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अविनाश भाई को जैक ऑफ ऑल पसंद नहीं

Posted On 1:20 am by विनीत कुमार |

अब तक आपने पढ़ा कि और ब्लॉग की तरह यशवंत दा के कहने पर भड़ास पर भी लिखने लगा। और इस तरह से मैं मोहल्ला, हल्ला बोल और भड़ास पर पोस्ट भेजता रहा। कल मैंने राकेश सर के ब्लॉग हफ्तावार का जिक्र किया था, माफ करें उन्होंने मुझे हफ्तावार के लिए नहीं सफर के लिए लिखने कहा था और दो पोस्ट मैंने उस पर भी लिखी है। अब आगे.....
भड़ास पर अमूमन मैं वो सारी पोस्ट्स भेजता जो कि मैं अपने ब्लॉग पर लिखता। भड़ास के लिए कोई अलग से पोस्ट नहीं लिखता। जबकि बोलहल्ला और मोहल्ला के लिए अलग से लिखता। वो सारी पोस्ट बोल हल्ला और मोहल्ला की जरुरत के मुताबिक होती। जनसत्ता के लोगों से मेरा कुछ झमेला हो गया और उनका व्यवहार मुझे कुछ अटपटा सा लगा सो मैंने उन सारी बातों को लेकर एक पोस्ट लिखी और उसी पोस्ट को ऊड़ास पर भी डाल दिया। बाद में इसे लेकर कुछ हंगामा भी हुआ। यशंवत दा ने मॉडरेटर की ओर से कसने के बजाय ब्लॉगर के लिए सेल्फ डिसीप्लीन में होने की बात कही। उसके बाद से मैंने भड़ास पर कोई पोस्ट नहीं डाली। क्योंकि भड़ास के ज्यादातर लोग मीडिया से जुड़े हैं और मैं अक्सर मीडिया के खिलाफ बोल जाता हूं। ये अलग बात है कि जो भी बोलता हूं वो अनर्गल नहीं होता। मीडिया से जुड़े लोग भी इस बात को शिद्दत से महसूस करते हैं। उनकी भी मजबूरी है कि वो खुलेआम इसकी आलोचना नहीं कर सकते।
उस घटना के बाद मैंने मोहल्ला पर भी कुछ नहीं लिखा। हां आशीष की बात मैं टाल नहीं पाया और दो-तीन पोस्ट बोल हल्ला पर लिखे। अपने मन मुताबिक, अपनी मर्जी की पोस्ट। इसी बीच मैं लम्बे समय के लिए बीमार हो गया। बीमारी भी ऐसी कि ठीक होने के बाद भी सीधे बैठने में तकलीफ होती। करीब दस-बारह दिनों तक कोई पोस्ट नहीं लिख सका, पढ़ सका। तभी मेरे कुछ दोस्त जिन्हें कि मैंने ब्लॉग पढञने की लत लगा दी है, बताया कि ये तुम्हारे मोहल्ले पर क्या हो रहा है।
पता चला, भड़ास ने मनीषा पांडेय के संबंध में अपशब्द का इस्तेमाल किया है। इधर इस मामले में अविनाश भाई भी कूद गए हैं और बात में मामला मोहल्ला वर्सेज भड़ास बन गया। मोहल्ला पर आया तो देखा, मार-काट मची है, किसी की सदस्टता को अविनाश भाई रद्द कर रहे हैं तो कोई खुद अपने को मोहल्ला से अलग होने की घोषणा कर रहा है। मैं हमेशा की तरह एक पोस्ट अविनाश भाई की ओर ठेलता, इसके पहले मैंने पूछ लिय कि एक पोस्ट भेज रहा हूं आप उसे दुरुस्त करके पोस्ट कर देंगे। अविनाश भाई ने कहा, अभी मत भेजिए हम अभी गाजा को सलाम कर रहें हैं। और वैसे भी हम मोहल्ला पर किसी दूसरे ब्लॉग पर प्रकाशित पोस्ट नहीं पब्लिश करेंगे। ( मोहल्ला पर लिखे कई दिन हो गए थे सो मैंने सोचा कि जो पोस्ट मैं गाहे-बगाहे पर लिख रहा हूं उसी को मोहल्ला पर भी दे दूं।)
इतना तो मैं पहले से जानता था कि मोहल्ला के लिए मुझे अलग से लिखना है और मोहल्ला जब किसी मुद्दे पर बात कर रहा होता है तो बात एक सीरीज में चलती है। मैंने भी अविनाश भाई की बात को उचित समझा।
