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संघ में बहुत सक्रिय थे तो मां-बाप ने सोचा कि शादी करा दो, सब ठीक हो जाएगा और तब हमारी शादी हो गयी। राजस्थान के एक विधायक ने राजस्थान में बाल-विवाह के मसले पर एनडीटीवी को ये बाइट दी है। जाहिर है विधायकजी बाल-विवाह की सारी जिम्मवेवारी अपने मां-बाप और परिवार के लोगों पर थोपते हुए अपने को दूध का धुला बताना चाह रहे हैं।
लेकिन विधायकजी से ये सवाल कौन करने जाए कि जब आप संघ में सक्रिय थे। अखंड भारत बनाने में जुटे थे, समाज को एक नयी दिशा देने में लगे थे और आपको लगता था कि संघ की कारवाइयों को तेज करने से समाज बदल सकता है तब आपको ये नहीं लगा कि हम अपने व्यक्तिगत प्रयास से अपनी शादी जो कि कानूनन गलत है, रोक सकते हैं। आपमें दुनिया को बदल देने की समझदारी है लेकिन जब अपनी बारी आयी तो आप सारी बात अपने घरवालों पर थोप आए। मंत्रीजी अगर आप ये भी कह देते कि घरवालों ने हमें हाफपैंट पहनाकर वहां भेज दिया तब आपके प्रति जरुर सहानुभूति रखते।
समाज में अक्सर ये देखा जाता है कि लड़के दुनियाभर के काम अपनी मर्जी से करेंगे। चाहे वो किसी विचारधारा को अपनाने की रही हो, करियर चुनने का रहा हो, अपने सम्पर्क बनाने का रहा हो। लेकिन जैसी ही बात शादी पर आती है तो इसका सारा ठिकरा मां-बाप पर फोड़ देते हैं। राजस्थान में ६५ विधायकों का बाल-विवाह हुआ है जिसमें ८ मंत्री भी शामिल हैं। यहां बाल-विवाह के खिलाफ कानून होने के वाबजूद भी ४८ प्रतिशत शादियां बाल-विवाह के अन्तर्गत आते हैं। एनडीटीवी की खबर के मुताबिक जिन लोगों को इस कानून को सख्ती से लागू करने में सहयोग देना चाहिए वो खुद बाल-विवाह के जोड़े को आशीर्वाद देने पहुंच जाते हैं।
अब देखिए, बचपन से ही समाज को सुधारने का संकल्प लेकर बढ़ने वाले ये नेता अपनी शादी के समय बाल-विवाह का विरोध नहीं कर सके क्योंकि ये मां-बाप का दिल दुखाना नहीं चाहते थे।॥और अब ये जानते हुए कि बाल-विवाह अपराध है, इसे इसलिए नहीं रोकते क्योंकि इससे उनकी वोट कट जाएगी। नतीजा ये हुआ है कि राजस्थान में समारोह की शक्ल में बाल-विवाह होते हैं। प्रशासन की नाक के नीचे होते हैं और नेताजी बादाम-केसर पीने और विवाहित जोड़ों को आशीर्वाद देने पहुंच जाते हैं। समाज को वो तपका जो कि पढ़ा-लिखा नहीं है। जिनके बीच सूचना-क्रांति की कोई पहुंच नहीं है और अगर पहुंच है भी तो जड़ परंपरा के आगे बेअसर है। ऐसे में उन्हें इस बात का एहसास कराने के लिए कि कौन सी चीजें उनके हित में नहीं है, समाज के प्रभावी लोग इस बारे में बताएं। शिक्षा का प्रसार पूरी तरह से जब होगा, तब होगा और कुछ रिवाज और अंध परम्परा शिक्षा के विस्तार के बाद भी खत्म हो जाएगी, आप पूरे दावे के साथ नहीं कह सकते। पढ़े-लिखे लोगों को भी इसमें शामिल होते देखकर तो ऐसा ही लगता है। ऐसे में समाज के प्रभावी लोगों की बातों का उनपर सीधा असर होता है। पल्स पोलियो के लिए अमिताभ बच्चन और एड्स के लिए विवेक ऑवराय को लाने के पीछे यही समझदारी काम करती है। अब समाज के ये प्रभावी नेता विरोध तो नहीं ही करते हैं, साथ ही आशीर्वाद देने जब बाल-विवाह के मंडप पर पहुंचते हैं तो इन लोगों के बीच क्या संदेश जाता है। यही न कि जब इतने बड़े-बड़े लोग इस शादी में आते हैं तो ये भला किस हिसाब से गलत हो सकता है। इसलिए प्रचार-प्रसार की धार भी ये नेता शामिल होकर भोथरे करते हैं। अगर ये सकारात्मक दिशा में जाकर काम करें और उस तरह की मानव विरोधी रिवाजों का विरोध करें तो सुधार की गुंजाइंश तो बनती ही है। लेकिन नहीं, वो ऐसा क्यों करने लगें।॥
वोट तो एक बड़ा फैक्टर है ही साथ में जब इस तरह के रीति-रिवाजों की बात आती है तब वो सरकार के लोग न होकर उस परिवेश और मानसिकता के लोग हो जाते हैं जहां ये सारी चीजें उपजती है। अपना दिखाने के फेर में, अपने बीच का होने का बताने में वो इन कार्यक्रमों में शामिल हो जाते हैं। बिहार और यूपी से जुड़ी उन खबरों में अक्सर आप देखते-सुनते होंगे कि विधायक बारगर्ल डांस में शामिल हुए, उनके आनंद लेने की क्लिपिंग्स मीडिया अक्सर दिखाती है। वहां तो उनका प्रभाव कायम हो जाता है। लोगों को भी लगता है कि ये बड़े हैं तो क्या हुआ, हैं तो अपने बीच के ही और अपनापा बना रह जाता है और इधर नेताजी का भी काम बन जाता है। जबकि नेताजी को ऐसे मौके पर समझने की जरुरत है कि वो उसी समय प्रशासन, व्यवस्था और सरकार का हिस्सा हैं। वो जो कुछ भी करेंगे उसका सीधा असर समाज पर होगा।
जिस मीडिया को वो दिन-रात गरियाते रहते हैं, उनपर नकेल कसने की बात करते नजर आते हैं, उसी मीडिया ने उन्हें इतना समझदार तो जरुर बना दिया है कि वो समझ सकें कि कौन सी बातें मानव विरोधी हैं और उनका समर्थन नहीं विरोध करनी चाहिए। इधर घरवाले ने कहा कि शादी कर लो तो कर लिया। घरवालों ने कहा कि दहेज कम देने पर लड़की को प्रताड़ित करो तो उस कारवायी में शामिल हो गए। इन सब कामों के लिए हम जिम्मवेवार नहीं। लेकिन कोई तर्क है आपके पास जो बता सके कि हर हाल में स्त्रियों के शोषण का सीधा जिम्मवेवार वो न होकर कोई और है। कम उम्र में शादी की वजह से बच्चा जनने के समय लड़कियों की मौत, अपरिपक्व अवस्था में यौन संबंध से स्वास्थ्य में लगातार गिरावट और दमघोंटू जिंदगी जीने के लिए मजबूर इन लड़कियों की कोई बाइट है जो नेताजी की तरह बता सके कि संघ में सक्रिय थे इसलिए शादी कर दी गयी।....और हम आगे जोड़ दें कि अखण्ड भारत के संकल्प के आगे इन छोटी-मोटी बातों पर ध्यान गया ही नहीं।
अब तो इस फार्मूले को भी फिट करने की स्थिति में भी नहीं हैं कि आप कह सकें कि एक स्त्री की पीड़ा को स्त्री ही समझ सकती है। अगर ऐसा होता तो राजस्थान में बाल-विवाह के आंकड़ों का ग्राफ बड़ी तेजी से गिर जाने चाहिए थे और अब तक खत्म भी हो जाते। लेकिन....लेकिन सत्ता का अपना ही चरित्र होता है, वो स्त्री-पुरुष के आधार पर विशलेषण किए जाने से परे है....
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3 Response to 'संघ में सक्रिय थे सो बाल-विवाह कर लिया'
  1. nadeem
    http://taanabaana.blogspot.com/2008/05/blog-post_09.html?showComment=1210338480000#c884271119264726882'> 9 मई 2008 को 6:38 pm बजे

