंग पूरी हो चुकी थी. अब मैं अपने मन मुताबिक टीवी देखना चाह रहा था। तभी डीडी नेशनल पर अमीन सयानी की आवाज सुनकर चौंक गया और रुक भी गया.दूरदर्शन के मामले में कई बार ऐसा होता है कि विजुअल्स तो दूरदर्शन के आते हैं लेकिन ऑडियो एफएम रेनवो के आने लगते हैं. आप दूरदर्शन की खिंचाई करने के मूड में नहीं हैं तो आप टीवी देखते हुए रेडियो का मजा ले सकते हैं. मैं तो ऐसे में टीवी भी चालू रखता हूं और रेडियो भी जोर से चला देता हूं, ताकि मिलान कर सकूं कि किससे ज्यादा सुरीली आवाज आ रही है। लेकिन कल रात दूरदर्शन पर सचमुच में अमीन सयानी बोल रहे थे।
और फिर अमीन सयानी ही नहीं, vivid bharti की पहली उदघोषिका शौकत आज़मी, तबस्सुम जो तरन्नुम कार्यक्रम लेकर आती थी, जयमाला के उदघोषक और भी पुराने-पुराने लोग. करीब आधे घंटे तक विविध भारती से जुड़े पुराने लोग दूरदर्शन पर बारी-बारी से आते रहे और रेडियो को लेकर अपने अनुभव बताते रहे.
आज मीडिया में हम जिस परफेक्शन और प्रोफेशनलिज्म की बात करते हैं, इन सारे पुराने लोगों में ये सारी चीजें होते हुए भी माध्यम को लेकर भावुकता साफ झलक रही थी। वो रेडियो में बिताए गए क्षण को महज नौकरी के रुप में नहीं याद कर रहे थे बल्कि रेडियो के बदलाव के पीछे की एक-एक कहानी को बयां कर रहे थे. इसी क्रम में उन सारे लोगों को भी याद करते जाते जिन्होने उन्हें लगातार ब्रश अप करने का काम किया। आज तो एक मीडियाकर्मी अपने जीवनकाल में इतना बैनर बदलता है कि उसे शायद ही याद हो कि किससे क्या सीखा और किसके कहने पर कौन-सी शैली अपनायी। इन सारे लोगों में रेडियो से जुड़ी यादें बरकरार थी.
शौकत आज़मी ने बताया कि एक बार मीटिंग में उन्होंने ही सबसे पहले कहा था कि- गाने के साथ-साथ लेखक का नाम, फिल्म का नाम, संगीतकार का नाम आदि जाएगा। नरेन्द्र शर्मा ने कहा- आगे से ऐसा ही होगा और उसके बाद से आज तक आकाशवाणी में यही फार्मेट चल रहा है। शौकत की शिकायत थी कि आज जो कुछ भी एफएम पर चल रहा है, सब बकवास है, उन्हें न तो बोलने आता है और न ही कार्यक्रम को पेश करने का शउर ही मालूम है। इसी बात को तबस्सुम ने दोहराया कि जिस तरह से हिन्दी फिल्मों में तकनीक के स्तर पर तो खूब तरक्की हो रही है लेकिन कंटेट के स्तर पर वो पिछड़ता चला जा रहा है, यही हाल आज के एफएम का है। इनके पास मैटर की कमी है। गाने के बारे में कहूं तो एक शेर याद आता है कि-
अजब मंजर आने लगे हैं
जो गानेवाले थे, चिल्लाने लगे हैं
तबस्सुम और शौकत की बातों में एक हद तक अतिशयता है। कभी-कभी हम अतीत को बेहतर साबित करने के चक्कर में वर्तमान को ज्यादा घटिया से घटिया साबित करने में लग जाते हैं. ऐसा करने से वस्तुनिष्ठता खत्म होती है. लेकिन इनकी बातों से एक एंगिल तो जरुर सामने आता है कि बिंदास अभिव्यक्ति के नाम पर एफएम में जो कुछ भी चल रहा है, भाषाई स्तर पर वो कितना सही है, इस पर बात की जानी चाहिए.