खबरी अड्डा जैसा अनामी होकर कोई भी हो-हल्ला मचा सकता है इस पोस्ट को लिखने की वजह बताता कि इसके पहले ही खबरी अड्डा सॉरी संजय कुमार सिंह ने मेरी टिप्पणी प्रकाशित कर वजह स्थापित करने की कोशिश की। वो टिप्पणी क्या थी, इसकी चर्चा बाद में पहले संजय कुमार सिंह की उस दलील पर गौर करें जिसमें उन्होंने टिप्पणी प्रकाशित नहीं करने की वजह बतायी है। उन्होंने लिखा-
सोमवार की सुबह हमें एक ब्लॉगर विनीत कुमार की टिप्पणी मिली थी। विनीत कुमार की यह टिप्पणी ब्लॉग पर हमनें यह सोचकर नहीं डाली थी,कि इनकी आशंकाएं कभी फोन पर बातचीत करके दूर कर दूंगा। लेकिन उससे पहले विनीत कुमार ने अपने ब्लॉग पर खबरी अड्डा के पीछे अनाम ताकतों का आरोप लगाते हुए एक लेख लिख मारा है।
खबरी अड्डा जिसे कि अब संजय कुमार सिंह नाम से ही संबोधित करना सही होगा क्योंकि ये सुविधा उन्होंने आज ही मुहैया कराया है,मुझे कब फोन करते, इसका न तो मैं उनसे कोई हिसाब मांग रहा हूं और न ही उन्होंने कोई तारीख या समय इसके लिए तय कर रखी होगी। हमें इस बात पर हंसी आ रही है और अफसोस भी हो रहा है कि किसी की टिप्पणी को इग्नोर करने का उन्होंने कितनी लचर तर्क जुटायी है। वो ब्लॉगिंग को मोहल्ले की चीज समझ रहे हैं कि एक रुपये का सिक्का डाला और टिप्पणी को लेकर जो भी विचार हैं, बता दिए। उन्हें ये तर्क शायद इसलिए पसंद आया होगा कि पूरे मामले को वो दिल्ली-दिल्ली यानि लोकल तक ही देख रहे हैं। मेरे ब्लॉग पर भी यहीं का नंबर है। मेरा सवाल सिर्फ इतना भर है कि क्या ब्लॉग के मसले को फोन तक ले जाना सही है। जिस माध्यम में बात हो रही है, उससे कूदकर किसी दूसरे माध्यम पर स्विच कर जाना सही है। फर्ज कीजिए अगर ब्लॉगर लोकल कॉल से न निबटे तो फिर क्या आइएसडी से जबाब देने का इरादा हो सकता है। दूसरा कि जिन भाईयों का नंबर मेरी तरह आसानी से नहीं मिल पाए, उन्हें इग्नोर करने के कौन से तर्क जुटाए जा सकते हैं। कोई जरुरी नहीं है कि ब्लॉगर किसी की टिप्पणी को छापे ही छापे,संभव है बहुत सारे ब्लॉगर पार्सियल डेमोक्रेट होना चाहते हों जो कि पोस्ट के जरिए कुछ भी कहने के अभ्यस्त हों जबकि उसके उपर आयी प्रतिक्रिया को सार्वजनिक होने देने से बचना जाते हों। अपने विपक्ष में या फिर टिप्पणीकार के पक्ष में आधार तैयार होने नहीं देना चाहते हों। इसमें नाराज होने की कोई बात ही नहीं है। खैर...
