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पुलिस ब्लैक करती है रेलवे टिकट ?

Posted On 8:36 am by विनीत कुमार |

आप अगर अपने मां-बाबूजी के पैर छूकर या फिर दोस्तों को हाथ हिलाकर नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन से विदा करना चाहते हैं तो इसके लिए आपको 250 रुपये देने पड़ेगें। हो सकता है इस काम के लिए आपको बहुत जिल्लत भी उठानी पड़े।
कल रात भैया को छोड़ने नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन गया। हम दोनों बहुत थके थे। लेकिन मेरे से ज्यादा खराब स्थिति भैया की थी। उन्हें एक बड़ा-सा जख्म हो गया था। मजबूरन हमें भी साथ जाना पड़ा। स्टेशन पहुंचने पर मैं प्लेटफार्म टिकट के लिए भटका। पुलिस से लेकर कुली तक पूछा तो सभी का एक ही जबाब था कि अब प्लेटफार्म टिकटें नहीं मिलती। मैं सबसे एक ही सवाल कर रहा था कि अगर टिकटें नहीं मिलती तो कोई प्लेटफॉर्म तक जाएगा कैसे। कोई तो बढ़ गया, किसी ने कहा-हमसे नहीं लालूजी से पूछिए तो किसी ने कहा, आप जाइए ही मत, जिनको यात्रा करनी है उन्हें जाने दीजिए। ऐसे कैसे हो सकता था कि मैं भइया को बिना ट्रेन में बिठाए लौट जाता।
इसी बीच मैंने एक अजीब नजारा देखा। एक पुलिसवाला जेनरल क्लास की टिकट काउंटर के पीछे किसी को पैसे लेकर दे रहा है। पहले तो मैंने सोचा कि हो सकता है इसे जाना नहीं होगा, इसलिए टिकट दे दिया होगा। लेकिन एकदम पास जाकर साइड में खड़ा हुआ तो उस बंदे को बोलते सुना कि- आप ज्यादा मांग रहे हैं। मैंने उस पुलिसवाले को गौर से देखा और मुझे भी जल्दी थी, आगे बढ़ गया। मैं बिना टिकट के उपर चढ़ गया और जो पुलिसवाले सामान चेक करते हैं, उनसे पूछा- भइया जब टिकटें मिलती ही नहीं तो हम जाएं कैसे। बंदे ने नोटिस की तरफ इशारा किया और अपने काम में लग गया।
नोटिस में साफ लिखा था कि- अगले आदेश तक प्लटफार्म टिकट नहीं मिलेगी और जो भी बिना टिकट के प्लेटफार्म पर आते हैं उन्हें २५० रुपये देने होगें। मैंने कहा, भाई साहब ये तो बहुत गड़बड़ है। उनका जबाब था, गड़बड़ क्या है, आप भी २५० रुपये दीजिए और जाइए। बगल में एक बंदा खड़ा था। उसने हंसते हुए कहा कि- हम भी २५० रुपये अभी दिया है। उसके हुलिए से साफ झलक रहा था कि वो २५० रुपये फाइन देने के बाद ऐसे हंसने की हैसियत नहीं रखता है। उसने पुलिसवाले से कहा- है तो दे दीजिए और फिर हंसा। पुलिसवाले ने कहा- इनको कैसे दे दें, वो तो बहुत परेशान, दूसरे लोगों के लिए है। मुझे शक हुआ कि कहीं कोई और बात तो नहीं। मैं दुबारा पूछा-क्या ? दोनों ने एक साथ कहा- आपको कुछ नहीं कह रहे हैं। मजबूरन भइया को दो भारी बैग पकड़ाकर वापस उतरना पड़ा।
नीचे आकर पता नहीं मेरा क्या मन हुआ। जबसे मैंने पुलिसवाले को पैसे लेकर टिकट देते देखा था, तभी से मन में खटका हो रहा था। मैं नीचे उतरकर जेनरल टिकट काउंटर की लाइन में लग गया। भयानक भीड़ थी। सभी लाइनों में एक-दो पुलिसवाले दिख गए। तभी मेरे आगे खड़े एक पुलिसवाले ने पीछे मुड़कर देखा। ये वही पुलिसवाला था जो जिसे कि मैंने टिकट बेचते देखा था। मुझे देखते ही लाइन से बाहर हो गया और उल्टे मुझे ही कहने लगा-लाइन में रहिए और फिर दो-तीन बार यही बात दोहरायी। सभी लोग पहले से ही लाइन में लगे थे, उसे बोलने की कोई जरुरत नहीं थी। थोड़ी देर बाद मैं वापस गया।
मेरे दिमाग में ये सवाल अब भी बना हुआ है कि अगर ये पुलिसवाला ऑनड्यूटी था तो फिर टिकट क्यों कटा रहा था। औऱ अगर इसे कहीं जाना था तो फिर टिकट बेचकर, फिर से लाइन में क्यों खड़ा हो गया। सभी लाइनों पर एक-दो एक दो पुलिसवाले खड़े थे और टिकट खरीद रहे थे। कहीं ऑनड्यूटी पुलिसवाले की कमाई का जरिया जेनरल टिकट तो नहीं जिसे कि वो पीछ जाकर ज्यादा दामों पर बेचते हैं।
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3 Response to 'पुलिस ब्लैक करती है रेलवे टिकट ?'
  1. गुस्ताखी माफ
    http://taanabaana.blogspot.com/2008/05/blog-post_25.html?showComment=1211686020000#c7822245162898965292'> 25 मई 2008 को 8:57 am बजे

    विनीत जी, अगली बार आप किसी को छोड़ेने जायें तो प्लेटफार्म की जगह पास के स्टेशन जाने भर का टिकट ले लें. फिर आपको प्लेटफार्म जाने से कोई कैसे रोक सकेगा? आप अपने यात्री को बिठाकर लौटकर इस टिकट को कैंसल भी करा सकते हैं.

    पुलिस और रेलवे ये दोनों भ्रष्टाचार के गढ़ हैं. यहां तो एसा होता ही रहता है.

     

  2. bhuvnesh sharma
    http://taanabaana.blogspot.com/2008/05/blog-post_25.html?showComment=1211697600000#c5612078895035535780'> 25 मई 2008 को 12:10 pm बजे

    सबसे पहली बात तो ये कि नई दिल्‍ली जैसा बर्बाद स्‍टेशन मैंने आज तक नहीं देखा.
    ये नई दिल्‍ली की बजाय बांग्‍लादेश या बोत्‍सवाना जैसे किसी देश का स्‍टेशन ज्‍यादा नजर आता है.
    जब मैं आपसे मिलकर वापस अपने घर आ रहा था तब मैंने भी ऐसा ही दृश्‍य देखा था. प्‍लेटफार्म टिकट का तो पता नहीं पर पुलिसवाले लोगों को टिकट खरीदकर दे रहे थे. उसका एक कारण ये भी है कि ट्रेन का वक्‍त हो चुका होता है और पुलिस वाले लोगों से पैसा लेकर उनके लिए बिना लाइन में जाकर भी टिकट खरीद लाते हैं. जिससे वे फटाफट ट्रेन पकड़ लेते हैं.
    बाकी गुस्‍ताखी माफ वाले भाईसाहब का आईडिया भी बढि़या है तब तक इसी से काम चलाईये :)

     

  3. bhuvnesh sharma
    http://taanabaana.blogspot.com/2008/05/blog-post_25.html?showComment=1211697660000#c8043054892848764179'> 25 मई 2008 को 12:11 pm बजे

    आपका ब्‍लॉग फायरफॉक्‍स पर नजर नहीं आ रहा है.

     

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