जरा बच के, मां-बहन भी पढ़तीं हैं ब्लॉग पढ़कर मेरे एक डॉक्टर साथी डॉ. रुपेश श्रीवास्तव ने तुरंत पोस्ट डाला कि आप राय-सलाह मत दिया करें और फिर भड़ास यानि दिमागी उल्टी का वैज्ञानिक विश्लेषण किया-
उल्टी करने वाले पर आप शर्त नहीं लगा सकते कि उसमें दुर्गंध न हो । एक चिकित्सक होने के नाते बता देना चाहूंगा अन्यथा न लें ,माता जी और बहन जी को भी कहें कि अगर किसी को गरियाना चाहती हों तो भड़ास पर आकर गरिया लें मन हल्का हो जाने से तमाम मनोशारीरिक व्याधियों से बचाव हो जाता है ;ध्यान दीजिए कि यह भी एक विचार रेचन का अभ्यास है ,"कैथार्सिस" जैसा ही या फिर ’हास्य योग’ जैसा
लेकिन मेरी बात को उन्होंने सुझाव या ज्ञान समझ लिया जबकि था ये व्यंग्य। मैं उनसे ज्यादा बड़ा कमिटेड भड़ासी हूं, ये बताने के लिए पोस्ट पेश कर रहा हूं-
हिन्दी में जब ये कवि ने लिखा कि-
स्त्री के निचले हिस्से में
फूलबगान
बाकी सब जगह शमशान।।।
तो उस समय के आलोचकों ने उन्हें खूब गरिआया, लात-जूते मारे और बाद तक गरियाने के लिए अपने मठों के आलोचक के नाम पर लूम्पेन छोड़ गए। अभी भी ऐसे लूम्पेन उनकी कविता या उन जैसे कवियों की कविता पर नाक-भौं सिकोड़ते नजर आ जाएंगे. लेकिन दो साल पहले मेरे एक सीनियर ने बड़ी हिम्मत करके इन पर रिसर्च किया और बाद में जब किताब लिखी तो पहली ही लाइन लिखी कि- राजकमल चौधरी जीनियस कवि हैं। दमदमी माई ( अपने हिन्दू कॉलेज की देवी जो वेलेंटाइन डे के दिन प्रकट होती है और उस दिन प्रसाद में लहसुन और कंडोम बांटे जाते हैं) की कृपा से किरोड़ीमल कॉलेज में पक्की नौकरी बतौर लेक्चरर लग गए। किताब के लोकार्पण के समय उन्होंने कहा भी कि जब वो काम कर रहे थे तो लोग उनके कैरेक्टर को लेकर सवाल किए जा रहे थे मानो इस कवि पर काम करने लिए भ्रष्ट होना जरुरी है, एक-दो ने तो पूछा भी था कि कभी जाते-वाते हो कि नहीं। लेकिन इधर देख रहा हूं कि ऐसी भाषा लिखनेवालों की संख्या और रिडर्स की मांग बढ़ रही है। राही मासूम रजा ने तो पहले ही कह दिया कि अगर मेरे चरित्र गाली बोलेगे, बकेंगे तो मैं गाली लिखूंगा और देखिए बड़े आराम से हरामी शब्द लिखते हैं। तो क्या मान लें कि अब भाषा के स्तर पर समाज भ्रष्ट होता जा रहा है. अगर मुझे ऐसा लिखने के लिए, दंगा करवाने के लिए कोई पार्टी या संगठन पैसे देती तो सोचता भी, फिलहाल अपने खर्चे पर वही लिखूंगा, जो तथ्यों के आधार पर तर्क बनते हैं।
पहली बात तो ये कि अगर हमने कहीं गाली लिख दिया या फिर पेल दिया तो लोग उसे सीधे हमारे चरित्र से जोड़कर देखने लग जाते हैं। अगर अच्छे शब्दों और संस्कृत को माई-बाप मानकर हिन्दी बोलने वाले लोगों से देश का भला होना होता तो पिर मंदिरों में कांड और महिलाओं के साथ बाबाओं की जबरदस्ती तो होती ही नहीं और अपने आइबीएन 7 वाले भाईजी लोग परेशानी से बच जाते। अगर ऐसा है तो हर रेपिस्ट की अलग भाषा होती होगी और संस्कृत बोलने वाला या फिर उसके नजदीक की हिन्दी बोलने वाला बंदा कभी रेप ही नहीं करता। इसलिए ये मान लेना कि ले ली के बजाय आस्वादन किया बोलने से समाज का पाप कमेगा, बेकार बात है और बॉस ने ड़ंड़ा कर दिया बोलने से हम भ्रष्ट हो गए, बहुत ही तंग नजरिया है।
