मोहल्ले भर की दीदी एक-दूसरे को कोहनी मारते हुए किसान सिनेमा ( बिहार शरीफ) में घुसती और हम जैसे उम्र में बहुत ही छोटा भाई चपरासी की तरह पीछे-पीछे. शादी के बाद पहली बार ससुराल आए जीजाजी के साथ सालियों का फिल्में दिखाने ले जाना कोई वैवाहिक कर्मकांड का हिस्सा तो नहीं था लेकिन मजाल है कि ये परंपरा किसी भी तरह से टूट जाए. मोहल्ले की किसी दीदी की शादी हुई और वो पहली बार मायका आई और उनके पति ( हालांकि अब ये पति टीवी फैशन में सोलमेट और फेमीनिज्म के पन्नों में बुरी तरह बिलेन हो चुका है) ने सालियों को सिनेमा नहीं दिखाया तो समझिए कि उसकी पर्सनालिटी में कहीं न कहीं खोट है. दामाद दिलदार है, खुले मिजाज का मिलनसार है, इसकी पहचान इस बात से होती थी कि ससुराल पहुंचने के घंटे-दो घंटे बाद अपनी सबसे छोटी साली जिसके कि अक्सर पीरियड भी शुरु नहीं होते से पूछे- सलोनी,जरा हिन्दुस्तान देखकर बताइए तो कि किस टॉकिज में कौन-कौन सिनेमा लगा है ? बस इतना पूछा नहीं कि मोहल्ले में ढोल-दुदंभी पिट गई- सदानंद बाबू के छोटका मेहमान दिलदार आदमी है, बड़ा करेजावाला है, आते ही सिनेमा जाने के बारे में कह रहा है. वैसे तो मोहल्ले की लड़कियों का सिनेमा देखना चाल-चरित्र का नाश हो जाने जैसा था लेकिन जीजाजी के साथ सिनेमा देखने जाना अपने आप में ऐसा सिनेमा था जैसे कि सेंसर बोर्ड के सर्टिफिकेट मिल जाने के बाद शील-अश्लील की बहस खत्म हो जाया करती है. सिनेमा को बदनाम विधा से मुक्त कराने में देश के लाखों जीजाओं का बड़ा हाथ रहा है. बहरहाल,
सलोनी हुलसकर हिन्दुस्तान ( पटना संस्करण) उठाकर लाती जिसमें कि पहले तो आधे से ज्यादा पटना के सिनेमाहॉल की चर्चा होती फिर नीचे दुबके हुए कॉलम में बिहार शरीफ के सिनेमाहॉल. सलोनी अपने जीजा को देखती कि वो सेब,बुंदिंया के फक्के मारने में लगे हैं, पूछती- जीजाजी,पढ़कर सुनाएं. जीजाजी बिना पीरियड शुरु हुए अपनी इस छोटी साली को बहन की तरह स्नेह करते. ये अलग बात है कि दीदी से एकांत में उसी तरह का घटिया मजाक करते जैसे कि अभी गली- मोहल्ले के लौंडे विद्या वालन की डर्टी पिक्चर देखने के बाद करते नजर आते हैं. लिहाजा वो पढ़ती- अंजता में खुदगर्ज, अनुराग में सुहाग, वंदना में करन-अर्जुन, नाज में आधी रात की मस्ती केवल व्यसकों के लिए. रहने दो,रहने दो. आधी रात की मस्ती सुनते ही पास बैठी कुछ दीदीयों के चेहरे सुर्ख लाल हो जाते. जीजाजी का कमीनापन चेहरे पर तैर जाता. बोलिए कौन सा देखिएगा ? चौतरफी जीजाजी को घेर रखी दीदीयां उन फिल्मों पर ज्यादा जोर देती जिसे मोहल्ले की चाचियां जाने से आमतौर पर मना कर देती. जैसे मेरी मां ही कहती- इ फिलिम नहीं देखेंगे रागिनी, सुने हैं बहुत चुम्मा-चाटी है इसमें. कोढिया असलमा सब होगा,जोर-जोर से सीटी मारेगा. मेरी मां की धारणा थी,सिनेमाहॉल में सीटी मारने और लफुआ हरकतें करनेवाले सब मुसलमान होते हैं क्योंकि हिन्दू लड़कें या तो शरीफ होते हैं या फिर गार्जियन का एतना कंट्रोल होता है कि ऐसा करते किसी ने जान लिया तो खाल उघार देंगे. जीजाजी के साथ ऐसी रिजेक्टेड फिल्में देखी जा सकती थी. क्या हुआ, चुम्मा-चाटी है तो साथ में तो जीजाजी हैं न. फिर दीदी भी तो जा रही है. मां-चाची के मना करने पर कोई मुंहफट दीदी तड़ाक से जवाब देती- रहने दो, नहीं जाते हैं. आएगा पढ़के विनीत तो शैलेन्द्रा के यहां से भीसीपी मंगाकर शिव महिमा देख लेंगे. घर के किसी मर्दाना जात ने टोका कि फैमिली के साथ देखनेवाला सिनेमा नहीं है तो पीछे से कोई सुना देती- तो हम कौन सा फिल्म देखने जा रहे हैं ?