अब बात करें पोस्ट लिखने की वजह पर। कुछ भी कहने से पहले ये साफ कर दूं कि संजय कुमार सिंह ने अपनी तरफ से जो भी वजह निकाली है उससे अलग कुछ वजह और भी है। अपनी एक पोस्ट एनडीटीवी को जबाब-बड़ी लकीर खींचकर दूसरे को छोटा करो पोस्ट के अंत में एक नोट लिखा- एनडीटीवी की स्पेशल रिपोर्ट में टीवी न्यूज चैनलों को निशाने पर लिए जाने के बाद कई चैनलों में खलबली मची है,हम इस विषय पर टीवी पत्रकारों की राय-लेख आमंत्रित करते हैं। साथ में अपनी तस्वीर भी भेज दें। बहुत से अनाम-गुमनाम लोग कमेंट कर रहे हैं, इस मुद्दे। ऐसे ज्यादातर लोग गाली-गलौज की भाषा का इस्तेमाल करने से परहेज नहीं करते हैं। ऐसे लोगों से अनुरोध है कि अपना वक्त बर्बाद न करें।
मुझे इस बात से असहमति रही कि जो ब्लॉगर खुद अपनी तस्वीर पोस्ट नहीं लगाता, नाम तक नहीं प्रकाशित करता वो किस अधिकार से दूसरे पत्रकारों से फोटो भेजने की बात कर रहा है, क्या ऐसा कहने का उनके पास नैतिक आधार है। संजय कुमार सिंह ने अपने आज की पोस्ट में खुद भी लिखा कि- रोज पोस्ट पर अपना नाम औऱ फोटा डालकर खुद को चैंपियन बनाना अपना मकसद नहीं रहा। अब कोई इनसे सवाल करे कि बाकी के जो लोग भी अपनी पहचान औऱ तस्वीर डालकर पोस्टिंग कर रहे हैं, वो क्या चैंपियन बनने की फिराक में हैं। जिस तरह की खबरें खबरी अड्डा प्रकाशित करता रहा है, मैं समझ सकता हूं कि अगर उसका नाम सार्वजनिक हो जाए तो भारी फजीहत हो सकती है। उन्होंने लिखा है कि उन्होंने दिवाली के दिन वाली पोस्ट में अपना नाम डाल रखा है। लेकिन ये तो उनके लिए है न जो शुरुआती दौर से ही इस ब्लॉग को पढ़ते आ रहे हैं। हालिया पढ़नेवाले के लिए खबरी अड्डा अनामी ही है, नहीं तो चर्चा के क्रम में दर्जनों पत्रकार दोस्त क्यों पूछते कि ये खबरी अड्डा कौन है। संजय कुमार सिंह अपनी पहचान स्वाभाविक तरीके से प्रकाशित न करके जिस सुरक्षा कवच में रहकर पोस्टिंग करते आए हैं, मैं वाकई उनकी कद्र करता हूं। नियमित पोस्ट पढ़ते हुए कभी भी उनके बार में जानने की बेचैनी नहीं रही लेकिन अपनी इस नीति के आगे वाकियों के उपर फिकरे कसने के अंदाज में अपनी बात कहना, किसी भी लिहाज से मुझे उचित नहीं लगा। मुझे नहीं पता कि टेलीविजन के बाकी पत्रकारों के साथ इनकी पहचान किस हद तक है कि वो फोटो भी भेजते हैं। लेकिन एक आम पाठक के लिहाज से सोचिए तो किसी को भी अटपटा लगेगा कि एक तो खुद को सेफ जोन में रखना चाह रहा है और बाकियों के लिए पहचान की बात कर रहा है।
अनामी कमेंट करनेवालों का मैं शुरु से विरोधी रहा हूं, सचमुच ज्यादातर लोग गालियों का प्रयोग करने के लिए अनामी हो जाते हैं। लेकिन इन अनामियों में कुछ ऐसे भी हैं जो नए-नए बलॉग की दुनिया में आते हैं,पांच-दस को मैंने खुद नाम के साथ कमेंट करना बताया है। लेकिन कोई गाली लिख रहा है तो लिखने दें,कौन कहता है कि आप अविनाश बन जाएं और उसे भी छाप दें। आप जब नाम औऱ पूरे प्रोफाइल वालों की टिप्पणी नहीं छापने का हौसला रखते हैं तो फिर इन अनामियों से पस्त क्यों जाते हैं। वक्त बर्बाद कर रहे हैं तो करने दें, व्यंग्यात्मक लहजे में बात करने की क्या जरुरत पड़ गयी। ब्लॉगिंग संपादन कला-कौशल औऱ पेंचों से मुक्त माध्यम है, इसमें संपादक की हैसियत से बात करने पर लोग भड़क जाते हैं। आप बेहतर जानते हैं कि जो भी आपके ब्लॉग पर आता है, एक लगाव के साथ आता है। इस नीयत से शायद ही कोई ब्लॉग पर घूमता है कि दो-चार पोस्ट पर गाली देकर मन हल्का किया जाय। मैं गाली लिखनेवालों की कोई तरफदारी नहीं कर रहा बल्कि उस सामंती सोच पर अफसोस जाहिक कर रहा हूं जो निर्देश देने की संस्कृति को मजबूत करते हैं।
