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तो लीजिए, आज जनसत्ता में इंडिया टीवी की एंकर तनु शर्मा की सुसाइड करने की कोशिश और चैनल की डांध पर जो लेख छपा, उसे लेकर नसीहत की शक्ल में प्रतिक्रिया आनी शुरु हो गई. ऐसे मेल में हिन्दी सिनेमा के कुछ डायलॉग हैं जिसके शामिल किए जाने की मंशा सिनेमा की प्लॉट का वो इत्तफाकन है जहां मुसीबत में पड़ी , हताश और उदास को उबारने की नियत से नायक आता है और फिर सिनेमा के बाकी हिस्से में दोनों में प्यार हो जाता है..कोटि-कोटि प्रणाम हिन्दी पब्लिक स्फीयर. मीडिया आलोचना में भी ऐसी तरल कथा की संभावना खोज लाने के लिए. मेल का मजमून ऐसा कि जैसे गुरुदत्त की किसी फिल्म की पटकथा का कायाकल्प करके पेश किया गया हो..और नसीहत

नसीहत ये कि किसी भी सिक्के के दो पहलू हैं, आप वो भी देखिए..हजूर हम दो क्या, सिक्के के आठों पहलुओं को देखने के लिए तैयार हैं..आप दिखाएं तो सही. हमारी इंडिया टीवी सहित बाकी चैनलों से शिकायत इस बात को लेकर थोड़े ही न है कि क्या दिखा रहे हैं, दिखा ही नहीं रहे हैं इस मसले पर, इसे लेकर है..आखिर हम जैसे दर्शक हर महीने साढ़े पांच सौ टाटा स्काई पर एक्टिव इंग्लिश और कूकिंग सीखने के लिए थोड़े ही झोंकते हैं. फिलहाल आप भी पढ़िए ये लेख और गर नसीहत देने का ही इरादा बने तो सार्वजनिक रूप से दें--

इंडिया टीवी  की एंकर तनु शर्मा ने अपने अधिकारियों द्वारा उत्पीड़ित किए जाने, ऑफिस की गुटबाजी और आखिर में बिना उनके बताए बर्खास्त कर दिए जाने की स्थिति में ऑफिस के सामने ही जहर खाकर खुदकुशी करने की कोशिश की. इससे पहले उन्होंने चैनल के उन अधिकारियों का नाम लेते हुए सुसाइड नोट की शक्ल में फेसबुक पर स्टेटस अपडेट किया जिसमे इस बात को बार-बार दोहराया कि उसकी मौत के जिम्मेदार यही लोग हैं. सही समय पर अस्पताल पहुंचा दिए जाने पर फिलहाल तनु शर्मा की जान तो बच गई और अब वो अपने घर पर सामान्य होने की स्थिति का इंतजार कर रही है लेकिन इस घटना से एक ही साथ इंडिया टीवी सहित बाकी के समाचार चैनलों को लेकर कई सारी चीजें उघड़कर सामने आ गयीं.

पहली बात तो ये कि 22 जून को तनु शर्मा ने फेसबुक पर जिन अधिकारियों का जिक्र किया और बाद के बयान के आधार पर भारतीय दंड सहिता की धारा 306, 501 और 504 के तहत मामला दर्ज कर लिया गया लेकिन इसकी एक लाइन की भी खबर किसी भी चैनल पर नहीं चली. इसी समय प्रीति जिंटा-नेस वाडिया मामले को लेकर इन चैनलों पर क्रमशः अपराध, मनोरंजन और ब्रेकिंग न्यूज जैसे खबरों के अलग-अलग संस्करण लगातार प्रसारित होते रहे. तनु शर्मा का मामला इससे किसी भी रूप में कम गंभीर और झकझोर देनेवाला नहीं रहा.

दूसरा कि तनु शर्मा ने औपचारिक रूप से अपनी तरफ से कोई इस्तीफा नहीं दिया था बल्कि अपने एक सहकर्मी से मानसिक तनाव साझा करते हुए एसएमएस किया था कि वो अब इस चैनल में काम करने की स्थिति में नहीं है. इस शख्स को भेजा गया एसएमएस घूमते-घूमते एचआर डिपार्टमेंट तक गया और इसे तनु शर्मा का इस्तीफा मानकर उनकी बर्खास्तगी की चिठ्ठी तैयार कर दी गयी.
तीसरी कि तनु शर्मा के हवाले से ये बात भी सामने आयी कि पुरुष अधिकारी के साथ-साथ महिला अधिकारी ने भी उन्हें लगातार अलग-अलग तरीके से परेशान करने का काम किया. मसलन उनके कपड़े से लेकर अपीयरेंस तक पर हल्की बातें कही और जिससे असहमति जताने पर तनु शर्मा पर कार्रवाई किए जाने की धमकी दीं.

