याद कीजिए, जब आपने चैनल या अखबार ज्वॉयन किया था तो आपके बॉस ने आपसे क्या कहा था। अगर सभी लोग बॉस की बात को याद करते हैं तो इससे मौजूदा मीडिया के बारे में अच्छी-खासी समझ बन सकती है।
मैं अपनी बात बताता हूं, आगे आपलोग भी अपनी बात जोड़ देंगे।बॉस ने कहा था कि ये मीडिया है, यहां सरकारी नौकरी की तरह १० से पांच की ड्यूटी नहीं होती। यहां समय काम के हिसाब से तय होता है न कि समय के हिसाब से काम। इसलिए कई बार काम करते हुए तुम्हें १२ घंटे १४ घंटे भी लग सकते हैं और तुम्हें काम खत्म करके ही जाना होगा।
मीडिया के लोगों के लिए कोई होली-दीवाली नहीं होती। होली-दीवाली दुनिया के लिए होती है और हम उनके लिए ही कार्यक्रम बनाते हैं। मैंने भी देखा था कि सिर्फ चैनल के स्क्रीन पर त्योहार होते, चैनल के भीतर नहीं। तुम्हें यह सोचकर काम नहीं करना है कि आज तो होली है, छुट्टी नहीं होनी चाहिए। मैं भी चाहूं तो छुट्टी ले सकता हूं लेकिन देखो, तुम्हारे सामने खड़ा हूं.
पत्रकार का कोई अलग से जीवन नहीं होता। उसे खबरों में ही जीना होता है, अखबारों के साथ दिन की शुरुआत होती है और चैनलों के साथ खत्म होती हैं रातें। इसलिए तुम्हें खबरें खानी होंगी, खबरें पीनी होगी, खबरें ही सपने होंगे। सब खबर के भीतर ही जीना होगा। रेग्युलर टीवी देखो, नहीं है तो खरीदो।
यू नो न्यूज इज योर माइ बाप। तुम्हें आगे बढ़ना है, मीडिया में कुछ हटकर करना है इसलिए छोटी-छोटी चीजों को नजरअंदाज करो। ऑफिस में लगे कि ये वर्किंग कल्चर को खराब कर रहा है, उसकी खबर हमें दो। जो ऑफिस में सड़न पैदा करता हो, उसकी रिपोर्ट हमें दो। जो तुम्हें ज्यादा काम करने पर बहकाता हो, उसकी खबर दो। तुम समझदार हो, एमए, एम फिल् करके आए हो, तुम सारी चीजें बेहतर तरीके से समझते हो।
पैसे-वैसे की चिंता मत करो। मीडिया में संघर्ष है, अभी तुम्हें पैसे भी बहुत कम मिल रहे हैं लेकिन ये मत भूलो कि तुम एक बहुत बड़े मिशन पर लगे हो। तुम्हारा काम आम आदमी का नहीं है। तुम्हारे पास जो पॉवर है, प्रेस्टिज है वो अच्छे-अच्छे पैसेवालों के पास नहीं है। इसलिए पैसे को लेकर बहुत टेंस होने की जरुरत नहीं है। बाकी तुम समझदार हो ही।
....कुछ इसी तरह के वाक्यों के साथ मैंने चैनल में अपनी नौकरी की शुरुआत की थी। उस समय हमें बहुत पैसे नहीं चाहिए थे, काम चाहिए था। बिजी होना चाहता था, लम्बे समय के डिप्रेशन से उबरना चाहता था। मेरी तरह कई दोस्त थे और उन्होंने तो इंटर्नशिप के लिए आकाशवाणी औकर दूरदर्शन में पैसे तक दिए थे। इसलिए मैं शुरुआत के दिनों में खुश था। बाद में क्या हुआ, ये बात फिर कभी।
बॉस ने हमसे जो कुछ भी कहा उससे आप मीडिया को लेकर अंदाजा लगा सकते हैं। खुद ही तय कर सकते हैं कि इसमें कितनी सच्चाई है और आज सही अर्थों में इसकी क्या स्थिति है. बाकी आप खुद भी जोर देकर याद करें कि आपके बॉस ने पहले दिन क्या कहा था।
आगे पढिए, चैनल के छोड़ने के दिन क्या कहा था बॉस ने।
http://taanabaana.blogspot.com/2008/06/blog-post_28.html?showComment=1214647920000#c6986362647390587605'> 28 जून 2008 को 3:42 pm बजे
आपका यह पाठ पढ़कर मेरे अंतर्मन पर बहुत प्रभाव पढ़ा। आपने एसा सच बयान कर दिया जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। ऐसे में मेरे अंदर विचारों का एक क्रम चला तो उसे मैंने काव्यात्मक अभिव्यक्ति दी। इसे मैं अपने ब्लाग पर लिखने वाला हूं।
दीपक भारतदीप
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खबरों की खबर वह रखते हैं
अपनी खबर हमेशा ढंकते हैं
दुनियां भर के दर्द को अपनी
खबर बनाने वाले
अपने वास्ते बेदर्द होते हैं
आखों पर चख्मा चढ़ाये
कमीज की जेब पर पेन लटकाये
कभी कभी हाथों में माइक थमाये
चहूं ओर देखते हैं अपने लिये खबर
स्वयं से होते बेखबर
कभी खाने को तो कभी पानी को तरसे
कभी जलाती धूप तो कभी पानी बरसे
दूसरों की खबर पर फिर लपक जाते हैं
मुश्किल से अपना छिपाते दर्द होते हैं
लाख चाहे कहो
आदमी से जमाना होता है
खबरची भी होता है आदमी
जिसे पेट के लिये कमाना होता है
दूसरों के दर्द की खबर देने के लिये
खुद का पी जाना होता है
भले ही वह एक क्यों न हो
उसका पिया दर्द भी
जमाने के लिए गरल होता
खबरों से अपने महल सजाने वाले
बादशाह चाहे
अपनी खबरों से जमाने को
जगाने की बात भले ही करते हों
पर बेखबर अपने मातहतों के दर्द से होते हैं
कभी कभी अपना खून पसीना बहाने वाले खबरची
खोलते हैं धीमी आवाज में अपने बादशाहों की पोल
पर फिर भी नहीं देते खबर
अपने प्रति वह बेदर्द होते हैं
http://taanabaana.blogspot.com/2008/06/blog-post_28.html?showComment=1214672520000#c7918451761715565910'> 28 जून 2008 को 10:32 pm बजे
vineet sthiti kharaab hai main manti hun lekin aas ka deepak kahin kisi ko zalaana to hoga. positivity se dekhoge to cheezen achi bhi dikhengi
http://taanabaana.blogspot.com/2008/06/blog-post_28.html?showComment=1214679480000#c1870550031224563416'> 29 जून 2008 को 12:28 am बजे
अब समझ मे आ रहा है कि गाहे बेगाहे आप मिडिया पर तीर क्यों चलाते रहतें हैं. अगली पोष्ट मे और क्लियर हो जायेगी. लगता है कि मिडिया से जितना आम जनता खार खाये रह्ता है उतना ही मिडिया से जुडे लोग भी.