मेरी हालत पर तरस खाकर मेरी उस दोस्त ने आज से पन्द्रह दिन पहले फोन करके कहा- खाना बनाने के लिए मुन्नी भेज रही हूं,आदमी की तरह पेश आना और ठीक से खाना बनवाना..जल्द ही शीला भी भेजती हूं और फिर ठहाके लगाकर हंसने लगी थी। उसे पता था कि उन दिनों मेरी तबीयत ठीक नहीं है और मेरे यहां काम करने जो दीदी आती है वो पिछले बीस दिनों से गायब है। मैंने हां-हां कहा और अगले दिन मुन्नी सुबह सात बजे हाजिर।
जमाने से सुबह सात बजे सुबह उठने की आदत छूट चुकी थी। चैनल की नौकरी बजाते वक्त मार्निंग शिफ्ट के लिए उसी तरह सुबह उठते,जैसे बचपन में मां पूजा के फूल के लिए भेजती और हम चोरी-चकारी करके मां की भक्ति में चार-चांद लगाते या फिर भइया के निकम्मेपन पर पर्दा डालने के लिए रउदिया के यहां दूध लाने के लिए। लेकिन वो सारी बातें किसी दूसरे जमाने की कहानी लगती है।
बात बस इतनी है कि आपको जी में आए तो दो-चार डंडे मारकर मेरी चूतड़ लाल कर दीजिए लेकिन सुबह छह-सात बजे उठने का काम हमसे न हो सकेगा।. सो पहले दिन जब मुन्नी आयी तो बिना उसके कुछ कहे, भीतर से भड़क गया। सुबह मैं न तो अचानक उठ सकता हूं और न ही उठते के साथ बोल सकता हूं। मुझे नार्मल होने में आधे घंटे लग जाते हैं।
मुन्नी ने आते ही कुछ सवाल किए- भइया-आटा कहां है,लाइटर कहां है,सब्जी क्या बनेगी,किस कड़ाही में बनावें। मैं अपनी आदत के अनुसार बिना कुछ कहे, सब इशारे से बताता या फिर आप ही देता जा रहा था। लगा,सात बजे बुलाकर आप ही टेंशन ले ली जिसे कि मेरी मां मंगुआ दुख कहती है। लगा-मना कर देते हैं कि कल से मत आइएगा या फिर थोड़ी देर में। थोड़ी देर का सवाल ही नहीं था क्योंकि उसके बाद वो सीधे एक बजे आती। क्या करें,कल फिर सुबह सात बजे उठना होगा। ओफ्फ..
मुन्नी ने खाना बनाया,टिपिकल दिल्ली का खाना। जमकर मसाले,खूब तेल और फूलगोभी की तो ऐसी रेड पीट दी थी कि सोचा इससे बढ़िया था कि सारे गोभी को सींक में धंसाकर टिक्का बना लेता और सिरके में डुबोकर खा लेता। मंहगी मटर की बनी सब्जी देखकर आत्मा कलप उठी। अगले दिन मैंने कहा- दीदी,आपको पता है मैंने आपको खाना बनाने के लिए क्यों कहा? उसने कहा नहीं भइया। मैंने कहा क्योंकि मुझे खुद ही बहुत अच्छा बनाने आता है लेकिन मैं इतनी देर किचन में रह नहीं सकता,बस इसलिए। वो बोली,ओह..क्यों? मैंने कहा-मेरी तबीयत ठीक नहीं है इन दिनों,आपको फोन पर बताया था न।..उसने कहा हां भइया-तभी हम सोचे कि ठंडा मार दिया होगा तो थोड़ा मसाला खाइएगा त आराम होगा। मैंने कहा नहीं-आप बस उबाल देंगी तो ज्यादा अच्छा लगेगा मुझे,तेल-मसाले मत दीजिए प्लीज। सच्चाई ये थी कि मैं उससे इसलिए खाना बनवाना चाहता था कि मेरी दोस्त ने बताया था कि वो बिहार की है और अपनी तरफ का जोरदार खाना बनाती है। अपनी तरफ का खाना,मतलब मां की तरह का बनाया खाना। मैं मुन्नी के खाने में मां के बनाए खाने का स्वाद खोज रहा था और मुन्नी हमें बाकी लौंडों की तरह जीभचट्टा समझकर खूब झाल-माल के साथ खाना बनाकर दे रही थी।..खैर,मेरी बात वो समझ गयी और ये भी कि कुछ-कुछ आदत से भी ठस्स आदमी है।
