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ज्ञा
नवाणी इग्नू की एफएम रेडियो सेवा है, जिसके माध्यम से देशभर में शिक्षा और अलग-अलग पाठ्यक्रमों का प्रसारण करके क्लासरूम की कमी को पूरा करने का काम किया जाता है। जिसकी फ्रीक्वेंसी 105.6 मेगाहर्ट्ज है। लेकिन पिछले कुछ सालों से इसके माध्यम से देश और दुनिया में ज्ञान की रोशनी बिखेरनेवाले यहां के लोग खुद ही अन्याय के अंधेरे में जीने के लिए विवश कर दिये जा रहे हैं। नईम अख्तर का मामला भी कुछ इसी तरह का है। साल 2003 से ज्ञानवाणी, इग्नू के लिए अस्थायी पद पर बतौर उदघोषिका काम करनेवाली नईम अख्तर को इग्नू के ईएमपीसी (इलेक्ट्रॉनिक मीडिया प्रोडक्शन सेंटर) परिसर से तड़ीपार कर दिया गया। तड़ीपार करने के पहले जनवरी 2011 के मध्य में के रविकांत(निर्देशक, ईएमपीसी, इग्नू), नहीद अजीज (स्टेशन प्रबंधक, ज्ञानवाणी), जीपी सिंह (सहायक रजिस्ट्रार, ईएमपीसी) और अरुण जोशी (सलाहकार, ज्ञानवाणी) जैसे आला अधिकारियों ने परिसर में यह अफवाहें फैलायीं कि इग्नू के कुलपति ने आदेश जारी करके नईम अख्तर को ब्लैक लिस्टेड कर दिया है और अब उनका प्रवेश वर्जित है। उसके बाद ईएमपीसी की रिसेप्शन के आगे नईम अख्तर की तस्वीर और स्टेशन मैनेजर के हाथ से लिखा उनका नाम लगाकर सुरक्षाकर्मियों को सख्त हिदायत दी गयी कि यह लड़की किसी भी हाल में ईएमपीसी के भीतर न घुसने पाये। 27 जनवरी 2011 को ईएमपीसी के सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें प्रवेश करने से रोक दिया। ईएमपीसी और ज्ञानवाणी के अधिकारियों को जब इतने से भी संतोष नहीं हुआ, तो उन्होंने परिसर में नईम अख्तर को लेकर माहौल बनाना शुरू कर दिया कि यह लड़की पागल हो चुकी है।

नईम अख्तर के साथ जो कुछ भी हुआ और हो रहा है, सचूना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत वो आरटीआई की कुल छह अर्जियां अब तक दर्ज कर चुकी है। इनमें से कुछ अर्जियों के जवाब अभी तक नहीं आये हैं और जिनके आये हैं, उसे पढ़ते हुए साफतौर पर झलक जाता है कि इग्नू, ज्ञानवाणी और ईएमपीसी इसे लेकर न केवल लापरवाह हैं बल्कि आरटीआई प्रावधान के प्रति लोगों को अविश्वसनीय बना रहे हैं। ऐसे में सब कुछ बर्दाश्त करते हुए नईम अख्तर का अपने तरीके से हक की लड़ाई लड़ना जारी है।
नईम अख्तर ने ऐसा कौन सा गुनाह कर दिया है कि ईएमपीसी और ज्ञानवाणी के अधिकारियों के लगातार निशाने पर बनी हुई है, इस पर विस्तार से चर्चा करने से पहले यह जानना बहुत जरूरी है कि इग्नू के कुलपति ने अपनी ओर से ऐसा कोई भी आदेश जारी नहीं किया, जिसमें उन्हें तड़ीपार करने की बात कही गयी हो। यह मामला तब खुलकर सामने आया, जब उन्होंने कुलपति के सहायक से संपर्क करके इस बारे में जानने की कोशिश की। इसका साफ मतलब है कि ये अधिकारी कुलपति के नाम का गलत इस्तेमाल करते हुए नईम अख्तर को धमकाने, मानसिक और आर्थिक तौर पर प्रताड़ित करने की कोशिश कर रहे हैं।
