मुंबई के थाने और कल्याण के केबल ऑपरेटरों ने शिवसेना जैसे कट्टर हिन्दूपंथी संगठन से डरकर,दबाव में आकर कलर्स चैनल दिखाना बंद कर दिया है। अब इन इलाकों की ऑडिएंस कलर्स चैनल को नहीं देख सकेंगे। चैनल बंद किए जाने की वजह है बिग बॉस। बिग बॉस ने जैसे ही सीजन-4 में पाकिस्तान की वीणा मल्लिक और बेगम नवाजिश अली के आने की बात कही,उसी समय से कट्टर हिन्दूवादी संगठन इसके विरोध में सक्रिय हो उठे। शिव सेना,एमएनएस सहित महाराष्ट्र के दूसरे हिन्दूवादी संगठन और उनके गुर्गे इसके विरोध में सड़कों पर उतरे। शिव सेना के दर्जनों सैनिकों ने लोनावना में बने बिग बॉस के घर को घेर लिया और हंगामा मचाने की कोशिश की। स्टूडियों के काम को रोकने की कोशिश की। उसके बाद बिग बॉस के घर का बाहरी इलाका मुंबई पुलिस की छावनी में तब्दील हो गयी। 24 सैनिकों पर बॉम्बे पुलिस एक्ट की धारा 68 के तहत मामला दर्ज किया गया और क्रिमिनल प्रोसिज्योर कोर्ट की सेक्शन 149 के तहत नोटिस भी भेजी गयी है। अब देखना होगा कि इस मामले में आगे उन पर किस तरह की कारवायी होती है। इंडियन टेलीविजन डॉट कॉम ने जहां-जहां हमने दबाव में आकर लिखा है,वहां रिक्वेस्ट शब्द का इस्तेमाल किया है। ये इस साइट की कार्पोरेट जुबान है जबकि हम जानते हैं कि शिव सेना और एमएनएस जैसे हिन्दूवादी संगठन की भाषा अनुरोध की नहीं रही है। टेलीविजन और साइट पर जो भी फुटेज हैं,उससे और भी साफ हो जाता है।
भारतीय संस्कृति और देशभक्ति के बचाने के नाम पर शिवसेना और एमएनएस की गुंड़ागर्दी की ये कोई नई और पहली कहानी नहीं है। इससे पहले भी उसने इस तरह की सस्ती लोकप्रियता बटोरने और सुर्खियों में बने रहने के लिए उलजलूल मुद्दों को लेकर विरोध और तोड़-फोड़ मचाए हैं जिसका शिकार लगातार हमारे टेलीविजन चैनल,सिनेमा और इंटरटेन्मेंट इन्डस्ट्री होती आयी है। इस पर कई लोग या तो बचते आए हैं या फिर खुलकर विरोध नहीं किया है। जूम ने अपनी एक स्टोरी में इस रवैये को लेकर वॉलीवुड को शिवसेना की कठपुतली बन जाने तक का करार दिया है। अमिताभ बच्चन की इस पूरे मामले में चुप्पी पर भी सवाल उठे। हमें अफसोस है कि हमारा टेलीविजन भी इसका लगातार शिकार होता जा रहा है। पहले ibn7 लोकमत और आजतक जैसे चैनल और अब फिर लगातार मनोरंजन चैनल। न्यूज चैनलों पर हमले और जो लगातार विरोध इन संगठनों की ओर से किए जाते हैं,उसके विरोध के पीछे तो एक हद तक बात समझ आती है कि वो इनके खिलाफ( जरुरी होने पर ही) स्टोरी दिखाते हैं जिससे उनके संगठन की इमेज करप्ट होती है। लेकिन मनोरंजन चैनलों पर उनकी ओर से किए गए हमले साफ करते हैं कि वो महज संस्कृति के नाम पर अपनी गुंडागर्दी कायम रखना चाहते हैं। गौर से देखें और कुछ घटनाओं पर विचार करें तो मामला साफ बनता है कि पहले जो शुरुआत में उन्होंने फायर और वाटर जैसी फिल्मों का संस्कृति का हवाला देकर विरोध किया,अब उसक दायरा तेजी से लगातार बढ़ता जा रहा है। सिनेमा के साथ फिर क्रिकेट शामिल हो गया। पाकिस्तान की क्रिकेट टीम को मुंबई में खेलने नहीं दिया। आइपीएल में शाहरुख खान के पाकिस्तान के क्रिकेट खिलाड़ी लिए जाने पर उसका जमकर विरोध किया,माइ नेम इज खान चलने नहीं दिया। और अब उन्होंने अपनी इस गुंड़ागर्दी में टेलीविजन के शो को भी शामिल कर लिया। पिछले दिनों बाल ठाकरे ने छोटे उस्ताद( अमूल व्ऑअस ऑफ इंडिया) में पाकिस्तान से आए बाल प्रतिभागी के विरोध में बयान दिया,कॉमेडी सर्कस में शकील सिद्दकी के आने का विरोध किया और अब बिग बॉस।
