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रेडियो पर लेख लिखते हुए

Posted On 10:31 am by विनीत कुमार |


लेख अगर शोधपरक न हो और किसी भारी-भरकर पत्रिका में न छपनी हो तो रेडियो पर लिखते वक्त हम थोड़ा तो भावुक हो ही जाते हैं. रिसर्च ऑर्टिकल लिखते वक्त जहां हम कठोरतापूर्वक एक-एक तथ्य,तारीख,फैसले और सरकारी रवैये को ध्यान में रखते हैं, दुनियाभर के संदर्भों को शामिल करते हैं, वहीं किसी अखबार के पाठकों के लिए लेख लिखते वक्त दुनिया से सिमटकर अपने बचपन की, कॉलेज की दुनिया में चले जाते हैं. मसलन

अखबार के लिए रेडियो पर लेख लिखते वक्त पापा का लीड रोल में आना जरूरी हो जाता है. बिना दर्जी,लुहार,बढ़ई, पंक्चर बनानेवाले भइया, साइकिल की टायर बदलनेवाले नरेशवा को याद किए हम लेख लिख ही नहीं सकते. छाती से रेडियो चिपकाई एक ही साथ कितनी दीदी, बुआ, भाभी याद आने लगती है. रेडियो की ये नास्टॉल्जिक दुनिया है जहां आप मुझसे तटस्थता की उम्मीद नहीं कर सकते और सच कहूं तो तथ्यात्मक होने की भी नहीं. मेरे दिए तथ्य गलत हो सकते हैं क्योंकि उस वक्त मैं तारीख नहीं उन धागों का मिलान कर रहा होता हूं जो बिल्कुल ठीक आज से अठारह-बीस साल पहले दिखे थे. हम तब आंकड़ेबाजी में फंसने के बजाय उन दृश्यों में खो जाते हैं जहां रेडियो सिनेमा की रील बनकर घूमने लग जाता है.

ऐसे लेख लिखते वक्त मेरी मां की वो रसोई शामिल होती है जो उसके लिए औरत जात के मरने-खपने की जगह और मेरे लिए तीनमूर्ति की एयरकंडीशन लाइब्रेरी से भी ज्यादा एकांत की जगह. तब हम जिस आत्मविश्वास से सिकंस की हैसियत से मीडिया के छात्रों से कह रहे होते हैं- रेडियो सिर्फ माध्यम नहीं, एक सांस्कृतिक पाठ है, वो आत्मविश्वास टूट रहा होता है जब टार्च की बैटरी निकालकर रेडियो सुन लेने और बेल्ट से पापा की मार का ध्यान आता है. इस रेडियो में बिहारशरीफ से लेकर दिल्ली वाया रांची की एक ऐसी चौहद्दी बनती दिखाई देती है जिसमे हम रेडियो श्रोता नहीं, हाफिज मास्टर हो जाते हैं जिसके तार टूटने का मतलब होता है- गान्ही महतमा की आजादी की उस तार का टूट जाना जिससे अब रघुपति राघव राजाराम की धुन नहीं निकलेगी.

लिखकर भॆज तो दिया है, गर छप गया तो आपसे साझा करुंगा जल्द ही
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2 Response to 'रेडियो पर लेख लिखते हुए'
  1. Dr Parveen Chopra
    https://taanabaana.blogspot.com/2014/08/blog-post_10.html?showComment=1407763670725#c6676944682203306987'> 11 अगस्त 2014 को 6:57 pm बजे

    बहुत अच्छा लगा यह लेख पढ़ कर......आप के हर लेख की तरह।
    और जो फोटू चिपकाई है आपने पोस्ट में वह भी आप के लेख से पूरा मैच कर रही है।

     

  2. प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ'
    https://taanabaana.blogspot.com/2014/08/blog-post_10.html?showComment=1407779520435#c2599756336122466939'> 11 अगस्त 2014 को 11:22 pm बजे

    बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
    नयी पोस्ट@जब भी सोचूँ अच्छा सोचूँ

     

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