मेरे एक ब्लॉगर साथी ने कहा कि अविनाश और यशवंत पर कोई भी लिख दे, उसकी पोस्ट हिट हो जाएगी और उसके ब्लॉग को लोग जानने लगेंगे। तो क्या एक तरीका ये है कि जितने भी नौसिखुए ब्लॉगर हैं जिनकी पोस्ट इस अंतर्जाल में खो जाती है, वो लोगों को अपनी ओर ध्यान खींचने के लिए अविनाश, मोहल्ला, भड़ास और यशवंत के उपर लिखें।
हो सकता है हिन्दी ब्लॉगिंग की दुनिया में यह बात एक फार्मूले की तरह काम आए। वैसे भी इस भीड़-भाड़ वाले इलाके में लोगों की समझ यही बनती है कि जितनी उंची हांक लगाओगे, ग्राहक उतने अधिक आएंगे। ये अलग बात है कि बाद में तुम्हारा माल देखकर बिदक जाएं। लेकिन एक बार अटेंशन तो बनेगा ही। यानि अब तक साहित्य या मीडिया में हम जिस प्रभाव की बात करते रहे हैं वो अब एटेंशन में शिफ्ट हो गया है।चैनल भी ऐसा ही कुछ करते हैं। हो न हो ब्लॉगर की मानसिकता भी इसी को देखकर बनी है। जरुरी नहीं कि सबकी, बहुत थोड़े की ही, लेकिन बनी तो सही है जिसमें मैं भी शामिल हूं।
आप सबको याद होगा कि इंडिया टीवी ने इंडस्ट्री में इन्ट्री कैसे मारी थी। वो भी लोगों पर एकदम से अपना प्रभाव बनाने की फिराक में नहीं थी। वो सिर्फ इतना चाहती थी कि एक बार लोग उनकी तरफ एटेंशन लें।॥और फिर देखिए की लोगों के जेहन में एक नाम बस गया कि इंडिया टीवी बोलकर भी कोई चैनल है। आप उसकी खबरों की गुणवत्ता और कंटेंट पर मत जाइए। लेकिन इतना तो आप भी समझते हैं कि जब भी बात की जाती है कि- अजी अब तो खबरों के नाम पर सांप-संपेरे, भूत-प्रेत और सेक्स दिखाए जाते हैं तो किस चैनल पर अटेंशन बनाकर बात की जाती है। आप देखिए कि कैसे उसने बातों ही बातों में खबर के लिए मुहावरा ही बदल दिया और हम इस्तेमाल करने लग गए। अच्छा- खराब छोड़ दीजिए, लेकिन इस चैनल ने अपना एक अटेंशन तो बनाया ही है लोगों के बीच में। आज वो टीआरपी के खेल में शामिल हैं, तमाम फूहड़पन के बाद भी तो आप कह सकते हैं कि उसने अपना प्रभाव जमा लिया है।
चैनल भी इस बात को समझने लगी है कि अब जो ऑडिएंस की पीढ़ी तैयार हो रही है उसमें फ्लोटेड ऑडिएंस की संख्या ज्यादा है। आप कह सकते हैं कि ऑडिएंस अब रिलॉयवल नहीं रह गए हैं। जहां आपने इधर-उधर किया या फिर आपने नहीं तो किसी और चैनल ने बेहतर तरीके से इधर-उधर कर दिया तो ऑडिएंस आपके चैनल से तुरंत कूदकर कहीं और चली जाएगी। अब ऑडिएंस की वो पीढ़ी धीरे-धीरे खत्म होती जा रही है जो कि सालों से एक ही चैनल पर अपनी पसंद बनाए हुए है। ऐसे में चैनल प्रभाव से ज्यादा अटेंशन पर काम करता है। प्रभाव जिसका कि असर लम्बे समय तक होता है और इसके बदौलत चैनल लंबी पारी खेल सकता है, जबकि अटेंशन का संबंध तात्कालिकता से है। जिस भी चैनल ने अपने यहां तात्कालिता को डाला, ऑडिएंस तुरंत वहां शिफ्ट हो जाएगी। चैनलों के लिए तात्कालिता एक जरुरी और निर्णायक एलीमेंट है।इसलिए आप देखेंगे कि चैनल प्रभाव से ज्यादा एटेंशन पर काम करते हैं। रोज के अटेंशन के लिए रोज अटेंशन एलिमेंट खोजने होंगे। इसलिए खबरों के नाम पर आपको जो कुछ भी हमें नसीब होता है वो स्वाभाविक ही है।
