आज दि टाइम्स ऑफ इंडिया के पहले पन्ने का आधा हिस्सा "लाइव इंडिया" चैनल के विज्ञापन से रंगा है. अपने मीडियाकर्मियों का खून चूसनेवाला चैनल आज देशभर में रक्तदान कराने और उसका लाइव प्रसारण का काम करने जा रहा है. इस चैनल से कोई पूछनेवाला नहीं है कि तुम जो महीनों अपने मीडियाकर्मियों का वेतन नहीं देते, सालों से बारह हजार-चौदह हजार में बैल की तरह पीसते हो, तुममे ये नैतिक अधिकार कहां से आ गया कि रक्तदान शिवि लगवाओ, उसका प्रसारण करो.
दर्शकों की नजर में आने और सस्ती लोकप्रियता हासिल करने का ये कितना घिनौना और घटिया तरीका है, इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि जिस चैनल में सालों से वहां काम करनेवाले लोगों का हक मारा जाता रहा,चैनल के पूर्व सीइओ सुधीर चौधरी जोड़-तोड़ से बाकी लोगों को उसी हाल में काम करते रहने,मैनेजमेंट से सांठ-गांठ करके खुद ही कुर्सी बचायी रखी और शोषण की चक्की में सब पिसते रहे, आज वही चैनल रकतदान शिविर लगाने जा रहा है. कोई चैनल के मालिक और मुखिया से पूछे तो सही कि क्या वहां के मीडियाकर्मियों के शरीर में इतना खून बचा भी है कि वो दान कर सकें ?
एक, दूसरा ये कि चैनल की इतनी साख है कि हम औऱ आप जैसे लोग रक्तदान करेंगे तो वो सही जगह पहुंच पाएगा ? मुझे याद है रॉटरी क्लब जैसा संगठन जिसक कि दुनियाभर में साख है, रक्तदान के समय एक फ्रूटी और एक फल देने के बाद वापस हमें ऐसा कुछ भी नहीं देती जिससे कि प्रामाणित हो सके कि हमने रक्तदान किया है. ऐसे में लाइव इंडिया रक्तदान करनेवालों के साथ क्या करेगा ? कहीं ये खून इसलिए तो नहीं बचा रहा कि आगे उसे पीने की किल्लत न हो जाए ?
आपको नहीं लगता कि मीडिया और चैनलों के बीच इस तरह की चोचलेबाजी इसलिए शुरु हुई है कि क्योंकि वे अपने मूल काम "रिपोर्टिंग और उसका प्रसारण" को या तो बिल्कुल ही महत्व नहीं देते या फिर उनके भीतर दलाली का धंधा इस कदर बढ़ गया है, कार्पोरेट से लेकर सरकार तक उसमें इस तरीके से आकंठ डूबे हैं कि जरुरी मुद्दों पर खबर नहीं कर सकते. ऐसे में चैरिटी के जरिए लोगों के बीच अपनी पकड़ और पहचान बनाए रखना चाहते हैं. ये काम देश में सालों से होता आ रहा है. व्यापारी और सेठ पहले तो जमकर इस देश को लूटते हैं, मुनाफे के लिए तमाम तरह के धत्तकर्म करते हैं और फिर धर्मशाला,प्याउं और मंदिर बनवाते हैं. कार्पोरेट दलाल मीडिया इसी फार्मूले पर काम करने लग गया है.
एनडीटीवी इंडिया एयरसेल से गंठजोड़ करके बाघ बचा रहा है, टोएटा से हाथ मिलाकर कोस्टल एरिया बचा रहा है, कोक के साथ मिलकर स्कूल का बाथरुम दुरुस्त करने में लगा है और लोगों से मार धुंआधार अपील कर रहा है कि स्कूल जाइए. पहाड़ बचाने में जुटा है ताकि आप भविष्य में उस पर चढ़कर माउंटेन ड्यू पी सकें. खाने के पोषक तत्व को बचा रहा है. कभी किंगफिशर के साथ टाइअप करके एनडीटीवी गुडटाइम चैनल शुरु किया था और तब एनडीटीवी जितना टीवी स्क्रीन पर नहीं दिखता था, उससे कहीं ज्यादा शराब के ठेके में पड़े गत्ते पर लिखा मिलता था. सीएनएन ग्रुप प्रायोजित रुप से सिटिजन जर्नलिज्म कर रहा है, यंग लीडर का अवार्ड दे रहा है, जीवन बीमा कंपनियों से सांठ-गांठ करके उद्यमियों को पुरस्कार दे रहा है तो इधर आजतक को रह-रहकर देश से भ्रष्टाचार दूर करने का दौरा पड़ता है और बक्सा-पेटी लेकर सड़कों पर उतर आता है. लाफ्टर शो को लंगड़ी मारने के लिए चुटकुला और हास्य कविता के कार्यक्रम करवाता है. वो सबकुछ बचा रहा है, सबकुछ बना रहा है लेकिन न तो खबरों को बचाने में,पत्रकारिता को बचाने में उसकी दिलचस्पी है और न ही मीडिया को. जिस दिन कंपनियों,ठेकेदारों,बिल्डरों के चश्मे से पैसे का सोता फूटना बंद हो जाएगा,सारी चैरिटी खत्म.
