
BUZZ पर अभी ये लाइन लिखता ही हूं कि सचिन के महिमा गान के आगे टेलीविजन पर रेल बजट गया तेल लेने कि देखता हूं कि IBN7 का नजारा ही बदला हुआ है। बजट के सेट पर बैठे देश के बौद्धिक और आक्रामक अंदाज के मीडियाकर्मी आशुतोष डंके की चोट पर कहते नजर आते हैं कि आखिर ममता बनर्जी ने रेल बजट में ऐसा क्या कह दिया कि उसे घंटे भर तक दिखाया जाए। ये पुरानी सोच/तरीका है कि बजट पर या ऐसे प्रधानमंत्री को घंटों दिखाते रहो। आशुतोष को लग रहा होगा कि उन्होंने आज टेलीविजन इतिहास में ऐसा कहकर क्रांति मचा दी हो और अब तक ऐसी बात कह दी है कि इसके पहले न तो किसी ने कल्पना की होगी और न किसी ने कहने की हिम्मत की होगी। वैसे भी जिस रेल मंत्रालय के आगे रोजाना सैकड़ों पत्रकार कोटा टिकटों के लिए मारामारी करते फिरते हैं, उसी मंत्रालय की मुखिया ममता बनर्जी के खिलाफ में बोलना, उसे बाइपास कर देना कोई हंसी-ठठा का खेल तो है नहीं। इस हिसाब से तो आशुतोष ने जरूर क्रांति मचा दी है। लेकिन जहां तक मेरी जानकारी है, उन्होंने ये लाइन राजदीप सरदेसाई के वक्तव्य से मार ली है। ये राजदीप का डायलॉग रहा है कि जरूरी नहीं कि हर बुलेटिन प्रधानमंत्री से ही खुले, जिसकी चर्चा नलिन मेहता ने अपनी किताब इंडिया ऑन टेलीविजन में की है। आशुतोष को क्रेडिट बस इतना भर है कि एक स्केल नीचा करके उसमें रेलमंत्री को फिट कर दिया।
बहरहाल आशुतोष की बातों को हम जैसे जो भी लोग गौर से सुनते हैं, हर बात उनके सोचने के तरीके की दाद देते है। ये अलग बात है कि हममें से कुछ छिटक कर तरस भी खाते हैं कि इतनी बड़ी जिम्मेदारी वाली जगह पर पहुंच कर भी क्या अल्ल-बल्ल सोचते और बोलते हैं। इस कड़ी में कल तो हद ही हो गयी – उनका ये कहना कि रेल बजट में ऐसा क्या कह दिया ममता बनर्जी ने? अब उनको कौन समझाये कि आपकी टीआरपी भले ही तीन घंटे तक सचिन गाथा चलाने से आ जाए लेकिन इससे देश के आम आदमी की प्राथमिकता बदल नहीं जाएगी, प्रभु। संभव है कि आप सचिन के दोहरे शतक से जितने ज्यादा खुश हैं, उससे कई गुना खुश ये गरीब लोग होंगे। आज अगर इस मौज में पाउच और पउआ भी पी लें तो होश आने पर जरूर जानना चाहेंगे कि बलिया, भटिंडा, सहारनपुर, बनारस, दादर के लिए रेलमंत्री ने कौन-कौन सी ट्रेन दी, यात्री-सुविधा के नाम पर कौन-कौन सी घोषणाएं की? माफ कीजिएगा, तमाम तरह के मल्टीनेशनल ब्रांडों और भौतिक सुविधाओं के बीच जीनेवाला ग्रेट इंडियन मिडिल क्लास अभी भले ही सचिन के गुरुर में चूर हो रहा हो लेकिन उसके ऐसा करने से उसकी जरूरतें बदल नहीं जातीं। आपने जो कहा, आपको अंदाजा नहीं कि उसके कितने बड़े अर्थ हैं? आपने ऐसा कहकर अपने को तो जरूर जस्टीफाय कर लिया, हम दर्शकों को अपनी प्रायॉरिटी भी समझा दी – लेकिन ऐसा कहकर आज अपने को बेपर्द जरूर कर लिया।
