दिसंबर की कड़कड़ाती ठंड। रोज की तरह ही गहरे डिप्रेशन से उबरने के लिए किसी और नए तरीके की खोज। क्या किया जाए? आज फिर बाजार चलते हैं और अबकी बार साबुत हल्दी खरीदकर मिक्सी में डस्ट बनाते हैं इसकी। एक पुरानी जींस पड़ी है,उसे स्कीनी करा लेते हैं। ओह,टाटा स्काई रिचार्ज करा लेते हैं। आज बताते हैं दीदी को फोन करके कि बैंगन में बड़ी डालकर बनाने पर कितना मजा आता है? पहले बड़ी तो खोज लें,कहां मिलेगी?
मैं अपनी इस हालत से पिंड़ छुड़ाने के लिए अक्सर बाजार में शामिल हो जाता हूं। कभी ग्राहक बनकर तो कभी भीड़ का हिस्सा बनकर। भीड़ का हिस्सा बनते हुए भी डर के बजाय रोमांच होता है। अगर विस्फोट होने पर मर गया तो लोग मेरे बारे में क्या बताएंगे? अगर मैं जिंदा बच गया तो मरे हुए लोगों के बारे में क्या बताउंगा। सॉरी,दिल्ली के बाजार में मुझे कभी डर नहीं लगता बल्कि देश के किसी भी बाजार में नहीं। उस बाजार से भी नहीं जिसे हिन्दी समाज ने सालों पहले खलनायक करार दे दिया है। बाजार मेरे भीतर हमेशा से उत्साह पैदा करता है। इसकी एक वजह ये भी हो सकती है कि हम लंबे समय तक पापा के साथ इसी बाजार में खड़े होकर लोगों से पूछते रहे हैं-आइए,क्या लेना है,बैठिए. साड़ी? टीशर्ट? बैठिए न,एक से एक है। जब वो शख्स ग्राहक बनकर बैठ जाता और हमारी दूकान की पैकेट सरसराती हुई सड़कों से गुजरती तो किसी परीक्षा में टॉप करने से कम उत्साह नहीं होता। इसी बाजार से हमारा भविष्य हमेशा से जुड़ा रहा है तभी मयूर विहार के इस संकरे बाजार में घूमते हुए हम उत्साह से भर जाते हैं और पापा से फोन करके पूछते- आज की बिक्री कैसी रही पापा? बहरहाल
मैं बड़ी की तलाश में पड़पड़गंज जानेवाली सड़क की तरफ बढ़ता हूं। तभी जोर से बच्चों के चिल्लाने की आवाज आती है- सर....। थोड़े समय के लिए जैसे सबकुछ ठहर गया होगा। मैं अपनी गति और बड़ी की चिंता में आगे बढ़ता जाता हूं। अबकी बार एक लड़की की आवाज आती है- विनीत सर...। मैं पीछे पलटकर देखता हूं तो चौक पर लगी एसबीआइ एटीएम मशीन के पास छह-सात बच्चे खड़े हैं और मेरी तरफ देखकर हाथ हिला रहे हैं। मैं रुकता हूं और उनमें से एक आगे बढ़कर मुझे वहां ले जाता है। सर आपने हमलोगों को पहचाना नहीं? उनके चेहरे पर थोड़ा अफसोस भी झलक रहा था कि मैंने उन्हें पहचाना तक नहीं। मैं उदास सा हो गया और सॉरी-सॉरी कहने लगा। तभी जिस लड़की ने आवाज दी थी,उसने कहा- इट्स ओके सर. हम आपके स्टूडेंट हैं। आपके मीडिया स्टूडेंट। याद है आपने कभी कहा था कि अगर आप ये सोचते हैं कि आप सौ करोड़ के चैनल में जाकर पत्रकार बनेंगे तो कभी नहीं बन सकते। आपके हाथ में तीन-चार हजार की मोबाईल है,इससे फोटो जर्नलिज्म शुरु कीजिए। कॉलेज की वॉल पर इस सेमिनार की खबर लिखकर लगाइए। ये तीन साल आपके लिए वर्कशॉप की तरह है। याद आया सर...मैं एकदम से भावुक हो गया। हां-हां याद आया। पर यार मैंने तो बस गेस्ट के तौर पर एक लेक्चर दिया था। टीचर कैसे हो गया तुम्हारा? ओह सर,आपको बुरा लगा तो सॉरी। पर हम तो आपको सर ही मानते हैं?
