कल जब एक प्रोफेसर ने हमसे सवाल किया कि- क्या सचमुच में अविनाश और यशवंत इतने बड़े फिगर हैं कि आपलोग दुनियाभर के मुद्दों को छोड़कर उनके पीछे हो लेते हैं, तो एकबारगी तो हमें भी लगा कि क्या ये दोनों चैनलों के लिए क्रिकेट, सेक्स और सिनेमा की तरह ही अटेंशन एलिमेंट हैं।..और हम जैसे लोग पीछे-पीछे तुरही बजाते हुए इनपर पैकेज बनाना शुरु कर देते हैं या फिर ब्लॉग में इसेक अलावे भी कुछ है जो हमारे प्रैक्टिस में है और जिसके बारे में मेरी पिछली पोस्ट पर टिप्पणियां आयीं कि आप अपने हिसाब से लिखते जाइए, पाठक वर्ग तैयार कीजिए, हम तो चैनलों से भी दूर हैं और अविनाश और यशवंत के पचड़ों से भी।
प्रोफेसर साहब ने बड़े ही हल्के किन्तु रोचक ढंग से हमारे सामने एक सवाल रख दिया कि- हो सकता है ये दोनों लोग आपलोगों के हिसाब से बड़े फिगर हों भी तो आप उन कुछ घटनाओं और पोस्टों की तरफ क्यों नहीं जाते, उन्हें क्यों नहीं खोजते, जिसकी वजह से आप ऐसा महसूस करते हैं या फिर उनका नाम आते ही आपलोग उनके पीछे हो लेते हैं।
अगर ऐतिहासिकता और पुरानेपन के लिहाज से बात करें तो एक बात तो बिल्कुल साफ है कि इन दोनों के साथ ये तथ्य काम नहीं करता कि ये सबसे पुराने हैं और इसलिए लोगों का ध्यान इनके उपर चला जाता है। इनसे पुराने,सम्मानित और कई दूसरे ब्लॉगर हैं जो कि लगातार लिखते आ रहे हैं। इसलिए इस पर तो आकर बात बनती ही नहीं है। फिर अटेंशन एलिमेंट क्या है?
यशवंत की भाषा, जिसे कि भाषाई उपद्रवता भी आप कह सकते हैं क्योंकि उनकी पोस्ट को पढ़ते हुए आपको एक अलग किस्म का एहसास होगा कि- अच्छा है बंदा लिखकर ही अपनी बात कह रहा है, नहीं तो साक्षात होता तो मामला लप्पड़-थप्पड़ और कॉलर पकड़-पकड़ी तक आ जाती। वैसे भी गाली-गलौज के बाद का स्वाभाविक विकासक्रम यही है। इसके साथ ही लोगों की कमीज उतारने की बेचैनी और मनोहरश्याम जोशी के पात्र की तरह सू-सू करते हुए धार पर होड़ लगाने की प्रतियोगिता कि- किसकी धार कितनी देर तक और लम्बी जाती है, एक अटेंशन बनाती है। जो बंदा ब्लॉग और पत्रकारिता की दुनिया में कच्चा-कच्चा है, एक घड़ी के लिए मोहित हो जाता है कि इसे कहते है हिम्मत और लिखते हुए कुछ कर गुजरने की ताकत। यशवंत के साथ-साथ ब्लॉग के बाकी साथियों की मानसिकता भी इसी किस्म की रही और भड़ास अटेंशन बनाए रखा। या यों भी कह लें कि इसी किस्म की मानसिकता के लोग यशवंत के साथ हुए और अटेंशन बनाए रखा. इसके अलावा मीडिया जगत में हुए हलचलों के लिए यहां एक अलग से स्पेस रहा और लोगों का ध्यान इसकी ओर गया। बड़ी खबर और ब्रकिंग न्यूज के नाम पर जो चैनलों में बासीपन आ गया है, इसे पढ़ते हुए हुए थोड़ी देर के लिए तो राहत जरुर मिल जाती कि नहीं कुछ ताजा माल भी तैयार हो रहा है। और इससे भी मजे कि बात कि मीडिया, खबरों के नाम पर जिस तरह से चटखारे लेती है, पहली बार भड़ास और यशवंत ने खबर बनानेवालों की स्थितियों पर चटखारे लेने लगे। तबादले की भाषा आप देखिए, आपको अंदाजा लग जाएगा कि ये सिर्फ खबर भर नहीं है, पूरा का पूरा मजे का मसाला है।.. तो क्या ये कहा जा सकता है कि यशवंत और भड़ास के ये अटेंशन एलिमेंट रहे और मन हल्का करने के चक्कर में सबकुछ जिसे देखकर आज चोखेरबालियों सहित कईयों को एक सड़न का एहसास हो रहा है, हमारे सामने पसरता गया।