कुल मिलाकर जीजाजी के साथ वो फिल्में देखी जाती जिसमें थोड़ा-बहुत मसाला हो. ऐसे में मां-चाची जीजाजी के दो-चार घंटे की एक्टिविटी पर गौर करती. सबकुछ सही रहा तो हरी झंड़ी मिल जाती. जाने देते हैं, घर के मेहमान हैं, उन्नीस-बीस होगा तो साथ में हैं न और फिर जूली ( जो ब्याहकर आयी है) बउआ थोड़े हैं,समझती नहीं है कि मेहमान-पाहुन के साथ एतना-एतना जुआन-जवान बहिन के साथ जा रही है तो ध्यान रखे. बाकी तो हम जैसे चपरासी छोटे भाई होते ही जो थोड़ा भी इधर-उधर आने पर चट से मां को रिपोर्ट करते- मां, इन्टरवल हुआ न तो जीजाजी सबको फंटा दे रहे थे औ लास्ट में सुषमा दीदी को दिए न त हाथ पकड़े ही रह गए. जीजाजी को बीच में बैठना होता,अमूमन एक तरह ब्याहकर आयी दीदी लेकिन दूसरी तरफ हम जैसों को जम बिठाया जाता तो जीजाजी का मूड उसी समय खराब हो जाता. आपकी बहिन को लेके भाग नहीं जाएंगे सालाजी, उठिए.बैठने दीजिए अल्का को यहां पर. हम अपना सा मुंह लेके हट जाते. अच्छा,हमें सभी दीदी की जासूसी करने के लिए तैनात नहीं किया जाता. हमें सिर्फ उस दीदी पर ज्यादा ध्यान देना होता जिसकी तुरंत शादी होनेवाली है, जिसकी कुंडली इधर-उधर कूद-फांद रही है. नहीं तो मोहल्ले की औरतों को दो मिनट भी गुलाफा ( अफवाहें ) उड़ाने में समय नहीं लगता- मेहमानजी के क्या है, मरद जात थोड़ा चंचल होता ही है लेकिन इ नटिनिया अल्कावा के नय सोचे के था कि सिनेमा जा रहे हैं त एतना सटके काहे बैठे, धतूरा पीस के खा ली थी क्या ? औ जूली के तो जब से बिआह हुआ है, जमीन पर गोड रहता ही नहीं है. पूरे सिनेमा देखने के दौरान हम मां-चाची के ब्यूरो होते जो अक्सर जीजाजी की नजरों में खटकते,कई बार दीदीयों के भी. मुझे तो जब अमिताभ मीडिया को जब-तब दुत्कारते हैं तो अपना बचपन याद आ जाता है.
सिनेमा देखकर लौटने के बाद दीदी लोगों पर नशा सा छा जाता. जो जीजाजी शहर के होते, लड़कियों के साथ पहले से फैमिलियर होते बेहिचक एक गोलगप्पा मुंह में डालकर खिलाते. कुछ दीदी मना कर देती लेकिन महसूस करती कि मन में खोट नहीं है तो खा लेती. इसी में किसी की सैंडल टूट जाती, जीजाजी रुककर मरम्मत करवा देते या नई खरीद देते. उसके बाद तो पूरे मोहल्ले में डंका. जाय दीजिए अर्चना के माय, शादी करने में हम भले ही बिक गए लेकिन दामाद मिला एकदम वृंदावन के बांके बिहारी. इस एक सिनेमा जाने में मोहल्ले भर के दामाद का चरित्र डिफाइन होता. तीन घंटे का एक सिनेमा और दो-ढ़ाई घंटे का फुचका-शीतल छाया की चाट से उनका आकलन होता.
अब तो बचपन का वो शहर बिहार शरीफ छूट गया. वहां गए दस साल से ज्यादा हो गए. दीदीयों का ब्याह अब भी होता है, जीजाजी पहलेवाली खेप से ज्यादा बिंदास होते होंगे, क्या पता पूरे मोहल्ले की बहनों को न ले जाकर सिर्फ अपनी साली को ले जाते होंगे, हम जैसा चपरासी भाई कहीं बैंग्लुरु, पुणे से एमबीए करने चला गया होगा..लेकिन बेहतर सिनेमा को क्या अब भी शहर के मेहमानजी ही जाकर पारिभाषित करते होंगे ? सौ साल के सिनेमा के इस साल पर मैं एक बार तो जरुर जाउंगा, शहर के उस बदले मंजर और सिनेमाहॉल देखने.