सर लीजिए न,एक लड़के ने लेज चिप्स के फटे हुए पैकेट मेरी तरफ बढ़ा दिए थे। आप इधर ही रहते हैं? मैंने कहा हां,पिछले दो सालों से।..औऱ तुमलोग। सर इसने( एक दूसरे लड़के की तरफ ईशारा करके) लास्ट वीक नौकरी ज्वायन कर ली है औऱ हमें पार्टी देने बुलाया था तो हम सब जमा हुए हैं। इसे इसके घर छोड़कर हम सब वापस अपने घर जाएंगे। हम एटीएम से थोड़े साइड होकर बात करने लग गए थे।..बार-बार सोच रहा था कि सेमिनारों में जो हम बोलकर आते हैं,बच्चे उसे इस तरह से याद रखते हैं? मुझे अच्छा लग रहा था और उन शिक्षकों को कोस रहा था जो अक्सर बच्चों को लापरवाह करार देते हैं।
लड़के ने थोड़े संकोच से बताया। मैंने पूछा नहीं था कि कहां नौकरी लगी है? लेकिन उसने खुद ही बताना शुरु किया- सर अभी एक कॉल सेंटर में ज्वायन किया है सर। मीडिया से बिल्कुल अलग दुनिया है। बस हम कुछ चीजों को याद रखके दस-बारह घंटे की नौकरी बजाकर आ जाएंगे। आगे उसकी बातों में कॉन्फेशन और एक हद तक गिल्ट की टच आने लगी थी कि मैं क्या सोच रहा हूं कि मीडिया की पढ़ाई करके कॉल सेंटर में चला गया। तभी उसने अचानक से कहा- सर, पर हम जनसत्ता औऱ तहलका में लिखा आपका रेगुलर पढ़ते हैं। तहलका में बहुत मजा नहीं आता,छोटा-छोटा रहता है और फिर टीवी सीरियल में मुझे दिलचस्पी भी नहीं है। लेकिन जनसत्ता में सही लगता है। आपके लिखे का मेरे प्रोफेशन में कोई काम नहीं है लेकिन आदत रही है शुरु से जनसत्ता पढ़ने की तो पढ़ते हैं।
एक दूसरी लड़की जो अब तक चुपचाप सारी बातें सुन रही थी,कहा- सर लेकिन मैं आपको थैंक्स कहना चाहती हूं। आपने पता है मीडिया के बारे में वही बताया जो अब हम ट्रेनी बनकर देख रहे हैं। आपने अच्छा किया नहीं कहा कि मीडिया चौथा स्तंभ है। हम अक्सर आपकी बातों को याद करते हैं और आपका ब्लॉग पढ़ते हैं। आप अविनाश सर,दिलीप मंडल सर,पुष्कर सर सब अच्छा काम कर रहे हैं। कम से कम हम बच्चों को पहले से पता तो हो जाता है कि हम क्या कर रहे हैं औऱ कहां जा रहे हैं? मैं अब पूरी तरह सहज हो गया था और अपनी तारीफ से कहीं ज्यादा उनकी बातों को,उनकी तकलीफ को सुनकर पूरी तरह इंगेज हो रहा था । सब बकवास है सर-सरोकार,समाज। बस बारह घंटे बैल की तरह खटो और वीक में एक छुट्टी के लिए भीख मांगो। पर मुझे अफसोस नहीं होता क्योंकि हम तो ये सब जानते हुए वहां गए थे न। आपसे हमने पूछा भी था कि आप मीडिया को लेकर इतने हताश होकर क्यों बात करते हैं? उस समय गुस्सा आया था पर अब फील करती हूं कि आपने सही कहा था।
सर,आप कहीं पढ़ाते नहीं हैं? आपकी फैलोशिप अभी है सर? वो बच्चे जिनके लिए मैं एक घंटे का एक लेक्चर देने वाला गेस्ट था औऱ वो भी किसी बड़े मीडियाकर्मी के अचानक मना कर देने की स्थिति में उनकी जगह भरनेवाला,वो मुझमें इतनी दिलचस्पी ले रहे थे? यकीन मानिए,मुझे मुहब्बतें फिल्म बार-बार याद आ रही थी। मैंने मजे में कहा- नहीं क्योंकि आपके जैसे बच्चे मीडिया में कहां आते हैं? अब सबों को ज्ञान फेसबुक,ब्लॉग और यूट्यूब के खदानों से मिल जाता है। लेकिन सर,जो बात किसी से सुनकर सीखी जाती है वो इंटरनेट के जरिए थोड़े ही न।.किसी अखबार में इन्टर्नशिप कर रहे दूसरे बच्चे ने कहा। मैं खड़ा-खड़ा महसूस कर रहा था कि कॉलेज में जिन टीचर को बच्चों बहुत प्यार करते होंगे,उन्हें कितना सुख मिलता होगा? उन्हें तो दुनिया जहां छोटी लगने लगती होगी इसके सामने।..अच्छा सर,आप लेट हो रहे होंगे। हमलोगों ने आपको इतनी देर तक फंसाकर रखा। फिर कभी मुलाकात होगी।