इस मामले में इससे भी दिलचस्प बात है कि आदेश न जारी करने की बात की मांग जब उन्होंने कुलपति कार्यालय से लिखित तौर पर की तो साफ मना कर दिया गया। कार्यालय ने उन्हें किसी भी तरह का पत्र जारी नहीं किया, जिससे यह प्रस्तावित हो सके कि कुलपति ने तड़ीपार करने का कोई भी आदेश जारी नहीं किया है। इस संबंध में नईम अख्तर ने पहले तो कुलपति, इग्नू के नाम 27-1-11 को हाथ से लिखा एक प्रार्थना पत्र और फिर 2-2-11 और 4-2-11 को दो और प्रार्थना पत्र फैक्स के जरिये भेजे। कुलपति के अलावा ईएपीसी को भी तीन बार प्रार्थना पत्र भेजे और जानकारी हासिल करने की कोशिश की। लेकिन हमेशा की तरह इसका कोई जवाब नहीं आया। अंत में सूचना का अधिकार का प्रयोग करते हुए नईम अख्तर ने जनसूचना अधिकारी (ज्ञानवाणी, ईएमपीसी, इग्नू-नयी दिल्ली) के लिए 10-2-11 को अर्जी दाखिल किया। इस अर्जी में उन्होंने प्रमुखता से सवाल उठाये हैं – एक तो यह कि क्या उन्हें इग्नू, ज्ञानवाणी और ईएमपीसी से ब्लैक लिस्टेड कर दिया गया है या फिर सिर्फ प्रवेश वर्जित है? यदि हां, तो इसके लिखित आदेश मुहैया कराये जाएं? दूसरा कि क्या उन्हें इग्नू के कुलपति की तरफ से आदेश जारी करके ब्लैकलिस्टेड किया गया है, यदि हां तो इस संबंध में लिखित आदेश उपलब्ध कराये जाएं? तीसरा कि उनके साथ किन आधारों पर ऐसा किया गया? और सबसे जरूरी बात कि अगर इस तरह का कोई भी आदेश जारी नहीं किया गया तो फिर वे कौन लोग हैं, जिन्होंने कुलपति के नाम का गलत इस्तेमाल करते हुए यह सब किया और उनके लिए किस तरह की सजा का प्रावधान है? जिन लोगों ने एक उदघोषिका की छवि को धूमिल करने की कोशिश की है, उसके पीछे क्या कारण रहे हैं?
नईम अख्तर की तरफ से आरटीआई के तहत पूछे गये सवालों का 5 मार्च 2011 को जवाब देते हुए ईएमपीसी के जनसूचना अधिकारी एससी कतोच ने लिखा कि ये सारे फैसले समर्थ प्राधिकारी की तरफ से लिये गये हैं। ये समर्थ प्राधिकारी कौन हैं, इसकी कहीं कोई चर्चा नहीं की गयी। सवालों में जहां-जहां भी संबंधित अधिकारियों या कुलपति के आदेश की चर्चा की गयी थी, वहां जवाब में समर्थ अधिकारी शब्द का प्रयोग किया गया। उन्हें ब्लैक लिस्टेड करने के पीछे के कारण क्या थे, इस संबंध में सिर्फ इतना ही कहा गया कि चूंकि वह अस्थायी कर्मी हैं, इसलिए नियम एवं शर्तों के उल्लंघन किये जाने की स्थिति में बिना किसी पूर्व सूचना के संस्थान से निलंबित किया जा सकता है। बाकी सवालों का जवाब देना जरूरी नहीं समझा गया और उसके आगे खाली स्थान छोड़ दिया गया।
आरटीआई 2005 के तहत नईम अख्तर को जो जवाब मिले हैं, वे निराश करने के साथ-साथ संदेह पैदा करनेवाले भी हैं। यह संदेह इस बात को लेकर है कि ज्ञानवाणी के भीतर कामकाज को लेकर भारी अनियमितताएं हैं और ऐसे में यह मामला अकेले नईम अख्तर का न होकर दर्जनों ऐसे उदघोषकों, निर्माताओं और ईएमपीसी, इग्नू के लिए काम करनेवाले मीडियाकर्मियों का है, जो कि अस्थायी तौर पर काम कर रहे हैं और लगातार गलत होते रहने की स्थिति में अपने हक की लड़ाई लड़ने की कोशिश कर रहे हैं। इस कोशिश में उन्हें फिलहाल प्रताड़ना के अलावा कुछ हासिल नहीं हुआ है। इसका मतलब साफ है कि पब्लिक ब्रॉडकास्टिंग का ऊपरी ढांचा भले ही अधिकारों, मूल्यों और अपने यहां काम करनेवाले लोगों की सुविधाओं को ध्यान में रखकर खड़ा किया गया हो लेकिन इसके भीतर जिस तरह ठेके या अस्थायी तौर पर नियुक्तियां होती है, कोई भी व्यक्ति शोषण और दुर्व्यवहार के खिलाफ आवाज नहीं उठा सकता। सेवा से कभी भी मुक्त कर दिये जाने का यही भय है कि ज्ञानवाणी और पब्लिक ब्रॉडकास्टिंग की संस्थाओं का सच हमारे सामने नहीं आने पाता है। ऐसे में नईम अख्तर ने ऐसा क्या कर दिया, जिससे कि संस्थान और पब्लिक ब्रॉडकास्टिंग की शर्तों का उल्लंघन होता है, यह तो किसी भी आरटीआई के जवाब से निकलकर नहीं आया लेकिन तड़ीपार करने के पहले जो कुछ भी घटित हुआ, उसके भीतर से इस बात के सवाल ढूंढे जा सकते हैं।