इसके साथ ही उनके गुंडागर्दी किए जाने की फ्रीक्वेंसी तेजी से बढ़ रही है। अब महीने में कोई न कोई एक शो,सिनेमा या फिर चैनल इनके विरोध का शिकार हो जाता है। और इससे भी बड़ी अफसोस की बात है कि अब इसमें डिस्ट्रीब्यूशन के लोग भी लगभग सहमति जताने के अंदाज में हथियार डाल देते हैं। माइ नेम इज खान के विरोध पर सिनेमा मालिकों के नहीं दिखाए जाने के तर्क पर आप ध्यान दें तो उसमें उनके विरोध का डर से कहीं ज्यादा सहमति शामिल है। यही हाल अब केबल ऑपरेटरों के साथ भी है। ऐसे में सवाल है कि
एक चैनल या फिर सिनेमा अपने डिस्ट्रीब्यूटर को शो दिखाने के लिए पूरे पैसे देता है और डिस्ट्रीब्यूटर इन संगठनों के प्रेशर में आकर उन्हें प्रदर्शित नहीं करते तो क्या वो बाजार की शर्तों की धज्जियों नहीं उड़ाते? ऐसी खबरों के आते ही पुलिस की ओर से बयान आने शुरु हो जाते हैं कि कारवायी की जा रही है। लेकिन इन डिस्ट्रीब्यूटरों और केबल ऑपरेटरों के उपर क्या किसी तरह की कारवायी का मामला बनता है,इस पर गंभीरता से विचार करने की जरुरत है। क्योंकि इनके लिए विरोध के डर का बहाना बनाकर एक तरह से उनका समर्थन करना बहुत ही आसान है। हिन्दी कट्टरपंथियों की जड़े इस तरह से मजबूत होती है। इसके साथ ही कलर्स जैसे कुछ चैनल ऐसे हैं जिसके लिए कि केबल ऑपरेटर एक्सट्रा चार्ज करते हैं। यहां तक कि टाटा स्काई में भी उसके लिए अलग से पैकेज लेने पड़ते हैं। इस स्थिति में एक कन्ज्यूमर के स्तर पर ऑडिएंस क्या करे,इस बारे में सोचने की जरुरत है।
और इन सबसे बड़ा सवाल कि सिनेमा और टेलीविजन के वेन्चर ग्लोबल स्तर पर बड़े-बड़े प्रोडक्शन हाउस और कन्ग्लामरट्स से टाइअप कर रहे हैं और हमें लग रहा है कि मीडिया और इन्टर्टेन्मेंट इंजस्ट्री बड़ी तेजी से ग्लोबल होती जा रही है। कंटेंट के स्तर पर ऐसा होता दिखायी भी दे रहा है,बाजार के स्तर पर भी ऐसा होता दिखाई दे रहा है। लेकिन इस ग्लोबल होने के दावे को अगर शिवसेना और एमएनएस जैसे संगठन जिसके सैनिक सैंकड़ों या दर्जनों में आकर धमकाते हैं और पूरी इन्डस्ट्री चुप्प मार जाती है तो ऐसे में हम मनोरंजन उद्योग के विस्तार पर कितना थै-थै कर सकते हैं,ये सोचना बहुत जरुरी है।
ये संगठन न केवल समाज के भीतर के आर्ट और विजुअल फार्म को एक उत्पात में तब्दील कर रहे हैं बल्कि ये साबित करने की घटिया कोशिश कर रहे हैं कि हमारे उपर कोई नहीं है। इसे सख्ती से तोड़ा जाना,कुचला जाना जरुरी है।
ये संगठन न केवल समाज के भीतर के आर्ट और विजुअल फार्म को एक उत्पात में तब्दील कर रहे हैं बल्कि ये साबित करने की घटिया कोशिश कर रहे हैं कि हमारे उपर कोई नहीं है। इसे सख्ती से तोड़ा जाना,कुचला जाना जरुरी है।
http://taanabaana.blogspot.com/2010/10/blog-post_14.html?showComment=1287054653712#c4039455346784063564'> 14 अक्तूबर 2010 को 4:40 pm बजे