ऐसा नहीं है कि ढाई घंटे से अगर हम जैसा टेलीविजन का कट्टर दर्शक भी, जो कि खुलेआम कहता है कि जो भी दिखाओगे देखेंगे, आज पहली बार न्यूज चैनल्स देखते हुए बुरी तरह पक जाता है, अंदर से अघा जाता है कि बहुत हो गया, अब और नहीं तो खुद न्यूज चैनल के लोग पक नहीं गए होंगे। इसकी एक मिसाल खुद आशुतोष के सहयोगी संदीप चौधरी के ही बयान को लीजिए, जो ये कहते है कि पिछले ढाई घंटे से देख रहा हूं कि न्यूजरूम में सिर्फ सचिन को लेकर खबरें हो रही हैं, बातें हो रही है। क्या इस ढाई-तीन घंटे में देश में कोई दूसरी घटनाएं नहीं हुईं। ठीक है इतिहास रचा है तो दस मिनट दिखाओ, बीस मिनट दिखाओ, पचास मिनट दिखाओ… पौने तीन घंटे तक सचिन? आशुतोष ने जिस तरह से रेल बजट के महत्व को नकारा, उसके जबाब में संदीप चौधरी का मानना रहा कि क्या रेल बजट में सचमुच ऐसी कोई बात नहीं है कि उसे दस मिनट भी दिखाया जाए। मेरी पोस्ट को पढ़कर इस चैनल के लोग मेरी मासूमियत का उपहास उड़ाएं, उससे पहले ही ये साफ कर देना होगा कि ये सब उन्होंने पहले से ही तय कर लिया होगा। तभी तो हम ऑडिएंस को अटपटा लगे कि बजट के सेट पर वो सचिन की बात कर रहे हैं – इससे पहले ही एंकर ने घोषणा कर दी कि बजट के सेट पर सचिन और क्रिकेट की बात, क्या ये इतना जरूरी मसला है? ये दरअसल वही मसला है, जैसे हम जैसी ऑडिएंस जो कि पिछले ढाई घंटे से एक ही चीज देखकर पक गये, वैसे ही चैनल के ये लोग एक ही एंगिल पकड़कर दिखाने से ऊब गये तो कुछ अलग करने की सोची। लेकिन नयेपन और बेहूदेपन का फर्क तो एक औसत दर्जे का आदमी भी समझता ही है।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि आज का ये दिन क्रिकेट के इतिहास में ऐतिहासिक दिन है। आशुतोष के जुमले का इस्तेमाल करूं, तो पिछले चालीस साल में जो नहीं हुआ आज हो गया, जबकि बजट में वही सारी पुरानी बातें। अब प्रधानमंत्री के गर्व का एहसास और बधाई देने के बाद संभव हो कि इसे आज की तारीख को गजट में शामिल कर नेशनल डे के तौर पर घोषित कर दिया जाए। वैसे भी इस देश को दो ही चीजें सुपर पावर साबित कर सकती हैं – एक जीडीपी और दूसरा क्रिकेट। लेकिन टेलीविजन के इतिहास में आज के दिन को ऐतिहासिक कुछ दूसरे अर्थों में करार दिया जाना चाहिए। एक तो ये कि मुझे नहीं लगता कि अभी से लेकर आनेवाले 12-14 घंटों तक किसी एक खिलाड़ी को लेकर जितने कवरेज होंगे, पैकेज बनेंगे और बुलेटिन पढ़े जाएंगे, अब तक किसी को लेकर किया गया होगा। दूसरा कि हिंदी टेलीविजन के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ होगा कि देश के राष्ट्रीय महत्व की सबसे बड़ी खबर से बुलेटिन खुलने के बजाय एक खेल की खबर से खुली होगी। छिटपुट तौर पर ऐसा अकस्मात जरूर हुआ होगा लेकिन जिस रेल बजट को कवर करने की तैयारी चैनल दस दिन पहले से