प्रकाश सिंह टेलीविजन पत्रकारिता का एक स्याह चेहरा. उमा खुराना के फर्जी स्टिंग ऑपरेशन का सूत्रधार. एक नया रावण जिसकी जन्मस्थल बनी लाइव इंडिया और जन्मदाता बने चैनल हेड सुधीर चौधरी. अब इसे विडंबना कहिये या फिर टेलीविजन न्यूज़ चैनलों का घटिया चरित्र, उमा खुराना के फर्जी स्टिंग और उस वजह से जेल जाने के बावजूद प्रकाश सिंह न्यूज़ इंडस्ट्री में लगातार पनाह पाता रहा. जेल की हवा खाने और फिर लाइव इंडिया से निकाले जाने के बाद, पहले वायस ऑफ इंडिया (वीओआई) फिर P7 न्यूज़ में प्रकाश सिंह ने नौकरी कर सरोकारी पत्रकारिता करने वालों के मुंह पर तमाचा जड़ा. उसे धत्ता बत्ताते हुए मानो कहा जो करना है कर लो मेरा कोई कुछ नहीं उखाड़ सकता.
आखिर प्रकाश यह क्यों न कहे. उसे यह कहने का हौसला भी तो न्यूज़ इंडस्ट्री ही दे रहा है. समाज को नैतिकता का पाठ पढाने वाले न्यूज़ चैनल कितने अनैतिक हो सकते हैं, यह प्रकाश सिंह को बार - बार नौकरी देकर चैनलों ने साबित किया. अब प्रकाश सिंह की तरक्की की कहानी सुनिए. यदि डॉक्टरी या वकालत का ये पेशा होता और किसी डॉक्टर या वकील ने ऐसा जघन्य अपराध किया होता तो उसका लाइसेंस हमेशा के लिए जब्त कर लिया जाता. जीवन में दुबारा वह कभी प्रैक्टिस नहीं कर पाता.
लेकिन लाइव इंडिया में ऐसा कुकृत्य करने के बावजूद प्रकाश सिंह न केवल टीवी न्यूज़ इंडस्ट्री में टिका रहा बल्कि उसने तरक्की भी की. आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि तरक्की की सीढियाँ चढ़ते - चढ़ते यह शख्स पहले वीओआई और फिर P7 न्यूज़ में गेस्ट कॉर्डिनेशन का प्रमुख बन गया. P7 न्यूज़ से निकलने के बाद आजकल यह एक केन्द्रीय मंत्री के मीडिया कॉर्डिनेशन का काम संभाल रहा है. कल को किसी नेता या मंत्री - संत्री के चैनल का चैनल हेड / सीईओ बन कर आ जाए तो ज्यादा अचरज नहीं होगा और यकीन मानिए ऐसा हो सकता है. तब यही व्यक्ति मीडिया और नेताओं में सांठ-गाँठ करवाएगा. उनके बीच सूत्रधार का काम करेगा. बड़े - बड़े घोटालों को अंजाम देगा और उसे दबाने के लिए मीडिया को टूल की तरह इस्तेमाल करेगा. फिर आप इस रावण का क्या कर लेंगे. कैसे करेंगे इस सहस्त्र सिरों वालों रावण का दहन? कैसे दहन करेंगे लाइव इंडिया और सुधीर चौधरी के पैदा हुए इस रावण का ?
25 साल की उम्र में जो शख्स “उमा खुराना फर्जी स्टिंग” जैसे कुकृत्य को अंजाम दे सकता है वह अगले 25 साल में क्या – क्या कर सकता है, उसकी कल्पना भी भयावह है. प्रकाश सिंह जैसे घटिया मानसिकता के लोगों का स्वभाव कभी नही बदलता. अपनी गलतियों पर ये पछताते नहीं बल्कि समय के साथ और बड़े फ्रॉड करते हैं. देश के जाने – माने मीडिया आलोचक और विशेषज्ञसुधीश पचौरी ‘नया मीडिया और नए मुद्दे’ नाम की अपनी किताब में प्रकाश की इसी बेहायापन की तरफ इशारा करते हुए लिखते हैं :टाइम्स ऑफ इंडिया में 13 सितम्बर को छपे चित्र में वह (प्रकाश सिंह) कैमरे की आँख को निर्भीकता से देख रहा है. एक कैमरा पीछे से भी उसे शूट कर रहा लगता है. वह नीली शर्ट पहने है और तनकर खड़ा है. यदि यह फोटो गिरफ्तारी के बाद का है तो उसके निर्भीक लूकस को देखकर और भी हैरत होती है. चेहरे व्यक्तिव का पूरा आईना नहीं होते लेकिन ऐसे आकस्मिक प्रसंगों में उनके माने अचानक चमक उठते हैं.'
