उस लड़की पर से मेरी नजर हट ही नहीं रही थी। गुलाबबाई नाटक के लिए देर हो रही थी, फिर भी मन चाह रहा था कि उसका पीछा करुं, देखूं कहां तक जाती है। तेरह मिनट में जानने समझने की जो जी-तोड़ कोशिश मैंने की वो आपके सामने है -
सिर से पैर तक काले बुर्के में ढंकी, सिर्फ दो आंखें दिखाई दे रही थी। मेट्रो की सीट पर मैं उससे थोड़ी दूर बैठा था। इतनी दूर कि पास बैठी अपनी दोस्त से क्या बात कर रही है, कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था। मुझे उसकी बात सुनने की इच्छा सिर्फ इसलिए होने लगी थी कि जब उसने अपने पैर दूसरे पैर के उपर रखे तो मेरी नजर बुर्के से हुए उघार एक पैर पर चली गई। वही जाना-पहचाना रंग, स्काई ब्लू। हां वो स्काई ब्लू रंग की जिंस पहने थी।
मुस्लिम लड़कियां जिंस पहनती है, ये किसी के लिए भी आश्चर्य की बात नहीं हो सकती। दिल्ली क्या छोटे शहरों में भी पहनने लगीं हैं। लेकिन उपर से बुर्का पहन लेने पर मेरी दिलचस्पी बढ़ती गई। क्योंकि समाज के लाख खुलापन होने की दलीलों के सुनने के बाद भी मुझे लगता है कि सारी लड़कियां जिंस नहीं पहन सकती। जिसमें तो कई संकोच से पहनना ही नहीं चाहती और कईयों के घरवाले भी मना कर देते हैं। जिंस ये जानते हुए कि और कपड़ों से ज्यादा सुविधाजनक है, खासकर के भीड़-भाड़ वाले इलाकों में जाने के लिए, कहीं कुछ फंसने का डर नहीं बावजूद इसके कई लड़कियां पहनने में शर्माती है। हमारे साथ की कुछ लड़कियां तो जिंस को चरित्र से जोड़कर देखने लग जाती थी। एम के दौरान मैं और मेरे दोस्त प्रणव ने एक-दो को कहा भी था कि एक बार जिंस पहनकर देखो, बहुत अच्छी दिखोगी। लेकिन उसका सीधा जबाब होता- हम सलवार सूट में ही ठीक हैं। बहुत कहने पर एक ने खरीदी भी तो बताया कि कुछ दिन घर में ही पहन लूं, आदत नहीं है न। फिर बताया कि आस-पास बाजार जाती है पहनकर, लोग घूर-घूरकर देखते हैं। एक-दो मम्मी की सहेलियों ने कहा कि- ये तो जिंस में ज्यादा ठीक लगती है, बेकार में तम्बू की तरह सलवार-सूट तान लेती है। तब जाकर एमए फाइनल में जिंस स्वाभाविक तरीके से पहनने लगी। अब शादी के बाद एक कोचिंग इन्सटीच्यूट में पढ़ाती है। फोन करके बताती है कि अब वो फार्मल ट्राउजर पहनने लगी है।
हमारे यहां, आज से पांच साल पहले की बात बताता हूं, जब कोई कह देती कि इस बार दशहरा में जिंस खरीदनी है तो घर के बाहर फुर्सत में बैठी औरतें कहतीं- फलां बाबू की लड़की को हवा लग गया है, जीन पैंट पहनेगी...। यानि जिंस के साथ लड़की की चाल-चलन को लम्बे समय तक जोड़कर देखा जाता रहा है।
ये कहना बेमानी ही होगा कि कोई जिंस पहन ले तो वो केवल उससे प्रोग्रेसिव हो जाती है। कई लड़कियां आपको मिल जाएगी जो जिंस पहनकर मंगलवार का व्रत करती है, एमए के हर पेपर के पहले किरोड़ीमल कॉलेज के मंदिर के आगे हाजरी लगाती है। पेपर कैसा रहा, इसका जबाब देने के पहले कहती है- सब भगवान के हाथ में है और हमें हिदायत दिए फिरती है कि तुम इन सलवार-सूट पहनने वाली लड़कियों को नहीं जानते, बस उपर से मासूम बनी फिरती है। लड़कियों की ड्रेस को लेकर सबकुछ इतना गड्डमड्ड हो गया है कि सबसे सही लगता है कि कपड़े देखकर किसी के बारे में कोई राय पहले से मत बनाओ। क्योंकि विद्या भवन में रोज स्वीवलेस पहनकर आनेवाली एक दोस्त को एक दिन देर रात तक इंडिया गेट पर तफरी करवा दी तो अगले दिन से उसके बाबूजी लेने और छोड़ने आने लगे।
....तो भी कपड़ा पहनने के पहले उसे लेकर कॉन्फीडेंस का होना जरुरी है। कोई लड़की जिंस पहनकर पचास बार, राह चलते अपने को निहारे तो वो कितनी एवनार्मल लगने लगेगी, आप समझ सकते हैं।
बुर्केवाली लड़की जो जिंस पहने थी, उसके बारे में क्या कहा जाए। जिंस पहनना उसकी इच्छा, उसकी अपनी मर्जी और चलती फैशन में शामिल होने की बात हो सकती है। जिंस वो अपने मन से पहन सकती है। लेकिन बुर्का भी अपने मन से पहनी होगी, इस बात पर मुझे भरोसा नहीं था और यही जानने के लिए मेरा मन उसका पीछा करने को कर रहा था...