https://taanabaana.blogspot.com/2012/06/blog-post.html?showComment=1338563600825#c5415855111624307381'> 1 जून 2012 को 8:43 pm बजे
Vineet ji,
Kissan cinema to abhi bhi waisa dikhta hai(andar kabhi gaya nahi, kyunki main filme jyada nahi dekhta) lekin sheetal chhaya ki chaat ka swaad samay ki sath badal gaya hai. Ab wo baat nahi rahi jo kuchh saal pahle hua karti thi.
https://taanabaana.blogspot.com/2012/06/blog-post.html?showComment=1338569490501#c8928710374193052481'> 1 जून 2012 को 10:21 pm बजे
Vineet Ji....fantastic writing...bhuli hui chije yad aa gayi..
https://taanabaana.blogspot.com/2012/06/blog-post.html?showComment=1338611683485#c4572929977764881921'> 2 जून 2012 को 10:04 am बजे
मजेदार :-)
https://taanabaana.blogspot.com/2012/06/blog-post.html?showComment=1338611871169#c8363687125002675097'> 2 जून 2012 को 10:07 am बजे
साथ ही, 'बेहतरीन हिन्दी ब्लॉग' चुने जाने के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें....
https://taanabaana.blogspot.com/2012/06/blog-post.html?showComment=1338646411029#c3348047669524179182'> 2 जून 2012 को 7:43 pm बजे
इस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - दा शो मस्ट गो ऑन ... ब्लॉग बुलेटिन
https://taanabaana.blogspot.com/2012/06/blog-post.html?showComment=1338648810648#c29235317793684232'> 2 जून 2012 को 8:23 pm बजे
ha ha haste haste lot pot ho gaya
http://blondmedia.blogspot.in/2012/06/blog-post.html
https://taanabaana.blogspot.com/2012/06/blog-post.html?showComment=1338649136886#c6767020258736984983'> 2 जून 2012 को 8:28 pm बजे
maine iska link apne facebook pr bhi diya hai
http://www.facebook.com/alokmohanprasad
https://taanabaana.blogspot.com/2012/06/blog-post.html?showComment=1338654578697#c7035778951200686531'> 2 जून 2012 को 9:59 pm बजे
mast.....
https://taanabaana.blogspot.com/2012/06/blog-post.html?showComment=1338687063627#c4235944508021841980'> 3 जून 2012 को 7:01 am बजे
जिसकी तुरंत शादी होनेवाली है, जिसकी कुंडली इधर-उधर कूद-फांद रही है. नहीं तो मोहल्ले की औरतों को दो मिनट भी गुलाफा ( अफवाहें ) उड़ाने में समय नहीं लगता- मेहमानजी के क्या है, मरद जात थोड़ा चंचल होता ही है लेकिन इ नटिनिया अल्कावा के नय सोचे के था कि सिनेमा जा रहे हैं त एतना सटके काहे बैठे, धतूरा पीस के खा ली थी क्या ?
कुंडली कूदना-फ़ांदना। जय हो। :)
https://taanabaana.blogspot.com/2012/06/blog-post.html?showComment=1338776209883#c6255463292760729078'> 4 जून 2012 को 7:46 am बजे
congratulations
https://taanabaana.blogspot.com/2012/06/blog-post.html?showComment=1338796053290#c3806433016404247711'> 4 जून 2012 को 1:17 pm बजे
जय हो .
https://taanabaana.blogspot.com/2012/06/blog-post.html?showComment=1338796779785#c207001556474528699'> 4 जून 2012 को 1:29 pm बजे
जय हो जीजा जी।:)
https://taanabaana.blogspot.com/2012/06/blog-post.html?showComment=1338836982562#c8574148319348849364'> 5 जून 2012 को 12:39 am बजे
excellent post
https://taanabaana.blogspot.com/2012/06/blog-post.html?showComment=1338837133834#c1266031635476860661'> 5 जून 2012 को 12:42 am बजे
excellent post
https://taanabaana.blogspot.com/2012/06/blog-post.html?showComment=1338837179833#c856902120837419889'> 5 जून 2012 को 12:42 am बजे
excellent post
https://taanabaana.blogspot.com/2012/06/blog-post.html?showComment=1348452761244#c3880246345550907744'> 24 सितंबर 2012 को 7:42 am बजे
मुझे अच्छी तरह याद है साल २००९, फरीदाबाद में साहित्य शिल्पी (आदरणीय श्री राजीव रंजन जी) द्वारा आयोजित प्रथम ब्लोगर सम्मलेन में. मैंने विनीत जी को सुना था. अन्य बहुतों से वहां परिचित हुआ.
वहां से लौटने के बाद मैंने देखा और पाया देश में कुछेक ब्लोगर हैं - एक ब्लोगर की भूमिका क्या होती है, एक ब्लोगर क्यों ब्लोगर के रूप में सम्मान पाने का अधिकारी होता है. जो सीधे सीधे कहते हैं.
लगे रहिये विनीत भाई!
Excellent Post!