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मरद का बच्चा होकर लौटा हूं

Posted On 2:06 am by विनीत कुमार |

आज ही टाटानगर से दिल्ली गिरा हूं, मरद का बच्चा होकर, जैसा कि एक भाई साहब ने बस में बहस के दौरान बताया कि आप खालिस मरद का बच्चा हो। नहीं तो दिल्ली में लोग बत्तख, बोक्का और एक लेडिज दोस्त चंपक तक कहकर बुलाती है। लिखने को बहुत कुछ है लेकिन काम का प्रेशर बहुत ज्यादा आ गया है, दो-चार दिन का समय दीजिए। गाहे-बगाहे फिर से रेगुलर हो जाएगा। आप इसे विज्ञापन न समझें...एक कमिटमेंट के रुप में लें और मन हो तो आप भी कहें खालिस ब्लॉगर है।...सच्ची मैंदान छोड़कर भागेगा नहीं ।
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3 Response to 'मरद का बच्चा होकर लौटा हूं'
  1. Sanjeet Tripathi
    https://taanabaana.blogspot.com/2007/11/blog-post_20.html?showComment=1195582440000#c7822493708977633108'> 20 नवंबर 2007 को 11:44 pm बजे

    कुछु भी भी होकर लौटे लेकिन लौट आए वही बड़ी बात है! ऊ का है ना कि सुबह का भूला शाम को लौट आए उसे भूला नई न कहते हैं!!

    फ़िर शुरु हो जाओ गुरु एक से एक पोस्ट मारे जाओ!!

     

  2. Rakesh Kumar Singh
    https://taanabaana.blogspot.com/2007/11/blog-post_20.html?showComment=1195712820000#c8725367005380977128'> 22 नवंबर 2007 को 11:57 am बजे

    ब्लॉगल-वर्ल्ड में वापस आए. स्वागत है. संजीत भाई ठीक कह रहे हैं. लिखे जाओ.

     

  3. हरिमोहन सिंह
    https://taanabaana.blogspot.com/2007/11/blog-post_20.html?showComment=1195807200000#c9121283494797740491'> 23 नवंबर 2007 को 2:10 pm बजे

    बच्‍चा अगर औरत का हो तो का फरक पडेगा । हम तो चाहते है कि आप कलम सारी ब्‍लाग के बच्‍चे नही बाप हो जाओ

     

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