सीएसडीएस-सराय,दिल्ली में आयोजित ब्लॉगर्स मीट की शुरुआत रविकांत की इस खुली घोषणा से होती है कि इस मीट का हमारा कोई अपना एजेंडा नहीं है। पहले से यही तय है कि सब मिल जाएं तो कोई एजेंड़ा हो जाए। लेकिन हां इसके बावजूद एक एजेंडा है कि आपका विज्ञापन हो जाए। विज्ञापन वाली ये बात संभवतः कविताकोश के लिए कही गयी। कविताकोश से ललित और अनिल जनविजय अपनी बात रखने के लिए हमारे बीच अंत तक बने रहे। अनिल जनविजय ने तो एजेंडे के सवाल पर साफ कहा कि हम सिर्फ सुनने का एजेंडा लेकर आए है। ललित ने इसे थोड़ा और विस्तार देते हुए अपनी बात शुरु की- कविताकोश को लेकर अगर आपको कोई परेशानी है,कुछ बताना या जानना चाहते हैं,कुछ जोड़ना या कमेंट करना चाहते हैं तो आप करें बजाय इसके कि हम इस पर अपनी तरफ से बात करें। इस तरह ललित और अनिल जनविजय ने अपनी भूमिका एक वक्ता के बजाय लिस्नर के तौर पर आते ही तय कर दी। लेकिन कविताकोश को लेकर जिस तरह से सवाल किए गए और एक के बाद एक सवालों का जैसा तांता लग गया,ऐसे में इन दोनों को जल्द ही अपनी भूमिका बदलनी पड़ गयी।..हॉल में बैठी ऑडिएंस ने भी जल्द ही मान लिया कि ये अपनी बात इसी भूमिका में रखनेवाले हैं।
कविताकोश को लेकर पहला सवाल अविनाश ने उठाया। अविनाश ने कविताकोश के महत्व और उसकी भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा कि- ये सही बात है कि ये एक ऐसा मंच है जहां कि कोई भी कवि बड़ा या छोटा नहीं है। सारे कवियों को आप एक तराजू पर तौलते हैं। लेकिन एक सवाल कि बहुत सारी कविताएं जो कि अभी रेड में आ रही है उसे आप कैसे फिल(fill) करेंगें?(रेड मतलब कि जब आप उस कविता के शीर्षक पर चटकाते हैं तो पूरी कविता आने के बजाय ब्लैंक आता है,कविता नहीं)। इसी के साथ जुड़ा एक और सवाल कि जो कविताएं कॉपीराइट के तहत आती है उसे आप किस रुप में देखते हैं? अविनाश के सवाल का सीधा-सीधा जबाब देते हुए
हिन्दी समाज में रचनाकारों की मानसिकता और उनके रवैये को बेपरदा करते हुए अनिल जनविजय ने कहा कि- हिन्दी में बड़े से बड़ा कवि कविता छपवाने के लिए प्रकाशकों को इस बात की गारंटी देते हैं कि आप हमें छापिए, हम आपकी 500 कॉपी बिकवा देगें। पैसे देकर किताबें छपवाते हैं। कॉपीराइट के मसले पर कविताकोश से जुड़ने के लिए एक साल तक लड़ता रहा। हिन्दी में कॉपीराइट का कोई मसला नहीं है। लोग छपना चाहते हैं।
अविनाश ने अपने सवाल को आगे बढ़ाते हुए कहा कि तब इजाजत जैसा कोई मसला नहीं है? अनिल ने इसके जबाब में कहा कि- इजाजत जैसी कोई बात ही नहीं है। कोई नहीं कहता कि क्यों लेते हैं? एक सिर्फ रति सक्सेना का मामला उठा। वो कृत्या नाम से एक पत्रिका चलाती है। उन्होंने एक अनुवाद छापी थी और मैंने उनकी अनुमति से अपने यहां छापी। वो अनुमति की बात भूल गयी और हमें लिखकर भेजा कि आपने बिना पूछे मेरी कविता छाप दी,आप पर कानूनी कार्यवाही करगें। हमारे पास इजाजत और फोटो थी। केदारजी ने कभी भी कानूनी कार्यवाही की बात नहीं कही। कभी नहीं कहा कि मेरी कविताएं क्यों ली? बल्कि और खुश होकर दूसरी भी किताबें दी कि इसे भी डाल देना। उदय प्रकाश जैसा बिकनेवाले कवि ने भी हमें कभी कुछ नहीं कहा। बाद में कहा कि हमें किसी ने भड़का दिया था। इसी बात पर ललित ने कहा कि-कविताकोश में कॉपीराइट को लकर मामला लिखा हुआ है। हमारे पास पॉलिसी है। आप एक बार लिखिए हम हटा देंगे। रतिजी ने दुबारा कोई रिक्वेस्ट नहीं भेजा। इगो तब हो जब हम सेम फील्ड के हों। इस बीच अविनाश ने नाम हटाए जाने को लेकर कविताकोश में इगो के सवाल को भी उठाया।
इस बीच ये भी सवाल सामने आया कि कई बार लोग पैरलल नाम से लिखकर अपनी रचनाएं भेजते होंगे जिसके जबाब में अनिल ने कहा कि ऐसा तो साहित्य के भीतर कहानियों और उपन्यासों में भी होता आया है? उसका आप क्या करेंगे। लेखक और लेखन की ऑरिजिनलिटी की इसी बहस में सीधे तौर पर शामिल होते हुए रविकांत ने कहा कि-हम ये क्यों तय करे कि ये कॉपी है और कौन ऑरिजनल है? और तब इस बहस के बीच पैरोडी शब्द को धर दिया दिया गया। कुछ देर तक इन आसपास के चंद शब्दों के बीच अकादमिक स्तर पर परिभाषित करने जैसा दौर चला। विभाष वर्मा ने साफ कर दिया कि पैरोडी और कॉपी में फर्क है। अविनाश ने कविताकोश की तारीफ में कहा कि आप इसमें उर्दू की भी कविताएं शामिल कर रहे हैं,ये अपने आप में क्रांतिकारी कदम है। अनिल इस तारीफ से थोड़ी देर के लिए लजा जाते हैं। तभी रविकांत अपनी बात कर जाते हैं-हम तो इसलिए इसके फैन ही हुए कि इसमें उर्दू की भी कविताएं हैं। ललित और अनिल जनविजय कविताकोश के पक्ष में दो बातें बार-बार दोहराते हैं- एक तो ये कि इसके भीतर कॉपीराइट का कोई गंभीर मसला नहीं और जो है भी तो वो सब लिखा हुआ है और दूसरा कि हम सेवा का काम कर रहे हैं। हम गैरव्यावसायिक तरीके से काम कर रहे हैं। जब तक चल रहा है,चला रहे हैं जिस दिन जरुरत पड़ेगी लोगों से मांगेगे,अभी नहीं। ये बात दरअसल कविताकोश को लेकर अविनाश की तरफ से उठाए गए सवाल से उठी जब उन्होंने साफ-साफ सवाल किया कि कविताकोश का रेवन्यू मॉडल क्या है?