दरअसल साल 2009-10 के दौरान नईम अख्तर सहित आठ अस्थायी उदघोषकों को वित्तीय वर्ष 2009-10  में टीडीएस (टैक्स डिडक्शन एट सोर्स) गलत काटा गया। नईम अख्तर का फार्म 16-ए गलत जारी किया गया। छह महीने लगातार ज्ञानवाणी दिल्ली के टेलीफोन के जरिये सुझाव देने संबंधी कार्यक्रम में बाहर से आने वाले सारे विशेषज्ञों को 250/- रुपये प्रति कार्यक्रम के हिसाब से कम भुगतान किया। इग्नू के दीक्षांत समारोह के चार उदघोषकों को 250/- रुपये प्रति व्यक्ति के अनुसार कम भुगतान किया। कुछ उदघोषकों को उनकी ड्यूटी किये जाने के बावजूद उनका भुगतान नहीं किया। ज्ञानवाणी दिल्ली द्वारा जारी जिन उदघोषकों के चेक गड़बड़ जारी होने से नकद नहीं हो पाये थे, बार-बार प्रार्थना करने के बावजूद उन्‍हें सुधारकर नहीं दिये जा रहे थे जैसी गड़बड़ियां थीं, जिसके खिलाफ सबसे पहले नईम अख्तर ने आवाज उठायी। उन्होंने सबसे पहले तो स्टेशन प्रबंधन से इन सारी बातों की मौखिक शिकायत की लेकिन दो महीने के इंतजार के बावजूद भी कुछ नहीं किया गया तो इस संबंध में 25-06-2010 को लिखित प्रार्थना पत्र दिया। उसके बाद अगस्त आते-आते उन्होंने तीन और प्रार्थना-पत्र दिये। इन प्रार्थना पत्रों पर किसी भी स्तर पर विचार नहीं किया गया और किसी भी तरह की कार्रवाई नहीं हुई। आखिरकार फार्म 16-ए और टीडीएस से जुड़े सवालों के जवाब के लिए नईम ने 10-9-10 को एक आरटीआई प्रार्थना-पत्र दाखिल कर दिया। उसके ऐसा करने से ज्ञानवाणी और ईएमपीसी, इग्नू के भीतर की गड़बड़ियां एक के बाद एक खुलकर सामने आने लगीं। मसलन इसी समय इस बात की जानकारी मिली कि जून 2009 से जनवरी 2011 तक अस्थायी अकाउंटेंट के तौर पर शिवानी नरुला की जो नियुक्ति की गयी, उसमें कई नियम एवं शर्तों की अनदेखी की गयी। इस पद के लिए निर्धारित योग्यताओं को नजरअंदाज किया गया। पहले नईम अख्तर, उसके बाद नीतू शर्मा और अब रविशंकर कुमार के साथ हुई जिन वित्तीय गड़बड़ियों के मामले सामने आ रहे हैं, वे सबके सब इसी दौरान की गयी है। इन लोगों ने जब इस संबंध में मौखिक शिकायत की थी, तो शिवानी नरुला ने कोई न कोई कारण बताकर उसे तर्कसंगत करार दिया था। लेकिन अब एक-एक करके ये लोग आरटीआई के तहत शिकायत दर्ज कर रहे हैं तो या तो वो राशि वापस भेजी जा रही है या फिर ऐसे तर्क दिये जा रहे हैं, जो अपने आप में ज्ञानवाणी और ईएमपीसी को लेकर सवाल खड़े करते हैं। यहां तक कि आरटीआई के जवाब में शिवानी नरुला की नियुक्ति को जायज ठहराया गया। उद्षोषिका नीतू शर्मा के मामले में ऐसा ही सुधार किया गया। मार्च 2010 में उन्होंने कुल 12 शो किये, जिनमें कि 11 का ही भुगतान किया गया। एक के भुगतान के बारे में जवाब मांगने पर शिवानी नरुला उपस्थिति आदि का हवाला देते हुए मामले को टाल गयीं। लेकिन इस संबंध में नीतू शर्मा ने जब आरटीआई (10.12.2010) के तहत जवाब मांगा तो कहा गया कि 3.01.11 को इस एक दिन की राशि का भुगतान कर दिया गया है। रविशंकर के मामले में जो जवाब दिया गया, वह ईएमपीसी के गैरमानवीय हो जाने का संकेत करते हैं।