और चौथी सबसे महत्वपूर्ण बात कि इंडिया टीवी जैसे चैनल के भीतर यह सब होता रहा और इसकी जानकारी चैनल के सर्वेसर्वा और आप की अदालत के प्रस्तोता रजत शर्मा को नहीं हुई, ये बात एक ही साथ हैरान करने के साथ-साथ अफसोसनाक भी है, ये भला कैसे संभव हो सकता है ?

ये सही है कि अपने चैनल के अधिकारियों और वहां के दमघोंटू माहौल से तंग आकर तनु शर्मा ने जहर खाकर खुदकुशी करने की जो कोशिश की, उसे किसी भी रूप में जायज नहीं ठहराया जा सकता. ये सिर्फ एक टीवी एंकर की जिंदगी के प्रति हार जाने को नहीं बल्कि मीडियाकर्मी के उस खोखलेपन को भी उजागर करता है जिसके दावे देश और दुनिया के करोड़ों दर्शकों के आगे करते हैं. तनु शर्मा ने ऐसा करके सांकेतिक रूप से ही सही ये संदेश देने की कोशिश की है कि न्यूज चैनलों की दुनिया में कुछ भी बदला नहीं जा सकता और इससे पार पाने का अंतिम विकल्प आत्महत्या है जो कि सरासर गलत है. वो चाहतीं और शिद्दत से उन विकल्पों की ओर जातीं तो बहुत संभव है कि न केवल उनकी जिंदगी के प्रति यकीन बढ़ता बल्कि संबंधित अधिकारियों और यहां तक की चैनल को भी मुंह की खानी पड़ती. लेकिन ऐसा करके तनु शर्मा ने बेहद ही कमजोर और हताश करनेवाला उदाहरण पेश किया है. कानूनी प्रावधानों के तहत आगे उनके साथ जो भी किया जाएगा, निस्संदेह वह मौत से कम तकलीफदेह नहीं होगे और दूसरा कि प्रोफेशनल दुनिया में भी उनके साथ जो व्यवहार किया जाएगा, वे भी कम दर्दनाक नहीं होंगे.. लेकिन इन सबके बीच न्यूज चैनल की दुनिया की जो शक्ल हमारे सामने उभरकर आती है, वे कहीं ज्यादा खौफनाक, अमानवीय और विद्रूप हैं.

तरुण तेजपाल और महिला पत्रकार यौन उत्पीड़न मामले में टीवी परिचर्चा ( नबम्वर 2013,प्राइम टाइम, एनडीटीवी इंडिया) के दौरान बीइए ( ब्रॉडकास्ट एडिटर्स एसोसिएशन) के महासचिव एन.के. सिंह ने कहा था कि क्या लड़की तंग आकर सीधे पंखे से झूल जाए तभी माना जाएगा कि उसका शोषण हुआ है, क्या हम इतने असंवेदनशील हो गए हैं ? एन.के.सिंह का पंखे से झूलने का आशय आत्महत्या की कोशिश की तरफ बढ़ने से था और दुर्भाग्य से तनु शर्मा ने ये बताने के लिए कि उनका उत्पीड़न किया जा रहा है, वही कदम उठाया..लेकिन बिडंबना देखिए कि ऐसा किए जाने पर भी इंडिया टीवी तो छोड़िए, दूसरे किसी चैनल ने भी एक लाइन की स्टोरी नहीं चलायी. इसी बीइए की तरफ से किसी का कोई बयान नहीं आया और न ही चैनल के रवैये की भर्त्सना की गयी. टेलीविजन के नामचीन चेहरे जो 16 दिसंबर की घटना से लेकर तरुण तेजपाल मामले में लगातार बोलते-लिखते आए, इस मामले में बिल्कुल चुप्पी साध ली. इनमे से अधिकांश जो छोटी से छोटी घटनाओं को लेकर अपनी फेसबुक वॉल पर अपडेट करते रहे हैं, एक-दो को छोड़कर इस पर एक लाइन तक लिखना जरूरी नहीं समझा.