अभी तक आपने पढ़ते हुए ये महसूस किया कि कविताकोश को लेकर इस पूरी बहस में सिर्फ पांच लोग शामिल है। ललित,अनिल जनविजय,अविनाश रविकांत और आंशिक तौर पर विभाष वर्मा। कभी-कभी पूरी बहस को सुनते हुए ऐसा लगा सारी ऑडिएंस एक तरफ और अविनाश,ललित और अनिल जनविजय एक तरफ। लेकिन अविनाश ने जैसे ही रेवन्यू मॉडल पर सवाल किया लगभग पूरा हॉल उस बहस में कूद पड़ा। सही अर्थों में ब्लॉगिंग मीट का प्रस्थान बिंदु यही से बनता है।
अनिल और ललित ने इस मसले पर साफ तौर पर कहा कि हम सेवा का काम कर रहे हैं। जो भी खर्चे हैं हम अपने स्तर से चला रहे हैं,अभी जरुरत नहीं है। अनिल जनविजय ने कहा कि विदेश में बैठकर जब हम साहित्य अकादमी के दस हजार के विज्ञापन के बारे में सोचते हैं तो लगता है दो सौ डालर ही न।..फिर इस एक विज्ञापन के लिए दस बार चक्कर लगाने पड़ेगे। अनिल के सेवा और संतुष्टि वाले अंदाज से ज्यादातर लोग असहमत नजर आए। खासकर वो लोग जो तकनीकी सत्रों में अपनी बात रखकर इस मीट में भी शामिल रहे।
अंकुर ने सीधा सवाल किया कि- आप कब तक सैचुरेशन पर होकर काम करते रहेंगे। कल को हो सकता है कि आपको सर्विस चाहिए हो,आप पीछे में एक बैग्ग्रांउड क्यों नहीं चाहिए? आप अकाउंट बनाइए। नॉन प्रॉफिट बनाइए। आप कैसे इसके जरिए प्रोमोट कर सकते। आप बड़ा क्यों नहीं होना चाहते? आप बड़े नहीं होगें तो छोटे होते चले जाएंगे और कोई और बड़ा हो जाएगा। कल को कोई कविताकोश से भी कुछ बड़ा कर जाएगा। अगर पैसे होगें तो जरुरत अपने-आप बन जाएगी। मोटे तौर पर उदाहरण देते हुए अंकुर ने कहा कि मेरे कॉलेज फेस्ट में कविता पाठ प्रतियोगिता होती है। लोग बड़ी संख्या में भाग लेते हैं लेकिन वो कविताकोश को नहीं जानते। आपको नहीं लगता कि आपको ऐसे लोगों तक जाना चाहिए? इसका ज्यादा से ज्यादा विस्तार करना चाहिए। दूसरी बात कि ब्लॉगिंग या साइट का मतलब सिर्फ टेक्ट्स तो नहीं है। उसमें ऑडियो भी शामिल है,विजुअल्स शामिल है। आप नॉनप्रॉफिट बेस पर भी कई दूसरे कार्यक्रमों के जरिए इसका विस्तार तो कर ही सकते हैं।
अंकुर के इस सुझाव पर रविकांत ने कविता रेसिटेशन की जरुरत को रेखांकित किया। कविताकोश को विज्ञापन या फिर आर्थिक मदद लेनी चाहिए या नहीं इस पर अच्छी-खासी बहस चलती है। बाद में आकर मामला कुछ इस तरह से बनता है कि अंकुर और सत्यकाम जोशी, ललित और अनिल जनविजय को लेकर कन्विंशिंग मोड में आ जाते हैं कि आपको विज्ञापन लेने चाहिए,लोगों से आर्थिक मदद लेनी चाहिए। सत्यकाम ने तो आपसी बातचीत में यहां तक कहा कि मैं तो पोर्न साइटों में भी हिन्दी के विज्ञापन देखता हूं। लेकिन दोनों ने साफ तौर पर कहा कि वो ऐसा नहीं करने जा रहे हैं। अनिल जनविजय ने साहित्य अकादमी के विज्ञापन के साथ जो दूसरे रेफरेंसेज दिए उससे जो बात निकलकर सामने आयी वो ये कि- ऐसा नहीं है कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं है कि विज्ञापन के जरिए कविताकोश का विस्तार बहुत अधिक विस्तार होगा। वो जानते हैं। लेकिन वो एक तरह से कहें तो इन पचड़ों में पड़ना नहीं चाहते। वो मैनेजरी नहीं करना चाहते। दूसरी बात कि उन्हें साफ तौर पर लगता है कि अगर वो इसे पैसे से जोड़ते हैं तो रचनाकारों के स्तर पर परेशानियां बढ़ेगी। इस बात को को समझते हुए मिहिर ने कहा कि-हमने बात कॉपीराइट से शुरु की थी। अभी फ्री में दे रहे हैं। लेकिन पैसा आने से इनका मोटिव ही खत्म हो जाएगा।
