"मीडिया को आज डिसाइड करना है कि आपको राजनीति करनी है,कार्पोरेट बनना है या मीडिया बनकर ही रहना है। मीडिया में भ्रष्टाचार है,गड़बड़ी है और वो इसलिए है कि हम अपने धर्म का पालन नहीं कर रहे हैं। आज जो बर्ताव बाबा रामदेव के साथ हुआ,यही बर्ताव बहुत जल्द ही हमारे साथ होनेवाला है। हमारे खिलाफ माहौल बन चुका है।लोग टोपी और टीशर्ट पहनकर कहेंगे- मेरा मीडिया चोर है।"- पंकज पचौरी
संवाद 2011 में " भ्रष्टाचार और मीडिया की भूमिका" पर बात करते हुए एनडीटीवी के होनहार मीडियाकर्मी पंकज पचौरी जब अंदरखाने की एक के बाद एक खबरें उघाड़ रहे थे और ऑडिएंस जमकर तालियां पीट रही थी, उन तालियों की गड़गड़ाहट के बीच अंबिका सोनी( सूचना और प्रसारण मंत्री,भारत सरकार) की ताली भी शामिल थी। चेहरे पर संतोष का भाव था और वो भीतर से पंकज पचौरी की बात से इस तरह से गदगद थी कि जब उन्हें बोलने का मौका आया तो अलग से कहा-पंकज पचौरीजी ने जो बातें कहीं है वो मीडिया का सच है,इस सच के आइने को बाकी पत्रकारों को भी देखना चाहिए। पंकज पचौरी के नाम पर एक बार फिर से तालियां बजी और उस दिन वो उस सर्कस/सेमिनार के सबसे बड़े कलाबाज साबित हुए। ये अलग बात है कि पंकज पचौरी की ये कलाबाजी किसी घिनौनी हरकत से कम साबित नहीं हुई। पंकज पचौरी ने कहा था CWG 2010 पर कैग की आयी रिपोर्ट को मीडिया ने जोर-शोर से दिखाया लेकिन इसी मीडिया को हिम्मत नहीं थी कि वो रिपोर्ट में अपने उपर जो बात कही गयी है,उसके बारे में बात करे। वो नहीं कर सकता क्योंकि वो पेड मीडिया है। लेकिन पंकज पचौरी ने ये नहीं बताया कि उनके ही चैनल एनडीटीवी ने कैसे गलत-सलत तरीके से टेंडर लिए थे। आप चाहे तो कैग की रिपोर्ट चैप्टर-14 देख सकते हैं।
पत्रकार से मीडियाकर्मी, मीडियाकर्मी से मालिक और तब सरकार का दलाल होने के सफर में नामचीन पत्रकारों के बीच पिछले कुछ सालों से मीडिया के किसी भी सेमिनार को सर्कस में तब्दील कर देने का नया शगल पैदा हुआ है। उस सर्कस में रोमांच पैदा करने के लिए वो लगातार अपनी ही पीठ पर कोड़े मारते चले जाते हैं और ऑडिएंस तालियां पीटने लग जाती है। ये ठीक उसी तरह से है जैसे गांव-कस्बे में सड़क किनारे कोई कांच पर नगे पैर चलता है,पीठ पर सुईयां चुभोकर छलांगे लगाता है..दर्शक उसकी इस हरकत पर जमकर तालियां बजाते हैं। मीडिया सेमिनारों में राजदीप सरदेसाई( हम मालिकों के हाथों मजबूर हैं),आशुतोष( मीडिया लाला कल्चर का शिकार है) के बाद पंकज पचौरी विशेष तौर पर जाने जाते हैं। उस दिन भी उन्होंने ऐसा ही किया और अपनी ईमानदारी जताने के लिए खुद को चोर तक करार दे दिया। मीडिया का यही चोर अब देश के प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह जी के कम्युनिकेशन अडवाइजर नियुक्त किए गए हैं। हमें सौभाग्य से देश का ऐसा प्रधानमंत्री नसीब हुआ है जो अच्छा-खराब बोलने के बजाय चुप्प रहने के लिए मशहूर हैं। ऐसे में पंकज पचौरी दोहरी जिम्मेदारी का निर्वाह करने के लिए उनकी टीम के सूरमा होने जा रहे हैं। पंकज पचौरी की सोहबत में हमारे प्रधानमंत्री बोलेंगे,टीवी ऑडिएंस की हैसियत से उन्हें अग्रिम शुभकामनाएं। बहलहाल,
एनडीटीवी से मोहब्बत करनेवाली ऑडिएंस और प्रणय राय के स्कूल की पत्रिकारिता पर लंबे समय तक यकीन रखनेवाली ऑडिएंस चाहे तो ये सवाल कर सकती है कि जो मीडियाकर्मी ( भूतपूर्व) प्रणय राय का नहीं हुआ वो कांग्रेस का क्या होगा? चाहे तो ये सवाल भी कर सकती है कि जो पत्रकार कांग्रेस का हो सकता है वो किसी का भी हो सकता है। लेकिन मीडियाकर्मी और सरकार की इस लीला-संधि में एक सवाल फिर भी किया जाना चाहिए कि तो फिर तीन-साढ़े तीन सौ रुपये महीने लगाकर टीवी देखनेवाली ऑडिएंस क्या है? मुझे कोई और नाम दे,मैं खुद ही अपने को कहता-फच्चा। बात सरकार की हो या फिर मीडिया की,हम फच्चा बनने के लिए अभिशप्त हैं। अब इसके बाद आप चाहे तो जिस तरह से मीडिया विमर्श और बौद्धिकता की कमीज ऐसी घटनाओं पर चढ़ाना चाहें,चढ़ा दें।