जितने भी लोग रेडियो पर बात कर रहे थे उनमें सबका जोर इस बात पर था कि हम जो कुछ भी आडिएंस के लिए प्रसारित कर रहे हैं उसका सीधा संबंध उसके मन से है, दिल से है. वो हमें बिल्कुल उसी अर्थ में लेते हैं. इसे आप रेडियो की ताकत कह लीजिए या फिर लोगों का भरोसा लेकिन सच तो यही है कि रेडियो लोगों के मन का मीत रहा है।विजयालक्ष्मी सिन्हा जिन्होंने पोस्टल से चालीस स्टेशनों में फीड भेजने के बजाय सेटेलाइट से भेजने की बात रखी थी, कहा- झुमरी तिलैया को झुमरी तिलैया बनाने में आकाशवाणी का बहुत बड़ा हाथ है. आज सब उसे जानते हैं. एकबार जब मैं उधर से गुजर रही थी तो लोगों ने बताया, यही है, झुमरी तिलैया. मैं सोचने लगी, इतनी छोटी सी जगह और इतने सारे खत यहां से आते हैं।
ब्रेक में जाने से पहले विविध भारती के सिग्नेचर ट्यून बजते और रात के ग्यारह बजे पापा कि आवाज कानों में गूंज जाती- दिनभर बजा-बजाकर बाजा को एकदम से खराब ही कर देगा। इसको होस कहां है कि इसमें बैटरी भी खर्चा होता है।
कमल शर्मा बोलते-बोलते भावुक हो गए। करगिल के दौरान जब फौजी भाइयों के लिए जयमाला कार्यक्रम पेश करते थे तो फौजियों की तरफ से खूब फोन आते. सबका यही कहना होता कि- यहां आपके अलावे किसी भी स्टेशन की आवाज नहीं आती. आपको सुनना अच्छा लगता है और हमारा हौसला बढ़ता है। फिर वो इसी के जरिए अपने घर के लिए संदेश भी भेजते। तब मैं महसूस करता कि एसी स्टूडियो में बैठकर एंकरिंग करना कितना आसान होता है और देश के लिए ये जो कुछ भी कर रहे हैं, वो कितना mushkil है। कार्यक्रम पेश करने के बाद न जाने कितनी बार मैं रोया हूं।
न चाहते हुए भी पता नहीं क्यों तबस्सुम की बात पर आंखों के कोर भींग गए. एक बार मैं खान मार्केट में सब्जी खरीद रही थी। मै बुर्के में थी. सब्जीवाले से मैं टमाटर, आलू और बाकी सब्जियों के दाम पूछ रही थी। मैं लगातार बोले जा रही थी और दुकानदार इधर-उधर कुछ खोज रहा था. मैंने पूछा- क्या खोज रहे हो, भाई? उसने जबाब दिया- लगता है मेरा रेडियो अभी भी खुला पड़ा है। शब्दों को लेकर लोगों के बीच इतना गहरा असर.तबस्सुम की बाइट यहीं पर आकर खत्म हो जाती है. मैं सोचता हूं, लाख ढोल पीटने के बाद भी क्या एफएम यह असर पैदा कर पाया है, एकबार आप भी सोचिएगा।
अमीन सयानी की सारी बातों का निचोड़ था कि संचार के लिए मैं पांच स को अनिवार्य मानता हूं। स- सही, सत्य,स्पष्ट,सरल और सुंदर. सुंदर बनानै के लिए उन्होंने कहा कि थोड़ी बहुत नोक-झोंक, खींचतान और ड्रामेबाजी की जाए तो प्रस्तुति में मजा आ जाए. मेरे हिसाब से चारों का तो पता नहीं लेकिन इंडिया टीवी जैसे चैनल ने आप्त वचन के रुप में ग्रहण किया है।
नोट- दूरदर्शन द्वारा प्रस्तुत गोल्डन बॉयस ऑफ इंडियाः विविध भारती, रेडियो को लेकर एक बार फिर से भावुक कर देता है। लेकिन जानकारी के लिहाज से यह दुर्लभ प्रस्तुति है. दूरदर्शन ने जिन फुटेज का इस्तेमाल किया है,मीडिया के छात्र अगर उसे देख भर लेते हैं तो बहुत सारी बातें समझ में आ जाएगी। मीडिया से जुड़े लोगों के लिए यह महत्वपूर्ण दस्तावेज होगा. आप कोई भी चाहें तो मैं इसकी सीडी दे सकता हूं। वैसे बहुत जल्द ही सराय में इसकी एक प्रति भेंट करुंगा, आप वहां से भी ले सकते हैं।