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मीडिया के लोग भगवान नहीं होते

Posted On 1:16 pm by विनीत कुमार |

एनडीटी के प्रोग्राम हमलोग में आशुतोष (आइबीएन7) ने कहा कि ये तो लोगों का बड़प्पन है कि वो हमें भगवान मान रहे हैं और उम्मीद करते हैं कि हमसे कोई गलती नहीं होगी, नहीं तो हम भी इंसान हैं और हमसे भी गलतियां होती है। आशुतोष अपनी बातों से बिल्कुल स्पष्ट कर दे रहे थे कि हम भी और इंसानों की तरह की इंसान ही हैं। यानि जिस तरह से दूसरे प्रोफेशन-प्रशासन,न्याय,मेडिकल औऱ यहां तक की राजनीति के लोग गलतियां करते हैं उसी तरह मीडिया के भी लोग करते हैं। मीडिया की बदलती कार्यशैली को समझने के लिए इस बात पर गौर करना बहुत जरुरी है कि मीडिया के लोगों ko भी आम आदमी की तरह की समझा जाए।
आशुतोष के तो हम पहले से ही कायल हैं लेकिन इस तरह के ईमानदारीपूर्वक वक्तव्य से समझिए मुरीद ही हो गए।आशुतोष ने जो बात कही है उसमें साफ संकेत हैं कि गड़बड़ी हम पाठकों के सोचने में है। हम ही मान लेते हैं कि मीडिया जो कुछ भी दिखाती है वो सब सच है। शहरों में और पढ़े-लिखे लोगों के बीच तो थोड़ी बहस भी होती है कि नहीं जी, सब सच कहां होता है, काफी कुछ क्रीएटेड होता है लेकिन गांव के अपढ़ लोग मीडिया में दिखाए गए एक-एक बात को सच मान लेते हैं। अगर आप उनके सामने तर्क करते हैं तो वो आपसे सीधे कहेंगे कि- चलिए आपकी बात मान लेते हैं कि बहुत कुछ अपने से लिख दिया होगा लेकिन एक बात बताइए कि मर्डर और रैप का फोटू भी अपने से ले लिया होगा। ये कैसे संभव है कि मर्डर हुआ नहीं और चैनल दिखा दे।
हिन्दुस्तान में एक बड़ा तपका ऐसा है जो मीडिया में दिखायी गयी हर खबरों को सच मानता है,चैनल को समाज का bada सच मानता है। उन्हें उन बारीकियों से कोई लेना-देना नहीं होता कि कहां-कहां और किस तकनीक को लेकर मैनुपुलेशन हुआ है, कहां चीजें रीक्रिएट की गयी हैं। टेलीविजन की खबरें, हमारे औऱ आपके द्वारा लगातार सवाल खड़े किए जाने के बावजूद उनके लिए एक मूल्य की तरह है। आप लाख समझाने की कोशिश करें कि- नही मीडिया की सारी खबरें सच नहीं होंती तो भी वो इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं होते। कई अर्थों में टेलीविजन औऱ न्यूज चैनलों के कंटेंट उनके लिए मूल्य होते हैं। बात-बात में वो आपसे कहें कि इंडिया टीवी ने साफ-साफ दिखाया है, आजतक ने इस पर खुलासा कर दिया है।
टेलीविजन के लोग भी इस बात को बेहतर तरीके से समझते हैं कि उनके चैनल को और उनके द्वारा दिखायी जानेवाली खबरों को ऑडिएंस किस रुप में लेती है। अगर आप चैनलों के दावों aur उनके पंचलाइन पर गौर करें तो आपकों अंदाजा लग जाएगा कि अधिकांश चैनल सच को स्टैब्लिश करते हैं, सच ही उनकी साख है। आप लाख तर्क दे दीजिए, आए दिन तकनीक का विकास कर लीजिए, खबरों को प्रभावशाली बनाने के लिए नाट्य रुपांतर कर लीजिए लेकिन मीडिया के साथ सच का संबंध सबसे बड़े मूल्य के ऱुप में जुड़ा है। इस बात को अगर मीडिया के लोग खुद भी मानने से गुरेज करें तो भी आम ऑडिएंस को तरह से सोचने में वक्त लगेगा।
इसलिए अगर आशुतोष साफ-साफ शब्दों में कहते हैं कि हम ईश्वर नहीं हैं और हमसे भी गलतियां हो सकती है तो एक तरह ऑडिएंस की मानसिकता को बदलने की बात कर रहे हैं। यह जानते हुए कि मीडिया की गलती बाकी के प्रोफेशन की गलतियों से बिल्कुल अलग है औऱ सबसे बड़ी बात तो यह कि इससे प्रभावित होनेवाले लोगों और शामिल होनेवाले लोगों की संख्या और प्रोफेशन के लोगों से बहुत अधिक है। अब बदलना दर्शकों को ही होगा,चैनलों को नहीं।
आशुतोष की बात से तो हमने यही समझा है। लेकिन इस बीच मीडिया यह दावा करना छोड़ दे कि वो जो कुछ भी दिखा रही है सौ फीसदी सच है तो दर्शकों को आशुतोष की बात मान लेने में बहुत सहुलियत होगी....और इधर जिस तरह मेरे बॉस ने समझाना शुरु किया था कि मीडिया के लोग औरों से हटकर होते हैं तो फिर मजा आ जाए। हम ऑडिएंस इस बात को आसानी से मान लेंगे कि मीडिया के लोग भी गलतियां करते हैं और वो जो कुछ भी दिखाते हैं, सौ फीसदी सच नहीं होता।
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2 Response to 'मीडिया के लोग भगवान नहीं होते'
  1. ghughutibasuti
    http://taanabaana.blogspot.com/2008/06/blog-post_30.html?showComment=1214824260000#c5060502217131913243'> 30 जून 2008 को 4:41 pm बजे

    सही कह रहे हैं। सभी गलतियाँ करते हैं परन्तु कुछ लोगों का पेशा ऐसा होता है कि उनकी गलतियों से अधिक लोग प्रभावित होते हैं। अतः उन्हें अधिक जिम्मेदार भी होना होता है।
    घुघूती बासूती

     

  2. sudo.inttelecual
    http://taanabaana.blogspot.com/2008/06/blog-post_30.html?showComment=1214878440000#c5951162279554030777'> 1 जुलाई 2008 को 7:44 am बजे

    what a orttodox initially all media people clamimed that they r talking truth and new theory of ashutoshwa ki wo ab sach nahi bolta bad me bolega ki media wale sare harami hai

     

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