ये सब बस इसलिए क्योंकि इनमें से कुछ मीडिया संस्थानों को अपनी मदर कंपनी के मूल धंधे को बढ़ाना होता है या फिर जिन मीडिया संस्थानों का सिर्फ मीडिया का ही धंधा है,उन्हें रीयल एस्टेट, फाइनाइंस और दूसरे ऐसे क्षेत्र की कंपनियां मिल जाती है कि वो उनसे जुड़े धंधे को लेकर कैम्पेन शुरु करते हैं और बाजार पर उनकी पकड़ बनाने में हद तक मदद करते हैं. ये सब वो अपनी सुविधा,मुनाफे और धंधे को चमकाने के लिए करते हैं. सुनेत्रा चौधरी( एनडीटीवी 24x7) ने इलेक्शन बस 2009 के अनुभव को लेकर किताब लिखी है- A BUS, 2 GIRLS,15 THOUSAND KILOMETRES,715 MILLION VOTES !!!. इसमें संस्मरण की शक्ल में डॉ. प्रणय राय की एक बात शामिल की है- सुनेत्रा, अब हमारा एक फाइव स्टार होट से टाइअप हो गया है और तुम्हें देश के किसी भी हिस्से में जहां-जहां उसकी चेन है, रुकने में दिक्कत नहीं होगी.
ये सब बस इसलिए क्योंकि इनमें से कुछ मीडिया संस्थानों को अपनी मदर कंपनी के मूल धंधे को बढ़ाना होता है या फिर जिन मीडिया संस्थानों का सिर्फ मीडिया का ही धंधा है,उन्हें रीयल एस्टेट, फाइनाइंस और दूसरे ऐसे क्षेत्र की कंपनियां मिल जाती है कि वो उनसे जुड़े धंधे को लेकर कैम्पेन शुरु करते हैं और बाजार पर उनकी पकड़ बनाने में हद तक मदद करते हैं. ये सब वो अपनी सुविधा,मुनाफे और धंधे को चमकाने के लिए करते हैं. सुनेत्रा चौधरी( एनडीटीवी 24x7) ने इलेक्शन बस 2009 के अनुभव को लेकर किताब लिखी है- A BUS, 2 GIRLS,15 THOUSAND KILOMETRES,715 MILLION VOTES !!!. इसमें संस्मरण की शक्ल में डॉ. प्रणय राय की एक बात शामिल की है- सुनेत्रा, अब हमारा एक फाइव स्टार होट से टाइअप हो गया है और तुम्हें देश के किसी भी हिस्से में जहां-जहां उसकी चेन है, रुकने में दिक्कत नहीं होगी.