ऐसा वे सोचते हैं जो सालों से वही पोथा लेकर बैठे रहे अपनी मठ बनाने में और अब बचाने में लगे रहे और जब भाषा उनके हाथ से छूटती चली गई तो शुद्धता के नाम पर हो-हल्ला मचा रहे हैं। ये भाषा के नाम पर अपना वर्चस्व बनाए रखना चाहते हैं। कईयों की तो ऐसी हिन्दी सुनकर ही उनके कमीने होने की बू आने लगती है।
और सवाल गालियों फिर तथाकथित अश्लील होने की है तो ये हमारी दिमागी हालत पर निर्भर करता है।
मेरी एक दोस्त अपने बॉस पर गुस्सा होने पर कहा करती है, मैं तो उसकी मां...... दूंगी, अब बताइए संभव है। कॉलेज की एक दोस्त जब हमलोग कहते मार्च ऑन तो वो पीछे से कहती वीसी की मां चो..। और कहती हल्का लगता है विनीत, ऐसा करने से।
मेरे रुम पार्टनर ने मेरे न चाहने पर भी तीन महीने तक एक गेस्ट को रखा और मैं परेशान होता रहा। लेकिन जब भी वो मुझे दिखता मन ही मन धीरे से कहता- साला भोसड़ी के और तत्काल राहत मिलती। इसलिए अब भाषा पर जो काम हो रहे हैं और उससे जो काम लिया जा रहा है उसमें शब्दों के अर्थ लेने से ज्यादा जरुरी है उन शब्दों को लेकर मानसिक प्रभावों पर चर्चा करना, लोग गाली लिखने वालों के लिए भी जगह बना रहे हैं, दे रहे तो इसलिए कि वे उनका कमिटमेंट देख रहे हैं उनके लिखने से उनके व्यक्तित्व का विश्लेषण नहीं कर रहे और इस अर्थ में आज का समाज पहले से ज्यादा समझदार हुआ है और ज्यादा बेहतर व्यक्त कर रहा है। जिस लड़की की आवाज को मठाधीशों ने जमाने से दबाए रखा, आज वो अपने बॉस को चूतिया, कमीना, रॉस्कल और हरामी बोलती है तो वाकई अच्छा लगता है, मैं तो इसे भाषा में एक नए ढ़ग का सौन्दर्यशास्त्र देखता हूं।इसलिए एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर काम करते-करते अपने बारे में ही कहता है कि मैं तो बड़ा ही चूतिया आदमी हूं और जब कोई मेरे बारे में कहता है कि बड़ा ही हरामी ब्लॉगर है तो अच्छा लगता है कि पब्लिक को मेरी इमानदारी पर शक नहीं है, मैं बेबाक लिख रहा हूं।
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https://taanabaana.blogspot.com/2008/01/blog-post_25.html?showComment=1201253160000#c7272891667222779734'> 25 जनवरी 2008 को 2:56 pm बजे
sahi socha aur likha.....ek ladki hun aur mein bhi kuch ise tarah ke hun..galiya meri zuban par rehti hai ...apney sehkarmiyo ko bhi office mein chorti....kher rahi baat harami bolne ke to haan mein iskey haq mein hun....jab tak purush samaj aurto ko ek he tarazo mein tolega to vo tayar rehey sun ney kley ley...
apka lekh hummey khoob pasand aya...
subhkamanaye
https://taanabaana.blogspot.com/2008/01/blog-post_25.html?showComment=1201256040000#c1454435629255664603'> 25 जनवरी 2008 को 3:44 pm बजे
एक दफ़े याहू मैसेंजर के मार्फ़त एक चैट रूम में गया, वाईस चैटिंग ऑन थी। रूम के सार्वजनिक माईक पर लड़कियों का एक गैंग आया और एक के बाद एक उन लड़कियों ने किन्ही लड़को को जो गालियां देनी शुरु की, भाई साहब अपने तो होश उड़ गए उन कन्याओं की गालियां सुनकर।
न आपने इतनी गालियों का पाठ कभी किसी के लिए किया होगा न ही कभी किसी को देते देखा सुना होगा!!!
