एक जमाना रहा है जब लोगों को धर्म की बात जल्दी समझ में आती थी और इसी के इर्द-गिर्द सारे काम होते रहे। शासन, संधर्ष, लड़ाई, कत्ल और बदलाव की बातें। आज लोगों को धर्म से ज्यादा मीडिया की बात समझ में आती है। और सारे काम इसी के इर्द-गिर्द हो रहे हैं- प्रवचन, योग, करप्शन और राजनीत।
लोगों को ऐसे आप कुछ बताएं समझाएं तो भले ही समझ में न आए लेकिन वही बात जब मीडिया करती है तो तुरंत समझ में आ जाती है। इसे आप मीडिया की असर कहें या फिर एक दौर मान लें।
जिन लोगों की मानसिकता का विकास इस तर्ज पर हुआ है कि सारी चीजें धर्म के अधीन है औऱ इसलिए मीडिया भी।सब कुछ का एक दौर होता है, एक समय के बाद वो चीजें अपने-आप खत्म हो जाती है उनके हिसाब से मीडिया लोगों के बीच प्रभावी है इस बात से ज्यादा महत्वपूर्ण है कि मीडिया का एक दौर है बस। बाकी ऐसा कुछ भी नहीं है कि लोग मार प्रभावित हुए जा रहे हैं। असल चीज है धर्म। अगर ये बचा रह गया तो इसके आसपास चक्कर काटनेवाली चीजें भी लम्बें समय तक बची रहेगी। लेकिन इसका भी एक दौर है, एक समय के बाद धर्म के आगे ये खत्म हो जाएगी। ये सनातनी नजरिया मीडिया को बस कुछ समय का मेहमान मानकर चलता है, सबकुछ बदलने के बीच अगर कुछ शाश्वत है तो सिर्फ उनके ये विचार कि सबकुछ का एक दौर होता है।
धर्म की पगडंडी पर चलकर कितना विकास हो पाएगा, आम आदमी की तकलीफें दूर हो सकेंगी इसका मुझे कोई अनुभव नहीं है। क्योंकि न तो मैंने कभी धर्म को अपनाकर देखा है और न ही इसको लेकर कोई प्रयोग किए हैं। इसलिए मेरे लिए ये दावा करना असंभव होगा कि धर्म के रास्ते पर चलने से इंसान की सारी तकलीफें दूर हो जाएगी।( धर्म जिसके लिए मासूम जलाए जाते हैं, धर्म जिसे बचाए जाने के लिए बच्ची के साथ बाल्तकार जरुरी हो जाता है, धर्म जो एक दूसरे के जान लेने पर नफरत की फसलें तैयार करने में लग जाता है।)
लेकिन मीडिया को लेकर ये दावा कर सकता हूं कि आप और हम जिसे बिकी हुई मीडिया कहते हैं, फ्रैक्चरड मीडिया कहते हैं, बदहवाश परेशान और बौखलाई हुई मीडिया कहते हैं जिसमें काफी हद तक सच्चाई भी है। इन सब के बावजूद आज का समाज मीडियामय होना चाहता है। सनातनियों की तरह धर्म को शाश्वत औऱ मीडिया को कुछ समय का मेहमान भी मानें तो भी इतना तो सच है कि बदलाव की गुंजाइश मीडिया के प्रयोग से है।
इतनी बात तो उन बीजेपी नेताओं को भी समझ में आने लगी है जो कि अब तक धर्म को मूल मानकर राजनीति करते रहे। धर्म को लेकर उनकी श्रद्धा इतनी अधिक रही है कि उसके बूते चलनेवाली राजनीति खत्म भी हो जाए तो भी धर्म तो बचा रहेगा औऱ कभी न कभी इसका फायदा मिलेगा, इस विश्वास के साथ सींचते रहे। आज वो भी मीडिया के दौर में या यों कहें कि दौड़ में शामिल हो गए हैं। मीडिया ने उन्हें भी अपनी तरफ खींच , उन्हें भी मीडिया लिटरेट कर दिया, तकनीकी स्तर पर दुरुस्त कर दिया जैसे बाबाओं को किया है और जो आज लेपल माइक लगाकर प्रवचन करते नजर आ रहे हैं। एक तरह से कहें तो आज मीडिया ने धर्म से लेकर राजनीति तक को अपनी शर्तों पर जीने के लिए विवश कर दिया है।....औऱ देखिए कि और फिलहाल वो भी रिलीजियस फैक्टर से दूर हो गए। राजनीति के खंभों पर धर्म का भोंपा लगाने के बजाए टीवी और माइक लगाने लग गए। इसे आप मीडिया के पॉपुलर होने और समाज की डिसाइडिंग फैक्टर के तौर पर समझ सकते हैं।
