पापा चलो न खेलने, ममा नहीं जा रही। चार साल के बच्चे को अपने पापा का बांह खीचते हुए आप आसानी से देख सकते हैं। उसका मन करेगा तो वो अपने पापा को बुद्धू भी कह देगा, यह भी कह देगा कि सिगरेट मत पियो पापा, कैंसर हो जाएगा, पड़ोस की निमी आंटी कहती है तुम्हारे पापा में एटीट्यूड बहुत है, आदि-आदि। चार साल के बच्चे को अपने पापा से इतना कुछ कहने को होता है कि पापा अगर दिनभर बैठकर सुने तो भी समय कम पड़ जाए।
आप बच्चे की इस बात को यह कहकर टाल जाते हैं या फिर प्रशंसा करते हैं कि मेरी बेटी या बेटा बहुत बोलता है और आप उसके कुछ उदाहरण पेश कर देते हैं। आपका ध्यान इस बात पर जाता ही नहीं कि बच्चा हमेशा किन-किन मुद्दों पर बात करने लगा है। अगर आप एक सूची बनाएं और अपने बचपन के दिन को याद करें तो आपको हैरानी होगी कि अपने बच्चे की उम्र में जब आप थे तो ७० से ८० प्रतिशत बातें नहीं करते थे। पापा आपसे कुछ पूछते थे तब आप बात करना शुरु करते थे। कुछ लोगों के मामले में हो सकता है कि कॉम्युनिकेशन गैप इतना होता हो कि लोग बच्चे से सीधा न पूछकर अपनी पत्नी से पूछते हैं- निकी ने खाना खा लिया, आजकल होमवर्क ठीक से करती है या नहीं, गाली देना तो नहीं सीख लिया, ड्रेस जो खरीदी थी वो पसंद आया, वगैरह, वगैरह। जो सवाल उन्हें सीधे अपने बच्चों से करने चाहिए वो अपनी बत्नी से करते हैं। लेकिन उन लोगों की संख्या बढ़ी है जो सीधे अपने बच्चों से सवाल पूछते हैं, उनके साथ खेलते हैं, उनकी बातों को सुनते हैं, साथ में टीवी देखते हैं। एक लाइन में कहें तो शेयर करते हैं। ऐसा होने से पिता और बच्चों के बीच संवाद की स्थिति आज से बीच-पच्चीस साल पहले से बहुत बेहतर हुई है। संवाद की बेहतर स्थिति होने से बच्चों का अपने पापा से नजदीकियां पहले से ज्यादा बढ़ी है।
हो सकता है मेरी ये धारणा सब पर लागू नहीं होती, कुछ के मामलों में गलत भी हो सकती है लेकिन अपने अनुभव से मैंने देखा है वो यह कि हम बचपन में पापा के सामने इतने सहज नहीं हो पाते थे जितना कि आज के बच्चे। हो सकता है दूसरे क्लास के बच्चों में ऐसा नहीं हो लेकिन मैं जिस क्लास से आता हूं, आज उसी क्लास के बच्चे अपने पापा से दुनिया-जहां भर की बातें बड़ी सहजता से करते हैं। चार साल की खुशी मेरे भैय्या से बड़े ही सहज ढंग से कहती है- सलमान बहुत चीप है, दस के दम में बहुत ही गंदे-गंदे सवाल करता है, शाहरुख तो फिर भी अच्छी-अच्छी बातें करता है। हो सकता है ये बात उसने किसी और से सुनी हो लेकिन जितनी सहजता से वो अपने पापा को बताती है, हमें संवाद को लेकर बदलाव साफ नजर आता है।
