जी न्यूज के बिजनेस हेड और संपादक सुधीर चौधरी ब्लैकमेलर का ठप्पा लगने की प्रक्रिया से गुजर रहे हैं. अगर नवीन जिंदल की शिकायत सही साबित हुई तो न्यूज मीडिया के लिए बड़ा कलंक होगा. सुधीर चौधरी को दूध का धुला साबित करने के लिए बीइए( ब्रॉडकास्टिंग एडीटर्स एसोशिएशन) ने जांच बिठायी है. बीइए के चाल-चरित्र से हम पहले से अवगत हैं इसलिए आश्वस्त भी कि सुधीर चौधरी को पाक-साफ साबित करने में वो किसी भी तरह की कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेगी. सेल्फ रेगुलेशन के तहत टीवी चैनलों के भीतर सुधार का दावा करनेवाली संस्था बीइए दरअसल मीडिया के स्वयंपोषित उन अड्डों में से है जहां मीडिया के धत्कर्मों पर पर्दा डालने का काम किया जाता है. संस्था की इस मामले में पूरी कोशिश होती है कि आरोपी चैनल या व्यक्ति को लेकर आनन-फानन में जांच करे और उसे मानवीय भूल करार दे. बहुत हुआ तो नैतिकता के आधार पर गलत करार दे जिसका कि कोई अर्थ नहीं रह जाता.
सुधीर चौधरी का इस मामले में बीइए की जांच में इसलिए भी कुछ नहीं हो सकता, उन पर किसी भी तरह की कार्रवाई नहीं होगी क्योंकि बीइए ने अपने को लेकर जिस तरह का हउआ बनाया है, वैसा कुछ है नहीं,न तो कोई विशेश अधिकार है और न ही इसमें अगर किसी के खिलाफ फैसले लिए जाते हैं तो वो इसे गंभीरता से स्वीकार करेगा. उसे इस संगठन से अपने को अलग करने में दो मिनट भी नहीं लगेगा. दूसरा कि जो बीइए सुधीर चौधरी को इतना महत्वपूर्ण मानती है कि ट्रेजरार( खजांची) बना दे, भले ही ये वोटिंग या पूरी प्रक्रिया के तहत ही हुआ है..वो जांच बिठाकर भला इनके खिलाफ फैसले कैसे ले सकती है ? अगर सचमुच ऐसा करती है तो सचमुच साहसिक कदम होगा लेकिन ये संदेश तो जरुर जाएगा कि जिस बीइए का ट्रेजरार ही इस तरह की ब्लैकमेलिंग के आरोप से घिर जाता है, पहले की तरह पूरी संस्था की साख फिर से मिट्टी में मिलेगी ही.
दरअसल बीइए इस तरह के मामले को अपने हाथ में इसलिए लेती है कि दागदार चैनल या मीडियाकर्मी पर कानूनी डंडा पड़ने से पहले उन पर लीपापोती की जा सके और ये काम वो अपनी साख में बट्टा लगाकर भी करती आयी है. उसे अपनी साख की इस अर्थ में बिल्कुल भी चिंता नहीं होती क्योंकि ये चुनाव हार चुकी उस राजनीतिक पार्टी की तरह बेशर्म है जो दलील पर दलील भर दे सकती है कि अभी कुछ कहा नहीं जा सकता. लेकिन
सचमुच ये कितना खतरनाक है कि मीडिया के भीतर की गड़बड़ियों और अपराध को वही आपस के लोग निबटाने में जुट जाते हैं जो कि किसी न किसी रुप में उन गड़बड़ियों का हिस्सा रहे हैं. 13 अगस्त 2010 में गुजरात के मेहसाना जिला में उंझा पुलिस स्टेशन परिसर में कल्पेश मिस्त्री ने आत्मदाह कर लिया और बीइए ने इस तरह से आनन-फानन में एक जांच टीम गठित की जिनमे से कि आधे से ज्यादा लोग मौजूद नहीं थे और दो दिनों की जांच में मामूली रिपोर्ट पेश कर दी जिसमे कहीं से इस बात का जिक्र नही था कि टीवी 9 के आरोपी रिपोर्टर कमलेश रावल ने गलत किया है और उन्हें कानूनी प्रावधान के तहत सजा मिलनी चाहिए या फिर कायदे से जांच हो. इसके बजाय जांच दल ने मामले को हल्का कर दिया.
सवाल है कि मीडिया के जो मामले मीडिया एथिक्स के बदले अपराध की श्रेणी में आते हों, उसे बीइए औऱ एनबीए जैसी संस्थाएं सेल्फ रेगुलेशन के तहत लाकर क्यों जांच करना चाहती है ? ऐसे में किसी व्यापारी के, डॉक्टर के, इंजीनियर के अपराध किए जाने या फिर आरोप लगने पर ही पुलिस स्टेशन, अदालत और उसके अनुसार सजा देने की क्या जरुरत रह जाती है ? हर पेशे से जुड़े लोगों के अपने संगठन होते हैं, मंच होते है, उन मामले को वहीं ले जाया जाए और जैसे मीडिया के लोग गंभीर से गंभीर आरोपों पर रातोंरात लिपा-पोती कर देते हैं, उसी तरह से लीपापोती कर दें. कानून और न्यायालय की अलग से क्या जरुरत रह जाती है. पिछले दिनों गोवाहाटी में एक स्कूली छात्रा के साथ कुछ गुंडों ने बर्बरता दिखाई और सारे चैनलों पर दिन-रात खबर चलती रही और जिसमें कि एक चैनल के रिपोर्टर का नाम आया, इसी तरह से मीडिया संस्था ने जांच दल गठित किया, उस जांच दल ने क्या रिपोर्ट पेश की पता नहीं लेकिन मीडिया के खिलाफ जो माहौल बना था, उसके बीच अपनी प्रासंगिकता बनाने के लिए बेचैन नजर आए.
सुधीर चौधरी पर जो आरोप लगे हैं, वो मीडिया एथिक्स का मामला नहीं है और बीइए की सेल्फ रेगुलेशन के तर्क से बाहर की चीज है. लिहाजा इसके लिए किसी बीइए औऱ एनबीए जैसे स्वयंपोषित अड्डे में ले जाकर मामले को डायल्यूट करने के बजाय उन्हीं प्रावधानों और प्रक्रिया के भीतर शामिल करने की जरुरत है जो किसी दूसरे पेशे से जुड़े मामले के लोगों के लिए होते हैं. मीडिया के लोगों के बीच जब तक इन संस्थाओं के तहत शातिर खेल चलते रहेंगे, मीडिया में ब्लैकमेलिंग, दलाली और बर्बरता की घटनाएं दुहराई जाती रहेगी.
https://taanabaana.blogspot.com/2012/10/blog-post_11.html?showComment=1349915234675#c8437594603488348113'> 11 अक्टूबर 2012 को 5:57 am बजे
good one...very informative...learnt few new things abt this self-regulatory BEA mechanism whose working no one knows
https://taanabaana.blogspot.com/2012/10/blog-post_11.html?showComment=1349918895573#c5546349874874463594'> 11 अक्टूबर 2012 को 6:58 am बजे
मीडिया के भी क्या हाल होते जा रहे हैं।