लेकिन दो दिन बाद जब मैंने अपना डैशबोर्ड देखा तो मोहल्ला गायब था। मुझे हैरानी हुई और मैंने तुरंत अविनाश भाई को मेल किया। मेल करने पर बताया कि -हां क्योंकि दोनों जगह नहीं रहा जा सकता। थोड़ी आपत्ति मुझे इस बात पर हुई कि दो जगह क्या अब तक तो चार-चार जगहों पर लिख रहा था और मेरी तरह कई लोग भी ऐसा ही कर रहे थे,तब तो कोई आपत्ति नहीं हुई। लेकिन इससे भी ज्यादा अफसोस मुझे इस बात को लेकर हुआ कि अविनाश भाई ने मुझे तय करने का मौका ही नहीं दिया कि मैं कहां रहना चाहता हूं। एक तो ब्लॉग की दुनिया में ऐसा होना ही नहीं चाहिए कि अगर आप एक जगह लिख रहे हैं तो दूसरी जगह न लिखें। हां ये हो सकता है कि कोई कितनी भी जगह लिखे लेकिन जहां वो लिख रहा है वहां की जरुरत और मिजाज के हिसाब से लिखे।...तो भी अविनाश भाई ने अपनी तरफ से बिना कोई सूचना के मोहल्ला से मुझे हटा दिया। जबकि भड़ास को लेकर स्थिति पहले जैसी है। इस बात के आधार पर अपने आप घोषित हो गया कि मैं भड़ासी हूं। मैं उसी मानसिकता का आदमी हूं जो एक स्त्री को बाजार में निशाना बनाता है, मैं वही हूं जो बेबाक लिखने के नाम पर लम्पटई करने लग जाता है। यानि आज अगर एक भड़ासी ने किसी स्त्री को लेकर अपशब्द कहें हैं तो कल को मुझमें भी इस बात की संभावना है कि मैं भी ऐसा ही करुंगा। ....और इस बात को अविनाश भाई ही क्यों कोई भी भला, इज्जतदार आदमी बर्दाश्त कैसे कर सकता है। कायदे से तो उसे ब्लॉग की दुनिया से निकाल फेंकना चाहिए, अविनाश भाई ने तो फिर भी मामला मोहल्ला तक ही रखा।
यही मानसिकता दूसरे स्तरों पर जब लोग लागू करने लग जाते हैं तो हमें परेशानी हो जाती है। एक बिहारी के गड़बड़ करने पर पूरे बिहारियों के उपर शक की सुई घुमने लग जाती है। एक बढ़ी हुई दाढ़ी के आतंकवादी के पकड़े जाने पर दाढ़ी रखनेवाली पूरी कम्न्युटी को शक के घेर में ले लिया जाता है। आखिर हमारी मानसिकता का विकास इसी स्ट्रक्चर में तो होता है और जब हम ही इसके शिकार हो जाते हैं तो हाय-हाय मचाने लग जाते हैं।
....और इस पूरे प्रकरण में मेरी एक धारणा चरमरा कर रह गयी कि- ब्लॉगिंग में व्यक्तिगत स्तर पर पहचान बनाने की पूरी गुंजाइश है ।लेकिन नहीं जैसे ही आप किसी कम्युनिटी ब्लॉग में लिखने लग जाते हैं आपकी पहचान उसके मॉडरेटर के साथ जुड़ जाती है और फिर रस्साकशी मॉडरेटर के बीच शुरु हो जाती है जहां ब्लॉगर की हैसियत बहुत छोटी मान ली जाती है या फिर हो जाती है।
ये पूरी कहानी रही कि कैसे अंतर्जाल की पहचान और आपसी संबंध धीरे-धीरे राग-विराग में फंसते चले जाते हैं जो कि हिन्दी ब्लॉगिंग के लिए निश्चित तौर पर खतरनाक स्थिति है। हिन्दी ब्लॉगिंग करनेवाला कोई भी शख्स ऐसा होते नहीं देख सकता। अविनाश भाई भी नहीं। तभी तो महीने भर बाद भड़ास और मोहल्ला की गुत्था-गुत्थी औऱ अनिल रघुराज के नाराज होकर मोहल्ला से चले जाने के बाद उन्होंने उनके नाम पैगाम लिखा-
कही अनकही बातों की अदा है दोस्ती
हर रंजो-ग़म की दवा है दोस्ती
इस ज़माने में कमी है
पूजा करने वालों की
वरना इस ज़माने में ख़ुदा है दोस्‍ती
अविनाश भाई ने इसके पीछे जरुर कोई गूढ़ अर्थ देखा होगा, हम इसे पैगाम मान रहे हैं। आगे पढ़िए भड़ासी बिना सूना है मोहल्ला
इसे भी पढ़े तो अच्छा होगा-
जब तब याद आता है मोहल्ला
मेरी पोस्ट मसक जाती और अविनाश भाई झांकने लगते
| edit post
8 Response to 'अविनाश भाई को जैक ऑफ ऑल पसंद नहीं'
  1. PD
    https://taanabaana.blogspot.com/2008/04/blog-post_05.html?showComment=1207338240000#c7773696247243489433'> 5 अप्रैल 2008 को 1:14 am बजे

