पहले तो मन में आया कि इस पोस्ट का शीर्षक दूं- आजतक चैनल में घुस आए हैं निकम्मे लोग। फिर बाद में लगा,ऐसा लिखना सही नहीं होगा। ये बात कोई आजतक चैनल की अकेले की नहीं है,कमोवेश सभी चैनलों में मामला एक सा ही है। दूसरी बात कि इस शीर्षक के तहत बात करने का मतलब है चैनल की दमभर खिंचाई करना और अपनी भड़ास निकालकर चुप मार जाना। मैं चैनल के इस एप्रोच पर भड़ास निकालने या चुप्पी मारने के बजाय उस मुद्दे तक आना चाहता हूं जहां चैनल के लिए ब्लॉगिंग का मतलब सिर्फ अमिताभ बच्चन है,शाहरुख के ब्लॉग की दुनिया में कूद पड़ने की खबर है,आमिर खान के अपने ब्लॉग के जरिए कॉन्ट्रवर्सी पैदा करना है। कुल मिलाकर ब्लॉगिंग सिलेब्रेटी और उस टाइप के लोगों के लिए अपने फैन,ताक लगाकर बैठी मीडिया और न्यूज डेस्क पर बाट जोह रहे चैनलकर्मियों के लिए कुछ टुकड़े और मसाले फेंक देने की जगह है। एक ऐसी जगह जहां से देश का बड़ा से बड़ा अखबार उन टुकड़ों को उठाकर पूरे आधे पन्ने की खबर छाप सके,न्यूज चैनल आधे घंटे की स्पेशल स्टोरी बना सके। उस पर दुनियाभर के एक्सपर्ट के फोनो और चैट लिए जा सकें। यानी बिना हर्रे और फिटकरी लगाए सिलेब्रेटी चोखे तरीके से खबरों में टांग फैला दे। हिन्दी में करीब 12 हजार से भी ज्यादा हम जैसे लोग जो ब्लॉगिंग कर रहे हैं उन्हें समझना होगा कि ब्लॉग को लेकर जो नजरिया और समझ विकसित की जा रही है वो ब्लॉग की दुनिया के विस्तार के काम आएगा?
इस बात को मानने में रत्तीभर भी दुविधा नहीं है कि जब से अमिताभ बच्चन ने ब्लॉगिंग की दुनिया में कदम रखा,मनोज वाजपेयी ने हिन्दी में ब्लॉगिंग शुरु की और शशि थरुर ने ट्विटर के जरिए अपनी बात कहनी शुरु की तब से आमलोगों को भी इसके बारे में जानकारी मिलनी शुरु हुई। इन्टरनेट की दुनिया में इस पर लिखे जाने का मतलब समझने लगे। नहीं तो आम आदमी क्या यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर तक लंबे समय तक यही समझते रहे कि ब्लॉगिंग कोई चैटियाने जैसी चीज है। इनलोगों के आने और लिखे जाने से ब्लॉगिंग,ट्विटर फेसबुक और सोशल साइटें तेजी से इस देश में पॉपुलर हुए। एक ब्लॉगर की हैसियत से हमें इन सबों का शुक्रिया अदा किया जाना चाहिए। आज गांव और कस्बों में जाने पर भी जब लोग हमारे बारे में बताते हैं कि ये ब्लॉगर हैं तो उन्हें मोटे तौर पर बात समझ आ जाती है कि हम क्या करते हैं? कई जगह हमें अमिताभ और मनोज वाजपेयी की परंपरा का जानकर पाइरेटेड सम्मान भी मिला है। बहरहाल,मुद्दा इसके आगे