हम कनकलता के साथ नहीं हैं। इस बात की जानकारी अभी हमें दो घंटे पहले मिली। जुबां पे सच, दिल में इंडिया रखनेवाले चैनल ने बताया कि यूनिवर्सिटी के किसी भी स्टूडेंट ने कनकलता का साथ नहीं दिया। जिसमें हम सब भी शामिल हैं।
पहले तो व्आइस ओवर में बताया गया कि इस पूरे मामले में यूनिवर्सिटी का कोई भी स्टूडेंट खुलकर सामने नहीं आया। उसके बाद लगातार फ्लैश चलाया गया कि युनिवर्सिटी के किसी भी स्टूडेंट ने साथ नहीं दिया। ब्लॉग की खबर से अगर इस खबर को जोड़कर देखें तो यह एक बड़ा अन्तर्विरोध है। २९ मई को अपूर्वानंद सर ने मोहल्ला पर लिखा-
आपको यह सूचना देना आवश्यक है कि कनक और उसके भाई-बहनों ने इस अन्याय के ख़िलाफ़ लड़ाई छोड़ी नहीं है। कि उनके माता पिता ने उन्हें समझौते की आसान राह पकड़ने का उपदेश नहीं दिया है। कि उनके साथ विनीत, मीनाक्षी, मुन्ना जैसे उनके मित्र खड़े हैं, जो दलित नहीं हैं, लेकिन ख़ुद को इस लड़ाई के लिए जिम्मेदार समझते हैं।
कनकलता एक छात्रा है! एक दलित है! एक नागरिक है!
इस पर टिप्पणी देते हुए अरुण आदित्य ने लिखा-
Arun Aditya said...
विनीत, मुन्ना और मीनाक्षी बधाई के पात्र हैं। सब को इनका हौसला बढ़ाना चाहिए। अपूर्वानंद जी को भी एक सही मुद्दा उठाने के लिए साधुवाद।
२९ मई को अपूर्वानंद सर ने मोहल्ला पर जो पोस्ट लिखी है, दरअसल वो जनसत्ता के बिलंबित में आए लेख का ब्लॉग प्रस्तुति है। उस लेख भी उन्होंने इसी बात को दोहराया कि कई मित्र उनेके साथ खड़े हैं जो दलित नही हैं। ये अलग बात है कि वहां किसी का नाम नहीं लिया गया.
उसके बाद कनकलता को लेकर कुछ मीटिंग रखी गयी जिसमें डीयू के कुछ स्टूडेंट अपनी इच्छा और मानवीयता के स्तर पर उसमें शामिल हुए और पिछले महीने भर से किसी न किसी रुप में उसके साथ रहे। उसकी बातों को लिखते रहे, उठाते रहे। इस संबंध में जो कुछ भी लिखा गया सब मोहल्ला और गाहे बगाहे पर मौजूद है। लोग लगातार अपने कमेंट्स से डीयू के इन छात्रों का हौसला बढ़ाते रहे और आगे कारवाई करने के लिए प्रेरित करते रहे।
इसी क्रम में रवीश कुमार ने मोहल्ला पर एक पोस्ट लिखी -कनकलता, बीमार लोगों की है ये दिल्ली! औऱ उसमें कनकलता को व्यावहारिक सलाह भी दिया कि-
दिल्ली विश्वविद्यालय में बराबरी के लिए संघर्षरत युवाओं को बुलाया जाए। कहा जाए कि अब ज़रा लड़ो तुम। वो नहीं आएंगे। वो आज कल न्यूज़ चैनलों में ईमेल करने लगे हैं। वो जान गये हैं कि किनके लिए कौन आता है।
रवीश सर की इस बात से मुझे गहरी असहमति हुई और मैंने तुरंत लिखा कि-
विनीत कुमार said...