कुछ कमेंट करनेवालों और फुटपाथ जैसे ब्लॉगर ने लिखा कि- ये सब बस हिटिंग बढ़ाने के लिए किया गया प्रयास है। आप अपनी इस समझ को औऱ मजबूत कीजिए, फीक्स डिपोजिट करके औऱ बढ़ने दीजिए, हमें कोई आपत्ति नही है। लेकिन जिस तरह से मीडिया को कोसनेवालों का सिर्फ एक ही आधार है कि टीआरपी के लिए करते हैं, टीआरपी के लिए करते हैं, ब्लॉगिंग की दुनिया में ऐसे कोई भी चालू मुहावरे इस्तेमाल करने के बजाय पोस्ट के पीछे विमर्श को पनपने दें््। हिटिंग किसे नहीं चाहिए, कमेंट से लदे ब्लॉग किसे नहीं पसंद हैं, लेकिन इसका क्या मतलब है कि हर बात को, हर पोस्ट को हिटिंग के मुहावरे के तहत बात करके चलता कर दिया जाए। मैं गंभीर होने का दावा नहीं करता लेकिन आपकी गंभीरता जब छिटकने लगती है तो मुझे आपकी पूंजी लुटते हुए देखकर अफसोस होता।
एक ने हम जैसे गंदे बच्चे के अच्छे बच्चे में कन्वर्ट होने की कामना की है। हमने कभी भी अच्छा कहलाने की मुराद से ब्लॉगिंग करना शुरु नहीं किया, ये कॉन्फेशन बॉक्स है,झूठ-सच, समझी-नासमझी,खेल-तेल जो है सब इसमें डालो,यहां नहीं तो फिर कहीं नहीं। सोते हुए जब बड़बड़ाकर फिर भी बोल देगें लेकिन सुन तो नहीं सकते न। हमें नहीं बनना गुड ब्ऑय।
एक ने कहा-पहचान का मारा है, सबको गरियाता रहता है। उनकी समझ उनके पास, भविष्य में कभीं जजी का काम न करें, बस यही कामना है, और क्या कहूं।
कुल मिलाकर जिसे संजय कुमार सिंह जिसे मेरी मंशा कह रहे हैं वो कुछ इस रुप में पूरी हुई है कि शुरुआती दौर से ब्लॉगिंग करनेवाले भी जिस खबरी अड्डा के संचालक को नहीं जान पा रहे थे, अब जान गए हैं,इस आश्चर्य के साथ खुश हैं कि कोई ब्लॉगिंग करते हुए संतई का काम कैसे कर सकता है। मैं भी खुश हूं कि अब वो हमारे सामने एक अच्छे ब्लॉग को अनामी न कहकर उसके संचालक का नाम ले रहे हैं। अब कोई कहे कि ब्लॉग अड्डा अनामी ब्लॉग है तो देखिए कैसे मुंह नोच लेते हैं।...समाप्त
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https://taanabaana.blogspot.com/2009/02/blog-post_03.html?showComment=1233674820000#c4589834643556481357'> 3 फ़रवरी 2009 को 8:57 pm बजे
विनीत ने विनीत होकर सारी बात कही है
पर जो समाप्त की है
वो शुरूआत है
जो घात कर रहे हैं
उनको विनम्र जा जवाब है
।
बातें सभी सतर्क हैं
एक भी कुतर्क नहीं
फिर भी न समझे जो
बने बनता है खूब जो।
अपने चित्र में डाट रहे होंगे
इसलिए दूसरों के चित्र मांगते हैं
उसमें डाट ढूंढना चाहते होंगे
तो जो ढूंढ रहा है उसे ढूंढने दो।
अभी तो यह बहाना नहीं बनाया है
कि फोन बिजी मिल रहा था
या आउट ऑफ कवरेज एरिया गा रहा था
या एक्जिस्ट नहीं है बतला रहा था
या नहीं है मौजूद
पर आपका सवाल अच्छा है
फोन करने वाले का कहां है वजूद ?
वो भी तो गुमनाम है
बेनाम है
स
रेब्लॉग है
ब्लॉगदार होकर भी
बेब्लॉग है क्योंकि वो
ब्लॉग को अपनी पहचान नहीं मानता
उसे लगता है कि उसे कोई नहीं जानता।
उसे इसी खुशफहमी में जीने दो
सौ दो सौ जीने और चढ़ने दो
जिस पथ पर बढ़ रहा है
उसे कुपथ करने दो।
https://taanabaana.blogspot.com/2009/02/blog-post_03.html?showComment=1233674940001#c3922264207665801937'> 3 फ़रवरी 2009 को 8:59 pm बजे
विनीतजी,
आपको अपनी पूर्वधारणा को पुन: परखना चाहिए। पूर्वधारणा है कि खबरी अड्डा एक डेमोक्रेटिक स्पेस है ... नहीं वह नहीं है... आपकी टिप्पणी पहली नही है जिसे सनाम होने के बावजूद वहॉं नकार दिया गया हो। जनसत्ता में ही चिट्ठाचर्चा में हमने बताया था कि किस प्रकार यहॉं टिप्पणियों की सिलसिलेवार हत्या की गई। एक क्षण यदि मान लें कि यह लोकतांत्रिक स्पेस नहंी है तो आपकी आपत्तियॉं निराधार सिद्ध हो जाती हैं क्योंकि अगले को पूरा हक है कि वो कितना कम या ज्यादा डेमोक्रेटिक होगा। फोन पर समझा दूंगा टाईप उनका तर्क सिर्फ लचर ही नहीं वरन दाउदी भाई टाईप है उसकी केवल अवहेलना ही की जा सकती है।
