आज सुबह जेएनयू के पेरियार हॉस्टल के आगे खड़ा था। देखा,चार-पांच लोग खड़े हैं और उबाल से कह रहे थे, ऐसे कैसे हो सकता है और वो भी दिल्ली में। भाई साहब घटना के घुए चालीस दिन हो गए है अभी तक पुलिस कुछ नहीं कर पाई है। कनकलता के साथ हुए जातीय दुर्व्यवहार को लेकर कल रात जेएनयू में छोत्रों के बीच बैठक थी जिसकी सूचना पोस्टर और अखबार में छपे रिपोर्ट को हॉस्टल के नोटिस बोर्ड पर लगाया गया था। लोग उसे पढ़कर अपनी-अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे थे।
कनकलता के साथ पिछले 3 मई को उसके मकान मालिक ने जाति के नाम पर जो दुर्व्यवहार किया और पुलिस ने भी इस मामले में कोई दिलचस्पी नहीं दिखायी, इन सब के बारे में बगल में दो पेज में सारी बातें चिपकी हुई थी। मैं बस किनारे चुपचाप देख रहा था कि लोग इस घटना को लेकर किस तरह से रिएक्ट करते हैं.
लोगों ने जब पढ़ा कि कनकलता डीयू की स्टूडेंट हैं तो उन्हें और आश्चर्य हुआ कि अरे,डीयू में पढ़ रहे लोगों के साथ ऐसा किया. दूसरे ने कहा, मुझे तो लगता था कि दिल्ली में लोग जात-पात मानते ही नहीं औऱ फिर खुद मुखर्जीनगर के सारे मकान-मालिकों को कहां पता होता है कि कौन किस जाति का है। ये तो हद हो गया। तीसरे ने कहा, मैंने पहले भी कुछ-कुछ तो पढ़ा था इस बारे में लेकिन सोचा कि अब तक तो मकान-मालिक के खिलाफ कारवाई हो गयी होगी। चौथे ने थोड़े जोश में कहा- हमें कुछ करना चाहिए। थोड़ी देर तक सबकी और देखते रहे, दूसरे ने भी कहा- हां हमें कुछ न कुछ तो जरुर करना चाहिए। मैं खड़ा देखकर मन ही मन खुश हो रहा था कि लोगों की संवेदना अब भी मौजूद है। हमसे रहा नहीं गया और मैंने पोस्टर के निचले हिस्से पर उन्हें देखते हुए उँगली रख दी, जहां लिखा था-
विरोध प्रदर्शन
19 जून 2008, प्रातः 11 बजे
पुलिस हेडक्वार्टर, आइटीओ
नई दिल्ली
मैंने उन सबसे पूछा- तो आ रहे हैं न आप।
सबका एक साथ जबाब था- जरुर...
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
एक टिप्पणी भेजें