अपने सामान को उसी छत पर रहने दो। सड़ जाने दो उसे, उनकी सोच के साथ साथ। कपड़े, बर्तन, किताबें और कुछ यादें। इनकी कोई ज़रूरत नहीं।...ऐसा करना जरुरी है।लेकिन, इसी विश्वविद्यालय में कुछ ऐसे लोग भी हैं सर जो चैनलों में ईमेल करने की आदत से मुक्त हैं,कुछ, करना जरुरी भी नहीं समझते और जाहिर तौर पर वो कनकलता के साथ हैं।
ब्लॉग पर कनकलता के बारे में लगातार लिखा जाता रहा। कमेंट्स करके लोग उसके साथ जुड़ते चले गए। कई लोगों ने उससे, हम डीयू के लोगों से सम्पर्क करना शुरु कर दिया। अभी भी मेल और फोन लगातार आ रहे हैं।
और इधर डीयू के छात्र अपने स्तर से जो कुछ भी कर सकते थे करने लगे थे। कम से कम लोगों को बताने लगे थे औऱ माहौल बनने लगा था कि आगे कुछ ठोस कारवाई करनी है। इस मामले में विभाग के रीडर अपूर्वानंद सर बड़ी गंभीरता से, बड़ी तेजी से काम करने लग गए जिसका असर हमें साफ दिखने लगा है। हमलोगों को भरोसा होने लगा जो कि अब और अधिक मजबूत होता जा रहा है कि कनकलता को उसका अधिकार मिलेगा। ग्रोवर परिवार ने जिस तरह से उसके साथ किया है, हमसब उसे सजा दिलाने में कामयाब होंगे।
लेकिन आज जब मैंने एनडीवी इंडिया के स्पेशल रिपोर्ट में जो कि कनकलता के उपर थी देखा तो सन्न रह गया। पहले तो रिपोर्टर द्वारा ये कहा गया कि- डीयू के कोई भी स्टूडेंट कनकलता के मामले में खुलकर सामने नहीं आए। फिर लगातार फ्लैश चलाया गया कि यूनिवर्सिटी के किसी स्टूडेंट ने साथ नहींम दिया। मुझे तो यही समझ में नहीं आ रहा था कि खुलकर सामने आना क्या होता है। अगर इसका मतलब नारेबाजी करना और सड़क जाम करना है तो हां सचमुच में ऐसा किसी ने कुछ नहीं किया। लेकिन अपने-अपने स्तर से जितने भी स्टूडेंट थे वो काम कर रहे थे। अपने रिसर्च के काम को छोड़कर कनकलता के साथ थे, अपना खर्चा चलाने के लिए रिकॉर्डिंग का काम रोककर कनकलता के साथ थे, घर न जाकर कनकलता के साथ थे, घटना के जानने पर दिन में दो बार फोन करके पूछनेवाले लोग साथ थे कि हमें क्या करना है। लेकिन आज, ये सबके सब कनकलता के साथ नहीं हैं। ऐसा हम नहीं कहते बल्कि जुबां पे सच औऱ दिल में इंडिया रखनेवाले लोग कहते हैं।
मुझे पता है देश की जनता इस नेशनल चैनल को ज्यादा सच मानेगी क्योंकि इसके पास संसाधनों की ताकत है, ज्यादा लोगों तक इसकी पहुंच है। ब्लॉग तो हिन्दी समाज ने अभी-अभी सुनना ही शुरु किया है। लेकिन ये बात मन को बहुत कचोटती है कि आंख के सामने की सारी घटना को, जिसके एक-एक स्टेप को हमने देखा, चैनल उसे कैसे नाटकीय औऱ गैरजिम्मेदाराना तरीके से दिखाया। इसी चैनल के कितनी सुध ली थी कनकलता की, लोग जानते हैं। रिपोर्टर ने खुद कहा कि एक महीने बाद हम वहां पहुंचे। अब कोई सवाल करे कि एक महीने क्यों, पहले क्यों नहीं। है कोई जबाब इनके पास। इन्हें तो घटना के तुरंत बाद फॉलो अप करना चाहिए था। लेकिन आज ये दोष एक ही साथ कई लोगों पर मढ़ रहे हैं।
आज कनकलता के साथ वो लोग हैं जो कल तक इसे परिवार का मामला बताकर पल्ला झाड़ ले रहे थे। आज डूसू की अध्यक्ष अमृता बाहरी है जो मीडिया के साथ पहुंचने पर कनकलता को मदद करने के लिए एक्टिव हो जाती है। जो तुरंत फोन लगाती है कि सर, एक छोटा-सा काम है, एक एम्।फिल। की स्टूडेंट को हॉस्टल से बाहर निकाल दिया गया है। उसे भले ही पता नहीं हो कि कनकलता को हॉस्टल से नहीं बल्कि मकान-मालिक ने जातीय आधार पर पीटा है और मारकर बाहर निकाला है। लेकिन कोई बात नहीं उसके लिए छोटा काम ही है और आश्वासन भी है कि हो जाएगा। उसके साथ वो लोग हैं जो कल तक कौन झंझट में पड़े बोलकर, तमाशा देखकर वापस लौट आए थे। उसके साथ आज वो लोग हैं जो छात्र अधिकारों के लिए लड़ने के वाबजूद भी दलित एंगिल होने की वजह से लौट आए थे। उसके साथ वो लोग है जो नियमित रुप से विवेकानंद की मूर्ति के पास बैठते हैं, मुद्दों की तलाश में रहते हैं। लेकिन इस फिसले मुद्दे में पिछड़ जाने पर भी आज साथ हैं। आज उसके साथ वोलोग भी शामिल हैं जो अपने समाज का पोस्टर बंटबाते फिरते हैं। आज कनकलता अकेली नहीं है। अकेली तो तब भी नहीं थी,जब वो अकेली महसूस कर रही थी। तब भी डीयू के स्टूडेंट उसका हौसला बढा रहे थे, अपने साथ होने का विश्वास दिला रहे थे। ये अलग बात है कि वो स्टूडेंट थे, भावुक, संवेदनशील और वादों के घेरों से मुक्त। जिसे सिर्फ इतना लगा था हमारी दोस्त, हमारी सहपाठी और हमारी यूनिवर्सिटी की लड़की के साथ ऐसा हुआ है औऱ हमें चुप नहीं रहना है। वो बाइट के देने के लिए, अपना नाम चमकाने के लिए परेशान सो कॉल्ड प्रैक्टिकल लोग नहीं थे।