ये संगठन न केवल समाज के भीतर के आर्ट और विजुअल फार्म को एक उत्पात में तब्दील कर रहे हैं बल्कि ये साबित करने की घटिया कोशिश कर रहे हैं कि हमारे उपर कोई नहीं है। इसे सख्ती से तोड़ा जाना,कुचला जाना जरुरी है।
मैं इसका समर्थन करता हूँ. . पुरजोर विरोध करता हूँ... लेकिन वीनित भाई , मुझे बहुत दुःख होता है जब अमिताभ जी चुप हो जाते हैं.. शाहरुख़ खान सुलह कर आते हैं... करण जोहर माफ़ी मांग आते हैं.. वजह ....शांति चाहिए.. करोरो दाव पर लगे हैं... अपना ज़मीर मार लो .. अपनी आवाज़ दबा लो... डर जाओ .. आपस में बैठ कर कोसते होंगे ..शायद अपने आप से नज़र मिलते वक़्त शर्मिंदा भी होते होंगे...लेकिन कुछ करते नहीं.. जब कि ये लोग कर सकते हैं...हमारे आप जैसे आदमी आवाज़ उठाते हैं.. सरेआम विरोध करते हैं... शायद इन लोगों के कानो में पहुँचती नहीं है या ये जान कर अनसुना कर देते हैं...मुंबई में १३ अक्तूबर २००५ , मुंबई मिरर में मैंने आवाज़ उठाई थी ..नया था , अख़बार ने भी इस्तेमाल करना चाहा और आस पास के लोगो ने भी ... जिनके खिलाफ आवाज़ उठाई उन लोगों ने कभी सोचा नहीं था ... देल्ही से आया नया नया लड़का ऐसी हिमाकत करेगा... लोगों ने कहा .. जाने दे यार ..क्या कर रहा है... करियर ख़राब हो जायेगा... कोई काम नहीं देगा... लेकिन मैंने वही किया जो मेरे ज़मीर ने कहा... जो होगा अंजाम देखेंगे ..डरा नहीं... और उस दिन एक शेर लिखा था ..अर्ज़ है
वो सर झुका के आसमां पे चला तो क्या यारों.
मैं सर उठा के ज़मी पर तो चला हूँ यारों.....
मुझे ख़ुशी है.. मैं सर उठा के ज़मी पर चलता हूँ.. आज मेरे पास काम है... और मैं खुद से नज़रे भी मला सकता हूँ...लेकिन वो जिनके पास दौलत है.. ताक़त है ..पता नहीं किस डर.. किस वजह से खामोश रह जाते हैं... ऐसे गूंगे बहरे समाज में हुंकार जब मैं भरता हूँ ..तो मुझे अब दुःख होता है... आप कि बात से सहमत नहीं होता तो आपको ज्वाइन नहीं करता ... इसलिए आवाज़ उठाई जाए...लेकिन सोचना ज़रूरी है..कह कर बात ख़तम न कि जाए... सोचा जाए..गहरे उतर कर और कोई समाधान ले आया जाए..... शायद हम आप समाधान भी दे दें... लेकिन अमल कौन करवाएगा ऊपर से नीचे तक स्वार्थ में लिपटे इस लोकतंत्र के दलालों से...कोई उम्मीद नज़र नहीं आती...पहले बहुत लिखता था... अख़बार वाले कहते थे , बहुत खतरनाक लिखते हो भैया ... खरा उन्हें खतरनाक लगता है.... बहुत सी नामचीन लोगों से मेरी पहचान है.. कुछ हीरोइने तो साथ में पढ़ी भी हैं...कहते हैं उनकी खबर ले आओ .. ये बड़े बड़े अख़बारों का हाल है..खैर ये बातें पुरानी हैं ... सब तो अपनी अपनी रोटियां सकने में लगे हैं बंधू ...जब अपना घर जलता है..जैसे तैसे निपटा लेते हैं... और ऐसा करना मज़बूरी भी हो जाती है.. क्यूंकि अपने नंबर का इंतज़ार करता हमारा समाज उसकी मदद को नहीं आता...आप बहुत अच्छा सोचते हैं... चलो इस सोच को अमली जामा पहनने की एक कोशिश हो...
http://taanabaana.blogspot.com/2010/10/blog-post_14.html?showComment=1287305416970#c425037942021712071'> 17 अक्तूबर 2010 को 2:20 pm बजे
बेहतरीन आलेख!