ऐतिहासिक चरित्रों को लेकर इन दिनों
मनोरंजन चैनलों का आपस में जो मुशायरा चल रहा है, जीटीवी पर प्रसारित “जोधा-अकबर” उसी की कड़ी है. ओमपुरी की व्ऑइस ओवर में
इस सीरियल को लेकर ऐतिहासिक होने का दावा न करने और मौजूदा समाज
सामाजिक-सांस्कृतिक गतिविधियों को समझने की कोशिश जैसी घोषणा से ही ये स्पष्ट है
कि ये सीरियल मुगल सम्राट अकबर और तत्कालीन भारतीय राजनीति को तथ्यात्मक और गंभीरता
से प्रस्तुत करने के बजाय इसकी दिलचस्पी केवल उन प्रसंगों,घटनाओं और चरित्रों में
है जो कि दर्शकों को सास-बहू सीरियल देखने का सुख दे सके. वैसे भी महाराणा प्रताप
को लेकर सोनी टीवी ने ऐतिहासिकता से पिंड़ छुड़ाने का काम जब पहले ही कर दिया हो
तो ऐसे में जीटीवी का इसमे सिर्फ ट्विस्ट ही पैदा करना रह जाता है.
गौर करें तो पौराणिक चरित्रों के
जरिए सास-बहू सीरियलों और कार्टून नेटवर्क( रानी लक्ष्मीबाई जैसे चरित्र के बचपन
को शामिल करते हुए) के दर्शकों को एकमुश्त खींचने की कोशिश के बाद टीवी सीरियलों
का एक दूसरा दौर है जहां अब ऐतिहासिक चरित्रों को एक-एक करके पेश किया जा रहा
है..और इस तरह से एक ही चरित्र के तीन संस्करण अब हमारे सामने हैं- एक तो जो
इतिहास में दर्ज हैं, दूसरा जिसका दूरदर्शन या सिनेमाई संस्करण है और तीसरा जो
अपने बाहरी कलेवर में ऐतिहासिक होते हुए भी पूरी ट्रीटमेंट और काफी हद तक
प्रस्तुति में सास-बहू सीरियलों के नजदीक है.
महाराणा प्रताप में अमिताभ बच्चन की
तर्ज पर जोधा अकबर में ओमपुरी जब इसके पूरी तरह ऐतिहासिक नहीं होने की घोषणा करते
हैं तो इसका साफ संकेत है कि इन चरित्रों को अब ऐसे दर्शकों के बीच खिसकाकर ले
जाया जा रहा है जिसकी दिलचस्पी रियलिटी शो की टशन, सास-बहू सीरियलों की फैमिली
कन्सपीरेसी और संजय लीला भंसाली की रोमांटिक-भव्य सेट में है. नहीं तो क्या कारण
है कि अकबर का जो भारतीय इतिहास में व्यापक संदर्भ रहा है वो यहां एक ऐसे शासक के
रुप में मौजूद है जैसे कि वीर-जारा या मैं हूं न का शाहरुख खान. ऐतिहासिकता की
छौंक बस इतनी है कि इस शाहरुख-अकबर को रिझाने और अपने करीब बनाए रखने की रानियों
के बीच ऐसी होड़ मची है जैसे कि कभी उतरन में वीर के लिए तपस्या और इच्छा के बीच.
अकबर महान के रंगमहल और यहां तक कि बेडरुम का माहौल ऐसा है जैसे जीटीवी के एक ही
सीरियल का कई हिस्से के कतरन एक साथ ठूंस दिए गए हों. यही आकर आप मौजूदा
सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश को समझने जैसे ओमपुरी के स्पष्टीकरण का अर्थ समझ पाते
हैं जो कि समाज की नहीं वस्तुतः टीवी स्क्रीन की मौजूद स्थिति से गुजरना है.
जोधा-अकबर को देखकर एकबारगी तो आपको
लगेगा कि इसमे टीवी से लेकर सिनेमा के बाकी सारे तत्वों का मजा एक साथ है लेकिन जब
कभी आपको कॉलेज छोड़िए, स्कूल की इतिहास की किताबों के पन्ने याद आएंगे तो लगेगा-
ये न तो इतिहास है, न ही उसकी संस्कृति, न ही उसकी कहीं समझदारी है तो फिर जब
सास-बहू और कार्टून चैनलों के दर्शकों के लिए ही कुछ करना था तो उसी में कुछ
प्रयोग क्यों नहीं, इतिहास को जाया करने की क्या जरुरत थी ?
स्टार- 2
मूलतः प्रकाशित, तहलका( हिन्दी)
https://taanabaana.blogspot.com/2013/07/blog-post_21.html?showComment=1374421058326#c755441940660255629'> 21 जुलाई 2013 को 9:07 pm बजे
हमारी खसूसियत ये है कि हम असली चरित्रों को भी मिथक और पौराणिक बना डालते हैं।
https://taanabaana.blogspot.com/2013/07/blog-post_21.html?showComment=1374461216996#c8305578868783638392'> 22 जुलाई 2013 को 8:16 am बजे
उफ, इतिहास को कत्ल कर उसे इतिहास बना देते हैं।
https://taanabaana.blogspot.com/2013/07/blog-post_21.html?showComment=1374859434443#c8056775008321166464'> 26 जुलाई 2013 को 10:53 pm बजे
इतिहास का भूगोल बिगाड़ना हमारी खासियत है। :)