का है। मुद्दा ये है कि क्या सिलेब्रेटी और आम ब्लॉगरों के लिखे जाने में कोई फर्क नहीं है? दूसरी बात कि क्या सिलेब्रेटी और ब्लॉगिंग एक दूसरे के पर्याय हैं। इस मसले पर बात करना इसलिए भी जरुरी है कि एक आम आदमी इसे एक-दूसरे से घालमेल कर देता है तो बात समझ में आती है लेकिन देश का सबसे तेज कहलाए जानेवाला चैनल सहित बाकी मीडिया अगर ऐसा कहते है,ऐसा दिखाते-बताते हैं तो हमें गंभीरता से लेना होगा।
सीएसडीएस सराय में जो ब्लॉगर्स मीट हुई दिल्ली आजतक ने उस पर 32 सेकण्ड की स्टोरी चलायी। इस 32 सेकण्ड में ऐसा कुछ भी नहीं था जो कि ये स्पष्ट करता हो कि इस मीट में क्या बातें हुई, इस तरह के ब्लॉगर जमा होकर किस तरह की बातें करते हैं? ऐसे आयोजनों का क्या मतलब है जबकि वो वर्चुअल स्पेस में पहले से मौजूद हैं? खबर में ये भी नहीं बताया कि इसका आयोजन कहां किया गया था,कितने लोग शामिल हुए? कुछ भी नहीं। अविनाश वाचस्पति के एसएमएस किए जाने पर(बाहर आएं,आजतक वाले बात करना चाहते हैं.) जब मैं बाहर निकलकर दिल्ली आजतक के रिपोर्टर को बाइट दे रहा था और जिस तरह से वो सवाल कर रहे थे उससे दो बातें साफ हो गयी- एक तो ये कि इस बंदे को ब्लॉगिंग के बारे में कुछ भी नहीं पता। पता भी है तो सिर्फ इतना कि इसका संबंध अमिताभ बच्चन और दूसरे सिलेब्रेटी से है और दूसरा कि इन्हें हमसे कुछ बेसिक जानकारी चाहिए जिसे कि वो एंकर शॉट बनाकर पेश कर देंगे। उन्होंने इस मसले पर रविकांत,अविनाश वाचस्पति और मुझसे कुछ सवाल किए। वही कि कितनी संख्या है,क्यों करते हैं,ब्ला ब्ला।
कुछ गलती अपनी तरफ से भी थी कि 2 बजे से शुरु होने की बात करके भी ढाई बजे तक हिन्दी सॉफ्टवेयर पर प्रजेंटेशन चलता रहा। लेकिन वो तब तक मौजूद रहे और शुरु होने के कुछ देर बाद ही गए। इस बीच चाहते तो वहां से लोगों को बोलते हुए,एक-दूसरे को रिस्पांड करते हुए कुछ फुटेज ले सकते थे। लेकिन कुछ नहीं किया। बस बैठे रहे। उनके एटीट्यूड और बाद में खबर देखकर मेरे दिमाग में एक ही बात आ रही थी। इस स्टोरी को कवर करने में कम से कम दो हजार रुपये तो जरुर खर्च हुए होंगे। उपर से करीब तीन घंटे तक कैमरा यूनिट, गाड़ी, ड्राइवर, कैमरामैन और खुद रिपोर्टर फंसा रहा। इस बीच शहर की कोई इससे भी जरुरी स्टोरी कवर हो सकती थी। इन्होंने चैनल का पैसा पानी में बहाया। खबर देखकर हमें कहीं से नहीं लगा कि इस 32 सेकण्ड की स्टोरी के लिए इन्हें यहां तक आने की जरुरत थी। वो जो कि एक लाइन में इसके बारे में बताया,फोन