शुरू कर देते हैं, आपाधापी मची रहती है, स्पेशल टीम गठित किये जाते हैं, उन सबको धता बताकर एक खेल इन सबके ऊपर हावी हो जाता है। आशुतोष ने तो जरूर घोषणा की लेकिन उसके साथ बाकी चैनलों ने भी यही किया। इससे न्यूज चैनलों के रुझान के साथ-साथ लोगों का रुझान भी समझा जा सकता है? क्या वाकई सचिन के आगे रेल तेल लेने चला गया। मीडिया संस्थानों में जो मास्टर साहब लोग खबरों की सीक्वेंस और घूम-फिरकर राष्ट्रीय और राजनीतिक खबरों को प्रायॉरिटी देने की कोशिश करते हैं, मुझे लगता है कि उन्हें अपने पाठ जल्द से जल्द बदलने चाहिए।
टेलीविजन ने आज देश की कई बड़ी और जरुरी खबरों के बीच सचिन को लेकर जो एकतरफा महौल रचने का काम किया है, ऐसे में अगर लिखने और विमर्श करने के स्तर पर हम जैसे सचिन के फैन को जरूर संदेह की नजर से देखा जाएगा। हमें लताड़ा जाएगा। हमें फ्रस्ट्रेट और कुंठित करार दिया जाएगा। तब हम निहत्थे होंगे। हमारे पास तब कोई ऐसा साधन नहीं होगा, जिससे हम साबित कर सकें कि सचिन, आपको पता नहीं कि हमने आपकी खातिर बगीचे के पूरे भिंडी के पौधे को सटासट अपनी देह पर बाबूजी के हाथों टूटने दिया। हमने आपके लिए कई एग्जाम्स खराब किये, हम आपके लिए कई बार लोगों से लड़ भिड़े। किसी के प्रति प्रतिबद्धता न साबित करने की ये असहाय किंतु खतरनाक स्थिति है कि जो कुछ भी है वो मन में है, दिल में है, प्रतिक्रिया के स्तर पर अकेले कमरे में बजायी गयी चंद तालियां हैं या फिर मेसटेबुल पर खुशी में एकाध रोटी ज्यादा भर खा लेना है। लेकिन कहीं ये उससे भी खतरनाक स्थिति तो नहीं जो कि देश की जनता की सचिन के प्रति प्रतिबद्धता के नाम पर लगातार तीन घंटे से टेलीविजन चैनलों पर जो दिखाया गया या दिखाया जा रहा है? यहां बात सचिन की हो रही है तो संभव है कि उनके प्रति अतिशय लगाव की वजह से आप इस बात को बंडलबाजी करार दें लेकिन अतिरेक में जीनेवाले इस भारतीय समाज में खेल के साथ-साथ राजनीति, विकास, धर्म, परंपरा सहित दूसरी बाकी चीजों को भी इसी फार्मूले के तहत देखा-समझा और जिया जाता है और फिर हम धार्मिक और राजनीतिक कट्टरता का समाज रचते चले जाते हैं। ये इसी तरह की मुश्किल का विस्तार है, जहां एक मुस्लिम को इस देश का प्रतिबद्ध नागरिक साबित करने में होती है, उसे धार्मिक तौर पर निरपेक्ष साबित करने में होती है। एक दलित को मुख्यधारा की मान्यताओं के बीच अपने अधिकार रेखांकित करने में होती है। टेलीविजन फैनकल्चर के बीच प्रतिबद्धता का ये उन्माद कैसे पैदा करता है और अतिरेक में जीनेवाले इस समाज को और सुलगाता है, इसकी मिसाल आज से ज्यादा शायद ही किसी दिन मिल पाये। उसके बाद इस उन्माद और अतिरेक के वातावरण में कैसे अपने-अपने मतलब की चीजें स्टैब्लिश की जाती है, इसे समझने के लिहाज से भी आज के टेलीविजन की ये खबर मिसाल के तौर पर काम में आएगी।