किंतु दूसरी ओर आप इसकी जो व्याख्यापरक तर्क संरचना खड़ी करते हैं उससे हमारी असहमति है। संजय की लोकतांत्रिकता या उसका अभाव उनके बेनामी होने का उत्पाद नहीं है, बेनामी गालियों के कुछ सबसे अणिक भुक्तभोगी होने के बावजूद हमारी समझ है बेनामी होना ब्लॉगर होने मात्र में निहित है...ये इस संरचना की विशेषता है। इसे उपजी अति लोकतांत्रिकता अराजकता की हद तक पहुँचती है पर यही सामूहिक विवेक के बल पर वह ताकत बनती है जो ब्लॉगिंग है तथा जिसके आगे बरखाएं इतनी सड़ी लाचार नजर आ पाती हैं।
ब्लॉगिंग को बेनामीपन से वंचित न करें यही इसकी ताकत भी है।
https://taanabaana.blogspot.com/2009/02/blog-post_03.html?showComment=1233678720000#c5827075598589363822'> 3 फ़रवरी 2009 को 10:02 pm बजे
विनीत बाबू चलिए आप दोनों की ओर से सभी बातें साफ हो गई हैं। अब बात को खत्म किजीए। जहां तक बेनामी कमेंट की बात है तो उससे मैं तंग आ गया हूं। ये कमेंट करने वाले आपके ही आसपास के अधिकांश वे लोग होते हैं जो आपके सामने आपके दोस्त बनने का नाटक करते हैं लेकिन मौका मिलते ही बेनामी होकर कमेंट बॉक्स में उछलने लगते हैं।
https://taanabaana.blogspot.com/2009/02/blog-post_03.html?showComment=1233684420000#c6071133702969783102'> 3 फ़रवरी 2009 को 11:37 pm बजे
जिस तरह के मुद्दे को आप उठा रहे हैं एक बड़े मुद्दे को दबाने के लिये वो शोभा नहीं दे रही है। आप से इस तरह कि तु तु मै मै कि उम्मिद नहीं थी।
बंदे मे दम है तभी इतने बड़े मुद्दे उठाये हैं। अब आप उसके नाम, उसके गांव का नाम, उसके घर का पता को लेकर पीछे पड़े हैं।
https://taanabaana.blogspot.com/2009/02/blog-post_03.html?showComment=1233686700000#c7987668845955306829'> 4 फ़रवरी 2009 को 12:15 am बजे
आइये जितेन्द्र जी.. आपका भी स्वागत है एक अनामी के तौर पर.. क्योंकि जिनका प्रोफाइल नहीं है, जिनके बारे में हम कुछ जान नहीं सकते.. वे मेरी नजर में अनामी ही है..
मसिजीवी जी कि बात से भी सहमती है मेरी..
https://taanabaana.blogspot.com/2009/02/blog-post_03.html?showComment=1233716160000#c8275430750452302776'> 4 फ़रवरी 2009 को 8:26 am बजे
पी डी भाई
मत कहें इन्हें अनामी
ब्लॉग जगत के ये हैं सुनामी
सुनामी भी नहीं कुनामी
और कह सकते हैं इन्हें
भूत, क्योंकि नजर नहीं आते
पर इनके किस्से इन्हें
भूत से अधिक
प्रेत हैं बतलाते
क्योंकि बिना नजर आए
ये हैं ब्लॉगजगत में उधम मचाते।
https://taanabaana.blogspot.com/2009/02/blog-post_03.html?showComment=1233729960000#c3970400703354536744'> 4 फ़रवरी 2009 को 12:16 pm बजे
विनीत जी, हर व्यक्ति की सोच अलग अलग होती है सर्वप्रथम संजय जी शायद खोद को प्रसिद्ध करना नही चाहते तो ये उनकी सोच है या फिर वो सुरक्षा कारणों से ऐसा कर रहे हो! पर जैसा की आप कह रहे है की अनाम नामों से राय देते समय गली दी जाती है तो आप इसे नाम के आधार पर रोक नही सकते जिसे गली देनी है वो किसी ग़लत नाम का उपयोग भी कर सकता है,इसलिए वेबजाल पर नाम होना तो अच्छा है लेकिन न होना भी बुरा नही है !!
संजय सेन सागर
www.yaadonkaaaina.blogspot.com
https://taanabaana.blogspot.com/2009/02/blog-post_03.html?showComment=1233776220000#c8332084405655545779'> 5 फ़रवरी 2009 को 1:07 am बजे
अरे तेरी...
बड़ा ही लंबा किस्सा है....
हमारा जय राम लीजिये, हम चले