तुम दिल्ली में बैठकर मेरे बारे में कोढ़ा-कपार( मां फालतू चीजों को कोढ़ा-कपार कहती है) लिखते रहते हो लेकिन आओगे तभी जब हम मरेंगे।..फोन पर उसके ऐसा कहने पर मेरे पास अब कुछ कहने लायक नहीं रह गया था। चैनल की नौकरी बजाते समय घर नहीं जा पाने की अपने पास एक ठोस वजह होती कि बॉस छुट्टी देने से मन कर रहा है। नौकरी छोड़ने के बाद रिसर्च के काम में जुटने पर आजादी का जो पहला एहसास होता है वो ये कि हम अपने मन के मालिक हो जाते हैं। कोई बॉस-बुश नहीं होता। अब जिस बंदे को बिटिया की रेलवे टिकट कटवाने से लेकर चांदनी चौक से लंहगे में गोटा लगवाने के लिए कहने वाला सुपरवाइजर मिल जाए तब उसका क्या कहा जाए। वो तो नौकरी बजाने से भी बदतर स्थिति में है। मैंने जब अपने सुपरवाइजर से कहा- घर जाना चाहता हूं सर,कुछ दिनों के लिए तो खुश होकर बोले- अरे,जरुर जाओ। शुभकामनाएं दी और तब हमने बाय-बाय सर कहते हुए पैकिंग करने के इरादे से झूमते हुए हॉस्टल लौट आया। कहीं कोई लोचा नहीं लगाया मेरे घर जाने की बात पर।
पिछली बार जब मैं घर गया था तब मैं चैनल की नौकरी बजाता था। मेरे घर पहुंचने पर मां ने कहा-जाओ,जाके गैसवाला को हड़काकर आओ। हमेशा मेरे नाम से सिलेंडर उठाता है बीच रास्ते में ब्लैकमेल कर देता है। मां का मानना था कि मीडिया में है बोलने से वो सुधर जाएगा। वैसे भी अपने यहां मीडिया में काम करनेवाले लोगों का इससे ज्यादा बेहतर इस्तेमाल कुछ हो भी नहीं सकता है। मां के साथ दो दिन दूध लाने चला गया तो अब फोन पर बताती है कि दूधवाला अभी तक निठुर( प्योर,बिना पानी मिलाए) दूध दे रहा है। हम जैसे मीडिया से जुड़े लोगों के लिए एक मुहावरा ही फिक्स हो गया है- ज्यादा झोल-झाल करोगे तो भइयाजी टीविए में देखा देंगे सब कारनामा। नानीघर जाता हूं तो हिन्दुस्तान का संवाददाता जिसको-तिसको हड़काए फिरता है- जहां उल्टा-सीधा सामान दिए तो कल्हीं के अखबार में छापेंगे,तुमरे बारे में। वो लाल बोलकर दिए जानेवाले तरबूज के गुलाबी निकल जाने पर किसी सब्जीवाले को हड़का रहा होता है। मुझे लगता है पुलिस के बाद पत्रकार ही है जो अपने इलाके में इस ठसक के साथ( दबंगई कहें) जीता है। बहरहाल,इस बार नौकरी छोड़कर एक स्टूडेंट की हैसयत से घर जा रहा हूं।
रांची मेरा अपना घर नहीं है लेकिन जिस उम्र में हमें एहसास होता है कि हम चीजों और लोगों से जुड़ने लगे हैं,वो दौर हमने इस शहर में खपाया है। शहर की एक-एक सड़कें पत्रकारिता के नाम पर, एक-एक गलियां ट्यूशन पढ़ाने और किराए पर घर खोजने के नाम पर जानता हूं। रांची छोड़ने बाद जमाना हो गया वहां गए। अबकी बार टाटानगर की टिकट मिलने में परेशानी रही तो सोचा रांची ही चला जाए। 28 की शाम रांची पहुंच जाउंगा। 29 तक वहीं रहने का इरादा है। फिर 30 मई को टाटानगर। 2 जून तक टाटानगर में फिर 3 जून को अपनी छोटी दीदी के यहां बोकारो। 5 जून को नानीघर शेखपुरा जो कि कुछ साल पहले मुंगेर का ही हिस्सा रहा। 7 तारीख को मेरे एक दोस्त की शादी है बेगुसराय,वहीं जाने की इच्छा है। 8 को टाटानगर लौटकर 9 जून को दिल्ली के लिए प्रस्थान। 10 जून को दिल्ली।
