सीधी बात के नाम पर अगर आप अब तक प्रभु चावला की मसखरी से तंग आ चुके हैं तो खुश हो लीजिए,अब वो सीधी बात में नजर नहीं आएंगे। आजतक और इंडिया टुडे ग्रुप से उनका पत्ता साफ हो गया है। आजतक के सूत्रों के मुताबिक प्रभु चावला ने मैनेजमेंट को इस्तीफा सौंपा है यानी कि खुद अपनी इच्छा से वहां से चल देने में ही अपनी भलाई समझी। लेकिन मीडिया कल्चर के हिसाब से सोचें तो यहां कभी भी कोई बड़ा मीडियाकर्मी निकाला नहीं जाता बल्कि या तो वो कुछ दिनों के लिए छुट्टी पर चला जाता है या फिर खुद इस्तीफी दे देता है। आप लिस्ट उठाकर देख लीजिए,जितने भी बड़े नामों की मीडिया संस्थानों से विदाई होती है तो पहली खबर बनती है कि वो कुछ दिनों के लिए आराम करना चाहते हैं,अपने परिवारवालों पर समय देना चाहते हैं। इस बीच हमारी भूलने की आदत इतनी है कि हम दोबारा नोटिस ही नहीं लेते कि जो छुट्टी पर गया वो लौटा क्यों नहीं। हल्के से तब तक वो इस्तीफा देकर बाहर हो लेते हैं या तो कर दिए जाते हैं। दर्जनभर मीडियाकर्मियों को तो मैंने खुद मैनेजमेंट के दबाव में आकर इस्तीफा देते देखा है। चैंबर या न्यूजरुम में उनके उदास चेहरे बाहर आते ही ऐंठकर अकड़ में तब्दील हो जाती है- मार दिया लात स्साली इस नौकरी को,रखा ही क्या था इसमे? बड़े से बड़े दिग्गज मीडियाकर्मियों के कार्ड पंच न होने लगे,ब्लॉग कर दिए जाएं,गार्ड उन्हें अंदर जाने से रोक दे लेकिन मीडिया में वो इस्तीफा ही कहलाता है। किसी मीडियाकर्मी ने इस रवैये का प्रतिकार नहीं किया। शुक्र है कि प्रभु चावला छुट्टी पर नहीं गए,सीधे वहां से विदा करार दिए गए हैं।
टीवी टुडे ग्रुप से प्रभु चावला का जाना एक बड़ी घटना है क्योंकि 2G स्पेक्ट्रम घोटाला मामले में नीरा राडिया के साथ बातचीत के टेप बाकी लोगों के साथ इनकी भी वर्चुअल स्पेस पर तैर रहे थे,इनकी भी गर्दन अटकी हुई थी। तब आजतक के सहयोगी चैनल हेडलाइंस टुडे ने 1 दिसंबर की रात मीडिया दिग्गजों को बुलाकर पंचायती की थी और प्रभु चावला को पाक-साफ करार दिया था। अब आज उनके इस्तीफे की खबर से ये साफ होने लगा है कि चैनल ने जो पंचायती की और जो नतीजे निकलकर आए,उस पर उन्हें खुद भी भरोसा नहीं है। लिहाजा मैनेजमेंट ने सोचा कि इस बदनामी का वजन बेईज्जती में डूबकर और भारी हो जाए,इससे बेहतर है कि इन्हें अलग कर दिया जाए।
उनके जाने के कारणों को लेकर जो कयास लगाए जा रहे हैं,उनमें से एक कारण ये भी है कि उन्होंने अरुण पुरी की सेवा देने से मुक्त होने का मन तब ही बना लिया था जब एम जे अकबर को ठीक उनके सिर पर लाकर बिठा दिया गया। एम जे अकबर कायदे से महीने भर भी इंडिया न्यूज में रहकर कुछ भी करिश्मा नहीं कर पाए होंगे कि इंडिया टुडे ग्रुप में आ धमके और तो और प्रभु चावला जो कि इंडिया टुडे के ग्रुप एडीटर हुआ करते, उस कुर्सी को उनसे छीनकर और उसमें हेडलाइंस टुडे चैनल की भी तख्ती लगाकर एम जे अकबर के आगे बढ़ा दी गयी और प्रभू चावला के लिए इंडिया टुडे के रिजीनल संस्करण प्रभारी नाम की एक नयी लेकिन कमजोर कुर्सी बनयी गयी और उनके आगे सरका दिया गया। प्रभु चावला को अपनी छोटी होती साइज देखकर खुन्नस आया और तभी से उन्होंने मन बना लिया कि यहां से कट लेना है। बीच में ये भी हल्ला हुआ कि वो इंडिया न्यूज का रुख करेंगे। इंडिया न्यूज इंडिया टुडे को बता देना चाहता है कि अगर वो उनसे एम जे अकबर को छीन सकता है तो वो भी प्रभु चावला को अपने यहां सटा सकते हैं। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। प्रभु चावला को पता है कि इंडिया टुडे से सटे रहकर वो बाहर किस तरह का फायदा ले सकते हैं?
