मुझे पता है कि सरायवाले सरजी लोगों को जब पता चलेगा तो हमें बहुत गरियायेगें। लेकिन ये बात सही है कि जो प्रोजेक्ट उनलोगों ने मुझे दिया था, परसों उसे जमा करने के बाद अब ऐसा लग रहा है कि गया में पिंडदान कर आया हूं, बहुत हल्का महसूस कर रहा हूं।
जब तक मैंने आजतक में इन्टर्नशिप की, कई लोगों ने दारु-बीड़ी पर बहुत बार बुलाया, अपने बीच इतना अपनापा हो गया कि लगा कि ये मेरे बहुत अपने हैं। दारु-बीडी के लिए पैसे कम पड़ जाएंगे तो इनकी खातिर बीए की सर्टिफिकिट के उपर लाख-दो लाख रुपये का लोन भी ले सकता हूं। फ्रशटेट होकर जब भी हम रात की ड्रॉप इनके घर की ले लेता तो रात में सोते समय इनका लोअर तक पहन लेता और जिनके घर में पत्नियां होती, सिरहाने पर दूध रख देती और मेरा दोस्त चुपके से बेडरुम में खिसक लेता और पीछे से भाभीजी भी, ये कहकर अभी आती हूं....चल देती है। ये अलग बात है कि सुबह-सुबह ही ब्लैक कॉफी के साथ गुड मार्निग बोलते हुए आती। इन भाभियों से इतना प्यार मिलता कि मैं सोचता साल-दो सा तो मजे से काटा जा सकता है। सरायवाले सरजी इन्हीं के बूते जब मैंने निजी टेलीविजन की भाषिक संस्कृति पर काम करने का मन बनाया तो विशेष संदर्भ आजतक रखा और पूरा प्रोजेक्ट आजतक की भाषिक संस्कृति पर करने का मन बनाया और आपलोगों ने इसकी सहमति भी दे दी।
प्रोजेक्ट मिलने के दो महीने तक मैं आजतक में ही था, तबतक दो कोई परेशानी नहीं हुई, आराम से सारे स्क्रिप्ट देखता, लोगों से बातचीत करता और लोग भी समझते ही ये बंदा कुछ हटकर करेगा। चैनल के न्यूज डायरेक्टर नकवी सर को मेल भी किया कि सर मैं आजतक की कुछ पुरानी स्क्रिप्ट देखना चाहता हूं। सहयोगी गीता मैम ने बताया कि तुम्हें बसंत वैली जाना पड़ेगा, मैंने कहा कि कोई बात नहीं चला जाउंगा। इधर चैनल के अच्छे- अच्छे प्रोड्यूसरों से बात हो चुकी थी. एंकर से भी जो काम करते हुए अक्सर मेरी पीठ पर हाथ फेर दिया करते थे। सबकुछ इतना आसान लगता था कि अगर मैं आजतक पूरी किताब लिख दूं तो इसे थॉमसन प्रेस छाप देगा। लोग आपस में बात भी करने लगे थे कि ये जो इन्टर्न है न, आजतक पर ही रिसर्च कर रहा है।
इन्टर्नशिप करता रहा और सराय के प्रोजेक्ट के लिए मटेरियल भी जुटाता रहा। लग रहा था अंत तक जरुर कोई अजूबे का काम हो जाएगा। मेरी बड़ी इच्छा थी कि काम के अंत में आजतक के कुछ लोगों से बात करूं जिसे बाद में इंटरव्यू की शक्ल में तैयार कर सकूं। कहानी कुछ और ही बनी।
अच्छे पैकेज के चक्कर मे कुछ में कुछ ने बीएजी या फिर कोई दूसरा चैनल ज्वायन कर लिया। एक सरजी अब समय पर अपना ज्ञान दे रहे हैं। एक-दो की पत्नी प्रैग्नेंट है। एक-दो ने उपहास उड़ाते हुए कहा कि क्या भईया, आजतक की भी कोई भाषा है।
कुछ रिपोर्टर्स से बातचीत करने के लिए उनके साथ स्पॉट पर गया, शुक्र है स्टोरी कवर करके लौटते वक्त उन्होंने समय दे दिया।