    चुप रहना सबसे संवेदनशील तरीका है कुछ कहने का.. वैसे आपका लिखा अच्छा लग रहा है.. :)

     

  2. Rajesh Roshan
    https://taanabaana.blogspot.com/2008/04/blog-post_05.html?showComment=1207372320000#c3956957189935996052'> 5 अप्रैल 2008 को 10:42 am बजे

    ब्लॉग का एक पुराना नियम है आप अपने मिजाज के हिसाब से लिखे न की मोद्रेटर या किसी और के हिसाब से. जिन्हें बुरा लगता है वो उसे ना पढे, ना कमेंट दे

     

  3. सुजाता
    https://taanabaana.blogspot.com/2008/04/blog-post_05.html?showComment=1207373760000#c723737662142972096'> 5 अप्रैल 2008 को 11:06 am बजे

    तुम्हारे "भाय जी मैडम जी का ब्लॉग "यानि तुम्हारे ब्लॉग रोल मे एक भी तो मैडम नही है सभी भायजी हैं !का मजरा है ?
    वैसे ये कारण कुछ समझ नही आया जो तुम बता रहे हो ,तुम्हे भड़ासी मान कर निकाला गया और भड़ास इतना बुरा है तो भड़ास को भी तो ब्लॉग रोल से हटाना चाहिये था ।
    वैसे नामोनिशाँ तो मेरा भी अविनाश जी ने मोहल्ला से हटाया ही है ,हम फिर भी है और रहेंगे :-) चिल्ल मैन चिल्ल !!ये सब बेकार की बातें हैं ।दुखी होने का कुछ नही है ।

     

  4. Ashish Maharishi
    https://taanabaana.blogspot.com/2008/04/blog-post_05.html?showComment=1207375500000#c7868916586718116551'> 5 अप्रैल 2008 को 11:35 am बजे

    विनीत बाबू, बोल हल्‍ला हमेशा आपके लेख का स्‍वागत करेंगा। यह बड़े दुख की बात है कि ब्‍लॉगिंग में भी पत्रकारिता की तरह गंदी राजनीति हो रही है

     

  5. Sanjeet Tripathi
    https://taanabaana.blogspot.com/2008/04/blog-post_05.html?showComment=1207383660000#c5978126668501556790'> 5 अप्रैल 2008 को 1:51 pm बजे

    सुजाता जी ने मार्के की बात कही, सो "बी कूल"!! टेंशन नई लेने का!!

    और हां आशीष भाई एक बात बताओ, यार अधिकतर मैने देखा है लोगों को दुख जताते कि ब्लॉगिंग मे ये होने लगा वो होने लगा, अरे भाई आखिर ब्लॉग पर वही लोग ही है न, जो हमारे आसपास होते हैं, चाहे पत्रकारिता के या अन्य किसी से!
    तो जब लोग वही है तो बीमारिया क्यों न आएंगी यथार्थ जगत की यहां पर, अब ब्लॉग लिखने वाले अन्य किसी जगत के तो है नही न, वही है आप हम या अन्य जिनसे यह समाज है आज का, सो आज के समय की बातें बीमारियां, लक्षण सब मौजूद ही रहेगा ब्लॉग जगत में भी!!
    वैसे भी जहां इंसान नाम का प्राणी रहेगा वहां राजनीति जरुर रहेगी!! लिख के ले लो इस बात को!!
    याद रखिए एक लेखक ने कहा है कि वेश्यावृति के बाद राजनीति ही मानव का सबसे प्राचीन पेशा है!!

     

  6. Ashish Maharishi
    https://taanabaana.blogspot.com/2008/04/blog-post_05.html?showComment=1207383840000#c3269866339034286912'> 5 अप्रैल 2008 को 1:54 pm बजे

    संजीत भाई से पूरी तरह सहमत लेकिन इसे मानकर क्‍या हम हाथ में हाथ रख कर बैठे रहें

     

  7. सुजाता
    https://taanabaana.blogspot.com/2008/04/blog-post_05.html?showComment=1207396320000#c5442804003938608451'> 5 अप्रैल 2008 को 5:22 pm बजे

    नही भई ! हाथ पर हाथ रखकए न बैठो ,लेकिन विलाप भी न करो । बहुत कुछ नही बदल सकते हम । तो जितना बदलने की हैसियत है उसे बढाने के लिये धीरे धीरे प्रयास करना चाहिये ।

     

  8. Sanjeet Tripathi
    https://taanabaana.blogspot.com/2008/04/blog-post_05.html?showComment=1207416540000#c3594406235836185392'> 5 अप्रैल 2008 को 10:59 pm बजे

    सुजाता जी की बात से सहमत हूं!

     

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