एनडीटीवी की खबर के मुताबिक बीजेपी ने यूपीए सरकार के विरोध में मंहगाई टीवी लायी है जिसमें वाकायदा मनमोहन सिंह कोष से खाने के लिए लोन लेने की बात बता रहे हैं और रिकवरी के लिए लालू प्रसाद को लगाया है। इसी तरह से सोनिया गांधी और बाकी नेताओं को शामिल किया है। बीजेपी ने पूरी की पूरी मीडिया मेटाफर का इस्तेमाल किया है। नहीं तो लालू को रिकवरी के लिए क्यों लगाते। मीडिया की तरह मंहगाई टीवी को भी पता है जो आदमी मुर्गी के लिए भैंस इतना चारा रिकवर कर सकता है वो लोन की रकम क्यों नहीं। ये बात साफ है कि पिछले छ महीने में मंहगाई दर जितनी तेजी से बढ़ी है वो यूपीए की सरकार के लिए आनेवाले लोकसभा चुनावों में परेशानी का सबब बन सकती है और परेशानी का सबब बनाने के लिए उसकी विरोधी पार्टी जी-जान से जुटी है। मंहगाई टीवी जिसके तहत लोग अपनी बात आकर सीधे-सीधे कर सकते हैं, ये उसी एंजेंडे का एक्सटेंसन है। इस बात पर बहस करना और बात को खींचना जरुरी नहीं है क्योंकि इतना सब लोग जानते-समझते हैं।
लेकिन समझने वाली बात ये हैं कि जिस पार्टी के कार्यकर्ताओं के हाथों में अब तक भगवा झंड़े रहे, जिसकी धाह ( गर्मी) की वजह से बीच-बीच में कमल भी कुम्हलाता रहा, जिसकी ललाट पर जय श्रीराम का पट्टा बंधा रहा, आज उनके हाथों में महंगाई टीवी की लेबल लगी माइक है। पार्टी कार्यकर्ता अपनी पुरानी आदत के हिसाब से उसे भी जब-तब लहराते नजर आ रहे हैं। जिस बात के लिए अबतक हमारे रिपोर्टर साथियों को लताड़ते रहे, दुत्कारते रहे आज उनकी ही नकल करते हुए बड़े ही फूहड़ तरीके से बाइट लेते फिर रहे हैं। मीडिया ने इन नेताओं का हुलिया बदल दी है। अब न तो वो नेता ही लग रहे हैं और न ही पत्रकार जो कि वो है ही नहीं। एक अविश्वसनीय कैरेकेटर, जिन्हे देखकर घृणा भी होती है, तरस भी आती है कि पॉलिटिक्स तुमसे क्या न करवाए और खुशी भी होती है कि जिस मीडिया को तुम गरिआते रहे, उस पर आए दिन नकेल कसने की कवायदें करते रहे, आज उन्हीं के वेश में आ गए। कबीर याद आते हैं मुझे-
लाली मेरे लाल कि, जित देखूं तित लाल
लाली देखन मैं गई, मैं भी हो गई लाल।
अभी तुममें इतनी समझदारी नहीं आयी है कि तुम मीडिया को बदल सको। आज अगर वो थोड़ा भटक गयी है तो वो भी अपनी शर्तों और सहुलियतों के लिए, तुमसे डरकर तो बिल्कुल भी नहीं और अगर अपने मतलब के लिए मीडिया का बेजा इस्तेमाल करने की ये हरकत पॉलिटिकल ट्रेंड में बदल दिए, इसी तरह के भौंडे प्रदर्शन करते रहे तो दुत्कारने की प्रक्रिया उल्टी हो जाएगी और राह चलते मीडिया तुमसे कहती फिरेगी....