प्रभाव, जिसके लिए होमवर्क करने होते हैं, खबरों के प्रति संजीदा होना होता है, एक-एक खबर पर रिसर्च करना होता है, इनपुट्स डालने होते हैं। अच्छी-खासी मेहनत तरनी पड़ती है। जबकि सच्चाई ये है कि हिन्दी चैनल दूसरे किस्म की मेहनत के अभ्यस्त हो चले हैं। वो एक पैकेज बनाने के लिए फिल्मों की पचास सीडी देख जाएंगे, एफेक्ट्स डालने के लिए कलर, टोन और पूरी म्यूजिक गैलरी घूम आएंगे। मोन्टाज के लिए पूरी शिफ्ट लगा देंगे। ऐसा नहीं है कि चैनल्स मेहनत कम करते हैं, बल्कि पहले से कई गुना ज्यादा करते हैं। नहीं तो खबरों में इतनी रोचकता कहां से आने पाती। लेकिन वो एसेंस आपको नहीं मिलेंगे जिसके अभाव में आप निराश होते हैं। तो आप कह सकते हैं कि चैनल अटेंशन के लिए काम करते हैं, प्रभाव के लिए नहीं, और फिर स्थायी प्रभाव के लिए तो बिल्कुल भी नहीं। यहां एक झलक आप देख लीजिए हमें की होड़ है, बस दस सेकेंड।
तकनीकी चकमक के साथ-साथ अटेंशन का एक तरीका और भी है। कंटेंट के स्तर पर क्रिकेट, सेक्स, भूत-प्रेत, धर्म और स्टंट तो है ही। ये सारी ऐसी चीजें हैं जिसके लिए कोई हिन्दी चैनल कुछ भी न करे, सिर्फ अंग्रेजी चैनलों से मटीरियल लेकर हिन्दी में अनुवाद भर कर दे तो भी ठीक-ठीक ऑडिएंस जुटा लेगी। और ये हो भी रहा है। ये फिक्स एलीमेंट हैं। जो भी इसे चलाएगा, उस पर लोगों का अटेंशन तो बनेगा ही। बहुत नहीं भी तो और खबरों से ज्यादा ही। जैसे इमैजिन ने यह सोचकर रामायण चलाया कि चाहे कितना भी सामाजिक बदलाव आ जाए, हमेशा एक पीढ़ी रहेगी जो कि रामायण देखेगी ही, कुछ वैसा ही। इस चक्कर में आप देखेंगे कि जिन सैंकड़ों चैनलों के होने के होने पर सैंकड़ों अलग-अलग मुद्दे और खबरें होनी चाहिए, वो सबके सब फिक्स एलीमेंट की तरफ चले गए हैं। क्रिकेट की खबर है तो सब पर वही, क्राइम है तो सब पर वही। थोड़ा बहुत ट्रीटमेंट बदलता है जिसे कि आप अटेंशन एलीमेंट के तौर पर समझते हैं।
तो क्या अविनाश, यशवंत, मोहल्ला और भड़ास चैनल के फिक्स एलीमेंट की तरह हो गए है। क्या ये चैनलों की तरह क्रिकेट, क्राइम और सेक्स एलीमेंट की तरह हैं। इन पर बात करने का मतलब है अपने ब्लॉग को लेकर अटेंशन की मानसिकता में शामिल हो जाना। इन पर कोई भी लिख दे और कैसे भी लिख दे, गलत स्पेलिंग के साथ, अशुद्ध वाक्य के साथ, कमजोर फैक्ट्स के साथ रीडर्स सुधारकर अपनी सुविधानुसार पढ़ लेगी। तो क्या फिर हिन्दी ब्ल़ॉगिंग भी हिन्दी चैनलों की राह पर चल निकला है।
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https://taanabaana.blogspot.com/2008/05/blog-post_27.html?showComment=1211857620000#c3651965524801594293'> 27 मई 2008 को 8:37 am बजे
लग तो कुछ ऐसा ही रहा है विनीत भाई.