मैं थोड़ा ठीठ बनते हुए अच्छी-खासी सीट छोड़कर हैंडल पकड़कर उसके सामने खड़ा हो गया। कान उसके मुंह की तरफ और चेहरा दूसरी तरफ।....लड़की खिलखिलाकर बातें किए जा रही थी। लग ही नहीं रहा था कि किसी बंदिश की सतायी हुई हो और उसी क्रम में बोले जा रही थी। मामूजान अगर रिदिमा के घर जिंस में देख लेते तो....फिर ठहाके। साथ वाली लड़की ने जोड़ा, तो हलाल कर देते।...फिर दोनों के ठहाके।॥बातचीत से पता चला कि वो दोनों अपनी दोस्त रिदिमा की वर्थ डे पार्टी से लौट रही है। रिदिमा ने उसे सख्त हिदायत दे रखी थी कि...अगर मजारवाला चोला( सलवार सूट) पहनकर आयी तो पीछे कुत्ता छुड़वा दूंगी, तभी उसे जिंस पहनकर आना पड़ा था। दोनों लड़कियां जिंस पहनने की मजबूरी और उपर से बुर्का डालने की मजबूरी के साथ चांदनी चौक आते ही एक दूसरे को कोहिनी मारते हुए, कान में फुसफुसाते हुए स्टेशन की तरफ उतर गयी। जाते हुए एक बार मेरी तरफ पलटकर देखा, उसके देखने के अंदाज से मैंने समझा कि कह रही है-
अजब फ्रस्टू लोग होते हैं, बुर्केवाली को भी नहीं छोड़ते।...
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
https://taanabaana.blogspot.com/2008/04/blog-post_27.html?showComment=1209286380000#c6150722654545615170'> 27 अप्रैल 2008 को 2:23 pm बजे
बहुत कुछ है जो बदलना बाकी है. ऊपर से बदलाव की गति बड़ी तेज दिख रही है बाकी अंदर से मामला कुछ अलग है. सच कहें तो कशमकश वाली स्थिति है बदलाव को लेकर.
आप भी कहां-कहां से कहानियां बटोर लाते हैं विनीत भाई. मान गये. मीडियावालों के लगता है चार आंखें और आठ कान होते हैं. :)
https://taanabaana.blogspot.com/2008/04/blog-post_27.html?showComment=1209286500000#c4001012190736661450'> 27 अप्रैल 2008 को 2:25 pm बजे
अरे भाई आप का लेख एक बार मे ही पढ गया, ओर पुरा पढा, बहुत अच्छा लगा , बल्कि बहुत रोचक लगा,ऎसा लगा जेसे आप के साथ साथ हम भी हे,धन्यवाद
https://taanabaana.blogspot.com/2008/04/blog-post_27.html?showComment=1209286560000#c711771623049129826'> 27 अप्रैल 2008 को 2:26 pm बजे
अब बदलाव को न रोक सकेगा बुर्का। अच्छा प्रेक्षण है।
https://taanabaana.blogspot.com/2008/04/blog-post_27.html?showComment=1209290640000#c4722366053047406864'> 27 अप्रैल 2008 को 3:34 pm बजे
विनीत भइया आपने बुर्के और जींस की बात की तो मैं भी कुछ कहना चाहता हूँ बात ऐसी है कि मेरी भी एक दोस्त पहले जींस नही पहनती थी लेकिन १२ वी के बाद उसने जींस पहनना शुरू किया था हालांकि उसने ऐसा किसी के कहने पर नही किया था और इससे पहले वो कियो नही पहनती थी ये मुझे नही मालूम लेकिन जब मई उससे मिला तो उसने ये बात काफ़ी खुशी से मुझे बताया था और एक साल बाद भी यही बात उसने दुहराई थी
रही बात बुर्के की तो मुझे याद है जब मैं जमशेदपुर मे था तब यह ख़बर वहा की अखबारों की सुर्खिया बनी थी कि लड़किया बुर्के का बेजां इस्तेमाल कर रही है और इसको ले कर काफ़ी हाय तोबा मचा था
https://taanabaana.blogspot.com/2008/04/blog-post_27.html?showComment=1209296220000#c5591456584707244453'> 27 अप्रैल 2008 को 5:07 pm बजे
इस्लामिक आतंकवादियों ने काश्मीर में फरमान जारी किया हुआ है कि अगर कोई लड़की जींस में दिखेगी तो उसके पैर में गोली मार दी जायेगी. कोरी धमकी नहीं है, ऐसी घटनाएँ हुई भी हैं.
जींस निःसंदेह आरामदायक पहनावा है. आपके महानगर का तो पता नहीं पर हमारे शहर में तीन चौथाई स्कूल गर्ल्स अब जींस में ही दिखती हैं.
अच्छी पोस्ट.
https://taanabaana.blogspot.com/2008/04/blog-post_27.html?showComment=1209344760000#c5604260726647251053'> 28 अप्रैल 2008 को 6:36 am बजे
बहुत खूब!
https://taanabaana.blogspot.com/2008/04/blog-post_27.html?showComment=1209378660000#c2450786533595282700'> 28 अप्रैल 2008 को 4:01 pm बजे
दो लाइनें आपके इस पोस्ट से टू याद रहेंगी ही...
पहली : ....तो भी कपड़ा पहनने के पहले उसे लेकर कॉन्फीडेंस का होना जरुरी है। और
दूसरी: अजब फ्रस्टू लोग होते हैं, बुर्केवाली को भी नहीं छोड़ते। :-)