एनडीटीवी मौजूदा सरकार की दुमछल्लो है,ये बात आज से नहीं बल्कि उस जमाने से मशहूर है जब एनडीटीवी के हवा हो जाने और बाद में सॉफ्ट लोन के जरिए बचाए जाने की खबरें आ रही थी। कॉमनवेल्थ की टेंडर और बीच-बीच में सरकार की ओर से हुई खुदरा कमाई का असर एनडीटीवी पर साफतौर पर दिखता आया है। विनोद दुआ को लेकर हमने फेसबुक पर लगातार लिखा। एनडीटीवी की तरह ही दूसरे मीडियाहाउस के सरकार और कार्पोरेट के हाथों जिगोलो बनने की कहानी कोई नई नहीं है। सच्चाई ये है कि नया कुछ भी नहीं है। संसद के गलियारे में पहुंचने के लिए या फिर मैरिन ड्राइव पर मार्निंग वॉक की हसरत पाले दर्जनों मीडियाकर्मी सरकार और कार्पोरेट घरानों के आगे जूतियां चटखाते फिरते हैं। नया है तो सिर्फ इतना कि जो दलाली करता है वही पत्रकारिता कर सकता है और वही ईमानदार करार दिया जा रहा है। पिछले दो-तीन सालों में अच्छी बात हुई है कि सबकुछ खुलेआम हो रहा है। जो बातें आशंका और अनुमान के आधार पर कही जाती थी, उसे अब मीडिया संस्थान और मीडियाकर्मी अपने आप ही साबित कर दे रहे हैं। ये हमारे होने के बावजूद बेहतर स्थिति है कि हम उन्हें सीधे-सीधे पहचान पा रहे हैं। ये अलग बात है कि ऐसे में देश के दल्लाओं का हक मारा जा रहा है और शायद मजबूरी में वो आकर पत्रकारिता करने लग जाएं।
मीडिया औऱ मीडियाकर्मियों के कहे का भरोसा तो कब का खत्म हो चुका है। पंकज पचौरी के शब्दों में कहें तो ये खुद समाज का खलनायक बन चुका है। ऐसे में चिंता इस पर होनी चाहिए कि हम चिरकुट जो सालों से भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलते-बकते आए हैं, इन मीडिया खलनायकों के लिए क्या उपाय करें? क्या ये सिनेमा में परेश रावल और गुलशन ग्रोवर को रिप्लेस करने तक रह जाएंगे या फिर सामाजिक तौर पर भी इनका कुछ हो सकेगा? मीडिया की श्रद्धा में आकंठ डूबे भक्त जो इसे चौथा स्तंभ मानते हैं,उनसे इतनी अपील तो फिर भी की जा सकती है कि अब तक आप जो पत्रकारिता के नायक या मीडिया हीरो पर किताबें लिखते आएं हैं,प्लीज ऐसी किताबें लिखनी बंद करें। अब मीडिया खलनायक और खलनायकों का मीडिया जैसी किताबें लिखें जिससे की मीडिया की आनेवाली पीढ़ी इस बात की ट्रेनिंग पा सकें कि उन्हें इस धंधे में पैर जमाने के लिए अनिवार्यतः दलाल बनना है और या तो कार्पोरेट या फिर सरकार की गोद में कैसे बैठा जाए,ये कला सीखनी है? ऐसी किताबें आलोक मेहता,राजदीप सरदेसाई,आशुतोष,विनोद दुआ और बेशक पंकज पचौरी लिखें तो ज्यादा प्रामाणिक होंगी।
डिस्क्लेमर- हमें इस पूरे प्रकरण में अफसोस नहीं है बल्कि एक हद तक खुशी है कि जो पंकज पचौरी स्क्रीन पर जिस दलाली भाषा का इस्तेमाल करते आए हैं,हम उसे सुनने से बच जाएंगे।..और किसी तरह का आश्चर्य भी नहीं क्योंकि एनडीटीवी पर पिछले कुछ सालों से इससे अलग कुछ हो भी नहीं रहा है। एक तरह से कहें तो उन्होंने प्रणय राय के साथ भी किसी किस्म का धोखा नहीं किया है, जो काम वो अब तक अर्चना कॉम्प्लेक्स में बैठकर किया करते थे,अब उसके लिए मुनासिब जगह मुकर्रर हो गयी है।. रही बात भरोसे और लोगों के साथ विश्वासघात करने की तो इस दौर में सिर्फ मौके के साथ ही प्रतिबद्धता जाहिर की जा सकती है और किसी भी चीज के साथ नहीं।
https://taanabaana.blogspot.com/2012/01/blog-post_19.html?showComment=1326956568896#c1437789956638614558'> 19 जनवरी 2012 को 12:32 pm बजे
