cnn-ibn पर सागरिका घोष का शो face the nation में portrayal of women in cinema मुद्दे पर परिचर्चा देख रहा हूं. विषय देखकर एकबारगी लगा कि अब तक के हिन्दी सिनेमा पर बात होगी. लेकिन स्लग देखकर समझ गया कि यहां सिर्फ 18 जनवरी को रिलीज होनेवाली फिल्म इन्कार पर बात होनी है. पैनल में सुधीर मिश्रा के अलावे बाकी के डिस्कसेंट इसी सिनेमा के कलाकार हैं और इस मुद्दे पर पूरी बात इन्कार फिल्म की कंटेंट को लेकर कर रहे हैं. सीधे-सीधे सिनेमा की प्रोमोशन. किरदार अपनी भूमिका बता रहे हैं और फिल्म को लेकर इसकी सिनॉप्सिस हम दर्शकों को समझा रहे हैं कि वर्किंग प्लेस में स्त्रियों के साथ कैसे सेक्सुअल ह्रासमेंट होते हैं,ये फिल्म उसी पर बनी है. फिल्म प्रोड्यूसर को दामिनी की घटना के बाद से देश में जो माहौल बने हैं, इससे बेहतर शायद ही समय मिले इसे रिलीज करने के लिए. लेकिन कोशिश ये भी है कि आनन-फानन में इसकी प्रोमोशन इस तरह से की जाए कि वो न्यूज का हिस्सा लगने लगे.
मेरे मन में बस एक सवाल उठ रहे हैं कि क्या ये तरीका सही है कि आपको जिस फिल्म या टीवी कार्यक्रम के प्रोमोशन करने हों, उसमे शामिल मुद्दे शीर्षक से परिचर्चा कराओ, सुधीर मिश्रा जैसे साख और सम्मानित शख्स को शामिल करो और जमकर उस फिल्म और कार्यक्रम की गाथा गाओ ? ऐसे में सुधीर मिश्रा से सवाल किया जाए कि आप अभी सीएनएन-आइबीएन पर जो परिचर्चा कर रहे थे वो इन्कार फिल्म की प्रोमोशन थी या स्त्री के सवाल को लेकर तो जवाब शायद दिलचस्प हों. अच्छा, चैनल की उदारता देखिए कि वो बार-बार फ्लैश कर रहा है कि इस फिल्म का संबंध वायकॉम 18 से है जो कि नेटवर्क 18 यानि सीएनएन आइबीएन की सिस्टर कंपनी है लेकिन सीधे-सीधे पट्टी नहीं लगायी- प्रोमोशन या एडवीटोरिअल. देश के प्रमुख चैनल पर प्राइम टाइम में( कल रात का शो था ये) इस तरह की जुगाड़ परिचर्चा क्या पेड न्यूज के दायरे में नहीं आएंगे ? मनोरंजन और बिजनेस कार्यक्रमों में पेड न्यूज का खुल्ला खेल जारी है लेकिन बौद्धिक समाज सिर्फ पॉलिटिकल न्यूज तक जाकर फंसा है, जिसके बारे में राजदीप सरदेसाई का कहना भी है कि आप उनको तो नहीं पकड़ते.
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