सबसे ज्यादा परेशानी हुई उनसे बातचीत करने में जिनसे लगता था कि इनसे तो कभी भी बातचीत हो जाएगी। वीडियोकॉन के खूब चक्कर लगवाए औऱ तब जाकर बात हो पाई। और उनके इंतजार में न जाने कॉफी पर कितने पैसे खर्च किए। कुछ साथवाली लड़कियां जो अब वहां बतौर इम्प्लाय काम करती है, मेरी तरफ नफरत और हमदर्दी से देखती थी। पहले तो वो सोचती थी कि इन्चर्शिप खत्म होने पर भी छिछोरापन नहीं गया,हमलोगों को टेबने अभी भी आ जाता है। लेकिन एक-दो कहती-बेचारा बहुत मेहनती लड़का है..लगता है अभी भी कहीं कुछ नहीं हुआ है, नौकरी देनेवाली मैडम से बात करने आया होगा। सीनियर मिलते और पूछते...क्या विनीत तुम्हारा अभी तक तुम्हारा कहीं कुछ नहीं हुआ। जो मेरे दोस्त बन चुके थे, इग्नोर कर देते और रात में फोन करके माफी मांगते- स़ॉरी दोस्त, तुम तो अंदर की कहानी जानते ही हो। एक-दो राय भी देते कि इस सराय के छोटे से वजीफे से क्या होगा, मेरे भैया के साथ पोरपटी टीलिंग का काम करोगे। एक ने सलाह दी कि लुधियाना से लाकर ऊन बेचो,अच्छी कमाई है। इन सबके बीच सच्चाई ये रही कि मैं जि चैनल में काम करता रहा, आजतक वाले उसे नहीं देखते, शायद इसलिए मैं उन्हें बेरोजगार दिखता और एक जो जानते भी हैं उन्होंने कहा कि तुम वहां काम करके क्या छिल लोगे।
खैर.इन सबके बीच मैंने प्रोजेक्ट पूरा किया। छपवाने गया पटेल चेस्ट तो एक बंदा जो अपनी नहीं बल्कि अपनी गर्लफैंड का काम करवा रहा था, वो लेडिस बैठकर कैडवरी भकोस रही थी, मेरा आजतक पर प्रोजेक्ट देखकर थोड़ा-बहुत इम्प्रेस होती इसके पहले ही बंदे ने बहुत जोर से, गर्लफ्रैंड को सुनाते हुए बोला- आपका ये रामायण कौन पढ़ेगा। मैं गुस्से का घूंट पीकर रह गया और सदन सर, दीपू सर, रवि , रविकांत और राकेश का चेहरा याद आ गया और मंसूरी और जबलपुर में अधिकारी होने की ट्रेनिंग ले रहे हैं, उनकी बात याद आ गयी, यार विनीत आजतक पर काम खत्म होने पर एकबार जरुर दिखाना।..........
कई लोग तो अच्छे पैकेज के चक्कर में बीएजी या फिर दूसरे चैनलों
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https://taanabaana.blogspot.com/2007/11/blog-post_27.html?showComment=1196226240000#c3722670372363301431'> 28 नवंबर 2007 को 10:34 am बजे
लिखा बढिया है मित्र. पर एक कमेंट से इतना काहे परेशान हो रहे हैं. जहां तक अपने पुराने सहकर्मियों और बॉसनुमाओं से मिलने वाली टिप्पणियों का सवाल है, और क्या उम्मीद करते हैं उनसे आप!
https://taanabaana.blogspot.com/2007/11/blog-post_27.html?showComment=1196872980000#c407030797429895933'> 5 दिसंबर 2007 को 10:13 pm बजे
very well written vineet ji,being an intern myself ,could understand the agony.n superbly improvised.hats off-rohit ratna