यार, तुमने आइआइएमसी
से आरटीवी का बेकार ही कोर्स किया, तुम्हें एनएसडी में होना चाहिए था. बस
ये है कि तुम अभी एंकर न होकर रंगमंच की आखिरी साल की स्टूडेंट होती. आइ20 की
चाबी उंगलियों में नहीं इतराती और आज तुम यहां मुख्य वक्ता नहीं होती. लेकिन इससे
पहले ही उसका मैसेज आ गया-तुम आज इतने सीरियस क्यों हो ?
सीरियस ! मीडिया पर इतनी जानकारीपरक बात करोगी तो मैं क्या कोई भी सीरियस हो जाएगा और फिर इन सारी से गुजरना अपनी किताब से गुजरने जैसा ही तो है. नहीं लेकिन उसे ये सब कुछ मैसेज नहीं करेगा. अक्षत ने अपने को रोक लिया.
वैशाली जिस रौ में मीडिया के बारे में
वो सब बोले जा रही थी जिसे कभी अक्षत के लिखे जाने पर बहुत बहसबाजी की थी, उसे
उम्मीद ही नहीं थी कि ऑडिएंस की भी भीड़ के बीच अक्षत भी बैठा वो सब सुन रहा होगा.
वो तो उसने जब अपनी बाहें उपर की और वैशाली की नजर उस पर पड़ी तो जान पायी कि इन
पंक्तियों का लेखक यहां मौजूद है. अक्षत याद करता है झल्लाहट में वैशाली के उस
चेहरे को, वो लगातार कह रही थी- अक्षत,तुम मीडिया को इस तरह से एक रंग से
कैसे पेंट कर सकते हो कि इसके भीतर कुछ बी अच्छा नहीं है, सब कूड़ा है,बकवास
है,धंधा है,टीआरपी का खेल है? यार,काफी
कुछ किया है मीडिया ने समाज के लिए. तुम ही बताओ,जेसिका लाल के
हक की लड़ाई बिना मीडिया के लड़ी जा सकतीथी,अन्ना का
भ्रष्ट्चार आंदोलन बिना मीडिया सहयोग के खड़ा हो सकता था, 2जी,कॉमनवेल्थ,एक
के बाद एक घोटाले का पर्दाफाश इसी मीडिया ने किया है,फिर तुम इसे
सिर्फ ब्लैक से क्यों पेंट कर रहे हो ? तुम्हें पता है इस किताब को पढ़कर मीडिया के प्रति कितनी खराब राय
बनाएंगे? कुछ तो पॉजेटिव
भी लिखो यार. वैशाली किताब के कुछ पन्ने पढ़कर एक दिन तो इतनी उत्तेजित हो गई थी
कि एक दिन यहां तक कह दिया था- मन कर रहा हैकि इन पन्नों को चिद्दी-चिद्दी फाड़कर
डस्टबिन में डाल दूं. इतनी मेहनत करती हूं, बैल की तरह खटती हूं,कई बार डबल शिफ्ट
तक लगानी पड़ जाती है लेकिन तुम्हें ये सब कभी नजर नहीं आता कि आखिर मैं ये सब
किसके लिए कर रही हूं, क्यों कर रही हूं, क्या मैं बम बनाने सुबह छह बजे उठकर
नोएडा फिल्म सिटी जाती हूं ? फिर
अक्षत के गले में हाथ का सिक्कड बनाकर झूलने लगी- अक्षत,प्लीज यार..मत लिखो न
मीडिया को लेकर इस तरह की बकवास. एक बार इत्मिनान से सोचा न मीडिया के बारे
में,तुम्हें काफी कुछ पॉजेटिव दिखेगा.
तुम इस किताब को इतना पर्सनली क्यों ले
रही हो वैशाली ?