आप प्रयोग के स्तर पर एक सूची बनाएं तो आपको इस बात का अंदाजा लग जाएगा। आपका बच्चा आपसे क्या नहीं बोलता है, किन मुद्दों पर बात नहीं करता है, क्लास के किन बच्चों या टीचर की नकल करके नहीं दिखाता है। वो आज इस बात का फर्क ही नहीं करता कि कौन सी बात अपने पापा से कहनी चाहिए और कौन-सी बात अपने दोस्तों से। ऐसा नहीं है कि उसमें समझदारी की कमी है, बल्कि आज वो अपने पापा को अपने से बहुत नजदीक पाता है। वो बीच-बीच में यह भी कह देता है, पापा गीला टॉवेल बेड पर मत रखो, ममा डांटेंगी। अपने बच्चों से आज से बीस-पच्चीस साल पहले ये सब सुनना मेरे अनुभव से इतना सहज नहीं था। अव्वल तो ये कि ममा भी पापा को डांट सकती है।
आज के पापा ने अपने को बच्चों के सामने अपने को दोस्त के तौर पर प्रोजेक्ट करना शुरु कर दिया है जो कि जरुरी भी है। इस बदलाव के कई कारण हो सकते हैं औऱ हो सकता है कई पापा अभी भी ऐसा इसलिए नहीं करते कि उन्हें लगता है कि ऐसा करने से बच्चों के बीच उनका प्रभाव कम जाएगा, बच्चे उनकी बात नहीं सुनेंगे। लेकिन ऐसा करने का दूसरा पक्ष ये भी है कि बच्चों के बीच सहज रहने से उन्हें अनुशासन के डंडे से दुरुस्त करने के बजाए भावनात्मक स्तर पर नियंत्रित करना ज्यादा आसान और बेहतर होता है। पढ़े- लिखे आधुनिक शैली में जीनेवाले पापा ये भी सोचते हैं कि इन बच्चों से दिनभर में एक-दो घंटे ही तो मिलना होता है, उस पर भी अगर इनके साथ सख्ती से पेश आया जाए तो ये डर से भले ही मेरी बात मानें लेकिन दिल से मेरे लिए सम्मान नहीं होगा। जैसे-जैसे बड़े होते जाएंगे, भावनाच्मक स्तर पर दूर होते चले जाएंगे। इसलिए बेहतर है कि इनके साथ संवेदना के स्तर पर संबंध बनाए जाएं। पत्नी के कामकाजी और व्यस्त होने की वजह से पापा अपने बच्चों को नहलाने लग गए हैं, जूते के फीते बांधने लगे हैं औऱ कभी-कभी ब्रेकफास्ट भी बनाने लगे हैं। इन घरेलू काम में शामिल होने की बजह से बच्चों से उनकी नजदीकियां पहले से बढ़ी है जो कि अच्छी बात है। और वैसे भी अब वो जमाना लद गया कि बच्चे को अनुशासित करने के नाम पर आप उसे बेरहमी से पीटते रहो और सरकार का कानून नाक बजाकर सोता रहे। ऐसा करने पर आपके खिलाफ कारवाई हो सकती है।
इसलिए अच्छा लगता है जब चार साल का कोई बच्चा मॉल में आपका हाथ खींचकर ले जाता है और कहता है, है न पापा बहुत सुंदर।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
https://taanabaana.blogspot.com/2008/06/blog-post_15.html?showComment=1213515300000#c7784568953032988501'> 15 जून 2008 को 1:05 pm बजे
बहुत बढिया पोस्ट! हैप्पी फादर्स डे।
https://taanabaana.blogspot.com/2008/06/blog-post_15.html?showComment=1213519680000#c85504739160617544'> 15 जून 2008 को 2:18 pm बजे
मुझे तो अब भी पापा से बात करना बड़ा असहज लगता है.
आजकल के बच्चे तो लकी हैं...टाइम टाहम की बात है.
https://taanabaana.blogspot.com/2008/06/blog-post_15.html?showComment=1213600740000#c2909545250346454678'> 16 जून 2008 को 12:49 pm बजे
पहले तो हैप्पी फादर्स डे ।
यहां पर हम ये जरुर कहना चाहेंगे कि हमारे घर मे पापा से बात करने मे किसी को कभी भी संकोच नही रहा ना पहले और ना आज।
और हमारे बेटे भी अपने पापा से बिल्कुल फ्री होकर बात करते है।