मेरी अपनी समझ है कि इंडिया टुडे और टीवीटुडे नेटवर्क मीडिया में उन विरले संस्थानों में से हैं जहां किसी के जाने से कोई फर्क पड़ता है। मैंने अपने अनुभव से देखा कि जब पुण्य प्रसून वाजपेयी मोटी पैकेज के आगे और अंदुरुनी राजनीति से पिंड छुड़ाने के फेर में सहारा चले गए और समय चैनल चलाने लगे,तब भी लोगों को लगा कि आजतक तो गया,कम से कम 10तक तो पिट ही गया लेकिन आजतक पर बहुत फर्क नहीं पड़ा। दीपक चौरसिया गए तो लगा कि आजतक की दीवार ढह गयी लेकिन कुछ खास फर्क नहीं पड़ा। न्यूज इज बैक का नगाड़ा पीटते हुए न्यूज24 में जब आजतक के सुप्रिया प्रसाद जैसे दिग्गज,आउटपुट हेड और टीआरपी की मशीन कहे जानेवाले अपने साथ भारी-भरकम टीम लेकर गए तो लगा कि आजतक तो अब अनाथ ही हो गया। सुमित अवस्थी IBN7 गए तो लगा कि ढह जाएगा आजतक। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। चैनल अपने तरीके से चलता रहा,ये टीवीटुडे नेटवर्क मैनेजमेंट की अपनी खासियत है। उल्टे जानेवाले लोग जल्द ही छटपटाकर वापस आने की फिराक में लगे रहते हैं जिसमें सुमि अवस्थी और श्वेता सिंह कामयाब हैं। इसलिए प्रभु चावला के जाने से संस्थान को कोई खास फर्क नहीं पड़नेवाला है और न ही वो अपनी साइज छोटी होने की वजह से गए हैं। जाने की पूरी-पूरी वजह राडिया-टेप,मीडिया कलह ही है।
मेरी अपनी समझ है कि इंडिया टुडे और टीवीटुडे नेटवर्क मीडिया में उन विरले संस्थानों में से हैं जहां किसी के जाने से कोई फर्क पड़ता है। मैंने अपने अनुभव से देखा कि जब पुण्य प्रसून वाजपेयी मोटी पैकेज के आगे और अंदुरुनी राजनीति से पिंड छुड़ाने के फेर में सहारा चले गए और समय चैनल चलाने लगे,तब भी लोगों को लगा कि आजतक तो गया,कम से कम 10तक तो पिट ही गया लेकिन आजतक पर बहुत फर्क नहीं पड़ा। दीपक चौरसिया गए तो लगा कि आजतक की दीवार ढह गयी लेकिन कुछ खास फर्क नहीं पड़ा। न्यूज इज बैक का नगाड़ा पीटते हुए न्यूज24 में जब आजतक के सुप्रिया प्रसाद जैसे दिग्गज,आउटपुट हेड और टीआरपी की मशीन कहे जानेवाले अपने साथ भारी-भरकम टीम लेकर गए तो लगा कि आजतक तो अब अनाथ ही हो गया। सुमित अवस्थी IBN7 गए तो लगा कि ढह जाएगा आजतक। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। चैनल अपने तरीके से चलता रहा,ये टीवीटुडे नेटवर्क मैनेजमेंट की अपनी खासियत है। उल्टे जानेवाले लोग जल्द ही छटपटाकर वापस आने की फिराक में लगे रहते हैं जिसमें सुमि अवस्थी और श्वेता सिंह कामयाब हैं। इसलिए प्रभु चावला के जाने से संस्थान को कोई खास फर्क नहीं पड़नेवाला है और न ही वो अपनी साइज छोटी होने की वजह से गए हैं। जाने की पूरी-पूरी वजह राडिया-टेप,मीडिया कलह ही है।
अब इस संदर्भ में देखें तो ये कितना दिलचस्प मामला है कि एक चैनल सालों से काम करनेवाले अपने मीडिया दिग्गज का जमकर बचाव करता है और अभी दस दिन भी नहीं होते हैं कि उसे बाहर का रास्ता दिखा देता है। ये किस किस्म का भरोसा और किस किस्म की दावेदारी है कि जिस पर उसे खुद भी यकीन नहीं है। प्रभु चावला का जाना साफ करता है कि पत्रकार चाहे कितना भी बड़ा हो,बात जहां पर्सनल पर आती है तो संस्थान उसे दूध की मक्खी की तरह फेंकने में बहुत ज्यादा वक्त नहीं लगाता। वीर साघंवी का नाम आया तो सांघवी ने खुद ही भावुक अंदाज में कॉलम लिखकर कुछ दिन बाद सामान्य स्थिति होने तक आराम करने की बात कर दी। फिर पता