पर हम जैसे पाठकों पर इसका कोई इफेक्ट नहीं पड़ता जो ना तो टीवी चैनल्स देखते हैं ना ही मोहल्लों के पचड़ों में पड़ते हैं.
अब आपका पोस्ट फायरफाक्स पर सही दिख रहा है. पोस्ट हमेशा लेफ्ट अलाइन में ही रखिए आपने जस्टीफाईड कर दिया था.
https://taanabaana.blogspot.com/2008/05/blog-post_27.html?showComment=1211858880000#c2350689770013882479'> 27 मई 2008 को 8:58 am बजे
सही नब्ज पकडी विनीत भाई।
https://taanabaana.blogspot.com/2008/05/blog-post_27.html?showComment=1211865480000#c4923655639470452956'> 27 मई 2008 को 10:48 am बजे
बहुत सही कहा है आपने.. अभी कल तक मेरी लगभग हर पोस्ट 45 से 65 तक हिट पाती थी वो इस प्रकरण के बाद अभी घट कर 35-40 हो गई है.. मगर मैं अपनी हिट बढाने के लिये उन बेकार बातों पर कुछ भी नहीं लिखने वाला हूं.. खैर कब तक ऐसा चलेगा? एक बार ये सब ठंढा होगा तो पाठक फिर उसी तरफ जायेंगे जिधर उनके पसंद की चीजें मिलेगी..
https://taanabaana.blogspot.com/2008/05/blog-post_27.html?showComment=1211868600000#c6760004538076159453'> 27 मई 2008 को 11:40 am बजे
सही कहा है विनीत भाई आपने, लेकिन मेरा मानना है कि हरेक "ग्राहक" को खुश नहीं रखा जा सकता, इसलिये चिठ्ठाकारों को किन्ही एक-दो विषयों पर ज्यादा ध्यान देकर अपने चिठ्ठे को उत्कृष्ट बनाने का प्रयास करना चाहिये, जब उसका खुद का एक "रीडर बेस" तैयार हो जाये फ़िर धीरे-धीरे अन्य विषयों पर हाथ डालना चाहिये। तात्कालिकता की चाह होना एक मानवीय कमजोरी है, वह तो रहेगी ही लेकिन टिकाऊ माल तैयार करना हरेक की जिम्मेदारी है…
https://taanabaana.blogspot.com/2008/05/blog-post_27.html?showComment=1211869200000#c6586683162663826926'> 27 मई 2008 को 11:50 am बजे
विनित जी,
मुझे भी कुछ ऐसा ही लग रहा है. लेकिन हिन्दी ब्लोगर्स को अपनी मौलिक लेखो को लिखते रहनी चाहिये. अभी कुछ दिनॊ से ऐसा लग रहा है कि ये ब्लोग और ब्लोगवाणी व्यक्तिगत आरोप प्रत्यारोप का एक माध्यम बन गया है. एक अदना सा पत्रकार इतना भी बडा नही हो गया है कि ब्लोगवाणी पर केवल उनकी राम कहानी नजर आए. बाकि ब्लोगर्स से गुजारिस है की अपनी मौलिकता बनाय रखे. ब्लोगवाणी से भी गुजारिस है कि वो ऐसे व्यक्तिगत सम्वादो का रिविव (review) करें. पाठक गण पक गये है अविनाश और यशवन्त कि राम कहानी सुन कर.
https://taanabaana.blogspot.com/2008/05/blog-post_27.html?showComment=1211877240000#c8876695825941041514'> 27 मई 2008 को 2:04 pm बजे
सहमत ही नहीं हूं बल्कि कहता रहा हूं। बस, संदर्भ के तौर पर आपने जो दो नाम लिए हैं उनमें अभी तक मोहल्ला को नहीं गिना ।
https://taanabaana.blogspot.com/2008/05/blog-post_27.html?showComment=1211905980000#c7576158277012997678'> 27 मई 2008 को 10:03 pm बजे
.........और आप इंडिया टीवी टाइप के ब्लॉगों के लिंक अपने साइडबार में लगा कर और पाठकों को घटिया चीजें पढ़ने का रास्ता बता रहे हैं।