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तीन-चार मुलाकातों में कनकलता हमलोगों से यही कहती रही कि- मकान-मालिक, उसके दोनों बेटों और बहुओं ने जो गालियां हमें दी है, मैं आपको बता नहीं सकती। सचमुच में इन गालियों को हमारे सामने उसने नहीं रखा। इसके लिए उसने कीवर्ड खोज निकाला-अपशब्द कहे। हम अपनी तरफ से अंदाजा लगा रहे थे कि इनलोगों को वो लिंग आधारित, बाप-दादाओं को लेकर और उसकी जाति को लेकर गालियां दी होगी।
संवेदनशीलता के स्तर पर यह सुनकर कि बहुत ही अश्लील शब्द कहे होंगे, इस हम समझ सकते हैं, जरुरी नहीं कि इसे एक सभ्य समाज में दोहराया जाए, हम चुप लगा जाते हैं। हम भी अंदाजा लगाकर चुप मार गए। लेकिन बात जब कानूनी मसले के तौर पर आ जाती है तो ये जानना जरुरी हो जाता है कि- ठीक-ठीक उनलोगों ने क्या गालियां दीं। अपूर्वानंद सर ने जब उसे ये बात समझायी कि जब आप कहेंगीं कि उसने मुझे बहुत गंदी-गंदी गालियां दी, बहुत ही अश्लील शब्द कहें, तो इसका सीधा अर्थ लगाया जाएगा कि आपको किसी भी तरह की गाली नहीं दी गयी। इसलिए जब मैं उससे और उसकी और उसके भाई-बहनों की बातों को सुनकर हादसानामा लिख रहा था तो उसे पहली बार वो सारी गालियां बतानी पड़ गयी।
वो सारी बातें बताती जाती लेकिन जब उनलोगों द्वारा बोले गए शब्दों को बताने की बारी आती जिसे कि उद्धरण चिन्हों के भीतर लिखना होता, तब वो कहती, लाइए लिख देती हूं। फिर सबकुछ कागज पर लिख देती। टाइप करते समय भी जब मैंने कहा कि देखो, तुमने अपनी बहुत सारी बातें तो कागज पर लिख दी लेकिन मुझे देखकर टाइप करने की आदत बिल्कुल भी नहीं है। ऐसा करो, तुम धीरे-धीरे बोलती जाओ और मैं टाइप भी करता जाउंगा और जहां जरुरत हुई, एडीट भी करता जाउंगा। उस वक्त भी वो बोलती जाती और जैसे ही गालियां आती, कागज हमें पकड़ा देती। मैं गालियों को देख-देखकर टाइप करता। जितनी भी गालियां उस हादसानामा में शामिल थीं, वो संज्ञा या फिर विशेषण के रुप में प्रयोग नहीं किए गए थे। उन गालियों से एक क्रियात्मक अर्थ का बोध होता था। वो गालियां मकान-मालिक और उनके बेटों के हवशी चरित्र को बयान करते हैं। उन गालियों में इन लड़कियों से जो बदला लेने की भावना है वो मार-पीटकर नहीं है। मैं बीच-बीच में पूछता भी कि- इतनी गंदी-गंदी गालियां दी उनलोगों ने। सवाल आपके मन में भी उठ सकते हैं कि तथाकथित ये सभ्य लोग जिनमें उनका एक लड़का स्कूल टीचर भी है, ऐसी गालियां कैसे दे सकता है? कनकलता बड़े ही स्वाभाविक ढंग से कहती- ये लोग लड़ाई के समय अपने बेटों और बहुओं को ऐसी ही गालियां देते हैं। औऱ वो भी बहुओं के सामने। कई बार मैं खुद अपनी कानों से सुन चुकी हूं।..तो क्या ये समझा जाए कि गालियां देते समय संबंधों को लेकर कोई एतराज नहीं होता और इस स्तर पर बहू होने के वावजूद भी लड़के की पत्नियां कनकलता से कम बड़ी दुश्मन नहीं हो जाती। ये चीजे उस पुरुष प्रैक्टिस में है इसलिए इसे आप स्त्री विशेष के बजाए स्त्री-समाज के स्तर पर देख सकते हैं।
मैंने गौर किया कि जब मैं गालियां को टाइप कर रहा होता, उसका ध्यान मॉनिटर से हटकर कहीं और चला जाता, कुछ और ही सोचने लग जाती। जिन गालियों को हम रोजमर्रा की जिंदगी में अभिव्यक्ति की शैली मानकर धडल्ले से इस्तेमाल करते हैं, उससे गुजरना एक लड़की के लिए कितना असह्य हो जाता है, ये सब मुझे पहली बार एहसास हो रहा था।
जब बी मेट में गीत यानि करीना कपूर को यानि एक स्त्री को जब साजिद गुस्सा निकालने और मन हल्का करने के लिए गाली बकना सीखाता है तो पहली मर्तबा उसे वैसा करने में कितना कष्ट होता है, प्रोड्यूसर ने दिखाया है। लेकिन वही गीत जब बोल्ड होकर, तेरी मां की बोलती है तो हम दर्शक ताली बजाने लग जाते हैं। हम खुश होते हैं कि देख पुरुष, नहले पे दहला। तो क्या हम गीत के बोल्ड होने और गाली बकने पर खुश होते हैं या फिर महज गाली बकने की अदा पर फिदा होते हैं।
स्त्रियों की हिचक तोड़ने, उसके भीतर के भय को खत्म करने के लिए ये गालियां और उसके बकने का अभ्यास,हो सकता है स्त्री के बोल्ड होने और अपने अधिकारों के लिए लड़ने के प्रस्थान बिन्दु हो सकते हैं। लेकिन जो स्त्री,कोई एक्ट्रेस अपने अधिकारों के लिए गाली के अलावे कोई और प्रस्थान बिन्दु तय करना चाहती है तो उसका विकल्प क्या है और क्या उसके इस पहल पर दर्शक उतनी ही तालियां बजाएंगे। हो सकता है कि उसके उस पहल को भी लोग अदा मानकर तालियां पीटने लग जाएं। क्योंकि जिनकी मानसिकता का विकास सिर्फ दामिनी और गदर जैसी फिल्मों को देखकर हुआ है, उनके लिए ये स्वाभाविक भी है। लेकिन बाकी का क्या?
कनकलता औऱ उसकी छोटी बहन गीत नहीं बनना चाहती क्योंकि उसने प्रस्थान बिन्दु के तौर पर गाली नहीं चुना है तो क्या वो बोल्ड भी नहीं हो सकती। प्रोड्यूसर का जबाब तो साफ होगा- बिल्कुल नहीं। आपकी क्या राय है।
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6 Response to 'सबको बको गालियां, चाहे कनकलता हो या अपनी बहुएं'
  1. bhuvnesh sharma
    http://taanabaana.blogspot.com/2008/05/blog-post_30.html?showComment=1212111840000#c2300749159683265411'> 30 मई 2008 को 7:14 am बजे