कार्पोरेट,हॉस्पीटल, रियल एस्टेट का ये गठजोड़ इसलिए भी कि मीडिया संस्थानों को हराम की सुविधा मिल सके और बदले में वो उन्हें और उनके प्रोमोशनल इवेंट को खबर की शक्ल में दिखाते रहें. रियल एस्टेट औऱ बिजनेस की अधिकांश खबरें और उन पर पलनेवाले चैनल इसी बिना पर फल-फूल रहे हैं. और ये सारी बातें सिर्फ हम नहीं कह रहे, मीडिया में भ्रष्टाचार के सवाल पर बोलते हुए आज से तीन साल पहले राजदीप सरदेसाई ने खुलेआम कहा था- आप सिर्फ न्यूज चैनलों की बात क्यों कर रहे हैं, मनोरंजन और बिजनेस चैनलों की तरफ भी नजर घुमाइए, आपको पेड न्यूज का नया नजारा दिखेगा..आप कुछ मत कीजिए, चैनलों पर जो विज्ञापन आते हैं, उन्हें ध्यान में रखिए और फिर बिजनेस से जुड़ी खबरें देखिए..आप पाएंगे कि उन कंपनियों के चेयरमैन,सीइओ और डायरेक्टर को इस अंदाज में पेश करते हैं जैसे कि समाज के हीरो वही हैं. राजदीप ने कभी दूरदर्शन और पब्लिक ब्रॉडकास्टिंग का मजाक उड़ाते हुए और वो भी दूरदर्शन की ही परिचर्चा में कहा था कि जरुरी नहीं कि हर बुलटिन प्रधानमंत्री से ही शुरु हो..सही बात थी लेकिन प्रधानमंत्री को रिप्लेस करके जिनके चेहरे चमकाने का काम मीडिया कर रहा है, उनकी कितना अकाउंटबिलिटी है, कितनी साख है, इस पर भी तो बात होनी चाहिए. आज आप उन्हें हीरो की तरह पेश कर रहे हैं, कल वो कंपनी बंद करके चल देंगे, सैंकड़ों लोग सड़क पर आ जाएंगे, आप उनके बारे में खबरें प्रसारित करेंगे ? आप कहते हैं समाज करप्ट हो रहा है लेकिन इस करप्ट होते समाज के बीच मीडिया किन लोगों को बढ़ावा दे रहा है, कभी गौर करेंगे ? जो चैनल चलाता है, वही फर्जी लेन-देन में जेल चला जाता है औऱ उसका चैनल सरकार और व्यवस्था पर भ्रष्टाचार को लेकर स्टोरी चला रहा है..ये हद नहीं है क्या ?
मुझे यकीन है कि पिछले चार-पांच सालों से मीडिया खबर दिखाने-बताने के धंधे को छोड़कर एक्टिविज्म और चैरिटी में कूद पड़ा है, सरकार इसे गंभीरता से नहीं लेने जा रही है क्योंकि अभी तक सरकार को सीधे-सीधे इससे कोई दिक्कत नहीं है..लेकिन सूचना और प्रसारण मंत्रालय बीच-बीच में ये सवाल उठाती है कि आपको लाइसेंस न्यूज चैनल का मिला है और आप मनोरंजन चैनलों जैसा कार्यक्रम दिखा रहे हैं, ठीक उसी तरह सवाल किए जाने चाहिए कि आपको लाइसेंस खबरों का धंधा करने के लिए मिला है, ये आप चैरिटी का काम क्यों कर रहे हैं ?
अगर किसी ने लाइव इंडिया को केस स्टडी बनाकर वहां हुए और हो रहे मानवाधिकार के उल्लंघन के मामले पर गौर करे तो आपको ये चैनल कम,बूचड़खाना ज्यादा जान पड़ेगा. दर्जनों मीडियाकर्मियों का हक मारा जा रहा है,मारा गया है. जिन शर्तों पर उनसे काम करवाया जाता है, वो बंधुआगिरी से कम बदतर नहीं है. आए दिन असुरक्षा के भाव ने उनके स्वाभिमान को बुरी तरह कुचल दिया है. आप इनसाइड स्टोरी करेंगे तो शायद नाम बताने की शर्त पर वो जुबान खोलें और कहें कि जितने पैसे चैनल इस तरह के भौंडे प्रोमोशन के लिए कर रहा है, उतने पैसे कार्यक्रम बनाने और एचआर पर करे तो चैनल की स्थिति सुधर सकती है.
लाइव इंडिया ने लाखों रुपये देकर दि टाइम्स ऑफ इंडिया के पहले आधे पन्ने पर समरुद्धा जीवन ग्रुप के सीएमडी महेश मोटेवर की तस्वीर छपवायी है, आप पाठकों से अपील है कि इस तस्वीर को नजर में बसा लें, वो देश में किस-किस तरह के महान और समाज सेवा का काम करते हैं, नजर में रखें..ऐसे ही तारनहार कल को तर्क देंगे कि हमने तो मीडिया के जरिए समाज को बदलने की कोशिश की लेकिन जब हमे इससे करोड़ों का नुकसान होने लगा तो आखिर हम भी कब तक बर्दाश्त करते, मजबूरी में बंद करना पड़ा. पस्त सरकार और जर्जर व्यवस्था के बीच जो थोड़ा भला होगा, इन्हीं चैनलों और मीडिया के बूते और मीडिया का भला तभी तक होगा जब तक उसे धनपशु मिलते रहें इसलिए जरुरी है कि इस देश में पशुओं से कहीं ज्यादा धनपशुओं की सेवा की जाए.
https://taanabaana.blogspot.com/2012/09/blog-post_26.html?showComment=1348799191924#c8971540593780883830'> 28 सितंबर 2012 को 7:56 am बजे
मीडिया की हकीकत -क्या हाल हैं! सभी चैनलों का यही हाल है लगता है। अच्छा लिखा है।