से भी पूछ सकते थे। इस हिसाब से एक पूरा का पूरा एंगिल बनता है कि आप विश्लेषित करें कि कैसे खबरों को कवर करने के लिए लगाए संसाधनों का दुरुपयोग होता है जबकि खबरें इन्टरनेट के फुटेज,विजुअल्स और कंटेंट से चेपकर बनाए जाते हैं। पूरी खबर में वही बात कि किस-किसका ब्लॉग है? लगभग सारे शॉट्स अमिताभ बच्चन जैसी हस्तियों के और फिर वो जो कि लगे कि कुछ इन्टरनेट पर से जुड़ी खबर दिखायी जा रही है।
सवाल ये है कि कैडवरी,रीड एंड टेलर,पार्कर और बोरोप्लस जैसे ब्रांड अमिताभ बच्चन और चैनल को उत्पाद बेचने के लिए पैसे देते हैं तो ये सब ऑडिएंस के आगे बेचा जाता है( विज्ञापन दिखाए जाने से कन्ज्यूमर बन जाने की प्रक्रिया) लेकिन हर खबर के साथ ऐसा किया जाना किस हद तक जायज है? मैं यहां तक मानने को तैयार हूं कि संभव है कि ब्लॉगिंग की दुनिया में ऐसे लोगों के आ जाने से कई लोगों ने उनसे इन्सपायर्ड होकर इन्टरनेट पर अपनी मन की बातें लिखनी शुरु कर दी हो। लेकिन अब जबकि हिन्दी ब्लॉगिंग की दुनिया में इसकी खुद की एक पहचान तेजी से बन रही है,दुनियाभर के मसलों पर कंटेंट हैं,लगातार लिखा-पढ़ा जा रहा है तो क्या जरुरी नहीं है कि चैनल सिलेब्रेटी की ओट लेकर खबरें दिखाना कम करे? चैनल के लोग जब स्पोर्ट्स,क्राइम,फैशन कवर करने जाते हैं तो कुछ होमवर्क करके जाते हैं। ऐसे में हिन्दी ब्लॉगिंग को कवर करने आए मीडियाकर्मी कुछ नहीं तो कम से कम दो-चार एग्रीगेटर और दस-पांच ब्लॉग तो देखकर आ सकते हैं। मैं महसूस करता हूं कि हिन्दी ब्लॉगिंग ने इतनी हैसियत बना ली है कि उस पर बिना सिलेब्रेटी से जोड़े या फिर उन्हें एकलाइन में शामिल करते हुए बाकी बातें इसके बनते-बदलते मिजाज पर की की जा सकती है और की जानी चाहिए। समाज,राजनीति,स्त्री-विमर्श,मीडिया विश्लेषण और हाशिए पर के समाज को लेकर जो कुछ लिखा जा रहा है उस पर बात की जाए। अब अभिव्यक्ति,अस्मिता,दबाव और संस्थानों के भीतर की घपलेबाजी को लेकर जो चीजें इसके जरिए सामने आ रही है उस पर बात होनी चाहिए। हिन्दी ब्लॉगिंग के लिए ये वो समय है जब इससे जुड़ी खबर को सिलेब्रेटी से जोड़कर और उन्हीं तक सीमित करके दिखाया जाता है तो इससे उसका नुकसान छोड़ फायदा नहीं। ऐसे में हम चाहेंगे कि मेनस्ट्रीम मीडिया इससे जुड़े कार्यक्रमों को न ही कवर करे तो बेहतर,कम से कम लोगों को इसके बारे में समझने में वक्त लगेगा लेकिन मीनिंग स्रिकिंग जैसी खतरनाक स्थति तो नहीं बनेगी।..फिर भी अगर फायदा है तो इस पर भी बहस हो।...