प्रकाश सिंह जैसे रावण को पहला मौका आईबीएन-7 ने दिया. न्यूज़ इंडस्ट्री के अपने सूत्रों की माने तो आईबीएन- 7 में उसे काम का मौका सीनियर पत्रकार प्रबल प्रताप सिंह के रिकमेंडेशन पर मिला. सूत्रों की माने तो जुगाड फिट करने में माहिर प्रकाश ने प्रबल प्रताप सिंह को जातिगत आधार पर साधा. आईबीएन – 7 में रहते हुए इसने उमा खुराना से सम्बंधित फर्जी स्टिंग ऑपरेशन तैयार किया. लेकिन वह स्टिंग वहां नहीं चली. हालाँकि प्रकाश ने उस स्टिंग को चलवाने के लिए एड़ी – चोटी का जोर लगाया. पर उसे कामयाबी नहीं मिली. यही अंतर होता है एक संजीदा चैनल और एक गैर ज़िम्मेदार चैनल में. आईबीएन-7 के लिए बनी स्टोरी आईबीएन-7 पर नहीं चली तो कोई तो बात होगी. शायद उन्हें इसके फर्जी होने का एहसास हो गया था. यदि ख़बरों की माने तो खुद प्रबल प्रताप ने इस स्टोरी को चलाने से मना करवाया था. संभवतया वे प्रकाश के चाल – चरित्र से तबतक परिचित हो चुके थे. उसके बाद ही आईबीएन-7 से प्रकाश की छुट्टी हुई. उमा खुराना के फर्जी स्टिंग ऑपरेशन के बाद आईबीएन – 7 के एडिटर – इन – चीफराजदीप सरदेसाई ने अपने एक बयान में कहा था कि हम बच गए. भगवान का शुक्रिया हमने ये टेप नही चलायी. इस मुद्दे पर शुक्रवार 14 सितम्बर,2007 को हिंदुस्तान टाइम्स में छपे अपने एक लेख “Sting in the Tale” में राजदीप लिखते हैं :
“A few weeks ago, I received an SMS: "Dear sir, I am from Patna. I have more than 40 stings with me. Meet me once, you will not be disappointed. Trust me, together we will create a tehelka (pun possibly intended)!" I chose not to respond in the firm belief that this was one tehelka I did not want to part of. After all, 40 sting operations at one go sounded a bit unreal. I have little doubt though that someone, somewhere would have responded to the man from Patna. In this open season for outsourcing sting journalism, there must be a buyer who found the offer attractive. As perhaps did the editorial team of the news channel that aired the now infamous Uma Khurana sting, where a schoolteacher was alleged to be a willing accomplice to a prostitution racket till it was discovered that the schoolgirl who was being used as bait wasn't a student after all.”
प्रकाश सिंह, सुधीर चौधरी और लाइव इंडिया के इस कुकृत्य ने शिक्षिका उमा खुराना को शिक्षिका से सेक्स रैकेट चलाने वाली बना दिया. दस दिनों तक उसे न्यायिक हिरासत में रहना पड़ा. उसकी इज्जत सरेआम नीलाम हो गयी. उसे बाल पकड़ कर घसीटा गया. उसके कपडे क्रुद्ध भीड़ ने फाड़ दिया. उमा खुराना ने कहा कि इस पूरे षड्यंत्र के पीछे उसे जान से मारने की भी साजिश थी. सीएनएन – आईबीएन को दिए इंटरव्यू में उमा खुराना ने कहा :
CNN – IBN: Why the person has targeted you what is the reason behind that? Uma Khurana: I cant say why he was making me target what was the motive behind that. But yes there was a great conspiracy behind this to kill me. The whole episode was shown on TV when I was in class thinking that people can attack me and can kill me.
