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मीडिया में अब जर्नलिज्म के बजाय खेला होने लगा है. आम पब्लिक तो आम खुद चैनल के लोग कहने लग गए हैं कि आज उस स्टोरी पर खेल गए. आरुषि पर खेलते-खेलते बोर हो गए तो भोजपुरी पर खेल गए. खेलने के लिए हिन्दी मीडिया उस बच्चे की तरह परेशान है जिस तरह से स्कूल से छूटता हुआ खेलने के लिए मचल उठता है. उसके दिमाग में बस एक ही बात होती है कि स्कूल में सात घंटे पढ़ लिए, मम्मी के कहने पर दूध भी पी लिया, अब तो बस खेलना है। उसे केलने के लिए कॉलोनी का बड़ा सा मैंदान ही दिखता है और कुछ भी नहीं....हिन्दी मीडिया भी अब बस खेलना चाहती है, बहुत हो गयी जर्नलिज्म,आदमी दिन-रात सीरियस बातें कर-करके पक जाता है, कुछ तो मौज-मस्ती की बातें हो यार।हिन्दी मीडिया देस की बदहाली, गरीबी, भूखमरी पर स्टोरी कर-करके थक गयी है. बीच में तो उसके कारण हिन्दुस्तान की छवि ऐसी बन गयी थी कि लगता था हिन्दुस्तान में भुखमरी के अलावे कुछ भी नहीं है. पता नहीं बाहर के देशों में लोग सोचते भी हों कि भारत में बदहाली और बेकारी की खेती होती है. अब हिन्दी मीडिया के दिमाग की बत्ती जल गयी है, उसके ऑडिएंस भी दिनभर की दिहाड़ी करने के बजाय एमेंसीज में जाने लगे हैं। हिन्दी मीडिया को एक ऐसा ऑडिएंस ग्रुप मिल गया है जो दिनभर अंग्रेजीयत में जीकर-काम करके घर लौटता है, ऑफिस में हिन्दी बोलने-सुनने के लिए तरस जाता है। कुछ मजे करना चाहता है लेकिन ससुरी ऑफिस में सारी चीजें अंग्रेजी में होती है, कूलीग मजाक भी करते हैं तो अंग्रेजी में। वो मजा नहीं आता जो अपने हिन्दी में है। हिन्दी में जो हंसी-ठ्ठा होती है उसमें मन हरा होता है। अंग्रेजी के चुटकुले भी ऐसे लगते हैं कि जैसे हंसने की दवाई ली जा रही हो, मन करे चाहे नहीं जबरदस्ती हंसना ही है। कुल मिलाकर कहानी ये है कि हिन्दी मीडिया में एक ऐसा ऑडिएंस ग्रुप तैयार हो गया है जो शाम को आकर हिन्दी में मौज-मस्ती करना चाहता है। इन्हें मौज-मस्ती कराने के लिए जरुरी है कि हिन्दी मीडिया खेला करे।

हिन्दी मीडिया यह खेला दो स्तरों पर कर सकती है और कर रही है। एक तो कंटेंट के लेबल पर और दूसरा भाषा के लेबल पर। कंटेंट के लेबल पर मीडिया जो खेला कर रही है उसे आम जनता भी बहुत आसानी से समअझ रही है। प्राइम टाइम पर देश और दुनिया की खबरों को दिखाना का दाबा करने वाले लोग क्या दिखा रहे है, वो भी इसे समअझ रहे है। वो देश KEE ख़बर दिखआने के नाम पर पी एम् की पगड़ी नही दिखा सकते। उनके लिये सबसे आसान है यह कहना की हम सरकार के डंके अपने चैनअल पर पीटने नही देंगे, यह काम उस चैनल का है जो सरकार के रहमो करम पर चलता है। हमारा काम है अपनी औडिएंस की जरूरतों के हिसाब से न्यूज़ दिखाना।

और आप और हम सब देख ही रहे है की दिन भर की THAKI AUDIENCE KYA CHAAHTI HAI . दिनभर अंग्रेजी में काम करके KAISE PAK जाती है। उन्हें थोड़ा मनोरंजन चाहिये। भूखमरी और बेकारी तो लगी रहती है तो क्या दिन-रात वही चलाया जाये। बचपन से लेकर अब तक तो यही सब देखकर बड़े हुये है, अब जरा शौक-मौज के दिन आये है तो यही चिलम-पो देखकर शाम ख़राब करे। मजबूरन चैनल को खेला करना पड़ रहा है और वो भी हमारे आपके लिये ही। लेकिन डिमांड के अलाबे जो पब्लिक विरोध कर रही है, उनका क्या काम है, वो दिनभर ऐसा क्या करते है की शाम को हिन्दी में मौज-मस्ती की जरुरत नही पड़ती.....क्रमशः
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1 Response to 'हिन्दी मीडिया में चाहिए मौज-मस्ती'
  1. Mihir Pandya
    https://taanabaana.blogspot.com/2008/07/blog-post_16.html?showComment=1216358160000#c5621326660478895433'> 18 जुलाई 2008 को 10:46 am बजे

    आज सुबह उठकर ब्लॉग देखा तो याद आया कि आपने भी नई पोस्ट डाली होगी. लेकिन नहीं मिली. लगता है व्यस्तता बढ़ गई है. मैंने मोहनदास पर कुछ लिखा है. देखियेगा...
    http://www.mihirpandya.com/2008/07/%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%B9%E0%A4%A8%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B8/
    आपके लिखे का इंतज़ार है.

     

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