.

हिन्दुस्तान में लोकतंत्र की बहाली हो जाने के बाद भी कांग्रेस मुनादी करवाने और नगाड़े बजवाने वाली राजतंत्र की परम्परा को छोड़ नहीं पायी है। कांग्रेस की संतान एनएसयूआई भी उसी के नक्शे कदम पर चल रही है।
डीयू में एनएसयूआई की स्टूडेंट यूनियान है। एस यूनियन क्या कहिए, जिस तरह से चुनाव जीते जाते हैं इसे आप ऐसे कहिए कि एनएसयूआई की सत्ता है। एनएसयूआई ने पिछले एक साल में स्टूडेंट के फेवर में क्या किया है ये तो सर्वे और बैठकर विश्लेषण करने का मसला है लेकिन फिलहाल उसने जो किया है उसे आपके सामने पेश कर रहा हूं।
करीब तीन-चार महीने पहले एनएसयूआई या डीयू स्टूडेंट यूनियन के लोगों ने पूरे डीयू कैंपस को नो टोबैको जोन घोषित कर दिया, जिसके मुताबिक कैम्पस के भीतर कोई भी बंदा सिगरेट,बीड़ी, गुटखा, खैनी और ऐसी दूसरी चीजों का प्रयोग नहीं करेगा। जो बंदा ऐसा करते हुए पकड़ा गया उसे जुर्माने के तौर पर 200 रुपये देने होंगे। अगर आपका कभी डीयू कैंपस आना होता है तो आप देखेंगे कि जगह-जगह बड़े-बड़े होर्डिंग लगाए गए हैं जिसमें 200 रुपये लिखकर हथकड़ी बनायी गयी है।
ये होर्डिंग तो उनके लिए है जो अंग्रेजी समझ सकते हैं और सिगरेट पीते हैं। कैंपस में ऐसे भी लोग हैं जो अंग्रेजी नहीं समझते लेकिन बीड़ी या फिर सिगरेट पीते हैं, उनके लिए जरुरी है कि मुनादी करायी जाए। इसलिए बड़े ताम-झाम से इसकी घोषणा की गयी। मणिशंकर अय्यर को बुलाया गया. वो खुद मेट्रो से यूनियन ऑफिस तक पैदल चलकर आए जिसकी चर्चा मीडिया में की गयी. जि दिन वो आए थे मैं यूनियन ऑफिस के पास से गुजरा था। मैंने देखा कि खूब सारी कुर्सियां सफेद कवर के साथ लगी है और लगभग सारे चैनलों और अखबारों की गाडियां वहां लगी है। ओबी वैन से कैंपस पटी पड़ी है। क्या रिक्शावाले और क्या स्टूडेंट सब भीड़ लगाए थे। मैंने ये जानने के लिए कि इस मुनादी की बात आम आदमी को समझ में आयी है कि नहीं, एक रिक्शेवाले से पूछा-क्या भइया, काहे का इतनी भीड़ है। रिक्शेवाले का जबाब था कि- साहब एगो बड़का नेता आए हैं और बोल रहे हैं कि आगे से हिआं कोई सिकरेट, बीड़ी नहीं पीएगा, जो पीएगा उसको जुर्माना भरना पड़ेगा। यानि एनएसयूआई की मुनादी का असर आम आदमी तक फैल चुका था।
नो टोबैको जोन अभियान के तहत ये भी बात की गयी कि कोई भी दुकानदार या कैंटीन ये सब कुछ नहीं बेचेगा और जो ऐसा करते पकड़े गए तो उन्हें भी जुर्माने के तौर पर भारी रकम चुकानी पडेगी।
उसके बाद से लोगों का सिगरेट पीना कितना कम हुआ , पता नहीं लेकिन लोगों को गरिआते जरुर सुना- घंटा कर दिया है सालो ने, दो रुपये की सिगरेट के लिए खैबरपास जाना पड़ता है।
इस मुनादी का वाकई में कितना असर हुआ है ये जानने के लिए मैं बीच-बीच में गुमटियों में जाकर सिगरेट मांगता रहा लेकिन लोगों ने साफ कहा-साहब बहुत रिस्की काम है यहां सिगरेट बेचना, कौन जोखिम मोल ले। सुनकर बहुत अच्छा लगता। लेकिन,
परसों जब मैं सोशल वर्क डिपार्टमेंट के पासवाली गुमटी में कोक पीने गया तो देखा कि एक बंदा सिगरेट ले रहा है। सिगरेट कौन-सी थी देख नहीं पाया लेकिन बंदे ने कहा, एक सिगरेट में दो रुपये ज्यादा लोगे। दुकानदार ने बिल्कुल ही साफ शब्दों में कहा- देना भी तो पड़ता है साहब. मैं उस बंदे के पीछे गया और बोला- क्यों भाई, दुगुने दाम पर सिगरेट क्यों खरीदते हो। अचानक से पूछने पर वो घबरा गया और पूछा- आप रिपोर्टर हैं। मैंने कहा-नहीं पास के हॉस्टल में रहता हूं, बस ऐसे ही पूछ लिया। देखा दुकानदार भी थोड़ा सकपका गया था।
कल रात के करीब डेढ़ बजे जोरों से भूख लगी और मैं कुछ खाने पासवाले हॉस्टल की कैंटीन में चला गया। वहां एक बंदा आया और कोल्ट ड्रिंक मंगवाने के बाद सर्विस ब्आय से बोला- तुमसे कुछ और भी मांगे थे न। थोड़ी देर बाद लड़का हाथ में सिगरेट दबाए हुए पहुंचा। लौटने पर अंकलजी यानि गार्ड साहब ने सामने बीड़ी का एक छल्ला छोड़ा।
इधर पन्द्रह दिनों पहले कैंपस में होर्डिंग लगी है- थैंक्स फॉर कीपिंग कैंपस फ्री जोन। नीचे-
दिल्ली यूनिवर्सिटी, दिल्ली पुलिस औऱ वर्ल्ड लंग फाउंडेशन के लोगो चमक रहे हैं।
खूब झक-झक सफेद पर ब्लू रंग और लाल रंग से लिखे सारे शब्द पता नहीं क्यों मुझे बहुत भौंडे लग रहे हैं, एक-एक शब्द बेहया और बाहियात लग रहे हैं। मन बार-बार पूछ रहा है कि है कोई यहां जो गारंटी देगा कि- आगे से मुझे ये शब्द ऐसे नहीं लगेंगे।
| edit post
2 Response to 'दुगुने दाम, कांग्रेस की संतान और बीडी जलइले'
  1. Rakesh Kumar Singh
    http://taanabaana.blogspot.com/2008/04/blog-post_24.html?showComment=1209034800000#c5560475364839516516'> 24 अप्रैल 2008 को 4:30 pm बजे

    कौन पूछे कि यूनियन ऑफिस में कितने पाकिट सिगरेट की खपत होती है. अब का चाहते हैं आप कि दिन भर लाठी-बेंट फटफटाने वाले सिपाही लोग दू-चार रूपिया कमाए भी नहीं.
    काहे भइया, खाली कांग्रेसी संतानों की ही बात काहे करते हो, जब जेकर राज ओकर जुलूम त जनता पर होते ही रहा है.

     

  2. PD
    http://taanabaana.blogspot.com/2008/04/blog-post_24.html?showComment=1209036480000#c6617434825543277553'> 24 अप्रैल 2008 को 4:58 pm बजे

    aisaa hi hota hai bhai mere.. :)

     

एक टिप्पणी भेजें