अफ़सोस की बात है कि इतना सब होने के बावजूद उमा खुराना का रावण अब भी जिंदा है. उसका दहन नहीं हुआ. लाइव इंडिया का बनाया रावण बीतते समय के साथ ज्यादा बड़ा और ताकतवर होता जा रहा है. कल को यही रावण सस्ती लोकप्रियता के लिए किसी और उमा खुराना के मान – सम्मान से खेले तो सुनकर कोई आश्चर्य नहीं होगा. समय – समय पर वह इसका प्रमाण भी दे रहा है. एक मीडिया वेबसाईट पर जनवरी, 2010 को यह खबर आई थी कि प्रकाश सिंह को दिल्ली के न्यू अशोक नगर थाने की पुलिस ने हिरासत में ले लिया था. खबर के मुताबिक एनडीटीवी की गेस्ट कोआर्डिनेशन टीम में कार्यरत एक लड़की ने प्रकाश पर अभद्रता करने का आरोप लगाते हुए पुलिस में शिकायत दर्ज करायी थी. इसके बाद पुलिस ने प्रकाश को हिरासत में लेकर पूछताछ की. आरोप लगाने वाली लड़की पहले पी7 न्यूज में प्रकाश के अधीन गेस्ट कोआर्डिनेशन की टीम में काम करती थी. बाद में वह इस्तीफा देकर एनडीटीवी चली गई. सूत्रों का कहना है कि प्रकाश ने एनडीटीवी के आफिस और फिर बाद में उस लड़की के घर पर पहुंचकर अभद्रता की. उसके बाद लड़की ने प्रकाश पर अभद्रता करने का आरोप लगाते हुए इसकी शिकायत प्रबंधन और पुलिस से कर दी.
दशहरे के दिन लाइव इंडिया पर रावण दहन दिखाया जा रहा था. लाइव इंडिया के एंकर प्रवीण तिवारी बुराई पर अच्छाई की जीत की बातें कर रहे थे. लेकिन क्या कभी लाइव इंडिया अपने अंदर के रावण का दहन करेगा? उस रावण का दहन करेगा जिसका जन्मदाता खुद वो है।
साभारः- मीडियाख़बर डॉट कॉम, न्यूज चैनलों के नौ रावण
http://taanabaana.blogspot.com/2010/10/blog-post_20.html?showComment=1287571786812#c2668144804853644456'> 20 अक्तूबर 2010 को 4:19 pm बजे
सबसे पहली बात , इन्हें पत्रकार मत कहिये ..दलाल कहिये ... और जो इन्हें पनाह दे रहे हैं उन्हें चैनल नहीं लंका कहिये... जहाँ दानवो को विकसित होने का पूरा अवसर दिया जाता है... क्यूंकि वो भारत कि जनता कि सोच को क़त्ल कर , बेआबरू कर ... लंका के महलो के लिए सोना लाते हैं.. आज ऐसे लोगों कि हर तरफ डिमांड है... इनका लाईसेंस कभी रद्द नहीं होता ... ये समाज में एक्सिडेंट करते रहते हैं और इनके आका इन्हें बचाते रहते हैं ... ये तो सिर्फ एक दला है... इनके आकाओं की करतूतें किस को पता नहीं हैं...फिर भी वो देश के समानित मंत्री , अफसर बने रहते हैं...कुछ गिने चुने चेहरों को छोड़ दे तो कौन जनता है..इन लंका रूपी चैनल में कितने रावण कहाँ किसी सीता हरण की साजिस में लगे हैं... सर जी .. अपना खुद का एक तजुर्बा बयाँ करता हूँ... जब मैंने पहली बार मीडिया में काम करना शुरू किया था... बहुत खुश था ... क्यूंकि एक ऐसे प्रोग्राम के लिए काम कर रहा था , जो मैं करना चाहता था... यहाँ किसी का नाम नहीं लूँगा , क्यूंकि वो भटका इन्सान उसके बाद सही राह पर आ गया...इसलिए बदनाम करने से कोई फ़ायदा नहीं.... मैंने लिखना शुरू किया .. मेरा काम होता था , सुब्जेक्ट रिसर्च करके स्क्रिप्ट तैयार करना , जवलंत मुद्दों को उठा कर सरकार को घेरना और जवाब मांगना , ताकि आम आदमी का भला हो... सत्ता के गलियारों में आम आदमी की आवाज़ बुलंद करना... हमने बहुत ज़रूरी मुद्दे उठाये .. काफी प्रसंशा हुयी .. हजारों ख़त आने लगे... दूर दराज़ के इलाको में गरीब लाचारों में एक उम्मीद की किरण जगी... लेकिन चार एपिसोड तो ज़माने में लगा... अब कमाने की चिंता नहीं थी... स्पोंसर मिलने लगे थे...