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https://taanabaana.blogspot.com/2010/01/blog-post_15.html?showComment=1263536830841#c4836200060184116884'> 15 जनवरी 2010 को 11:57 am बजे
विनीत भाई,
कुछ दिनों पहले मेरी फ़ोटोकॉपी की दुकान पर एक महिला आईं जो "लाइब्रेरी साइंस एण्ड जर्नलिज़्म" में पीएचडी कर रही हैं और शायद उनके गाइड ने उनसे "ब्लॉग" विषय पर भी एक चैप्टर रखने को कहा है। जब मैंने जर्नल्स की फ़ोटोकॉपी करते वक्त उत्सुकता से पूछा और साथ ही यह बताया कि मैं तीन साल से ब्लॉग लिख रहा हूं तो उन्हें एक जोर का झटका धीरे से लगा, फ़िर जब बताया कि "हिन्दी" में ब्लॉग लिखता हूं, तो एक और झटका लगा, फ़िर बताया कि तीन साल में लगभग 300 लेख लिख चुका हूं, जो आपकी पीएचडी थीसिस का कम से कम चार-पांच गुना तो निश्चित ही होगा (एक झटका और), और फ़ाइनल झटका ये कहकर दे दिया कि मेरे 500 से अधिक सब्स्क्राइबर हो चुके हैं जो मुझे नियमित पढ़ते हैं…।
मुझे यह बताने में कोई संकोच नहीं है कि उक्त महिला बेहोश होते-होते बची… कारण सिर्फ़ यही है जो आपने बताया है… कि उन मोहतरमा के दिमाग में भी "ब्लॉग" शब्द का पर्यायवाची सिर्फ़ अमिताभ, आमिर और मनोज ही थे…। वे कभी कल्पना भी नहीं कर सकती थीं कि उज्जैन जैसी जगह पर रहकर कोई "दुकानदार" किस्म का आदमी उन्हें ब्लॉगिंग पर एक छोटा-मोटा लेक्चर दे सकता है।
https://taanabaana.blogspot.com/2010/01/blog-post_15.html?showComment=1263538568105#c2176841931460311619'> 15 जनवरी 2010 को 12:26 pm बजे
विनीत जी,
आपकी चिंता जायज है...अधिकाँश लोगों को ब्लॉग्गिंग के बारे में नहीं पता और इसे ये अमिताभ बच्चन और आमिर खान से जोड़ कर ही देखते हैं,आजकल अमर सिंह भी आ गए हैं...पर इन चैनल्स पर भरोसा है,आपको?..इनकी कौन सी ख़बरें देखने लायक होती हैं? पता नहीं किन दर्शकों के लिए ये बनाते हैं ख़बरें. जरा भी स्तर नहीं बचा है.मुझे तो कहीं से उम्मीद नहीं की ये अच्छी ख़बरों के लिए कोई होमवर्क करते हैं...हाँ चटपटी ख़बरें हो फिर तो इनकी तत्परता देखते बनती है.
पर मैं थोडा हिंदी ब्लॉग जगत से थोड़ी निराश हूँ.यहाँ अच्छा और स्तरीय लेखन बहुत कम लोग पढ़ते हैं.आज इसी विषय पर एक पोस्ट लिख रही हूँ,वक़्त मिले तो देखें.
https://taanabaana.blogspot.com/2010/01/blog-post_15.html?showComment=1263544944197#c1699347168170360792'> 15 जनवरी 2010 को 2:12 pm बजे
बदनाम हुए तो भी नाम तो होगा
भारत में विशेषज्ञ मीडिया अनुपस्थित है इसलिये कचरा ज्यादा परोसा जाता है .