कविताकोश,विज्ञापन और पैसे-कौड़ी को लेकर जो चर्चा शुरु हुए उससे एक मजबूत महौल बना कि ब्लॉगिंग से कैसे कमायी की जा सकती है? अर्निंग के स्तर पर इसमें क्या स्कोप है? संभवतः इसलिए विनय झा ने अविनाश से सीधा सवाल किया कि हिन्दी में विज्ञापन कब से मिलने शुरु हो जाएंगे? अविनाश ने इस सवाल को बाकी के लोगों के आगे सरका दिया जिसे कि अंकुर ने पकड़ा। अंकुर ने विस्तार से तकनीकी स्तर पर ब्लॉग और विज्ञापन के गुर बताने शुरु किए।...बैठकर ये सबकुछ सुनते हुए मुझे लगने लगा कि इस ब्लॉग मीट में पूरा मामला एक तो कविताकोश और दूसरा कि ब्लॉग से कमाई तक में ही जाकर न सिमटकर रह जाए तभी भूपेन ने वनलाइनर सवाल हमलोगों के सामने लाकर पटक दिया।
उन्होंने साफ कहा-क्या गूगल और ब्लॉगिंग सिनानिमस है? मुझे लगता है कि हिन्दी ब्लॉगिंग पर बात करते हुए हमें कई एस्पेक्ट पर बात करनी चाहिए। दूसरा सिर्फ उसके कंटेंट पर विस्तार से बात करनी चाहिए। उसके पढ़नेवालों पर बात करनी चाहिए। पैसा कमानेवाली बात ही काफी नहीं है।
अब देखिए यहां से पूरी बहस में लोगों की शिरकत पहले के मुकाबले ज्यादा बढ़नी शुरु होती है। मेरा मानना रहा कि आपलोग जो सारे मामले को विज्ञापन और कमाई के बीच उलझा रहे हैं इसके महत्व को समझने के वाबजूद भी हमें बाकी चीजों पर बात करनी होगी। मुझे नहीं लगता कि कोई भी ब्लॉगर जब अपनी पोस्ट लिखना शुरु करता है तो इस नीयत से कि उसे इससे कमाई करनी है। वो तो अपनी बात कहना चाहता है,वो सबकुछ जो उसके जेहन में है और जिसे मेनस्ट्रीम में जगह दी जाए इसकी कोई गारंटी नहीं। इस बीच एक भाषा बनती है,संस्कृति के सवाल पनपते हैं और अखबारों,चैनलों से अलग खबरों और बातों की एक नयी दुनिया बनती चली जाती है। इसे देखना होगा। इसी बीच ब्लॉगर सुशील छौंक्कर जरुरी काम आ जाने की वजह से विदा हो लिए।
ब्लॉग लेखन और कमाई तक सीमित कर देनेवाली बात जो असहमति हमने जतायी उस बात को आगे बढ़ाते हुए अभिषेक ने कहा कि- ब्लॉगिंग एक पत्रकारिता का जरिया है। लेकिन सीधे-सीधे इसे कमाने का जरिया और इसके लिए आसान फार्मूला खोजने के बजाय पहले सोचा जाना चाहिए। हमें दायित्व और अधिकार पर बात करनी चाहिए। अभिषेक ने ये जोड़ते हुए कि अगर यहां पर हमारे पत्रकार भाई बैठे हों तो माफ करेंगे लेकिन जो चीज पत्रकारिता से चली गयी वो ब्लॉगिंग से न चली जाए। अभिषेक की इस बात पर अविनाश ने कहा कि ये तो खुला चीज है,कोई इसके जरिए सिर्फ अफवाह फैलाना चाहे तो वो भी कर सकता है। साथ ही ब्लॉगिंग के भीतर एक इन्डीविजुअलिटी का भी तो सवाल है। पब्लिक डोमेन के बीच भी अपनी बात रखते हुए कोई अपनी इन्डीविजुअलिटी को कोई कैसे बचाता है,इसे भी तो समझना होगा। आज आपके दस हजार हिन्दी ब्लॉगर हैं तो आप सब समझ रहे हैं लेकिन जिस दिन औसत दर्जे के लोग भी लिखने लग जाएं और ब्लॉगरों की संख्या(हिन्दी में) लाख के पार हो जाए,तब क्या आपकी यही समझ काम करेगी? अविनाश की इस बात पर अनिल जनविजय ने चुटकी लेते हुए कहा कि और आप तो ये काम कर ही रहे हैं। अनिल ने ये बात मजाकिया अंदाज में कही लेकिन अविनाश ने संभवतः इसे दिल पर ले लिया। वो अनिल से इस बात की ताकीद करने लगे कि बताइए कि हमने किस मामले में अफवाहें फैलायी?