हरियाणा में हमने एक प्रोग्राम किया.. उसकी गूँज पहुंची .. शाम को एक मंत्री के PA का फ़ोन आ गया... प्रोडूसर साहब पहुँच गए... लौट कर आये , तो उनके हाथों में किताबों का बंडल था... बहुत खुश थे , सबकी मीटिंग बुलाई गयी , बताया हमारे पास पांच नए सरकारी स्पोंसर आ गए हैं... मुझे कहा अपनी स्क्रिप्ट की टोन बदल दीजिये... मुझे उन से बात करनी थी... लेकिन वो जल्दी में चले गए ... मैंने स्क्रिप्ट जमा की... मुझे वापस भेजी गयी एडिट करने के बाद .. नोट था... जहाँ मैंने लिखा था , डैस डैस प्रोग्राम में आपका स्वागत है..हम आपकी आवाज़ सत्ता के गलियारों में बुलंद करते हैं.. वहां लिखा था , हम आपको जागरूक करते हैं, सरकार आपके लिए बहुत कुछ कर रही है..जानकारी के आभाव में आप उसका फ़ायदा नहीं उठा पाते.... बुलंद आवाज़ को दबा के प्रोग्राम को जागरूकता मिसन बना दिया गया..जहाँ सरकार क्या कर रही है ..कितना कर रही है..उन किताबों से देख कर लिखना था और बताना था , भारत की मुर्ख जनता तुम्हे कुछ पता नहीं है..बेकार शोर मचाते हो .. मूर्खों जागो सरकार ने अस्पताल खोला है..स्कूल खोला है... तुम्हे वहां पता नहीं इलाज़ होता है...बच्चे पढाये जा सकते हैं... प्रोडूसर साहब को बदले में सरकारी स्पोंसर मिल गए.. नोट छापने का इतना सुनहरा अवसर वो कैसे खो सकते थे... उनके अन्दर का राम मर गया रावण जाग गया .. मेरे जैसा हनुमान अपनी पूछ देखता रहा... कब कोई दानव इस में आग लगाये और मैं लंका दहन करूँ.. लेकिन ये शातिर दानवों की टोली थी.. जानती थी इसकी पूछ जली और हम गए... इसलिए उन्होंने आग नहीं लगायी ... और मैं नया नया बन्दर .. वापस पर्वतों में रहने आ गया... उन से लडाई नहीं लड़ी... लेकिन उनके मूह पर थूक के आया... एक ऐसा तमाचा रसीद के आया कि आज भी अगर कहीं टकरा जाएँ तो आँख नहीं मिलाते... लेकिन वो आज भी प्रकाश सिंह कि तरह खुलेआम घूम रहे हैं... आपने आवाज़ बुलंद की.. मैं भी साथ हूँ... उम्मीद है बहरों के कान के परदे फटेंगे ..
http://taanabaana.blogspot.com/2010/10/blog-post_20.html?showComment=1287571989886#c8383126250340085846'> 20 अक्तूबर 2010 को 4:23 pm बजे
सबसे पहली बात , इन्हें पत्रकार मत कहिये ..दलाल कहिये ... और जो इन्हें पनाह दे रहे हैं उन्हें चैनल नहीं लंका कहिये... जहाँ दानवो को विकसित होने का पूरा अवसर दिया जाता है... क्यूंकि वो भारत कि जनता कि सोच को क़त्ल कर , बेआबरू कर ... लंका के महलो के लिए सोना लाते हैं.. आज ऐसे लोगों कि हर तरफ डिमांड है... इनका लाईसेंस कभी रद्द नहीं होता ... ये समाज में एक्सिडेंट करते रहते हैं और इनके आका इन्हें बचाते रहते हैं ... ये तो सिर्फ एक दला है... इनके आकाओं की करतूतें किस को पता नहीं हैं...फिर भी वो देश के समानित मंत्री , अफसर बने रहते हैं...कुछ गिने चुने चेहरों को छोड़ दे तो कौन जनता है..इन लंका रूपी चैनल में कितने रावण कहाँ किसी सीता हरण की साजिस में लगे हैं...
http://taanabaana.blogspot.com/2010/10/blog-post_20.html?showComment=1342574653203#c4551070367937760523'> 18 जुलाई 2012 को 6:54 am बजे
शर्मनाक है ऐसे पत्रकारों की हरकतें।