    अब ये लोग अगर विरोध करेंगे तो वोट कहाँ से मिलेंगे और रही बात संघ की तो ऐसा न कहें वरना ऐसा न हो कि आपको भारतीये सभ्यता का दुश्मन कहा जाने लगे.क्यूंकि कुछ भी हो है तो ये भारतीये सभ्यता का ही एक रूप.

     

  2. bhuvnesh sharma
    http://taanabaana.blogspot.com/2008/05/blog-post_09.html?showComment=1210340700000#c1551733544929911375'> 9 मई 2008 को 7:15 pm बजे

    सब अंधेर नगरी चौपट राज है गुरू.
    अब आप शिक्षा का जो अर्थ लगा बैठे हैं उसका मतलब वो है ही नहीं.
    शिक्षा का वास्‍तविक मतलब है किसी भी तरह से नौकरी में फिट हो जाना और भरपूर पैसा कमाना.यदि ऐसा ना होता तो आई.ए.एस अफसर अपनी शादियों में करोड़ों रुपये दहेज की मांग क्‍यों करते.
    मेरे एक मित्र कहा करते थे कि यदि उनके पास पैसा होता तो वे पढ़ते ही नहीं क्‍योंकि पढ़ाई का उद्देश्‍य अंतत: पैसा कमाना ही तो है.
    अब ऐसे लोगों को क्‍या कहिएगा और ऐसे लोग एकाध नहीं लाखों करोड़ों में हैं.
    यदि आप सोचते हैं कि आदमी पढ़-लिखकर सामाजिक विडंबनाओं को बदलेगा तो ऐसा गलत है.
    और बहुत से तो फर्जी कालेजों से नकल द्वारा डिग्रियां ही इसीलिए लेते हैं कि उनकी शादी में दहेज अच्‍छा मिल जाए या कहने को हो जाए कि हम भी फलां-फलां डिग्री लिये हैं.
    कुछ भी नहीं बदला है गुरू. शिक्षा का भले प्रसार हो जाए पर वास्‍तविक अर्थों में इंसान को शिक्षित करना बहुत दूर की कौड़ी है.

     

  3. दिनेशराय द्विवेदी
    http://taanabaana.blogspot.com/2008/05/blog-post_09.html?showComment=1210355700000#c7082003469015355979'> 9 मई 2008 को 11:25 pm बजे

    आज 'अदालत'चिट्ठे की खबर देखें। पति की नपुंसकता से आहत पत्नी की आत्महत्या में पति को आत्महत्या के लिए प्रेरित करने का दोषी माना जा सकता है। तो संघ को बालविवाह कराने के लिए प्रेरणा देने का दोषी क्यों नहीं?

     

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