बहरहाल इस बात से विमर्श के दो बिन्दु उभरकर सामने आ गए। एक तो अकाउन्टविलिटी का एथिक्स का सवाल और दूसरा कि अभिषेक ने जिस पत्रकारिता को बचाए रखने की बात कही उससे ब्लॉगिंग और वैकल्पिक मीडिया के संदर्भ में बातचीत करने का महौल बन गया।। इस बीच अविनाश वाचस्पति ने अपने अनुभव से हासिल ब्लॉग के महत्व के बारे में कहा कि-ब्लॉग के जरिए पूरे विश्व में कम्युनिकेशन बहुत सहज हो गया है। अपने विचारों के लोगों से आपस में विचार विनिमय होता है। अब तो ब्लॉग पर लिखा हुआ बहुत सारे लोग पढ़ रहे हैं। इस पर लिखी हुई सामग्री पर अच्छी प्रतिक्रियायें प्राप्त होती हैं। मैं अपने नुक्कड़ ब्लॉग, जिसमें तकरीबन 70 लेखक जुड़े हुए हैं और यह 95 देशों में पढ़ा जाता है,के जरिए हिन्दी लिखने पढ़ने का प्रचार प्रसार हो रहा है। ब्लॉग अब विकास की अनिवार्यता बनकर सामने आ रहा है और मैं रोजाना कम से कम भी 5 घंटे का समय ब्लॉग लेखन को नियमित रूप से दे रहा हूं। इन दोनों मुद्दों पर भूपेन,रविकांत और अविनाश एक बार फिर से मैंदान में उतरे जबकि शिशिर,शीबा असलम फहमी और भावना ने इस बहस में मजबूती से इन्ट्री लेते हुए अपनी बात रखी।
भूपेन ने साफ तौर पर कहा कि-अगर ब्लॉगिंग को लेकर हम अल्टरनेटिव मीडिया मान रहे हैं तो इस पर हमें विचार करना होगा। हमें ब्लॉगिंग में विज्ञापन को सिर्फ पैसे के लेने-देन के स्तर पर न समझकर इसकी पूरी इकॉनमी को समझना होगा। मेनस्ट्रीम मीडिया की इकॉनमी के साथ कम्पेयर करना होगा। हम कंटेट को गंभीरता से समझने की कोशिश करें। पूरी बात को समझने का एक तरीका ये भी है कि हम इसे कंटेंट के सिरे से समझना शुरु करें। इन्डीविजुअलिटी के जिस सवाल पर अविनाश बात कर रहे हैं क्या यहां आकर कोई इंडिविजुअलटी के साथ आकर बात कर सकता है इस पर भी विचार करना होगा। अगली बात कि किनो लोगों तक ये मीडिया पहुंच रहा है? हमें छोटी-छोटी बातों में उलझने के बजाय ब्लॉगिंग को व्यापक संदर्भ में देखने की जरुरत है।
भूपेन की बातों का समर्थन करते हुए रविकांत ने कहा कि भूपेन ने अच्छे सवाल उठाए हैं। सही बात है- alternative to what? आज तो ब्लॉग को लेकर वैकल्पिक मीडिया भी बहुत घिसा-पिटा शब्द हो गया है। वैकल्पिक मीडिया और ब्लॉग के सवाल पर भावना ने जो बात रखी मुझे लगता है कि वो बात हम जैसे अधिकांश ब्लॉगरों के साथ लागू होती है। उसने बहुत ही साफ शब्दों में कहा कि- कई बार हमें हमें मेनस्ट्रीम में स्पेस नहीं मिलता, हम ब्लॉगिंग करने लग जाते हैं और इस तरह हम सेल्फ मार्केटिंग का जरिया बना रहे हैं। इस तरह ये सिर्फ कमाई का जरिया होने के बजाय पहचान बनाने का माध्यम ज्यादा है। भावना की ये बात अविनाश की इन्डीविजुअलिटी की बात के ज्यादा करीब जाती है। जबकि शिशिर ने अविनाश की अफवाह फैलाने के लिए ब्लॉग से साफ तौर पर असहमति जाते हुए कहा कि ऐसा नहीं है कि आपको आपके लिए के लिए जिम्मेवार नहीं ठहराया जा सकता। मौटे तौर पर कई तरीके है जिसके जरिए आपको आसानी से ट्रेस किया जा सकता है। दूसरी बात की आपको लोग पढ़ रहे हैं और इस तरह आपको अकाउन्टेबल होना होना होगा। एथिक्स और पुलिसिंग और कंट्रोल का सवाल यही से उठने शुरु हो जाते हैं जिस पर जोरदार बहस शुरु होती है।
इस मामले में भूपेन की अपनी रही है कि- किसी को अपनी इन्डीविजुअलिटी को सिलेब्रेट करने का पूरा अधिकार है। लेकिन जब-जब वो पब्लिक डोमेन में आता है तो उसका विहेवियर बदल जाता है। जो भी हमारा सिविलाइजेशन एचीवमेंट है उससे हमने सीखा है कि कौन सी चीज सही है और कौन गलत है। मैं भी ये भी कह रहा हूं कि आप सोसाइटी में क्या चीज लेकर आना चाह रहे हैं? अविनाश, भूपेन के इस तर्क पर सहमत नहीं हुए और कहा कि-आपने कहा कि पब्लिक डोमेन में आकर शिष्ट हो जाता है। इसे हम भाषा के स्तर पर देख सकते हैं। जैसे न्यूजपेपर,टेलीविजन में चीजें शिष्ट तरीके से पेश करने की बात होती है। लेकिन अगर हमारे पास बात है और भाषा नहीं तो हम यहां पर वो बात लिख सकते हैं। इसे आपको समझना होगा। जो आर्ग्यूमेंट आप व्यक्तित्व के लिए दे रहे हैं वो आप भाषा में भी तो दे सकते हैं। भूपेन अपनी बात को लेकर आगे भी जारी हैं-फिक्शन में किसी कैरेक्टर का होना एक बात है और रीयल में होना एक बात है। कई बार ऐसा संभव है कि आप कानून की पकड़ में न आएं लेकिन अपने एथिक्स हो। यानी आपके अपने एथिक्स आपके लिए वैलेंस का काम करे। रविकांत ने पहले तो हल्के से एक सूत्र वाक्य इस पूरे बहस के बीच खिसका दिया कि- ब्लॉगिंग फिक्शन,फिक्शन क्यों है और रीयल रीयल क्यों है,इस पर बात की जानी चाहिए। लेकिन आगे जब लोग एक-एक करके अपनी बात न करने एक बजाय एक ही साथ चालू हो गए,ठेठ भाषा में कहा जाए तो कहें कि घौं-घौं करने लगे तब उन्हें बीच-बचाव में आना पड़ गया। तभी उन्होंने कहा कि नहीं भाई,अब हमें चेयर करना होगा। सभी को अपनी बात एख-एक करके करनी होगी।..इसके बाद फिर बात करने के क्रम निर्धारित होने लगे।