इधर अविनाश के साथ कौन-सा अटेंशन एलिमेंट काम कर रहा है? एक बार दिल्ली से बहुत दूर के ब्लॉगर साथी दिल्ली आए तो हमसे भी मिलने चले आए। वो अविनाश के नाम पर पहले से ही बहुत खीजे हुए थे, हमसे मिलने के बाद जो उन्होंने अपनी बात रखी, उससे और भी साफ हो गया कि वो उनसे किताना खुन्नस खाए बैठे हैं। उन दिनों मैं मोहल्ला पर लिखनेवालों की टीम से अपना नाम हटाए जाने पर अविनाश भाई बोल-बोलकर लगातार पोस्ट लिख रहा था और उनको एक सही ब्लॉगर मिल गया था जिससे अपने मन की बात कही जा सकती थी।
ब्लॉग की दुनिया में आने पर मेरे साथ एक बेहतर स्थिति रही है कि मैं यहां संबंधों की गठरी और ऐतिहासिकता का बोझ लेकर यहां नहीं आया. अगर मैं इस बात का दावा करुं कि ब्लॉग लिखने के पहले मैं एक भी व्यक्ति को पहले से पर्सनली नहीं जानता था तो शायद बात झूठी नहीं होगी। कुछ के नाम पहले से सुन रखे थे लेकिन व्यक्तिगत तौर पर मिलना ब्लॉग लिखने के बाद ही हुआ। खैर, इस बातचीत में साथी ने जो बात कही,उससे लग रहा था किवो अविनाश और मोहल्ला के अटेंशन एलिमेंट की बात कर रहे हैं।
उनका कहना था कि- अविनाश जब मोहल्ला लेकर आए तो काम्युनिस्टों की पूरी टीम लेकर आए। बातचीत से लग रहा था कि शायद वो इसलिए भी अविनाश के विरोधी हैं। उसके बाद तो पूछिए मत। मैंने पूछा भी नहीं। काम्युनिस्टों को लेकर आए मतलब क्या, वो गरीब किसान, मजदूर और समाज के दूसरे शोषितों की बात करने लग गए। कला और विचारधारा के नाम पर एक खास तरह के ग्लोबल पैटर्न को फॉलो करने लग गए। यानि शुरुआती दौर में ब्ल़ॉग पर जो लोग लिख रहे थे कि किसके घर में किस दाल की छौंक लगी है, उससे अलग होते गए। लेकिन मुझे तो ऐसा कुछ दिखाई नहीं देता। अगर ब्लॉग को धीरे-धीरे एक पर्सनल, वेरी-वेरी पर्सनल माध्यम बनाते जाने, जैसा कि मेरे एक टीचर ने मुझसे कहा, का मामला है तो ये आरोप अविनाश भाई पर भी उतना ही जायज ठहरता है और अगर कल को कोई इस बात पर बहस छेडे कि किस-किसने ब्लॉग को पर्सनल बनाया है तो उसमें इनका भी नाम होगा। हम तो इससे उनको बरी नहीं कर सकते। जाहिर है साथी,अविनाश भाई के संदर्भ में जिस काम्युनिस्ट होने की बात कर रहे थे उसमें कहीं से भी उसके साकारात्मक पक्ष शामिल नहीं थे। यानि काम्युनिज्म यहां थे ही नहीं। इसलिए अटेंशन का ये एलिमेंट यही खारिज हो जाता है और अभी तक काम्युनिज्म, दक्षिण पंथ या फिर कोई भी विचारधारा अटेंशन का एलिमेंट नहीं बन पायी है। चोखेरबाली को आप विचारधारा का ब्लॉग नहीं कह सकते क्योंकि वो प्रैक्टिस पर आधारित है न कि विचारधारा पर। ये अच्छा है या खराब बता नहीं सकता। लेकिन अविनाश भाई का एटेंशन एलिमेंट कॉम्युनिज्म नहीं हैं, ये तो साफ है।..
तो फिर क्या है अविनाश और मोहल्ला का अटेंशन एलिमेंट, पढ़िए हमारी अगली पोस्ट में।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
http://taanabaana.blogspot.com/2008/05/blog-post_29.html?showComment=1212083160000#c7478899795186156329'> 29 मई 2008 को 11:16 pm बजे
अटेन्शन (एलिमेंट) एलमेंट = अधजल गगरी छलकत जाए।
http://taanabaana.blogspot.com/2008/05/blog-post_29.html?showComment=1212136020000#c237683577313449691'> 30 मई 2008 को 1:57 pm बजे
yh hai TRP badhane ka chakkar