अभी शैशवकाल है हिन्दी ब्लॉग जगत का . समाचार पत्रों ने तो इसे स्थान देना प्रारंभ कर दिया है पाबला जी तो एक ब्लॉग ही इस पर लिख रहे हैं
समाचारों को भी देखें तो आज भी दूरदर्शन सबसे बेहतर है . बाकी तो केवल बैंड बजाते रहते हैं, सर्वोत्तम सबसे आगे इत्यादि
https://taanabaana.blogspot.com/2010/01/blog-post_15.html?showComment=1263549115363#c8072782831107453955'> 15 जनवरी 2010 को 3:21 pm बजे
sach he, ji../ hindi blog jagat me bahut khuchh esa ho rahaa he jo shayad kabhi saahity jagat me nahi hua.., bahut achhi gyaanvardhak jaankaariyo ke saath jeevan ke sabhi rango-roopo ko ynhaa ham dekh-samjh-padhh sakate he.., aour sahi mayane me saahitya jab hamare saamne bikharaa he to fir ye Amitabh bachhan aadi???? aour ye media vaale???? bas inhe aap yu samajhe ki achhe khaane me kankar aa jaate he, aour vese bhi aajkal milaavat khoob hoti he har jagah, hara taraf.../
https://taanabaana.blogspot.com/2010/01/blog-post_15.html?showComment=1263549116163#c3914663316245176375'> 15 जनवरी 2010 को 3:21 pm बजे
ब्लागीरी अभी दस साल की बच्ची है। इसे जवान तो होने दो। फिर देखना।
https://taanabaana.blogspot.com/2010/01/blog-post_15.html?showComment=1263550390432#c2314905652335961293'> 15 जनवरी 2010 को 3:43 pm बजे
आम पत्रकार के ज्ञान का परीक्षण करें तो वह औसत से भी कम होगा। उनका काम केवल आपके द्वारा दिए गए समाचारों को छापना मात्र है। चैनल भी केवल सस्ती खबरे ही दिखाते रहते हैं। अभी वे इन्टरनेट ही नहीं जानते तो ब्लागिंग क्या जानेंगे। धैर्य रखिए कुछ दिनों में विश्वसनीय समाचारों के लिए लोग ब्लागिंग का ही सहारा लेंगे।
https://taanabaana.blogspot.com/2010/01/blog-post_15.html?showComment=1263553579927#c6102384556974247730'> 15 जनवरी 2010 को 4:36 pm बजे
विनीत जी , आप शायद हमें भूले नहीं होंगे .एक बार हमारी बात हो चुकी है . आपने यहाँ ब्लॉग हितैषी मुद्दे को उठाया है . आखिरकार हजारों लोग हिंदी ब्लोगिंग से जुडे हैं ,सैकड़ों ऐसे लोग है जो अपना अधिकाश समय इसी को देते हैं . फ़िर ,ऐसी उपेक्षा क्यों है ? कहीं ऐसा तो नहीं कि पारंपरिक मीडिया को इस नये वैकल्पिक माध्यम से खतरा महसूस होने लगा है और इस कारण वो हमें नजरअंदाज करने की कोशिश करते हैं ?
वैसे मैं यह स्पष्ट कहना चाहूँगा कि अब तक भारतवर्ष में ब्लोगिंग को नजरअंदाज और इससे जुडे लोगों को अकसर हतोत्साहित ही किया जाता है . अभी पिछले सप्ताह ही जामिया में पत्रकारिता के शिक्षक से बात हो रही थी . उनके पूछने पर कि क्या कर रहे हो ,मैंने कहा सर आजकल वेब पत्रकारिता में लगा हुआ हूँ तो उन्होंने टपक से कहा ये सब बकबास है ,अरे कहीं प्रिंट या इलेक्ट्रोनिक में घुस जाओ नहीं तो जिन्दगी बर्बाद हो जाएगी . अरे अख़बारों का बड़ा नेटवर्क है ,कहाँ पड़े हो अलोगिंग-ब्लोगिंग के चक्कर में !
और एक बात बिलकुल यथार्थ है आप जिस पत्रकार लोगों की बातें कर रहे हैं उनमें से एकाध ही मिलेगा जो ऑरकुट और जीमेल भी जानता हो ! आप पत्रकारिता के छात्रों को ही ले लीजिये , जामिया और डीयू मिलकर २०० के आस-पास छात्र होंगे उनमें से २५ लोग भी इंटरनेट यूजर नहीं है अगर हैं भी तो महीने में एकाध बार घूम-टहल लेते हैं . मेरी कक्षा में ४२ लड़के -लड़कियां हैं जिनमें से ४ इंटरनेट यूजर हैं और मुझे छोड़ कर सिर्फ दो लोगों को अच्छी तरह से ब्लोगिंग पता है .