इस क्रम में विनय झा ने एक सवाल किया- तो फिर ब्लॉगिंग का उद्देश्य क्या होना चाहिए? विनय झा के सवाल पूछे जाने की खास बात रही है कि उन्होंने बहस के अतिरिक्त भी ब्लॉगरों से पर्टिकुलर सवाल पूछे जिस पर मैंने मजाक में कहा भी कि दरअसल ये सवाल के जबाब नहीं बाइट चाह रहे हैं। खैर,ये सवाल संभवतः मिहिर की तरफ रुख करके पूछा गया इसलिए इसका जबाब देते हुए मिहिर ने कहा कि- सवाल ये है कि जिम्मेवारी कौन तय कर रहा है,जाहिर है स्टेट तय करती है। ब्लॉगिंग के उपर स्टेट मशीनरी की नजर और कारवायी का सवाल इलाहाबाद की राष्ट्रीय चिठ्ठाकारी संगोष्ठी में भी उठायी गयी जिसे कि विभूति नारायण राय ने लगभग हड़काते हुए अंदाज में कहा कि स्टेट मशीनरी इस दिशा में सक्रिय हो इसके पहले ही सेल्फ डिसीप्लीन्ड होने की जरुरत है।
मिहिर ने दूसरी बात की। उसका मानना रहा कि कई बार ऐसा होता है कि स्टेट जिसे जिम्मेवार मान रही होती है वही सही खबर दे रहा होता है। कानूनन आप जिसे गलत मान रहे हों वहीं सही बात कर रहा हो। इसलिए जिम्मेवारी का सवाल कोई आसान और एकहरे स्तर पर डील करनेवाला सवाल नहीं है। मिहिर ने अपनी बात पूरी कि तभी विनय झा ने मेरे उपर सवाल दाग दिए। उसका मानना है कि लोगों का ब्लॉगरों पर भरोसा नहीं है,इस बारे में आपकी क्या राय है? मैने कहा- भईया मेरी तो बस इतनी राय है कि नहीं है भरोसा तो नहीं रहे,हम किसी से कहने भी नहीं जाते कि आप भरोसा करो। हम तो अपने मन की बात करते हैं। मैं अपनी बात रखने के जो में ध्यान नहीं दिया लेकिन बीच में किसी ने कहा जरुर कि आपको जिस पर भरोसा है वही भरोसे पर कितना कायम हैं,ये भी तो सोचिए।
इसी बातचीत के क्रम में अविनाश ने भूपेन की तरफ कुछ तथ्यों के साथ एक सवाल पटका- चीन की वेश्याएं भी ब्लॉगिंग कर रहीं है,एक स्त्री अपने सपने के बारे में लिख रही है कि वो दुनिया के किन-किन पुरुषों के साथ रात बिताना चाहती है,इसे आप किस रुप में लेते हैं? भूपेन ने जबाब और मन्तव्य के तौर पर आखिरी बात कही- हर मैसेज का मकसद होता है। अगर नहीं होता तो कोई नहीं देता। इस बात को हमें समझना होगा। क्या मैसेज दे रहे हैं ये महत्वपूर्ण है? रीडर्स क्या पढ़ रहे हैं,इसे देखा जाना चाहिए। आप अगर ब्लॉगिंग में सनसनी को ही पढ़ रहे हैं तो फिर कोई बात नहीं। ये एक दुधारी तलवार है लेकिन दूसरी तरफ इसका बुरा से बुरा इस्तेमाल कर सकते हैं। नैतिकता का कोई मापदंड नहीं है।
भूपेन की बात को रिस्पांड करते हुए अभिषेक ने कहा कि-मेरा पहला इन्टरेएक्शन है ब्लॉगिंग के लोगों से। ये वही मुद्दे हैं जो हम इन्टरनेट में उठाते हैं तो फिर इससे अलग कैसे रह गया? इस अर्थ में ब्लॉग सरल माध्यम है। लेकिन वह सवाल जब आ जाता है कि भूपेन ने जो सवाल उठाया कि एथिक्स क्या है,ये कोई एकहरी बात नहीं है। हमें आज के परिवर्तन को समझना होगा।
शीबा असलम फहमी इस पूरी बहस में जो अब तक न के बराबर बोलती हुई चुपचाप सुनती चली जा रही है,अबकी बार लगभग भड़क जाती है और अपने स्थापित अंदाज में कहती है-आप किसके मोरल को इन्वोक करना चाह रहे हैं। जो मसले आए नहीं है उसे क्यों हल करने में क्यों लगे हैं? हम थ्योरी बनाकर रियलिटी को क्यों खोज रहे हैं? हम हायरारिकल क्यों लाना चाह रहे हैं? मैं जो कहना चाह रही हूं उसमें पहली बात तो ये कि अगर ब्लॉगरों के बीच कम्युनिटी जैसी कोई चीज है तो जो बात उठायी जा रही है कि कोई अकेला अफवाहें फैला रहा तो उसको कैसे रोका जाएगा? इस मामले में मेरा मानना है कि कम्युनिटी उस इंडीविजुअल का ख्याल खुद ही रख लेगी। बाहर से पुलिसिंग की जरुरत नहीं है किसी तरह का रुल बनाकर। दूसरी बात कि अभी जो परेशानियां आयी नहीं है उसको क्रीएट करके उसके सॉल्यूशन्स मत ढूंढिए। तीसरी बात कि जब हम थ्योराइज करते हैं तो जैसा कि कई सारे सेमिनार और कॉन्फ्रेंसेज में होता है कि जबरदस्ती चीजों को प्रॉब्लमेटाइज कर देने का। तीसरी बात कि ये ब्लॉगरों के लिए स्टेज है कि आप लोगों को एन्करेज करें कि ज्यादा से ज्यादा लोग इसमें आएं। उसके बाद है कि आप क्वालिटी पर बात करें,अभी तो क्वान्टिटी में भी बात नहीं हो पा रही है।