न्यूज चैनलों  का आमतौर पर पैटर्न ये है कि कोई एक घटना पर चलायी गई खबर अगर टीआरपी ट्रेंड में फिट बैठ जाती है तो उसके प्रभाव में उसी मिजाज की एक के बाद एक खबरें प्रसारित होनी शुरु हो जाती है. तब धीरे-धीरे स्थिति ऐसी बनती है कि जैसे देशभर में इसके अलावा कुछ और हो ही नहीं रहा. 16 दिसंबर की घटना से लेकर उत्तर-प्रदेश के बदायूं जिले में लड़कियों के साथ दुष्कर्म के बाद पेड़ से लटका देने की खबर आगे चलकर ऐसे ही पैटर्न बने. इंडिया टीवी की एंकर तनु शर्मा की खबर इस लिहाज से भी लगातार चलनी चाहिए थी कि ठीक इसी समय प्रीति जिंटा- नेस वाडिया को लेकर लगातार खबरें प्रसारित होती रहीं जो कि अब भी जारी है..इसके बहाने इस बात पर भी चर्चा होनी शुरु हो गयी कि हाइप्रोफाइल और सिनेमा की दुनिया में स्त्रियों की आजादी कितनी बरकरार है ? ग्लैमर और हाइप्रोफाइल की इस दुनिया तक तो चर्चाएं होतीं रही लेकिन ये कभी टेलीविजन तक खिसककर नहीं आयीं. तनु शर्मा मामले को स्त्री-शोषण, उत्पीड़न और ग्लैमर की चमकीली दुनिया के भीतर की सडांध की बहस से बिल्कुल दूर रखा गया...और ये संयोग न होकर समाचार चैनल उद्योग की रणनीति का हिस्सा है.

इससे पहले भी हेडलाइंस टुडे की मीडियाकर्मी सौम्या विश्वनाथन की आधी रात ऑफिस से लौटते हुए संदेहास्पद स्थिति में मौत हो गई, सबसे तेज होने का दावा करनेवाले इस मीडिया संस्थान ने घंटों एक लाइन तक की खबर नहीं चलायी जबकि पूरा मामला श्रम कानून के उल्लंघन का था. स्टार न्यूज की सायमा सहर ने अपने ही सहकर्मी पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया और मामला महिला आयोग से लेकर हाई कोर्ट तक गया लेकिन कभी एक लाइन की खबर नहीं चली. तनु शर्मा सहित ये वे घटनाएं हैं जिसे लेकर कोर्ट और पुलिस में बाकायदा मामला दर्ज है, जिन पर खबरें प्रसारित किए जाने पर यह सवाल भी नहीं किया जा सकता कि इन्हें महज कानाफूसी के आधार पर प्रसारित की गई है..लेकिन न्यूज चैनलों के इस रवैये को आपसी समझदारी कहें या अघोषित करार कि देश-दुनिया की छोटी से छोटी घटनाएं जिनमे एलियन गाय का दूध पीते हैं जैसे सवाल से टकराने से लेकर सांसद के घर कटहल चोरी होने तक की घटना पर खबरें प्रसारित किया जाएगा. इधर बीइए जैसी संस्था इस पर प्रेस रिलीज जारी करेगी कि ऐश्वर्या राय की शादी की कवरेज में क्या दिखाना, क्या नहीं दिखाना है लेकिन शोषण-उत्पीड़न की किसी भी तरह की घटना अपनी बिरादरी के भीतर घटित होती है तो मौन सहमति का प्रावधान होगा.

ये सवाल सिर्फ चैनलों और उसकी नियामक संस्था की नैतिकता का नहीं है बल्कि उस दोहरे चरित्र का है जहां वो कोर्ट-कचहरी, पुलिस, कानून इन सबों की मौजूदगी के बीच भी अपने को स्वतंत्र टापू मानते हैं. स्वायत्तता के नाम पर दोमुंहेपन की एक ऐसी बर्बर जमीन तैयार करते हैं जहां एक ही घटना दूसरे संस्थान या व्यक्ति से जुड़े होने पर अपराध और उन पर खबरें प्रसारित करना जनसरोकार का हिस्सा हो जाता है जबकि वही घटना स्वयं मीडिया संस्थान के भीतर होने पर घरलू मामला बनकर चलता कर दिया जाता है. ये कितनी खतरनाक स्थिति है इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि चैनल पर तो छोड़िए, टेलीविजन के भूतपूर्व चेहरे और अधिकारी जो रोजमर्रा मीडिया नैतिकता और सरोकार की दुहाई सोशल मीडिया सहित अलग-अलग मंचों से दिया करते हैं, वो भी ऐसे मामले में चुप्प मार जाते हैं कि कहीं इसकी आंच में संभावनाओं के रेशे न झुलस जाएं. चैनलों के आपसी सांठ-गांठ सहित व्यक्तिगत स्तर की चुप्पी हमें न्यूज चैनलों की जिस दुनिया से परिचय कराता है, उसकी छवि अपराधी के आसपास की बनती है, सरोकारी की तो कहीं से नहीं..




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