जयराम "विप्लव"
http://www.janokti.com/
mob -9555798502
https://taanabaana.blogspot.com/2010/01/blog-post_15.html?showComment=1263563114201#c193053932889817864'> 15 जनवरी 2010 को 7:15 pm बजे
ब्लॉगिंग एक वैकल्पिक मीडिया की तरह उभर रहा है, यहाँ तक की इसकी ताकत पहचानते हुए सर्च इंजनों ने भी 'केवल ब्लॉग में खोजें' का विकल्प उपलब्ध करवा दिया है. और ज़ाहिर सी बात है ब्लॉग पढने वाले और इंटरनेट के उपयोक्ता टीवी देखना या रद्दी अखबार पढना कम कर देते हैं. इंटरनेट उपयोक्ताओं की संख्या अभी कम है तो ओसका असर देखने में नहीं आ रहा. पर अगर देश में वेब प्रयोग करने वाले लोगों का प्रतिशत चीन जितना हो गया तब तो सच में समाचार चैनलों और समाचारपत्रों को कड़ी टक्कर मिलने लगेगी.
यह बात कहीं न कहीं मीडिया में ऊँचे बैठे लोग जानते हैं, तो क्यों कोई सांप क्यों नेवले के बच्चे को पुचकारेगा?
https://taanabaana.blogspot.com/2010/01/blog-post_15.html?showComment=1263582663066#c3217771060638051320'> 16 जनवरी 2010 को 12:41 am बजे
Aap nay jo likha 100 % such hai. Har aadami Amitabh Bachchan hai. Vo 1 achchay actor ho saktay hai. per blog kay asli hero to aap or hum he hain.. :-)
https://taanabaana.blogspot.com/2010/01/blog-post_15.html?showComment=1263601595461#c2498421044106234232'> 16 जनवरी 2010 को 5:56 am बजे
सुरेश जी का संस्मरण बड़ा चुटीला है, बेचारी महिला सच में ही बेहोश हो गई होगी। मैं तो कल्पना कर रहा हूँ कि शेर के शिकार कर लेने जैसे भाव रहे होंगे सुरेश जी के चेहरे पर :-) हा हा हा
रश्मि जी की निराशा मुझे निराश करती है। उनके शब्दों में थोड़ा बदलाव किया जाए तो यहाँ अच्छा और स्तरीय लेखन पढ़ कर बहुत कम लोग प्रतिक्रिया देते हैं।
दिनेश जी शायद एक और जेन्डर विवाद की ओर जाना चाह रहे :-)
कुल मिला कर आपकी बात ठीक है कि इंटरनेटीय जागरूकता ही कम है तो ब्लॉगिंग़ क्या खाक जानेंगे लोग। फिर भी कथित जिम्मेदार मीडिया से कुछ अपेक्षा तो की जा सकती है।
बी एस पाबला
https://taanabaana.blogspot.com/2010/01/blog-post_15.html?showComment=1263609747194#c6707499061105938399'> 16 जनवरी 2010 को 8:12 am बजे
विनीत जी ने तार्किक ढंग से विशिष्ट शैली में अपनी बात को रखा...पूर्णत सहमत...
जय हिंद...