शीबा के साथ-साथ भावना भी पुलिसिंग के मामले पर असहमत होती है। उसके हिसाब से यहां पर्सनल को पब्लिक बना रहे हैं,हम किससे रिकग्नीशन चाह रहे है? क्या हम न्यूज चैनलों की तरह ब्लॉग गिल्ड बनाना चाह रहे हैं? इस पर रविकांत ने साफ तौर पर कहा कि-नहीं हम ऐसा कुछ भी नहीं करने जा रहे हैं। इलाहाबाद की संगोष्ठी में ऐसा कुछ बनाने की कोशिशें जरुर हुई लेकिन असहमति और इच्छाशक्ति की कमी(जिन्होंने ये मामला उठाया था) की वजह से मामला धरा का धरा ही रह गया,सो अच्छा ही हुआ।
आगे जो बहस चलती है वो बिल्कुल ही ब्लॉग की दुनिया का नया हिस्सा है। अब तक करीब दस से ज्यादा ब्लॉगर मीट में शिरकत कर चुका हूं लेकिन इस मुद्दे पर बात नहीं हुई। मेनस्ट्रीम मीडिया में एक थ्यरी जरुर है- रीडर रिस्पांस थ्यरी या ऑडिएंस परसेप्शन एंड रिएक्शन। ब्लॉग की दुनिया में पाठकों को लेकर बहस नहीं चली है लेकिन इस मीट की खास बात रही कि इस पर भी जमकर चर्चा हुई। अंकुर ने इस सवाल को उठाया लेकिन इसके पहले आते ही ललित ने सारे ब्लॉगरों को सलाह दी कि आप ब्लॉग को जबरदस्ती न पढ़वाएं प्लीज। ये बात भी किसी न किसी रुप में पाठक के महत्व से ही जुड़ती है। हॉलाकि अंकुर ने रीडर के महत्व की बात विज्ञापन के संदर्भ में कही लेकिन वो ओवरऑल ब्लॉगिंग पर लागू होती है। उसके हिसाब से- रीडर इज मोर इम्पॉर्टेंट दैन राइट। हमें इस पर बात करनी होगी। रीडर इज डीम इम्पार्टेंट। इट्स नॉट ऑनली इन्डीविजुअल।
अंकुर के ऐसा कहने के बाद बहस का पूरा रुख ब्लॉग और रीडर के हिसाब से अपनी बात रखने की ओर चला जाता है। ललित ने इस बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि-हमलोग क्या लिखें इस पर क्यों इतनी बात कर रहे हैं,आप क्या पढ़े पर क्यों बात नहीं कर रहे? आप रिस्पांसबल बनिए। ललित ने जो बात कही उसके जरिए ब्लॉगिंग के भीतर कंटेंट फिलटरेशन का काम हो जाने की गुंजाइश बनती नजर आती है। मामला साप है कि अगर आप अच्छी चीजें पढ़ेगे,उसे बढ़ावा देंगे तो जाहिर है कि लिखने का काम भी उसी स्तर का होगा। इसलिए जरुरी है कि लिखते हुए भी हम एक सीन्सीयर रीडर बने।
ललित ने ये भी कहा कि आप यकीन मानिए कि गूगल हमसे ज्यादा इन्टेलिजेंट है जिसका कि समर्थन शिशिर सहित बाकी लोगों ने भी किया कि वो हमारी लिखी बात को ऐज इट इज न समझते हुए भी उसकी क्वालिटी को परख लेता। इसलिए जरुरी है कि आप रीडिंग के जरिए कंटेंट के बेहतर होने के बारे में सोचें। अरविंद शेष इस पूरी बातचीत में चुप ही रहे। उनसे जब कहा गया कि आप इस पर अपनी कुछ राय जाहिर करें तो उन्होंने कहा कि वो तो लोगों की बात सुनने भर आए हैं। ललित की थ्यरी से वो बाजी मार ले गए। आगरा से आयी सुमन को भी इस थ्यरी का पूरा लाभ मिला जो बीच-बीच में मुस्करा भर रही थी। अंबेडकर कॉलेज,दिल्ली से आए मीडिया स्टूडेंट जो कि चुपचाप हमारी बहसों को सुनते आ रहे थे उनका भी हौसला बढ़ा। ब्लॉग को लेकर हम बड़बोलों के बीच वो सबसे ज्यादा सीन्सीयर करार दिए गए। तभी हमने समोसे और जलेबी दबाने में संकोच करते अरविंद शेष को मजाकिया अंदाज में कहा-आप टेंशन मत लीजिए सर। आज,लिख तो कोई भी लेगा लेकिन असल चीज है पढ़ना। बड़बोलापन जहां क्वालिटी बनती जा रही है,ऐसे में बोल तो कोई भी लेगा लेकिन असल बात है सुनना। इस बीच अविनाश की लगातार चाह होती है कि वो चाय पिएं। समय भी हो ही चला इसलिए ललित की बात के बाद औपचारिक तौर पर ब्लॉगर मीट के समाप्त होने की घोषणा की जाती है। रविकांत लोगों का आने के लिए शुक्रिया अदा करते हैं औऱ आनेवाले लोग बुलाने जाने के लिए रविकांत का शुक्रिया अदा करते हैं।
लेकिन औपचारिक समाप्ति की घोषणा के बाद ब्लॉगर मीट का एक्सटेंशन बनता है सराय के बेसमेंट में बना कॉफी कार्नर। समोसे,जलेबी,चाय और ब्लैक टी के साथ बहस-बूहस का एक और दौर। हंसी-ठहाके। आशीष के हाथ की बनाई कॉफी पीकर मैं तो तर गया। सचिन ने अपने हिस्से की जलेबी हमारी ओर बढ़ाया।..वो दौर जब एक-दूसरे की खींचातानी का सुख जिसके लिए हम जैसे लोग बेताब रहते हैं। जलेबी की मिठास से लोगों की लगातार होठ कि अब तुमसे ज्यादा काबिल है,महौल में ज्यादा मिठास पैदा कर सकते हैं। समोसे खाते वक्त किसी को मिर्ची लगती है,वो शी..शी..शी..करता है लेकिन स्टार न्यूज के कार्यक्रम की नकल और चुप रहने के लिए नहीं इस उम्मीद से कि कोई कहे..अरे मिर्ची लग गयी,कोई बात नहीं एकाध-जलेबी और खा लो।.