इन सबके बीच प्रतिबद्ध अपूर्वानंद सर हैं, ईमानदार सामाजिक कार्यकर्ता संजीव हैं जो कि घटना के दिन भी धरने पर बैठने के लिए तैयार थे और जिन्हें इस पर हल के बजाए अपना नाम चमकानेवाले लोगों ने मना कर दिया था। इनके असर से मौके पर उग आए लोगों का असर जरुर कम होगा। एनडीटीवी की इस घोषणा के बाद भी कि युनिवर्सिटी के वो भावुक छात्र औ रिसर्चर हैं जो कनकलता को आनेवाले समय में दलित स्कॉलर, सोशल एक्टिविस्ट और दूसरों के लिए तत्पर व्यकित्व के रुप में देखना चाहते हैं। औऱ निश्चित रुप से मीडिया भी जो अगली बार तरीके से होमवर्क करके आएगी।
कनकलता को अब अपने साथ-साथ दूसरों के लिए भी संघर्ष शुरु कर देनी चाहिए क्योंकि उसे तो न्याय मिलना तय ही है...अब देश की हजारों-हजार कनकलता के लिए काम करना जरुरी है।
और अंत में मौके पर उग आए, बाइट देने के लिए बेताब भाईयों से अपील है कि अगर आप मामले को तरीके से नहीं जानते तो उस पर चुप ही मार जाइए। बात हो रही है कनकलता के साथ हुए दुर्व्यवहार की और आप मार झोंके जा रहे हैं, एकता, मिली-जुली संस्कृति, पता नहीं क्या-क्या वैल्यू लोडेड शब्द। अगर आप सचमुच चाहते हैं कि ऐसी घटनाएं न दोहरायी जाए तो बेहतर होगा एक मेधावी छात्रा के पीडित छात्रा के रुप में पहचान बदल जाने के पहले से सक्रिय हो जाएं। सेंकने के लिए और भी मुद्दे मिल जाएंगे। यहां वक्श दीजिए प्लीज।।.
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https://taanabaana.blogspot.com/2008/06/blog-post_07.html?showComment=1212811800000#c3581487653240363726'> 7 जून 2008 को 9:40 am बजे
विनीत आपने बिल्कुल ठीक कहा, "बात हो रही है कनकलता के साथ हुए दुर्व्यवहार की". यही बात होनी भी चाहिए. जो मानवीय मूल्यों का आदर करते हैं वह कनकलता के साथ हैं और रहेंगे. मैं एक वरिष्ट नागरिक हूँ, रास्ते पर आकर नारेबाजी नहीं कर सकता. पर इसका अर्थ यह नहीं लगाया जा सकता की मैं कनकलता के साथ नहीं हूँ. यही बात डीयू के छात्रों पर लागू होती है.
https://taanabaana.blogspot.com/2008/06/blog-post_07.html?showComment=1212822240000#c6056722413597456597'> 7 जून 2008 को 12:34 pm बजे
राजेश से सहमति।
वैसे न्यूज चैनलों के हॉंफते एंकरों से ऊंची समझ की आपकी ऊंची अपेक्षा हैरान कर देती है।
बाकि हमने ये भी किया और वो भी... सुनने में बहुत अच्छा नहीं लगता, जानने वाले जानते ही हैं इसलिए सकारातमक काम जारी रखें, क्रेडिट हंटिंग जो करता हे उसे करने दें।
https://taanabaana.blogspot.com/2008/06/blog-post_07.html?showComment=1212826560000#c6768916766055107311'> 7 जून 2008 को 1:46 pm बजे
राकेशजी और मसीजीवीजी से पूरी सहमति। हम अपना काम आगे भी जारी रखेंगे। लेकिन हमने ऐसा सिर्फ इसलिए लिखा कि देखिए क्या होता है एक घटना के साथ जिससे आप पूरी तरह जुड़े होते हैं, आंखों के सामने जिसे डिस्टार्ट किया जाता है, बाकियों के साथ क्या होता होगा।
हमारे एजेंडे में कनकलता को न्याय दिलाना है और इसके लिए हम अभी औऱ आगे भी खड़े रहेंगे।
https://taanabaana.blogspot.com/2008/06/blog-post_07.html?showComment=1212833580000#c7868320956210982050'> 7 जून 2008 को 3:43 pm बजे
कैसे चुप मार जाएं भैया ?
सभी को अपना चेहरा चमकाना है...
आप तो लगे रहिए बस.
https://taanabaana.blogspot.com/2008/06/blog-post_07.html?showComment=1212855240000#c1751716845385389558'> 7 जून 2008 को 9:44 pm बजे
...!!!
https://taanabaana.blogspot.com/2008/06/blog-post_07.html?showComment=1212901920000#c8857209755515870224'> 8 जून 2008 को 10:42 am बजे
आशीष भाई, आपने जो चिन्ह दिए हैं उसका मैं अर्थ नहीं लगा पाया। माफ कीजिएगा मैं इस तरह की भाषा समझने का अभ्यस्त नहीं हूं।