पता चला कि वह दिल्ली की लड़कियों का गैंग था।
निखालिस हिंदी और पंजाबी गालियों पर अच्छी खासी पी एच डी कर रखी हो ऐसा लग रहा था।
मेरे इस कमेंट को दिल्ली की सभी लड़कियों पर आक्षेप न माना जाए, यह सिर्फ़ एक वाकया है जिसमे "कुछ" लड़कियां थी
https://taanabaana.blogspot.com/2008/01/blog-post_25.html?showComment=1201257180000#c8368895224847922187'> 25 जनवरी 2008 को 4:03 pm बजे
कुछ भी कहिये पर लडकियों के मुख से गाली कुछ जमती नहीं। चाहे रेचन हो या विरेचन फिर भी मनोभावों का इस तरह प्रकट करना कुछ जमता नहीं।
https://taanabaana.blogspot.com/2008/01/blog-post_25.html?showComment=1201262700000#c2727153930160193571'> 25 जनवरी 2008 को 5:35 pm बजे
यार विनीत भाई गाली का जो मजा अपनी हिंदी भाषा में है, वह मजा अंग्रेजी में नही है, मुंबई में जिसे देखों वहीं इंगलिश में गाली देता है, मजा नहीं आ रहा है और लड़कियों के मुंह से गाली सुनने में मजा नहीं आता है,
https://taanabaana.blogspot.com/2008/01/blog-post_25.html?showComment=1201267800000#c8030184786772653626'> 25 जनवरी 2008 को 7:00 pm बजे
aapse sehmat hoon aur isse pehle bhikeh chuki hoon ki lagy rahiy aur aaj bhi kahoon gi chak de chakde india
https://taanabaana.blogspot.com/2008/01/blog-post_25.html?showComment=1201344840000#c1653721891508013705'> 26 जनवरी 2008 को 4:24 pm बजे
विनीत मुझे लगा आप भी गौर कर रहे होंगे. जब आपने लिखा 'हरामी बोलती लड़कियां, अच्छी लगती हैं' तो जवाब में आई टिप्पणियों में लड़कों और लड़कियों के जवाब में साफ अन्तर दिख रहा है. और यह सिर्फ़ गाली को लेकर नहीं है, सिगरेट पीने को लेकर भी यह कहते लोग मिल जायेंगे, "लड़कियां सिगरेट पीती अच्छी नहीं लगती."
क्या यहाँ भी एक अनदेखा भेद काम कर रहा है?
https://taanabaana.blogspot.com/2008/01/blog-post_25.html?showComment=1201346280000#c8676896256266513868'> 26 जनवरी 2008 को 4:48 pm बजे
चैनल एम से ही एक और किस्सा. आजकल एम पर लोकप्रिय शो रोडीस 5.0 के सलेक्शन चल रहे हैं. व्यक्तिगत साक्षात्कार लेने वाले रघु और निखिल मशहूर हैं सामने वाले की जमकर 'लेने' के लिए. ऐसे ही एक साक्षात्कार में पिछले हफ्ते एक लड़की को निखिल ने कहा की एक मिनट में तुम रघु को जितनी गलिया दे सकती हो, दो. जितना बुरा कह सकती हो.. कहो.
रघु और निखिल की एक और ख़ास बात है. वो साक्षात्कार में नहीं बताते की उनकी राय क्या बनी. कई बार लगता है कि साक्षात्कार बहुत ख़राब हुआ और चयन हो जाता है. यहाँ भी कुछ ऐसा ही हुआ. लड़की को लगा कि उसका चांस गया लेकिन...
लड़की जब मनभर गाली देकर निकल गई तो रघु ने कहा, "i'm glad that she has come". उसका नाम रोडीस की लिस्ट में था!