नोट- इस ब्लॉगर मीट में जिसने भी ब्लॉगर और साइट से जुड़े लोग आए,अपनी कोशिश से हमने उसे हायपर लिंक कर दिया है लेकिन जो लोग भी छूट गए हैं उनका एक लाइन में परिचय दिए दे रहा हूं। कुछ लोगों के बारे में मैं बिल्कुल भी नहीं जानता। रविकांत से जानने की कोशिश कर रहा हूं लेकिन वो अभी कहीं व्यस्त हैं। जानकारी मिलते ही उनका परिचय जोड़ दूंगा।
फिलहाल- विभाष वर्मा- देशबंधु कॉलेज में हिन्दी के प्राध्यापक,अभिषेक-सॉफ्टवेयर और ओपनसोर्स से जुड़े हैं। शिशिर ने ब्लॉग मीट के ठीक पहले हिन्दी सॉफ्टवेयर पर अपना प्रजेन्टेशन दिया। इस विषय पर सराय की फैलोशिप पर काम कर रहे हैं। सत्यकाम और अंकुर भी सॉफ्टवेयर और आउटसोर्सिंग से जुड़े हैं। प्रभात सीएसडीएस के अंकुर लिए काम करते हैं। विनय झा मीडिया के स्टूडेंट हैं। सुमन BIG 92.7 एफ.एम.आगरा से जुड़ी है। आशीष और सचिन दोनों सीएसडीएस-सराय से जुड़ें हैं।
डिस्क्लेमर- मिहिर पूरी मीट में ताबड़-तोड़ कैमरा क्लिक करते रहे। अपने पास कैमरा न होने की वजह से सारी उम्मीद उन पर लाद दिया। लेकिन उनका कहना है कि वो एक-दो दिन के भीतर फोटो मुहैया करा पाएंगे। एक उम्मीद बंधी कि दिल्ली आजतक ने जो कवरेज किया है और हमलोगों की बाइट ली है,फिलहाल उसी को लगा देंगे। लेकिन जैसा कि अक्सर होता है-हमलोगों की बातों को उठाकर उसने खबर तो जरुर बना दी लेकिन कार्यक्रम का एक भी शॉट नहीं लिया और न ही बाइट लगायी। बमुश्किल 32 सेकण्ड की स्टोरी में बातें सारी हमारी है लेकिन दावा हमारा नहीं है। इसलिए फोटो के मामले में यहां भी नाउम्मीद हुए। बहरहाल जो भी इसकी रिकार्डिंग करके पुष्कर पुष्प यूट्यूब पर डालकर खासतौर से हमारे लिए उपलब्ध कराया है। ठंड में उठकर रिकार्डिंग करने और इसे अपलोड करने के लिए उनका बहुत-बहुत शुक्रिया। शीबा ने समझदारी दिखाते हुए लैपटॉप से कुछ तस्वीरें ले ली। फोन करने पर हमें तत्काल मेल किया इसलिए उनका शुक्रिया। बाकी मौजूद ब्लॉगर कुछ और लिखेंगे तो हमें अच्छा लगेगा। अभी तक ये रिपोर्ट अधूरी है। इसमें फोटो,परिचय और लिंक को लेकर सुधार जारी है।
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http://taanabaana.blogspot.com/2010/01/blog-post_10.html?showComment=1263198796541#c7258176913295029569'> 11 जनवरी 2010 को 2:03 pm बजे
vistrit report uplabdh karane ke liye aapka shukriya.
http://taanabaana.blogspot.com/2010/01/blog-post_10.html?showComment=1263199629829#c3693557908610178647'> 11 जनवरी 2010 को 2:17 pm बजे
आपकी ख़ास "विनीत" शैली की एक संपूर्ण रपट. पढ़ कर लगा कि हम भी वहीं कहीं मौजूद रहे थे...
बाकी,
आज,लिख तो कोई भी लेगा लेकिन असल चीज है पढ़ना। बड़बोलापन जहां क्वालिटी बनती जा रही है,ऐसे में बोल तो कोई भी लेगा लेकिन असल बात है सुनना।
ये है सौ टके की एक बात!
http://taanabaana.blogspot.com/2010/01/blog-post_10.html?showComment=1263201548680#c3983954893310388079'> 11 जनवरी 2010 को 2:49 pm बजे
विस्तृत रपट पढवाने के लिए शुक्रिया।
http://taanabaana.blogspot.com/2010/01/blog-post_10.html?showComment=1263202598673#c7776856819451588652'> 11 जनवरी 2010 को 3:06 pm बजे
bhai, maza aa gayaa, esa lagaa jese ham bhi vnhi moujood the, kher..achha lagaa..riportaaz.
http://taanabaana.blogspot.com/2010/01/blog-post_10.html?showComment=1263207427167#c557149221788159473'> 11 जनवरी 2010 को 4:27 pm बजे
बहुत विस्तृत जानकारी दी। मुद्दे भी सही उठाए गए। आभार।
घुघूती बासूती
http://taanabaana.blogspot.com/2010/01/blog-post_10.html?showComment=1263209502507#c1659881299384585012'> 11 जनवरी 2010 को 5:01 pm बजे
बहुत खूब। इतने विस्तार से इतनी जल्दी रपट ! शानदार।
सब बातें पता चलीं। ब्लॉगिंग को केवल मीडिया/पत्रकारिता का विकल्प मानना इसका रकबा कम करना होगा। यह अभिव्यक्ति का माध्यम है और इसकी संभावनायें असीमित हैं।
कविताकोश ने बहुत कम समय में इतनी रचनायें इकट्ठा कर लीं यह काबिलेतारीफ़ बात है। जिस मिशनरी भाव से लोगों ने इसे किया उसके चलते इसको व्यवसायिक रुख देने की बात सोचना इससे जुड़े लोगों को अटपटा लगता होगा। व्यवसायिक रुख देने में भले ही साधन कुछ और जुड़ जायें लेकिन फ़कीराना अकड़ भी कम होगी। इसलिये कोई सलाह देना सही नहीं होगा।
जबरियन पढ़वाने से निश्चित तौर पर पाठक बिदकता ही है।
एक बार फ़िर से बधाई शानदार कवरेज के लिये।
http://taanabaana.blogspot.com/2010/01/blog-post_10.html?showComment=1263210382923#c3126865934642454939'> 11 जनवरी 2010 को 5:16 pm बजे
रिपोर्ट पढ़ने आया था,बकवास पढ़ने नहीं
http://taanabaana.blogspot.com/2010/01/blog-post_10.html?showComment=1263213232270#c7645463973628503318'> 11 जनवरी 2010 को 6:03 pm बजे
आभार इस रिपोर्ट का.