एकबारगी मन किया- आज तुम अपने दोस्त की नौकरी लगने पर पार्टी लेने आयी हूं। कभी मेरी लगने पर भी आना। झिंटैक पार्टी दूंगा। पर रुक गया।.. सारे बच्चे बाए-बाए सर करने लगे थे और मैं अग्रवाल स्वीट्स से खिसकर फिर अपनी उसी बड़ी और दीदी को मात देने की साजिश में गुम होने लग गया था।
https://taanabaana.blogspot.com/2012/01/blog-post_27.html?showComment=1327676758263#c867991442224373569'> 27 जनवरी 2012 को 8:35 pm बजे
हां सर बात में आपके दम थी यह सभी बातें जो आपने उन सभी छात्रों से कहीं
यह कभी आपने अदिति महाविद्यालय में आकर भी की
लेकिन उस वक़्त गुस्सा जरूर आया पर नया जोश था चीजों की समझ तो थी पर बचपना जरूर था
पर अब जब चीज़ों को गंभीरता से समझा तभी जाना .................
https://taanabaana.blogspot.com/2012/01/blog-post_27.html?showComment=1327679565800#c7088236921585916137'> 27 जनवरी 2012 को 9:22 pm बजे
very touching...
https://taanabaana.blogspot.com/2012/01/blog-post_27.html?showComment=1327680336591#c4128035847104111930'> 27 जनवरी 2012 को 9:35 pm बजे
अपने पढ़ने वालों को गम्भीरता से सदा ही लेना होगा हमें..
https://taanabaana.blogspot.com/2012/01/blog-post_27.html?showComment=1327684355546#c5320152321034798325'> 27 जनवरी 2012 को 10:42 pm बजे
वाह बहुत ही सुन्दर ...जीवन का सच |
https://taanabaana.blogspot.com/2012/01/blog-post_27.html?showComment=1327688394923#c5472613856276413857'> 27 जनवरी 2012 को 11:49 pm बजे
बच्चे?
थोडा अटपटा लगा सुनकर। ये सब कम से कम ग्रेजुएशन तो कर ही रहे होंगे। बच्चा शब्द सुनकर लगता है कि जैसे आप उन्हें बहुत हल्के में ले रहे हैं।
आपका लिखना रंग ला रहा है इसके लिये बधाई।
https://taanabaana.blogspot.com/2012/01/blog-post_27.html?showComment=1327718011140#c835849357346828412'> 28 जनवरी 2012 को 8:03 am बजे
एक संवेदनशील पोस्ट!
झिंटैक पार्टी का इंतजार है मुझको भी! :)
https://taanabaana.blogspot.com/2012/01/blog-post_27.html?showComment=1327718369144#c9181204701487449267'> 28 जनवरी 2012 को 8:09 am बजे
बच्चे?
थोडा अटपटा लगा सुनकर। ये सब कम से कम ग्रेजुएशन तो कर ही रहे होंगे। बच्चा शब्द सुनकर लगता है कि जैसे आप उन्हें बहुत हल्के में ले रहे हैं।
खेलों में और फ़ौज में तो आदमी को रिटायर होने तक बच्चा (ब्वायज) कहने का चलन है जी! :)
https://taanabaana.blogspot.com/2012/01/blog-post_27.html?showComment=1327733571094#c8920325927656979798'> 28 जनवरी 2012 को 12:22 pm बजे
अच्छा लगा पढ़ कर ....
काल सेंटर - पता नहीं कितने 'हुनर' और लीलेगा - पैसे के लिए.