चला कि मैनेजमेंट ने उनकी साइज एडीटोरियल एडवाइजर से छोटी करके एडवायजर कर दी है। अभी तक सिर्फ NDTV24X7 ही है जो बरखा दत्त की साख में बट्टा लगने के बावजूद भी उसे ऑन स्क्री बनाए हुए है और उसका पद भी बना हुआ है। लेकिन हां सोशल साइट और बाकी इन्टरेक्टिव जगहों से उसे भी गायब कर दिया है। बरखा दत्त के बने रहने की एक वजह ये भी हो सकती है कि पिछले संडे को दि संडे गार्जियन ने NDTV24X7 में प्रणय रॉय और राधिका राय की ओर से करोड़ों रुपये की धोखाधड़ी करने के मामले में जो खबरें प्रकाशित की है,उसका असर हो। इस बीच बरखा दत्त को बने रहने देने में ही अपना भला चाह रहा हो। लेकिन इतना तो साफ है कि किसी भी मीडिया संस्थान का कलेजा इतना मजबूत नहीं है कि वो अपने मीडियाकर्मी का लंबे समय तक साथ दे। अब जबकि मीडिया संस्थान के लोग एक-एक करके खुद ही अपने आरोपित मीडियाकर्मियों को अलग कर रहे हैं ऐसे में चैनलों पर मीडिया एथिक्स को लेकर भाषणबाजी करना कितना भौंडेपन का काम है,आप ही सोचिए।
इधर खबर है कि प्रभु चावला न्यू इंडियन एक्सप्रेस ज्वायन करने जा रहे हैं जो कि मूल रुप से बैंग्लूरु की कंपनी है। अब सवाल है कि इंडिया टुडे ने तो आरोप के बिना पर प्रभु चावला की सजा का एलान कर दिया। लेकिन क्या आरोप सच साबित होने पर कानून और न्यायपालिका ऐसे पत्रकारों को दबोच पाएगी? एक बड़ा तबका जिस पत्रकार को देखकर अपनी राय बनाता आया है,क्या ऐसे दागदार पत्रकारों को अपनी तरफ से कोई सजा मुकर्रर करने की स्थिति में होगा? इनलोगों ने तो अपनी इतनी ताकत पैदा कर ली है कि टुडे की चौखट से धकिआए जाएंगे तो न्यूज एक्सप्रेस की गोद में गिरेंगे लेकिन सोशल जस्टिस......लागू होता भी है या नहीं इन पर?
इस मौके पर पढ़िए और सुनिए- प्रभु चावला के मास्टरी छोड़कर साईकिल से पत्रकारिता करने और इंडिया टुडे तक पहुंचने की कहानी
https://taanabaana.blogspot.com/2010/12/blog-post_11.html?showComment=1292096588081#c3378880071657339603'> 12 दिसंबर 2010 को 1:13 am बजे
उम्मीद की जानी चाहिए एनडीटीवी भी अपनी विश्वसनीयता को बहाल करने की दिशा में कोई कदम उठाएगा.
https://taanabaana.blogspot.com/2010/12/blog-post_11.html?showComment=1292159556905#c8168376599951266710'> 12 दिसंबर 2010 को 6:42 pm बजे
sahi hai ummeed hi hai aur usaka pura hone jururi nahi hai,fir bhi hume ummeed banaye rakhane ka hi ek haq baqi rah gaya hai,so ummeed banaye rakhiye.
https://taanabaana.blogspot.com/2010/12/blog-post_11.html?showComment=1292822507593#c6041078431680118000'> 20 दिसंबर 2010 को 10:51 am बजे
I feel happy that the worst person who actually heralded denigration in media presentation (particularly news) is on his way out....Neither do I have time nor do I have so much of space as to write the choicest of word for this satan called Chawda....I doubt that these wide mouthed people including the Dutt and Sanghavi ever fitted into the definition of Journalism...And yes I want to mention that all these comments are the resultant effect of having seen the standard to which they have brought media, so I am not a partisan to all the media mudslinging...all these views are my personal.....