मैं मीडिया पर एक क्रिटिकल बुक लिख रहा हूं,किसी एंकर की जिंदगी पर बायोग्राफी
नहीं एंड लिसन,मैं तुम पर तो कच्चू कभी लिखने जा रहा. लिखूंगा भी तो यही कि और
वैशाली नंदीग्राम में मारे गए आंदोलनकारियों से जुड़ी खास खबर पढ़ने से पहले आइनें
में शक्ल देखी- ओह..आइलाइनर बहुत लाइट दिख रही है..हा हा. ठीक रहेगा न वैशाली ? तब अक्षत ने बात टालने की कोशिश की थी
लेकिन वैशाली आज कहां माननेवाली थी..नहीं अक्षत,मजाक छोड़ो..तुम ये नहीं लिख रहे हो
न कि मीडिया में व्यक्तिगत ईमानदारी का कोई मतलब नहीं होता.होता है डियर,होता
है.तू ही बता,तेरी वैशाली क्या कभी किसी से पैसे लिए खबर पढ़ने के, क्या किसी के
साथ मेकआउट किया तरक्की पाने के लिए? क्या इसका इन्डस्ट्री पर कोई फर्क नहीं पड़ता..खैर,अक्षत को मीडिया
को लेकर जो कुछ भी लिखना था,लिख दिया. वैशाली किताब के पन्ने आगे बढ़ने के साथ-साथ
पीछे छूटती चली जा रही थी. उसे यहां तक लगा था कि अक्षत सिर्फ और सिर्फ उसे डिमीन
करने के लिए ये किताब लिख रहा है. उसे इस बात का भी डर था कि उसके चैनलवालों को
जरुर शक होगा कि मैंने ही बैलेंस शीट दी है अक्षत को, मैंने ही टीआरपी की रिपोर्ट
दी थी और इन्डस्ट्री की लेडी विभीषण बनी थी..मेरी तो नौकरी गई. अक्षत तो चाहता ही
है कि मेरी नौकरी छूट जाए. कहां तो उसने इस किताब को लेकर सपने देखे थे- मेरा पहला
प्यार वैशाली के लिए, कवर पेज के ठीक बाद के पेज पर होंगे जिसे वो अपने चैनल हेड
को गिफ्ट करेगी और कहां अक्षत ने कब्र ही खोद दी. अक्षत,यू गो टूद हेल, अब तू शक्ल
भी मत दिखाना अपनी.भाड़ में जाए तेरी किताब और भाड़ में जाए तेरा कमिटमेंट. तू
उसकी बत्ती बनाकर तिल्ली लगाता रह, मैं तो गई तेरी लाइफ से,बाए-बाए.
अक्षत उस दिन की वैशाली के चेहरे पर
डूबते-उतरते भाव को याद करके आज मंच पर मुख्य अतिथि की हैसियत से बोल रही एंकर
वैशाली से मिलान कर रहा था- मीडिया न तो कभी चौथा खंभा था और न कभी होगा, वो शुरु
से धंधा रहा है और आगे भी रहेगा. यार वैशाली,ये तो कुछ ज्यादा हो गया. ये लाइन तो
न मारती,मेरी अपनी है..तू बता न इससे पहले तूने देखा है किसी को पब्लिक
ब्रॉडकास्टिंग को लेकर आचोलना करते हुए. रुक,वैशाली की बच्ची, निकल बाहर. तुझसे
पूछता हूं सबके सामने- मैडम, इस पर और ज्यादा जानने के लिए क्या पढ़ने होंगे ? हद है यार,तुम मीडियावालों का एप्रोच.
स्क्रीन पर,डेस्क पर रहोगे तो हम आलोचकों को पानी पी-पीकर गाली दोगे कि ये सब अपनी
कुंठा निकालते हैं जिसे कि मीडिया समीक्षा का पजामा पहनाकर पेश करते हैं,
इन्डस्ट्री ने इन्हें किक आउट कर दिया तो आलोचक हो गए, हजार-दो हजारे के लिफाफे के
पीछे हिनहिनानेवाले आलोचक और जब मीडिया स्ट्डेंट्स के बीच होते हैं तो वही
भाषा,वहीजुबान बोलते हैं,जिसे लिखे जाने पर चिद्दी-चिद्दी करके डस्टबिन के हवाले
करने की हसरत रखते हैं.
एक्सक्यूज मी, मिस वैशाली..हां,यही ठीक
रहेगा,सीधे वैशाली बोलने से लगेगा कि अभी भी सॉफ्ट कार्न रखता हूं मैं उसके प्रति
लोगों को भी पर्सनल लगेगा शायद.एनीवे, एक्सक्यूज मी मिस वैशाली..ये शुरु से
धंधेवाली बात को अगर और गहराई में समझना हो तो क्या पढ़ूं? हां, ऐसा पूछना सही रहेगा..
हैलो, मैं अक्षत..मेरा काम भी इसी
मीडिया पर है जिसके बारे में आप बात कर रही थी,प्लीज बताएंगे कि ये धंधेवाली बात को
और कैसे समझें..वैशाली अचानक इस तरह के सवाल पूछे जाने से थोड़ी असहज हो गई
थी..लेकिन फिर संभलते हुए कहा- क्यों, इतनी बेसिक सी बात को समझनेके लिए अभी और
गहराई से जानने की जरुरत है ?
आपको ध्यान तो होगा कि दूरदर्शन पर स्वाभिमान,शांति और जुनून का प्रसारण क्यों
होता रहा, पीटीआइ की पूरी की पूरी रिपोर्ट है इस पर..फिक्की-केपीएमजी की रिपोर्ट
आती है, उसे पलटिए..वो बोलता जा रही थी और अक्षत किताब के पीछे के पन्ने की
रेफरेंस क्रम से याद करने लग जाता है और आखिर के पन्ने तक पहुंच जाता है जहां
प्रकाशक की लोगो के ठीक नीचे किताब की कीमत लिखी होती है- मात्र 275 रुपये
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