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अशोक वाजपेयी के जनसत्ता के कभी-कभार कॉलम में साहित्य से अन्तर्लोक के गायब हो जाने की चिंता पर जब मैनेजर पांडेय ने चुटकी ली तो उनके साथ करीब सवा सौ लोगों ने भी मजे लिए। सब इस बात को लेकर वाजपेयीजी का मजाक बना रहा था कि वो साहित्य में दुनियाभर की समस्याओं को खोजने के बजाय अन्तर्लोक खोज रहे हैं। मतलब साफ है कि हिन्दी साहित्य का एक बड़ तपका है जो साहित्य को जीवन की वास्तविक चीजों से जोड़कर देखना चाहता है, वो चाहता है कि साहित्य जीवन से कोई अलग चीज न हो। इसलिए इनके बीच जो कोई भी साहित्य को किसी अलग आइवरी टावर पर बिठाने की कोसिश करता है, उसे आलोचना का शिकार होना पड़ता है। लेकिन
इस जीवन की वास्तविकता से क्या तुक है। क्या साहित्य में बाकी चीजों की तरह ये भी पहले से ही तय कर लिया गया है कि जीवन की वास्तविकता फलां-फलां होगी, व्यक्ति चाहे जो भी हों और परिस्थितियां चाहे जो भी हो। यानि साहित्य में वास्तविकता हमारे जीवन से न लेकर अलग से एक पैकेज के रुप में ली जा जाती है। मुझे साहित्य अकादमी में इस बात पर हैरत हुई कि क्या लेकचरशिप की पक्की नौकरी पाया श्रोता औऱ क्या कम से कम गेस्ट बेसिस पर नौकरी के लिए मार कर रहा श्रोता वक्ताओं के बाजार विरोधी बयान पर समान रुप से संतोष जाहिर कर रहा है। उसे भी लग रहा है कि सही बात है, बाजार है ही बहुत गड़बड़ चीज। लेकिन असल सवाल तो है कि साहित्य में जिस वास्तविकता और अनुभूत सत्य की बात की जाती है क्या बाजार उससे परे है। साहित्य ऐसे कैसे मानकर चलता है कि हमारे जीवन में बाजार हमारी दशाओं को तय ही नहीं करता। ट्रक की ट्रक हीन्दी की किताबें लिखी गयीं है जिसके मूल में रुपये-दो रुपये से लेकर हजार रुपये तक के अभाव के उपर कथानक गढ़े गए हैं।
कोई अगर ये कह दे कि बाजार से उसका कोई लेना-देना नहीं है। साहित्य पढ़-पढ़ाकर न तो वो बाजार को प्रभावित कर रहा है और न ही वो खुद बाजार से प्रभावित हो रहा है, कम से कम साहित्य ने उसे इतनी तो समझ दे ही दी है कि वो बाजार से दूर रहे तो या तो वो पाखंड रच रहा है या फिर दिमागी रुप से हारा हुआ इंसान है। तीसरी स्थिति ये भी हो सकती है कि वो अपने को इनोसेंट और मासूम कहलवाने की फिराक में हो। हिन्दी समाजी में एक ये भी बीमारी है कि वो हर बात में अपने को मासूम कहलवाना चाहते हैं। इसके लिए जरुरी होता है कि वो राजनीति में न होने की बात करें औऱ बाजार से अलग होने की बात करें। वो दुनियाभर की बातों को जानने का दावा करते हुए अंत में ये जोड़ देंगे कि- बाकी हमसे बाजार और पॉलिटिक्स की बात मत कीजिए। अपनी मां की भाषा में कहूं तो नौ जानते हैं लेकिन छह जानते ही नहीं। समझदार आदमी में तो एक ही बार में खारिज कर देगा कि अगर आज आप राजनीति और बाजार नहीं जानते तो फिर जानते क्या है ।
दरअसल हिन्दी समाज में बाजार को लेकर जितने तरह के भ्रम और विरोध पैदा किए गए हैं उससे आनेवाली पीढ़ी मुक्त ही नहीं हो पाती। वो इसे पुश्तैनी संस्कार मानकर चलती है। ये वो संस्कार हैं जो तमाम तरह की आधुनिकता के बावजूद बेन्टली की टाई लगाने के पहले जनेउ पहनने पर विवश करती है। हिन्दी समाज की नई पीढ़ी बाजार को लेकर कुछ इसी तरह का रवैया अपनाती है। जबकि सच्चाई ये है कि साहित्य और हिन्दी जितनी तेजी से बाजार के बीच जा रही है औऱ शुरु से ही जा रही है उतनी तेजी से उसका विरोध कभी रहा ही नहीं। लिखने के स्तर पर इसलिए रहा कि लोगों ने आपसी समझौते से तय कर दिया है कि बाजार के विरोध में लिखने से ही साहित्य का बाजार गर्म रहेगा, नहीं तो हम सब लालाओं के मैल करार दिए जाएंगे। लेकिन जीने के स्तर पर देखिए, जरा खोजकर बता दीजिए हमें हिन्दी का कौन आदमी बाजार विरोधी है औऱ बाजार के आगे नतमस्तक नहीं है।
नोट- पिछली पोस्ट में लोगों ने बाजार का अर्थ दूकान और मॉलभर से लिया जबकि ये बाजार का बहुत ही छोटा रुप है। बाजार जितना भौतिक रुप में मौजूद है, उतना ही अवधारणात्मक औऱ जीवन जीने के लिए एक पैटर्न भी। इस स्तर पर आकर यह चुनाव का मुद्दा हो जाता है कि हम कितना जरुरत के मुताबिक बाजार में रहें औऱ कितना पैटर्न के स्तर पर।....
https://taanabaana.blogspot.com/2008/09/blog-post.html?showComment=1220242920000#c6752599282666383466'> 1 सितंबर 2008 को 9:52 am बजे
ji bahut achcha lika hai aapne
ye padhne par dimag me sachmuch halchal paida ho gayee.kyonki maine bhi kabhi is baare me socha nahi tha.
https://taanabaana.blogspot.com/2008/09/blog-post.html?showComment=1220284500000#c5100161501468937832'> 1 सितंबर 2008 को 9:25 pm बजे
''बाजार जितना भौतिक रुप में मौजूद है, उतना ही अवधारणात्मक औऱ जीवन जीने के लिए एक पैटर्न भी। इस स्तर पर आकर यह चुनाव का मुद्दा हो जाता है कि हम कितना जरुरत के मुताबिक बाजार में रहें औऱ कितना पैटर्न के स्तर पर।....''
बाजार के इस वैकल्पिक रूप को अगली पोस्ट में कृप्या और स्पष्ट करें।