खबर के नाम पर देश की न्यूज एजेंसी आइएनएस ने आम लोगों के साथ कितना बड़ा घपला किया है इसकी जानकारी दीवान की मेलिंग लिस्ट के जरिए अभी थोड़ी देर पहले ही मिली। प्रधानमंत्री के तौर पर मनमोहन सिंह ने अंग्रेजी में शपथ ली जिसे कि हम सबों ने टेलीविजन पर देखा लेकिन एजेंसी ने इसे पहले हिन्दी में और फिर अंग्रेजी में शपथ लिया जाना बताया। इस मामले पर ब्रजेश कुमार झा ने दीवान पर लिखा- सभी ने सुना-देखा की डा. सिंह ने शपथ के लिए जिस भाषा का उपयोग किया वह अंग्रेजी थी। हिन्दी-अंग्रेजी का मामला न बने इसलिए शायद तान छेड़ा गया कि शपथ लेते समय डा. सिंह ने हिन्दी भाषा का भी प्रयोग किया। अब जिस आम जनता के वास्ते खबर लिखी गई है वही फैसला करे यह खबरनविशी है य़ा फिर शुरू हो गई मख्खनबाजी।
एजेंसी की तरफ से जारी की गयी लाइन है- "डा. मनमोहन सिंह ने लगातार दूसरी बार देश के प्रधानमंत्री के रूप में शुक्रवार को शपथ लेकर एक बार फिर देश की बागडोर अपने हाथों में थाम ली है। राष्ट्रपति प्रतिभा देवीसिंह पाटिल ने उन्हें पद व गोपनीयता की शपथ दिलाई। उन्होंने पहले हिन्दी और फिर अंग्रेजी में शपथ ली।”
कांग्रेस के देश की सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरकर सामने आने पर एनडीटीवी इंडिया की ओर से बड़े ही इत्मीनान अंदाज में घोषणा की गयी कि अब देश के पत्रकारों को बहुत सारे नेताओं के पीछे भागने से छुट्टी मिल जाएगी। निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर या फिर क्षेत्रीय पार्टियों की ओर से जीतकर आनेवाले एमपी सरकार बनाने के मामले में जितनी ड्रामेबाजी किया करते हैं,वो सब खत्म हो जाएगा। एनडीटीवी की बात एक हद तक सही है। अब तक होता यही रहा है कि चुनाव होने से लेकर सरकार बनने की प्रक्रिया तक इतनी छोटी-छोटी पार्टियां औऱ निर्दलीय उम्मीदवार हो जाते कि उनके पीछे भागते रहने से चैनलों के पसीने छूट जाते। साधन और समय के मामले में मीडिया के लोग पस्त हो जाते। इन्हें इग्नोर भी नहीं किया जा सकता क्योंकि सरकार बनाने में इनकी भूमिका सबसे बड़ी पार्टियों से भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाती। ये टोमैटो-ऑनियन टाइप के एमपी होते जो अपनी शर्तों के साथ किसी भी पार्टी में खपने को तैयार होते। बहरहाल
एनडीटीवी इंडिया ने ये नहीं बताया कि रात-दिन ऐसे नेताओं के पीछे भागनेवाले मीडियाकर्मी अब नहीं भागने की जरुरत की स्थिति में क्या करेंगे। क्या अब या तो बहुमत हासिल करनेवाली कांग्रेस के नगाड़े बजाएंगे,उनके चमचे हो जाएंगे या फिर आइएनएस के पत्रकारों की तरह गलती पर पर्दा डालने का काम करेंगे।
चुनावी परिणाम के बाद समाचार चैनलों सहित मीडिया के दूसरे माध्यमों को लगातार देख-सुन रहा हूं। मुझे इस बात पर हैरानी हो रही है कि राजनीतिक स्तर पर विपक्ष की झार-झार हो जाने की स्थिति में मीडिया भी शामिल होता चला जा रहा है। चुनाव के पहले जिस कांग्रेस और उनके सहयोगी दलों में कदम दर कदम ऐब नजर आते रहे अब उनके पक्ष में तुरही बजाने में जुटा है। ये सिर्फ खबरों को लेकर नहीं उसकी प्रस्तुति को लेकर भी साफ झलक जाता है। लगभग सारे चैनलों का एक ही सुपर या स्लग है- सिंह इज किंग। क्या साबित करना चाहते हैं आप ? हार औऱ जीत,पक्ष औऱ विपक्ष राजनीतिक पार्टियों के लिए है मीडिया के लिए तो विपक्ष की भूमिका तब तक स्थायी तौर पर है जब तक कि राजनीति में आम आदमी की आवाज नहीं सुनी जाती चाहे सरकार किसी की भी हो। आइएनएस जैसी न्यूज एजेंसी को कांग्रेसी उत्सव और रफ्फूगिरी करने की क्या जरुरत है। चुनाव के पहले तो पैसे ले-लेकर खबरें छापी-दिखायी ही गयी,अब तो कम से कम आम आदमी को बख्श तो या फिर पांच साल तक के लिए दाम लेकर बैठ गए हो?
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https://taanabaana.blogspot.com/2009/05/blog-post_23.html?showComment=1243067251040#c3900813980966706371'> 23 मई 2009 को 1:57 pm बजे
हां
टीवी पर हमने भी देखा था
उन्हें अंग्रेजी में शपथ लेते हुए
https://taanabaana.blogspot.com/2009/05/blog-post_23.html?showComment=1243106429941#c5181508094563154619'> 24 मई 2009 को 12:50 am बजे
अपनी-अपनी ढपली,अपना-अपना राग है।