.


मैं ऐसे कई लोगों को जानता हूं जो गर्मी में पंखा चलाने के पहले टीवी ऑन करते हैं। घर का दरवाजा खोला और सीधे रिमोट हाथ में थाम लिया। अगर आप उनके साथ हैं, गर्मी से बेचैन हो रहे हों, तब आपका मन नहीं मानता औऱ कहते हैं- जरा पंखा चला दो। उनका जबाब होता है-थोड़ा दम मारो, पहले देख तो लो कि कहां क्या आ रहा है। उन्हें पूरे चैनलों की परिक्रमा करने में करीब ५-६ मिनट लग जाते हैं औऱ मजबूर होकर आप ही पहले बल्ब फिर ट्यूब लाइट औऱ अंत में पंखा चलाते हैं।
आगे वो इस बात का खयाल कि हमने अपने घर किसी को साथ में लाया है, भूल जाते हैं, टीवी के नजदीक औऱ आपकी उपस्थिति से जुदा होते चले जाते हैं। आधे घंटे बाद आपको लगने लगता है कि बेकार ही यहां आए, जब टीवी ही देखनी थी तो बेहतर होता, अपने यहां होते, कम से कम मन-मुताबिक प्रोग्राम देखने को तो मिलता। आप आगे से कभी नहीं आने की प्रतिज्ञा के साथ जाने के लिए मचल उठते हैं।

इसके ठीक उलट जब ऐसे लोग मेरे यहां आते हैं। अव्वल तो मैं चाहता ही नहीं कि ऐसे लोग मेरे यहां आएं। मैं खुद भी टेलीविजन का कट्टर दर्शक हूं, कुछ भी दिखाओगे, देखेंगे वाली जिद के साथ टीवी देखनेवाला। लेकिन लोगों के रहते मैं टीवी देखना पसंद नहीं करता। बल्कि इस बारे में सोचता भी नहीं कि कोई हमसे मिलने आए और हम टीवी के साथ लगे पड़े हैं। लेकिन ऐसे लोग न चाहते हुए भी आते हैं। उन्हें पता है कि लोगों के रहते मुझे टीवी देखना अच्छा नहीं लगता, इसलिए सीधे-सीधे न कहकर पहले सिर्फ इतना ही कहेंगे- बस, स्कोर पता करके बंद कर देंगे, जरा चालू कीजिए न। मैच के बीच विज्ञापन आ जाएगा, सो फिल्मी चैनलों पर स्विच कर जाएंगे, उसके बाद दस मिनट तक दोनों चैनलों के बीच कूद-फांद मचाते रहेंगे। आगे कुछ कहने की जरुरत नहीं, उनके ठीठपने को दोहराने की कोई जरुरत नहीं। अंत में स्कोर औऱ न्यूज अपडेट्स को भूलकर ये वो देखते हैं जो देखना चाहते हैं।
वो एक अलग दौर था, जब हम भाग-भागकर दूसरों के यहां टीवी देखने जाते थे। इसके पीछे दो ही वजह होती, या तो अपने घर में टीवी नहीं होता,टीवी होते हुए भी लाइट जाने पर बैटरी नहीं होती या फिर घर में देखने ही नहीं मिलता। हिन्दूस्तान में टेलीविजन का जब शुरुआती दौर रहा तब लोगों ने इसे सामूहिक माध्यम के रुप में इस्तेमाल किया। एक ही टीवी से पचास-साठ जोड़ी आंखे चिपकी होती, सबके सब रामायण और महाभारत की ऑडिएंस, सबों को बीच में विज्ञापन आने पर खुन्नस होती लेकिन अब करें तो क्या करें, उसे भी देखते रहे। इस कॉमर्शियल गैप में लोग संवाद की स्थिति में आ जाते। औरतें आपस में बातें करने लग जाती- आपके यहां किस ग्वाले के यहां से दूध आता है, एक किलो दूध सुखाने से कितना खोआ बन जाता है, लंगटुआ के पापा बोले कि अबकि बार दू रजाई एक ही बार भरवा लेंगे। बच्चे इस बीच टीवी कार्यक्रमों की नकल करने लग जाते, विज्ञापन की लाइन आगे-आगे बोलते। बगल में बैठी कोई औरत बोल पड़ती- चारे साल में सबकुछ याद रखता है, बच्चा प्रशंसा पाकर फुलकर कुप्पा हो जाता। दस मिनट तक खिसके रहे पल्लू का ध्यान इसी बीच जाता, समीज के उपरी हिस्से पर पिन्टुआ कोढिया टकटकी लगाए हुए है, ध्यान आते ही लड़की दुपट्टे को इसी वक्त संभालती।
विज्ञापन खत्म होता और बिना किसी को कुछ कहे लोग एकदम से चुप हो जाते।
कई बार तो स्थिति ऐसी भी बनती कि जिस किसी का भई अधूरा गप्प रह जाता वो थोड़ी औऱ देर तक रुक जाती। तब तक उसका बच्चा शक्तिमान,टीपू सुल्तान या फिर चंन्द्रकांता देखता। औऱतों की भी भीड़ रामायण, महाभारत या फिर जय कृष्णा के बाद से छंट जाती। बाद में एक कल्चर-सा हो गया कि इतवार को या फिर शनिवार को सिनेमा देखने का इंतजार लोग इसलिए करते कि इसी बहाने आपस में बोलने-बतियाने का मौका मिल जाता। इसमें भी टीवी देखने से कम रस नहीं मिलता।
अब स्थितियां बदली। लोगों के पास लिक्विड मनी बढ़ने के साथ इगो का भी सवाल उठा। अब जिसके पास थोड़ा भी पैसा है उसके लिए टीवी कोई बड़ी बात नहीं। ज्यादा नहीं तो हजार-पन्द्रह सौ में भी अपनी ये शौक पूरी कर लेते हैं। लोगों के पास टीवी खरीदने के बहाने भी अलग-अलग हैं, इसकी चर्चा फिर कभी। लेकिन अब लोगों को पसंद नहीं कि किसी के घर जाकर टीवी देखे औऱ झटाझट चैनल बदलने को टुकुर-टुकुर देखता रहे। टीवी देखने का तो मजा तभी हैजब रिमोट अपने हाथ में हो, एक ही घर में एक से ज्यादा टीवी होने की भी यही वजह है।
| edit post
2 Response to 'टेलीविजन के आगे इंसान कुछ भी नहीं'
  1. ghughutibasuti
    https://taanabaana.blogspot.com/2009/01/blog-post_03.html?showComment=1230981600000#c3362044908929861894'> 3 जनवरी 2009 को 4:50 pm बजे

    टी वी वृद्धों, अकेले लोगों के लिए तो संजीवनी है परन्तु यदि लत लग जाए तो फिर घर में और लोग भी हैं यह बात व्यक्ति भूल जाता है। मनोरंजन घर आने से लेकर सोने तक हो यह आवश्यक क्यों है समझ नहीं आता। लोग आपस में बातें करना भूल रहे हैं। खैर जो भी हो अब तो घर का देवता यही है। यह बात और है कि कई जगह टी वी को कम्प्यूटर अपदस्थ कर चुका है।
    घुघूती बासूती

     

  2. RC Mishra
    https://taanabaana.blogspot.com/2009/01/blog-post_03.html?showComment=1230988080000#c478557384378841995'> 3 जनवरी 2009 को 6:38 pm बजे

    लगता है आपने अपनी पी एच डी का विषय बदल दिया है...

     

एक टिप्पणी भेजें