हंहंहंहं, ये चलाएंगे देश, पहले रिपोर्टर बनने की हसरत पूरी हो जाए तब न। अभी तो देखा ही मीडिया का असर, तब भी देखिएगा कि कैसे मजबूत होता है मीडिया का दौर।
आगे पढ़िए, राजनीति और स्वार्थ से हटकर कैसे चल रहा है बीकानेर में शीशपाल का रेडियो और कैसे शीशपाल गढ रहे हैं, सूचना क्रांति का सही और नया अर्थ।।।।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
https://taanabaana.blogspot.com/2008/04/blog-post_19.html?showComment=1208584320000#c6556744419778961294'> 19 अप्रैल 2008 को 11:22 am बजे
यहां मध्यप्रदेश में भी बीजेपी ने कांग्रेसी महंगाई के विरोध में होर्डिंग्स, पोस्टर लगा रखे हैं. उन्हें लग रहा है कि अब राम नाम से वोट नहीं मिलते.
वैसे ये महंगाई टीवी वाली बात पहली बार सुनी
अगली कड़ी का इंतजार है.
https://taanabaana.blogspot.com/2008/04/blog-post_19.html?showComment=1208585580000#c2676898265337519839'> 19 अप्रैल 2008 को 11:43 am बजे
अच्छा लिखे बंधु. बस ध्यान दिलाना चाह रहा था कि भाजपा एक ऐसी पार्टी है जो अपने तमाम दकियानुसी विचारधारा के बावजूद मीडिया और नए तकनीकी का इस्तेमाल करने वाला भारत का पहला राजनीतिक चैनल है. कुछ भी कर सकते हैं भाजपाई.
ये भी ठीक ही है कि जो बड़े बड़े संतों और घोघा बसंतों से नहीं होता है आज वो काम मीडिया कर दे रही है.
https://taanabaana.blogspot.com/2008/04/blog-post_19.html?showComment=1208585640000#c6326590252784972942'> 19 अप्रैल 2008 को 11:44 am बजे
राजनीतिक चैनल की जगह राजनीतिक पार्टी प्ढ़ा जाए.
https://taanabaana.blogspot.com/2008/04/blog-post_19.html?showComment=1208596980000#c5470004103834293135'> 19 अप्रैल 2008 को 2:53 pm बजे
विनीत जी,चलिए मीडिया नेताओं के लिए तो काम आ रहा है.मैने भी ये खबर देखी थी, समझ नही आया हंसा जाय या रोया.ये नेतागिरी क्या ना करवाए. अपने चीरफाड़ अच्छी की है इस खबर की.
https://taanabaana.blogspot.com/2008/04/blog-post_19.html?showComment=1357364307782#c7676396495661701930'> 5 जनवरी 2013 को 11:08 am बजे
हादसा गर हुआ नहीं होता
आदमी वो बुरा नहीं होता
आदमी आदमी से डरता है
ख़ौफ़ दिल से जुदा नहीं होता
कब किधर से कहाँ को जाना है
आदमी को पता नहीं होता
कोई इमदाद ही नहीं करता
मेहरबाँ गर ख़ुदा नहीं होता
काश तेरी परेशां ज़ुल्फ़ों को
शाने तक ने छुआ नहीं होता
जो जुबाँ से तुम्हारी निकला था
काश मैंने सुना नहीं होता
कौन जाने नज़र से उनकी ‘मीत’
दूर क्यों आईना नहीं होता