तीन-चार दिन हुए कि मेरी सुबह सात बजे उठने की आदत पड़ गयी और उठना अच्छा भी लगने लगा। कभी-कभी तो मुन्नी आती कि उसके पहले ही हम उठकर अखबारों में खोए रहते और कभी देर से आने पर हम सोए ही रह जाते। वो मेरे लिए अलार्म की तरह हो गयी थी। एक बार उठने की आदत पड़ गयी तो मुन्नी का सुबह आना भी अच्छा लगने लगा। मुझे पता था कि ये सबसे पहले मेरे यहां आती है और फिर बाकी घरों में उसे जाना होता है। जिन लड़कियों के यहां जाती है,वो सब ऑफिस गोइंग है। मैं नहीं जानता कि वो कौन लड़कियां हैं लेकिन लगाव का बंधन ऐसा बंधा कि हमें लगता- अगर मेरे यहां देर कर दी तो मुन्नी दूसरी जगहों पर जाने में लेट हो जाएगी और फिर वो ऑफिस जानेवाली लड़कियां भी। क्या पता कोई ज्यादा देर होने के चक्कर में बिना ब्रेकफास्ट किए या लंचपैक लिए बिना ही चली गई तो ऑफिस में कैसे काम कर पाएगी? क्या बैचलर लड़के ही लड़कियों की इतनी चिंता करते हैं या फिर इंसानियत के नाते हर कोई करता है? मुझे नहीं पता और न ही इसमें मैं कोई स्त्री-विमर्श का पेंच फंसाना चाहता हूं। बहरहाल,
मैं पहले से मटर छीलकर रख देता। जो सब्जी बननी होती,फ्रीज से निकालकर चूल्हे के पास रख देता। दाल बननी होती तो भगोने में पानी डालकर छोड़ देता। भाव बस इतना कि मुन्नी लेट न हो जाए और तब वो लड़कियां भी लेट न हो जाए। क्या मुन्नी उन लड़कियों से मेरी इस आदत के बारे में बात करती होगी? अगर करती होगी तो वो लड़कियां क्या सोचती होगी? हाउ कूल या फिर सो फन्नी? कहीं मुन्नी को हिदायतें तो नहीं देती होंगी- सुनो मुन्नी,उस लड़के की कहानी तो हमें सुनाती हो लेकिन हमारे बारे में कुछ मत बताना। सब लड़के एक ही तरह के चीप होते हैं। उपर से स्वामी अग्निवेश बनते हैं और भीतर से बिग बॉस में जाकर अय्याशी करने के सपने देखते हैं।
मुन्नी को मेरा शायद ये सब करना अच्छा नहीं लगता था। वो हमसे शुरु के दिनों से ही कुछ नहीं बोलती,अपना काम करती और चली जाती लेकिन एक दिन उसने कहा- भइया,जब आप सब कर ही लेते हैं तो हमको किसलिए रखे हैं? आप इ सब मत किया कीजिए। मैं उस दिन बहुत खुश हुआ-चलो,मुन्नी के मुंह से बकार तो निकला। कुछ तो बोली। मैं उससे कुछ और भी बातें करना चाहता था। अच्छा दीदी- आप कहां से आती है। उसने कहा-यहीं बगल से। आपके पति क्या करते हैं? वो बहुत साल तक डागडर के यहां रहा था तो अब मोहल्ला में डागडरी करता है। मुझे अच्छा लगा कि चलो,मुन्नी से सुबह-सुबह थोड़ी बात की जा सकती है। दिनभर तो भूत-पिशाच की तरह दिन काटने ही होते हैं।
दीदी,आपको मसाला देने का मन हो तो फ्रीज से निकालकर थोड़ा दे दिया कीजिए।..मुन्नी ने जबाब में दूसरी बात कह दी- भइया,आप हमको दीदी मत बोला कीजिए,मेरा नाम मुन्नी है। आपकी जो दोस्त हैं न,उ दीदी भी हमको मुन्नी ही बोलती है। अच्छा नहीं लगता है,आप हमको दीदी बोलते हैं तो। मैंने पूछा, क्यों? मुन्नी का जबाब था- काहे कि आप हमसे बड़े हैं न। मैंने कहा-मुन्नी,जिसकी शादी पहले हो जाती है,वो बड़ा हो जाता है। आपकी पहले हो गयी तो आप हमसे बड़ी हो गई। नहीं भइया,ऐसे थोड़े होता है,गांव में तो 12-14 साल में बहतों का शादी हो गया है तो क्या हम उ सबको दीदी बोलेंगे। आप हमको मुन्नी बोलिए। मुन्नी से बात करके आज उत्साह के बजाय भीतर से बहुत ग्लानि हुई।
दीदी बोलकर हम मुन्नी की पूरी पहचान को निगल जा रहे थे। कोई भी काम करने आए,ये क्या कि हम सबको दीदी ही बोले। मुन्नी को इस संबोधन से ही शायद चिढ़ थी। मेरी एक दूसरी दोस्त जो मेरी आंखों के सामने करीब पांच लोगों को घर का काम करने के लिए बदला लेकिन सबों को राम नाम से ही बुलाती। मैंने उससे पूछा था- यार,ये कैसे संभव है कि तुम जिस किसी को भी काम पर रखती हो,उसका नाम राम ही रहता है। उसने कहा- नहीं,नाम तो कुछ और होता है,लेकिन हम उसे राम नाम रख देते हैं,उसके आते ही। मैं दिनभर में सबसे ज्यादा उसे ही बुलाती हूं तो अच्छा है न इधर-उधर का नाम लेने के बदले राम ही नाम ले लो। इसी बहाने कुछ तो पुण्य अर्जित हो जाता है। मुझे तब नौकर की कमीज बार-बार याद हो आता और फिर ऐसा हुआ कि उसके यहां मेरा जाना इसी कारण से छूट गया कि वो बहुत ही तंग दिमाग की लड़की है। आज दीदी के बदले जब मैंने मुन्नी कहा तो अटपटा तो जरुरु लग रहा था लेकिन सोच रहा था- कहीं मुन्नी ने भी तो नौकर की कमीज नहीं पढ़ ली है? औऱ नहीं तो फिर ऐसा क्यों है कि वो नौकर की कमीज न पढ़कर भी पहचान को लेकर हमसे ज्यादा सतर्क है जबकि हम पढ़कर वैसे ही तंग के तंग रह गए जैसे कि न भी पढ़ते तो होते। रचना का हमारे उपर अपनी दोस्त से घृणा करने तक का असर हुआ,खुद अपने उपर नहीं।