इस देश की मीडिया या यूं कहें पूरी संस्कृति ही इन ठेकेदारों के हाथों विवित होती जा रही है तो अन्याय ना होगा। दुनिया में सबसे कम भारत में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का खर्च होता है। अगर सभी को बुनियादी सुविधा मिलने लगे और लोग जागरूक हो जायें अपने अधिकारों को लेकर तो इनकी स्थिति भागते भीत की लंगौटी की तरह हो जाएगी। धोबी का कुत्ता ना घर का ना घाट का। सोशल मीडिया के आगमन के साथ जैसे-जैसे लोगों को वास्तविकता का ज्ञान हो रहा है लोग एक-दूसरे से खुले आम अपनी बात कह रहे हैं तो इन चोरों को यह सबसे बड़ा खतरा नजर आने लगा है और ये इसे प्रतिबंधित करने के लिए अपने स्तर पर हर तरह से प्रयासरत हैं लेकिन उन्हें यहां यह नहीं भूलना चाहिए कि यह भारत है जो अगर आपको मौका देता है कुछ कर गुजरने का और आप लोगों को बेवकूफ बनाते रहते हैं तो ज्यादा समय तक आपका खेल चलता नहीं है। देश का इतिहास गवाह है कि यहां बाबर से लेकर तमाम आक्रमणकारियों को देश ने एक तरफ पनाह दी तो दूसरी तरफ समय आने पर उसे अंगूठा भी दिखा दिया। सो समय रहते सचेत जाए यही राजनेताओं के हक में होगा।
https://taanabaana.blogspot.com/2012/01/blog-post_19.html?showComment=1326958227069#c4372338579792209288'> 19 जनवरी 2012 को 1:00 pm बजे
जिसको जब मौका मिला वो भ्रष्टाचार का बैंटन लेकर दौड़ा... अब किस किस को चोर कह कर पुकारे... आज तो भैय्या कलमाडी भी छूट गए:(
https://taanabaana.blogspot.com/2012/01/blog-post_19.html?showComment=1326985152591#c3037564904956965990'> 19 जनवरी 2012 को 8:29 pm बजे
विनीत भाई, आपके पूरे लेख को पढने के बाद भी मैं समझ नहीं पाया कि आप कहना क्या चाहते हैं? पंकज पचौरी दलाल हैं? या सरकारी पद स्वीकार करने से कोई दलाल हो जाता है? या यूपीए सरकार की भ्रष्टाचार के चर्चे इतनी ज्यादा है कि इस काजल कि कोठरी में जाने से लोगों का बचना चाहिए? पंकज पचौरी को मैं व्यक्तिगत तौर पे नहीं जानता और इसलिए समझना चाहता हूं पचौरी दलाल कैसे हुए? थोड़ी जानकारी हमारी भी बढ़ाने कि मेहरबानी करें
https://taanabaana.blogspot.com/2012/01/blog-post_19.html?showComment=1326985568339#c500426245497264860'> 19 जनवरी 2012 को 8:36 pm बजे
बात बोलेगी..
मैंने ये बिल्कुल नहीं कहा कि वो दलाल हैं। उन्होंने एक सेमिनार में जिसकी चर्चा मैंने विस्तार से की है कहा कि मीडिया को लोग जल्द ही कहेंगे कि मेरा मीडिया चोर है और ये पेड मीडिया है। जो भी कहा उन्होंने कहा। मैं आज उसे याद भर कर रहा हूं।
जहां तक एनडीटीवी पर उनसे शो की बात है तो आपको भी पता है कि अन्ना आंदोलन,सीएजी को लेकर क्या स्टैंड लिया था? मैंने उन संदर्भों को याद बस किया है। अगर तकलीफ न हो तो उसे दोबारा से पढ़ें।.
https://taanabaana.blogspot.com/2012/01/blog-post_19.html?showComment=1327081539179#c593833166697478271'> 20 जनवरी 2012 को 11:15 pm बजे
यानी पंकज पचौरी अब खांग्रेस सरकार के 'अधिकृत' दलाल है। अब पचौरी की 'चोरी' अधिकृत हो गई है। पचौरी ने आज तक खांग्रेस का जो नमक खाया है वो शाद अब तक चुकता नही हुआ है!! शानदार लेख के लिए बधाई विनीत बाबू।
https://taanabaana.blogspot.com/2012/01/blog-post_19.html?showComment=1327081790120#c6310717328446238709'> 20 जनवरी 2012 को 11:19 pm बजे
यह भी कितने संयोग की बात है कि, देश मे अधिकांश मीडिया दलाल एनडीटीवी ने पैदा किए हैं। बुरखा दत्त, राजदीप सरदेसाई और पंकज पचौरी। धन्य हो ऐसी पत्रकारिता। धन्य हो इन्हे झेलनेवाली जनता!!