सचिन के इस दोहरे शतक को लेकर उसके देवता होने की बात एक खबर की शक्ल में बदलती जाती है। सबसे पहले आजतक ने उसे क्रिकेट का भगवान करार दिया। इसी नाम से स्पेशल स्टोरी चलायी। अब ये भगवान शब्द चल निकला। इस सिंड्रोम से एनडीटीवी भी अपने को बचा न पाया। एंकर ने अपने बुलाये एक्सपर्ट से सचिन के भगवान होनेवाली बात पूछ ली। चैनल के स्तर को ध्यान में रखकर एक्सपर्ट ने जबाब दिया – इसे आप एक बेहतर इंसान के तौर पर कहिए, अलग से भगवान कहने की जरूरत नहीं है, इंसान को इंसान ही रहने दीजिए न। हां ये जरूर है कि उसकी मां को लेकर विचार कीजिए, क्या खिलाकर ऐसा बेटा पैदा किया? अब चूंकि एक्सपर्ट ने चैनल के स्तर को समझा, इसलिए जरूरी था कि वो बाकी चैनलों की तरह फोकना (बलून लगा बाजा) बजाने के बजाय कुछ अलग कहते – इसलिए कहा कि सचिन से सिर्फ खेलने की ही बात नहीं बल्कि उनसे डिसीप्लीन, किसी भी तरह का घमंड नहीं होने जैसी बातें सीखनी चाहिए। बात तो सब करेगा, लेकिन सुबह पांच बजे दौड़ने कहिए तो कोई तैयार नहीं, ये सीखना होगा। यहां भगवान वाला सिंड्रोम थोड़ा पिचकता नजर आया। लेकिन इंडिया टीवी के रहते ये भला कैसे पिचकता? इंडिया टीवी की स्पेशल स्टोरी रही – 200 का देवता। इस चैनल ने सचिन को देवता करार देने के साथ ही 200 संख्या को भी स्टैब्लिश करने की कोशिश की। न्यूज चैनलों में तारीखों और संख्या को स्टैब्लिश करने की बहुत मारामारी मची रहती है। ये भी 9/11 से उधार लिया पैटर्न है। हेडर में बार-बार आता है – 5 मिनट, 5 इंच का देवता। पीछे से जोधा-अखबर का गाना, अजीबो शान शहंशाह… इस चैनल की छवि है कि ये दुनिया की किसी भी खबर में देवी-देवता, रहस्यमयी शक्तियों को तलाश लेती है। इन खबरों को देखनेवाली ऑडिएंस निर्धारित है। ऐसे में अगर सिर्फ सचिन की खबर को दिखाया जाता, तो बात नहीं बनती इसलिए उसे इंडिया टीवी से संस्कारित किया जाना जरूरी हो जाता है।
न्यूज 24 के लिए इस खबर को दिखाने के साथ ही बाकी चैनलों से अपनी औकात अलग भी बतानी होती है। इसलिए वो स्क्रीन को डबल विंडो काटती है। एक तरफ मैच के दौरान सचिन के शॉट्स और दूसरी तरफ चैनल की मालकिन का थकेला सचिन के साथ का इंटरव्यू। अब एकबारगी देखने से ऐसा लगता है कि सचिन मैदान छोड़कर इस चैनल की तरफ भागे हों। चैनल की कोशिश यहां ज्यादा से ज्यादा तड़का मारने की हो जाती है। पहला लक्षण हमें इस चैनल पर दिखा और बाद में फिर बाकी चैनलों पर भी। न्यूज 24 ने पुराने फुटेज बटोरे और रियलिटी शो के उस एपिसोड को स्टोरी के साथ चेंपा, जिसमें कि सचिन के साथ बाकी के क्रिकेट खिलाड़ी मौजूद थे। हेडर लगाते हैं – सचिन को बॉलीवुड का सलाम। यहां भी फुटेज को लेकर धोखा। ये उसी तरह से है कि भइया गंगा का सोता फूटा है, नये-पुराने जो भी बर्तन मिले, डाल दो। अजमेर में सचिन के नाम चादर चढ़ाये जाने की खबर से चैनल ये स्टैब्लिश करता है कि इस खुशी में देश के मुस्लिम भी शामिल हैं। जी न्यूज का आदेश है – काम छोड़ो, मास्टर को देखो।