कल मुन्नी का आखिरी दिन है। उसके बाद से वो नहीं आएगी। पहले से ही तय था कि वो मेरे यहां सिर्फ 15 दिनों के लिए ही आएगी। मेरा मन करता है कि कल जब वो जाने लगेगी तो हिम्मत जुटाकर पूछ ही लूंगा- मुन्नी,एक बात पूछूं? तुमने बताया कि तुमने बिहार बोर्ड से मैट्रिक की परीक्षा पास की है,क्या तुमने नौकर की कमीज पढ़ी है? नहीं पढ़ी है तो पढ़ना न,तुम्हें पता चलेगा कि हम जैसे सरोकारी बननेवाले लोग दिमागी तौर पर कितने तंग और कमीने होते हैं।
तस्वीरः आर्टिस्ट ऋचा लखेड़ा( एंकर, ग्लैमर शो. एनडीटीवी इंडिया) की वेबसाइट से साभार
https://taanabaana.blogspot.com/2011/11/blog-post_28.html?showComment=1322489506530#c8090337804370500504'> 28 नवंबर 2011 को 7:41 pm बजे
काश पेट ही न होता, कितना कम हो जाता चिन्चा का आकार।
https://taanabaana.blogspot.com/2011/11/blog-post_28.html?showComment=1322489867457#c1137414136724474783'> 28 नवंबर 2011 को 7:47 pm बजे
अच्छा निचोड़ है.
बिना मुस्कुराये रह ना सका. साधुवाद!
https://taanabaana.blogspot.com/2011/11/blog-post_28.html?showComment=1322493628423#c2114652021916504712'> 28 नवंबर 2011 को 8:50 pm बजे
bilkul alag tarah ka rekha-chitra.
https://taanabaana.blogspot.com/2011/11/blog-post_28.html?showComment=1322498696399#c6957460109416167205'> 28 नवंबर 2011 को 10:14 pm बजे
पुराने मूड में रहे थे लगता है लिखते वक्त। बाकी सुबह-सुबह छह-सात बजे उठना तो हमसे भी नई हो सकता।
https://taanabaana.blogspot.com/2011/11/blog-post_28.html?showComment=1322537157003#c6462250063703978003'> 29 नवंबर 2011 को 8:55 am बजे
ऐसी सुबह भी होती है।
https://taanabaana.blogspot.com/2011/11/blog-post_28.html?showComment=1322568639803#c6740737573402191925'> 29 नवंबर 2011 को 5:40 pm बजे
बहुत दिनों बाद तुम्हारा लिखा अलग किस्म का रेखाचित्र पढ़ा, वाकई........हम जैसे सरोकारी बननेवाले लोग दिमागी तौर पर कितने तंग और कमीने होते हैं।
https://taanabaana.blogspot.com/2011/11/blog-post_28.html?showComment=1322592010869#c8359370571728608679'> 30 नवंबर 2011 को 12:10 am बजे
पहले तो समझ ही नहीं आता कि इसे आपकी साफगोई समझा जाएं या फिर रेखाचित्र की खासियत, लगता है ये कहानी इतनी नई और पहचानी हुई है और कितने ज्यादा अच्छे है हम मॉर्डनाइजड लोग।
https://taanabaana.blogspot.com/2011/11/blog-post_28.html?showComment=1322723170648#c1490547629751220396'> 1 दिसंबर 2011 को 12:36 pm बजे
Kaafi accha likh hai.
www.moversndshakers.blogspot.com
https://taanabaana.blogspot.com/2011/11/blog-post_28.html?showComment=1323628272147#c7961127733579233997'> 12 दिसंबर 2011 को 12:01 am बजे
बहुत अच्छा लगा इस पोस्ट को पढ़कर! संवेदनशील पोस्ट!
सब लड़के एक ही तरह के चीप होते हैं। उपर से स्वामी अग्निवेश बनते हैं और भीतर से बिग बॉस में जाकर अय्याशी करने के सपने देखते हैं!
पढ़कर मजा आ गया!
हम जैसे सरोकारी बननेवाले लोग दिमागी तौर पर कितने तंग और कमीने होते हैं।
क्या बात है! :)