आते ही कमरे की तलाश,हॉस्टल मे रहते-रहते अब मन उब गया है। रोज रात के खाने के लिए किसी न किसी के फोन का इंतजार करता हूं और किसी के फोन न आने पर चंद्रा दीदी को फोन करता हूं, इधर कुछ सामान खरीदने आया था दीदी,किलकारी से मिलने आ जाउं। अब ये बताने की जरुरत ही नहीं होती कि खाना भी खाउंगा। अब बाहर की दुनिया के साथ जीना चाहता हूं।
... इसलिए हे दिल्ली के ब्लॉगर्स अब तो मनमोहनजी की स्थायी सरकार भी बन गयी है,मौसम भी ठीक-ठीक सा ही है। आप संभालिए तब तक दिल्ली..मैं चला अपने घर,मैं चला रांची।
इस दौरान मेरी इच्छा है कि मैं ब्लॉगर दोस्तों से मिलूं,उनसे टेलीविजन पर,मीडिया के बदलते चेहरे पर बात करूं। अलग-अलग जगहों पर किसी न किसी का मोबाइल मेरे हाथ होगा। मैं नंबर लिख दे रहा हूं,आप मिस्ड कॉल देंगे तो मैं कॉल बैक कर लूंगा।
रांची- 9931696011
टाटानगर-06576454670,9204494661
बेगुसराय- 9868074669
ये सारे लोकल नबंर होंगे और इसमें अगर गलती से कॉल रिसीव हो गए तो 50 पैसे से लेकर एक रुपये कटेंगे।
जोहार...
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https://taanabaana.blogspot.com/2009/05/blog-post_26.html?showComment=1243331610067#c8853422348292219670'> 26 मई 2009 को 3:23 pm बजे
इस बला की गर्मी में दिल्ली से रांची हिल स्टेशन के लिए पलायन अंग्रेजी हुक्मरानों की याद दिलाता है/
https://taanabaana.blogspot.com/2009/05/blog-post_26.html?showComment=1243346509828#c5139172345535640944'> 26 मई 2009 को 7:31 pm बजे
अवकाश का आनेद सभी को लेना चाहिए। लेकिन वह स्टेशन छोड़े बिना नहीं मिलता। फिर कहीं भी जाया जाए।
https://taanabaana.blogspot.com/2009/05/blog-post_26.html?showComment=1243349807124#c7485511505474102251'> 26 मई 2009 को 8:26 pm बजे
मुझे तो बस उस पोस्ट का इंतजार होगा जो दिल्ली आने पर लिखी जाऐगी। खैर जाईए, खूब मस्ती करना।
https://taanabaana.blogspot.com/2009/05/blog-post_26.html?showComment=1243357300837#c1573242107481684088'> 26 मई 2009 को 10:31 pm बजे
एक स्टेशन तो वहां पर भी
आपका इंतजार कर रहा होगा
और बचे सीरीयल्स
वे चाहकर भी न बच पायेंगे
यू ट्यूब पर दिखने से
कैसे दौड़ लगायेंगे
नाम विनीत पर जिनके नाम से
उन्होंने खुद स्वीकारा है कि
कईयों को हड़काया जाता है
जय हो हड़का दादा की।
https://taanabaana.blogspot.com/2009/05/blog-post_26.html?showComment=1244283435311#c4355270191251533989'> 6 जून 2009 को 3:47 pm बजे
फिर 10 को मिलेंगे आपकी यादों के साथ, इसी ब्लॉग पर। यात्रा मंगलमय हो, ठंडक भरी हो।