IBN7 इस खबर से टीआरपी दूहने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता। पता कर लिया कि सचिन लता मंगेशकर को मां कहते हैं। तभी जब प्रतिद्वंद्वी चैनल ने सचिन की सास से बाइट लेनी शुरू की, तो इसने लता मंगेशकर को पकड़ा। बार-बार वही सवाल कि आप फोन करके क्या बोलेंगे, आपके बीच किस तरह का लगाव है। अब हालत ये है कि लता मंगेशकर ये कहने के अलावे कि मैं चाहूंगी वो सौ साल तक खेलें, ईश्वर उसे लंबी उम्र दे, कुछ बोलती ही नहीं। यही मौका होता है, जब कोई विवाद पैदा हो सकते हैं। आशुतोष और संदीप चौधरी पूरा दम लगा देते हैं लेकिन उनके सवाल बदलते जाते हैं लेकिन लता के जबाब वही दो-तीन। अब एंकर अपनी तरफ से पास फेंकते हैं – क्या अभी आप ये गाएंगी – सूरज है तू मेरा चंदा है तू। लता का जबाब – अभी तो मैं कुछ भी नहीं गा पाऊंगी।

इस बीच लगभग सारे चैनलों पर सचिन को लेकर किसने क्या कहा फ्लैश होते हैं, पीएम साहब का वक्तव्य स्कॉल में फिक्स हो गया है। तभी दौर शुरू होता है कि सचिन को आज कुछ नया नाम दिया जाय। मास्टर ब्लॉस्टर तो पुराना हो गया आज के दिन। इसकी पहल इंडिया टीवी की तरफ से होती है – सचिन टूहंड्रेडडुलकर। हां, आज से सचिन का यही नाम। पहली बार लगा कि एनडीटीवी इंडिया ने सीधे इंडिया टीवी की नकल मारी है और उसने नाम दिया – सेंचुरकर… न्यूज24 पर खान विवाद सवार है, इसलिए माइ नेम इज सचिन।
टेलीविजन चैनलों पर सचिन को लेकर खबर अब कुछ भी नहीं है। क्योंकि खबर एक विस्फोट की तरह हुई, जिसकी आवाज देश के बच्चे-बच्चे ने सुनी। लेकिन चैनलों का इसे गींजना-मथना जारी है। अब हर कोई दूर की कौड़ी लाने में जुटा है। टेलीविजन स्क्रीन पर आंख गड़ाये रहने पर मुझे चैनल चाहे जो भी हो लग रहा है – हर कोई टेप सेक्शन की तरफ भाग रहा है, न्यूज रूम की तरफ आपाधापी मचाये हुए है और लग रहा है कि शायद ये टेलीविजन के इतिहास में पहली बार ऐसा हो रहा होगा कि राजनीति, खेल, मनोरंजन, सिनेमा और बिजनेस सबके सब बीट के मीडियाकर्मी एक ही मुद्दे पर खबर बना रहे होंगे। चुपचाप बैठे क्राइम बीट के लोग सोच रहे होंगे – क्या आज किसी दलित महिला के साथ शोषण नहीं हुआ होगा, किसी बच्ची की जान नहीं ली गयी होगी, किसी पुलिसवाले ने किसी को नंगा नहीं किया होगा… किया होगा न… तो, तो क्या सचिन के आगे कुछ नहीं चलेगा, चुप्प। टेलीविजन पर देश का लोकतंत्र ऐसे ही सिकुड़ता है। दूरदर्शन के जमाने में
इंदिरा के आगे और अब सैकड़ों चैनलों के जमाने में सचिन, शाहरुख और कैटरीना के आगे।
मूलतः प्रकाशितः- मोहल्लाLIVE