    वाकई कितना भयंकर रहा होगा कनकलता के लिए ये सब....पर राहत की बात है कि आप जैसे उसके मित्र-शुभचिंतक उसके साथ हैं..


    देख रहे हैं न आजकल...ब्‍लॉग जगत पर सामाजिक सरोकरों के ठेकेदार ब्‍लॉग पर भी आजकल यही किस्‍सा चल रहा है. "शर्म इनको मगर नहीं आती"....जो खुद घिनौनेपन, नीचता, कमीनेपन के पर्याय बन चुके हैं वे अब विमर्श कर रहे हैं....आलोक पुराणिक सही कहते हैं कि नेकी कर अखबार में डाल..ये तो नेकी भी नहीं करते पर उसे गला-फाड़कर ब्‍लॉग में डालते हैं कि हमसे संवेदनशील कोई नहीं..जैसे इन्‍होंने ही संवेदनशीलता, दलित विमर्श, स्‍त्री विमर्श का पट्टा लिखाया हो. अपने गुरू से कहें कि जो बात वे कहना चाहते हैं उसे कहीं और कहें....नीचों के मोहल्‍ले में जाकर और उनको शामिल कर आप अपनी बात कहकर साबित क्‍या कर पाएंग, क्यों ऐसे लोगों में शामिल होकर अपनी विश्‍वसनीयत पर प्रश्‍नचिन्‍ह लगवा रहे हैंे..रही बात गालियों की तो सारा ब्‍लॉग जगत जानता है कि किस मोहल्‍ले के लोग सबसे बड़े गालीबाज हैं....ऐसे लोगों से बात करना, उनके ब्‍लॉग पर लिखना, कमेंट देना तो कम से कम ऐसे विमर्श का गला ही घोंटेगा....