रविशंकर ने ईडीयूसैट परियोजना के तहत ईएमपीसी, इग्नू में अस्थायी तौर पर दो सालों तक जूनियर सलाहाकार के पद पर काम किया। इन दो सालों में उन्होंने 104 शनिवार जो कि छुट्टी के दिन होते हैं, काम किया। दो साल का करार खत्म होने पर भी उन्हें आने से मना नहीं किया गया और इस तरह उन्होंने 11 दिनों तक आगे भी काम लिया गया। शनिवार और 11 दिनों के काम के लिए उन्हें कुछ भी भुगतान नहीं किया गया। इस संबंध में उन्होंने 2-2-2011 को जब आरटीआई के तहत शिकायत की, तो 8 मार्च 2011 के जवाब में ईएमपीसी के जनसूचना अधिकारी की ओर से लिखा गया कि चूंकि रविशंकर अस्थायी और ठेके के आधार पर कार्यरत थे और उन्हें मासिक वेतन दिया जाता था, इसलिए शनिवार का अलग से वेतन दिया जाना संभव नहीं है। रविशंकर कुमार का करार 4.08.08 से 3.08.10 तक ही था और ऐसे में वे ईएमपीसी में किसी भी पद पर कार्यरत नहीं थे, तो 11 दिनों का वेतन देने का कोई सवाल ही नहीं बनता है। ईएमपीसी जिन नियम और शर्तों की बात जिस अंदाज में कर रहा है, उसमें यह अलग से बताने की जरूरत नहीं है कि यहां अस्थायी और स्थायी तौर पर काम करनेवाले लोगों के लिए मापदंड न केवल अलग हैं बल्कि उनमें जमीन-आसमान का फर्क है। स्थायी कर्मचारी अगर छुट्टी के दिन या निर्धारित समय से अधिक काम करता है, तो उन्हें अलग पैसे दिये जाते हैं जबकि अस्थायी के लिए ऐसा कुछ भी नहीं है। दूसरी बात कि अगर रविशंकर ने करार खत्म होने के बाद भी ईएमपीसी में आना जारी रखा तो उन्हें उसी वक्त रोकने के बजाय 11 दिनों तक काम क्यों लिया जाता रहा?
इधर नईम अख्तर के सवाल खड़े किये जाने पर उसके पक्ष में नतीजा तो कुछ नहीं आया लेकिन 29-9-10 और 30-9-10 को अधिकारियों ने उनके खिलाफ एक-एक करके दो फरमान जारी किये। एक के अनुसार, ज्ञानवाणी दिल्ली में काम करने वाले हर उदघोषक को इग्नू में कोई भी काम करने से पहले स्टेशन मैनेजर की अनुमति लेना आवश्यक होगा। इसकी अवहेलना आज भी धड़ल्ले से जारी है। दूसरा, जो कि सिर्फ उनके लिए था कि जिसमें 1-4-2009 से 10-10-2010 तक इग्नू से कमायी गयी सारी राशि का हिसाब देना था। नईम अख्तर के लिए यह बिल्कुल नया फरमान था, जिसका कि अधूरे तरीके से ही सही उन्होंने 11.10.10 को जवाब दिया। उसके बाद से उनके शो की संख्या लगातार कम कर दी जाने लगी और आखिर में तड़ीपार कर दिया गया।
ऐसा करके ज्ञानवाणी और ईएमपीसी, इग्नू अपने भीतर फैली अनियमिततातों को लगातार ढंकने की कोशिश में जुटा है लेकिन नईम अख्तर के अलावा दूसरे लोगों ने भी आरटीआई के तहत जिस तरह से सवाल-जवाब करने शुरू कर दिये हैं, इससे इस बात की बड़ी संभावना है कि प्रसार भारती की तरह ही इसके भीतर कई दूसरे स्तर के घपले निकल कर सामने आएंगे। नईम अख्तर के मामले पर गौर करने के बाद ऐसे दर्जनों सवाल हमारे सामने से गुजरे, जिस पर कि सख्ती से सवाल करने की जरूरत है। मसलन अस्थायी उदघोषकों के लिए जो ऑडिशन लिये जाते हैं, उन्हें स्वीकृत कर लिये जाने के बाद भी कभी क्यों नहीं बुलाया जाता? उन्हें काम करते रहने के बावजूद स्वीकृति पत्र क्यों नहीं दिये जाते या फिर इंटर्नशिप करने के बावजूद भी अनुभव पत्र जारी क्यों नहीं किये जाते? ज्ञानवाणी अपनी मेल आइडी सार्वजनिक करने के बावजूद, उस पर संदेश भेजे जाने और जवाब मांगने पर इसे सिर्फ कार्यालयी और सांस्थानिक प्रयोग की बात कहकर क्यों टालता है? ये कुछ ऐसे सवाल हैं, जिनकी गहराई में जाने पर ज्ञानवाणी का असली चेहरा कुछ और ही सामने आता है.

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