https://taanabaana.blogspot.com/2010/01/blog-post_15.html?showComment=1263617996088#c4980736780822716435'> 16 जनवरी 2010 को 10:29 am बजे
पूरे निकम्मे नहीं हैं चैनल वाले
काम तो कर रहे हैं
पर इन्हें इतना ही आता है
प्रत्येक जगह इन्हें अमिताभ भाता है।
ब्लॉगिंग का मतलब सिर्फ अमिताभ बच्चन
हो सकता है
पर हिन्दी ब्लॉगिंग का मतलब नहीं
वे तो आप और हम हैं।
मेरी सलाह है कि
एक खांटी टाईप का हिन्दी ब्लॉगिंग मिलन
किया जाये आयोजित
जिसमें इन ब्लॉग-निरक्षरों को बुलाया जाये
ये आयें तो इन्हें ब्लॉग-साक्षर बनाया जाये
इनसे भी इनका ब्लॉग बनवाया जाये
फिर ये गलतियां नहीं करेंगे
करनी तो नहीं चाहियें इन्हें फिर गलतियां
फिर भी करेंगे तो खुद ही डूब मरेंगे।
हम और आप
चाहें कितना भी कर लें अभिनय
पर ये हमें सुर्खियां नहीं बना सकते
हमें तो ये सिर्फ तभी बनायेंगे सुर्खियां
जब हम करें काम कोई देशविरोधी
जो हम कर नहीं सकते
और जान लें आज हम सब
कि सुर्खियां हम बन नहीं सकते
हमसे तो इन्हें चाहियें
सिर्फ और सिर्फ चुस्कियां।
इन्हें तो बस यूं ही उधेड़ते जाओ
खदेड़ो मत सिर्फ उधेड़ो
शायद तब यह जान पायेंगे
हमें पहचान पायेंगे।
जो हम कर रहे हैं
वो हमारे लिए सहज है
पर जो वे कर रहे हैं
वो उनके लिए भी असहज है
तो क्या उन्हें हज पर
चले जाना चाहिये ?
हज पर न जायें
पर आपकी बात में दम है
वे होमवर्क करके आयें
पर होमवर्क करने वे
किसके घर जायेंगे
बतलाऊं मैं
वहां भी इन्हें विनीत कुमार नहीं
अविनाश वाचस्पति भी नहीं और
रविकांत भी नहीं
सिर्फ अमिताभ, आमिर, शाहरूख
ही नजर आयेंगे।
तो दोषी कौन हुआ ?
https://taanabaana.blogspot.com/2010/01/blog-post_15.html?showComment=1263623733855#c619965850298714629'> 16 जनवरी 2010 को 12:05 pm बजे
बात में दम है जी।
https://taanabaana.blogspot.com/2010/01/blog-post_15.html?showComment=1263652533984#c5433558615595034327'> 16 जनवरी 2010 को 8:05 pm बजे
जब फ़ोन, टीवी, अख़बार या इन्टरनेट आया था तब भी क्या पाले खींचे थे ? असल में ब्लॉग ने ख़बरों और प्रचार के दुकानदारों का धंदा मंदा करने की गुंजाईश पैदा की है इसलिए ख़बरों को दुधारू गाय समझनेवाले परेशां हो रहे हैं. प्रचार, पहुँच, खबर, सन्देश, और आलोचना - इन सभी उपक्रमों से पेट पालनेवाले अब चिंता में हैं की जब ब्लॉग पर फ़िल्में रिलीज़ हो रही हैं, किताबों का विमोचन हो रहा है, ग़लत और घटिया हरकतों,ख़बरों,बयानों की वा.... तो बचा क्या?
सरकार ख़बरों को सेंसर नहीं कर सकती, कोई मठाधीश किसी नए को ग़ुलाम नहीं रख सकता, कोई अपनी मानसिक सड़ांध छिटका कर बच नहीं सकता, और कोई स्थापित-नया,बड़ा-छोटा नहीं रह गया.
सबसे अच्छी बात की यहाँ नगद हिसाब होता है, उधार कुछ नहीं, अभी दो और अभी लो! बहरहाल मज़ा आ रहा है.
https://taanabaana.blogspot.com/2010/01/blog-post_15.html?showComment=1263804003633#c3849796805246856092'> 18 जनवरी 2010 को 2:10 pm बजे
sir aapne apni aap kabuli me kaha hai ki aap tv k kattar darshak hai fir ye narajgi kyo lekin sir in tv walo khilaf bhi awaj uthani sahi hai kyoki in tv walo ki har baat ka sambandh sirf badi hastiyo se hota hai