     

  2. सतीश पंचम
    http://taanabaana.blogspot.com/2008/05/blog-post_30.html?showComment=1212113280000#c3948848825940604155'> 30 मई 2008 को 7:38 am बजे

    अच्छा लेख है।

     

  3. द्रष्टिकोन
    http://taanabaana.blogspot.com/2008/05/blog-post_30.html?showComment=1212115920000#c6681040791677817347'> 30 मई 2008 को 8:22 am बजे

    भुवनेश भाई फरमाते हैं कि "नीचों के मोहल्‍ले में जाकर और उनको शामिल कर आप अपनी बात कहकर साबित क्‍या कर पाएंगें"
    भुवनेश शर्मा जी, नीचों का मोहल्ला क्या होता है? नीच क्या होते हैं?
    नींच ऊंच के संस्कार आपके रग रग में घुसे बैठे हैं सो आसानी से नहीं निकलेंगे

    वैसे आप ये अपना दलित विमर्श, स्त्री विमर्श वगैरह चालू रखिये। आजकल नाटक बहुत कम होते हैं सो यहां आप लोगों के ब्लाग देखकर अच्छे खासे नाटक का मज़ा आ रहा है।
    ब्लागजगत के सबसे बड़े गालीबाजों के आगे आप अपनी ये पूंछ दबाकर बैठ जायेंगे। उनके बारे में तो किसी की भी कुछ कहने की हिम्मत नहीं पड़ेगी।

     

  4. विनीत कुमार
    http://taanabaana.blogspot.com/2008/05/blog-post_30.html?showComment=1212118440000#c7946280947855729737'> 30 मई 2008 को 9:04 am बजे

    भुवनेश भाई, आपकी बातों से साफ हो गया कि चाहे कितनी भी बड़ी मुसीबत क्यों न आ जाए, हम उसे निबटाने के लिए एक साथ नहीं हो सकते. हमारे भातर राजनीति और अहं का वायरस इतनी बुरी तरह फैल चुका है कि हम उससे बरी नहीं हो पाते। लेकिन आपसे अनुरोध है कि कनकलता के मामले में अपना रोष न जाहिर करें, इसे कहीं और के लिए बचाकर रखें, आगे काम आएगा।
    दृष्टिकोण साहब, हमारी कारवाइयों से मकान-मालिक बहुत सकते में आ गए है, डरे हुए हैं, घबराए हुए हैं, ऐसे समय में उनको आपकी सख्त जरुरत हो गी, तब तो और जबकि आप उत्तर भारतीय हैं। आपकी बातों से लगता है कि आप नाटक देखने से ज्यादा उसके संवादों को लिखने में ज्यादा दक्ष है, आप इसे जारी रखें।
    बेहयापन की सीमा अभी खत्म नहीं हुई है, कीप इट अप...

     

  5. tarun
    http://taanabaana.blogspot.com/2008/05/blog-post_30.html?showComment=1212139860000#c9005401236298435204'> 30 मई 2008 को 3:01 pm बजे

    leejiye aap gaaliyon ki baat kar rahe the aur bhuvnesh sharma ne 'NEECH'jesi sunder aur sheelta purn sabhya gaali dekar anyaay k pratirodh ki jo izzat afzaai ki hai usse kisi aur ka ho na ho par ham jese(neecho) ka man zarur dola hai.mere liye kanak ki jaati jaanne ki chinta utni nahi jitni uske sath hone wale anyaay kO jaanne ki hai.wah hamari dost pehle hai aur baaki kucch baad me.mera man sirf isi baat se aahat nahi hua ki kanak k saath uske makaan maalik ne badsaluki ki use peeta balki usse zyada dikkat is baat se hui hai ki jin logo ne anyaay ke pratikar k liye paartiyaan chala rakhi hai yaa jo laal salaam ka naara lagate campus me aqsar dekhe jaate hai unki bhumika is douraan saaf dikhaai dee beshak iske liye unke paas bahaano ka ambaar honge KANAK ka yeh prakran kai logo(bhuvnesh) aur paartiyo k khokhlepan ko saaf dikhaata hai.ab tak ye kaarnaame NSUI aur ABVP tak hi kendrit the lekin ab ye inki kendriyeta ko tod kar bahar aaye hai joki hamare samaaj k liye chinta ki baat hai.in logo se to sirf ek hee baat kahi ja sakti ki TEY KARO KIS OR HO TUM?

     

  6. Mihir Pandya
    http://taanabaana.blogspot.com/2008/05/blog-post_30.html?showComment=1212184080000#c4104147921883658282'> 31 मई 2008 को 3:18 am बजे

    विनीत क्या सचमुच इस 'ब्लॉग' से कुछ होने वाला है? मैं तो पिछले कुछ दिन से इन बड़े blogs को देखकर पका हुआ हूँ. वैसे ही मूड ख़राब है और फ़िर ये सब देखकर तो कुछ लिखने का मन ही नहीं होता. कुछ ठीक नहीं लग रहा.

     

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