http://taanabaana.blogspot.com/2010/01/blog-post_10.html?showComment=1263214322524#c2997498518581392692'> 11 जनवरी 2010 को 6:22 pm बजे
शानदार। आपका आभार।
http://taanabaana.blogspot.com/2010/01/blog-post_10.html?showComment=1263221103590#c1134330055241367746'> 11 जनवरी 2010 को 8:15 pm बजे
बढ़िया...मौजूदगी का अहसास हुआ.. देर से पता लगा..
http://taanabaana.blogspot.com/2010/01/blog-post_10.html?showComment=1263223273115#c1767763323745254722'> 11 जनवरी 2010 को 8:51 pm बजे
जबर्दस्ती जरूरत
ऐसे बनती है
जब आपके सामने कुछ आएगा ही नहीं
तो आप पढ़ेंगे कैसे
जबकि सामने आने पर
न पढ़ने का ऑप्शन खुला है
इसलिए ब्लॉग पोस्टें
भेजी जानी चाहिएं
न पढ़ने का सबका अधिकार
तो सुरक्षित है ही
जिस तरह कहने लिखने का है।
चित्र आयेंगे बाद में
जैसा कि विनीत कुमार ने कहा है
और रिपोर्ट मेरी
स्वस्थ होने पर ही आ पाएगी ।
कल सराय में लगी ठंड
और आज हो रहा है पेट दर्द
अब यह मत समझना कि
रिपोर्ट लिखी नहीं गई
इसलिए दर्द हो रहा है।
उसका इससे रिश्ता नहीं है कोई
जैसे मजाक की हद नहीं होती
इसकी भी हद नहीं है कोई।
और जो दिल्ली आजतक की एंकर ने कहा है सिर्फ चेहरा और आवाज ही तो बदली है तथा थोड़े संक्षेप में समेट लिया है। पर इसे प्रसारित करके ब्लॉगहित किया है लेकिन अमिताभ बच्चन को दिखलाने की तुक क्या रही, वैसे इसका भी लाभ हो सकता है, कहेंगे लोग जब अमिताभ बच्चन का हो सकता है ब्लॉग तो फिर मेरा क्यों नहीं ?
चलिए अमिताभ बच्चन के बहाने ही आ जाए क्रांति पर क्रांति तो आनी ही चाहिए।
http://taanabaana.blogspot.com/2010/01/blog-post_10.html?showComment=1263225268280#c1252564737895547250'> 11 जनवरी 2010 को 9:24 pm बजे
संपूर्ण रपट.
http://taanabaana.blogspot.com/2010/01/blog-post_10.html?showComment=1263227673318#c7035262051743240499'> 11 जनवरी 2010 को 10:04 pm बजे
अब तो ब्लोग कोई ऐसा भी बनाया जाये
जिसमे इन्सान का दर्द लिखया जाये
पोस्ट दिखती है ब्लोग वानी, चिट्ठा जगत मे भी
कोई बतलाये कहा जाके पढाया जाये.
http://taanabaana.blogspot.com/2010/01/blog-post_10.html?showComment=1263231103939#c3948557492546699837'> 11 जनवरी 2010 को 11:01 pm बजे
youtube ka link bhi bata detey Vineet ! Thanx for credits :)
Sheeba Aslam Fehmi
http://taanabaana.blogspot.com/2010/01/blog-post_10.html?showComment=1263234824730#c1915450750991474670'> 12 जनवरी 2010 को 12:03 am बजे
jitna mazaa wahaan baith kar nahi aaya us se jyada report padh kar aaya. jalebi samosa miss kar ke bhi swad mila. thanks!
vibhas
p.s.main vibhas dantya 'sa' se likhta hoon,moordhanya ya petkate 'sa' se nahi.
http://taanabaana.blogspot.com/2010/01/blog-post_10.html?showComment=1263260612914#c2369218334800267264'> 12 जनवरी 2010 को 7:13 am बजे
बहुत बढ़िया रपट. धन्यवाद!
http://taanabaana.blogspot.com/2010/01/blog-post_10.html?showComment=1263270524351#c4965779432147541341'> 12 जनवरी 2010 को 9:58 am बजे
chinta rpt ki nhi hai chinta aap ke swasthy labh ki adhik hai isvr aap ko jldi se jldi thik kre dwa avshy le li hogi hi mera agrh hai is me kotahi bilkul n brten
merishubhkamnaon se aap shighr hi thik ho jayenge
fir aap jldi hi apni asliyt pr
aa jayenge
tb kitna achcha lgega jb aap fir se s
wsthy ho kr hm se btiyayenge
dr.vedvyathit@gmail.com
http://taanabaana.blogspot.com/2010/01/blog-post_10.html?showComment=1263279589194#c8226790174114227634'> 12 जनवरी 2010 को 12:29 pm बजे
Is vistrut report se kaafee jaankaree prapt huee jo mujhe nahee thee..khaaskar copy right ko leke..mere anubhav ke mutabiq hindi kavya rachnayen log kam hee khareedna chahte hain, wobhi navodit rachnakaron kee..
http://taanabaana.blogspot.com/2010/01/blog-post_10.html?showComment=1263292158335#c4910821540582250137'> 12 जनवरी 2010 को 3:59 pm बजे
एक बात कहूँ विनीत जी आपकी रिपोट पढकर ऐसा लगा रहा जैसे मैं वहाँ आखिर तक था।
http://taanabaana.blogspot.com/2010/01/blog-post_10.html?showComment=1263301112866#c4235205724552058411'> 12 जनवरी 2010 को 6:28 pm बजे
बहुत अच्छी रिपोर्टिंग है। इतने डिटेल के साथ अच्छी भाषा बहुत मुश्किल से मिलता है। अच्छा है।
http://taanabaana.blogspot.com/2010/01/blog-post_10.html?showComment=1263380878871#c3430422557371593532'> 13 जनवरी 2010 को 4:37 pm बजे
sukiya sir aapke is report se hum media students ko kuch na kuch to skihne ko milega