अगर कन्या चलते समय मिट्टी को ऊपर की ओर उडाती है तो पिता, पति अथवा माता के परिवार को कष्ट देने वाली होती है। लीजिए भाई साहब एक बात और साबित हो गई कि धूल उड़ाकर मस्ती में चलने का अधिकार सिर्फ हम पुरुषों को ही है। दिनभर तरोताजा और हेकड़ी भरने के लिए एक ठोस वजह। तब तो स्त्रियों के लिए, हम दीवानों की क्या हस्ती, हैं आज यहां कल वहां चले, मस्ती का आलम साथ चला, हम धूल उड़ाते जहां चले का कोई मतलब ही नहीं है और न ही इसमें इसकी कोई हिस्सेदारी है। अभी देखते जाइए न जितने मानक इस समाज और उससे उपजे ज्ञान ने तैयार किए हैं उसमें कितना बड़ा हिस्सा हम पुरुषों का है।
आज सुबह-सुबह सुजाता ने एक लिंक ठेला और कहा पढ़ो। आमतौर लोग अपनी लिंक ठेलते हैं लेकिन ज्ञान बढ़ाने या फिर जानकारी को आपस में शेयर करने के लिए कुछ और भी भेजते हैं जो कि ब्लॉग की दुनिया के लिए बेहतर चीज है। लिंक हैं-http://allastrology.blogspot.com/2008/02/blog-post_27.html जिसमें सिद्धार्थ जोशी ने बताया है कि ज्योतिष के हिसाब से कौन-सी लड़की सुंदर होती है। जाहिर है जो सिर्फ देखने में सुंदर है वो नहीं बल्कि जो ज्योतिष के पैमाने पर खरी उतरती है वो लड़की। जिन्हें शादी करनी हो और लड़की के साथ रहते हुए भी अमन-चैन की जिंदगी बितानी हो उनके लिए काम की चीज हो सकती है। क्योंकि मजाक में ही सही और वैसे तो निश्चित तौर पर लड़कियों के साथ जिंदगी बिताना परेशानी का सबब बताया जाता रहा है। खासतौर से ये उनके काम की है जो परिवार की मर्जी से शादी करना चाहते हैं जिन्हें परिवार संस्था पर भरोसा है और जिन्हें लगता है गांव का पंडित उससे और उसके मां-बाप से ज्यादा बेहतर लड़की खोज सकता है।
आज न हो गया शादी डॉट कॉम और मेटरोमोनियल। नहीं तो ये काम पंडितों के जिम्मे था कि किस लड़के को किसके साथ फिट करना है। अभी भी किसी लड़के या लड़की की शादी होनी होती है तो वो पंडित से सम्पर्क करता है। इसकी एक वजह तो है कि वो जहां-तहां विजिट करते रहते हैं और उन्हें आइडिया होता है कि कौन कुंवारा या फिर कुंवारी है। लेकिन उससे भी बड़ी वजह जो मुझे समझ में आती है वो यह कि- लड़की पढ़ी-लिखी है कि नहीं, खाना बनाना जानती है कि नहीं दाल-भात से लेकर कॉन्टिनेंटल और चाइनिज तक, सिलाई-कढ़ाई आती है कि नहीं, पर पुरुषों से कहीं संबंध तो नहीं, कंगले घर की तो नहीं है, माल-पानी तो मिलेगा न...आदि-आदि बातें तो कोई भी पता कर लेगा कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन असल चीज तो सिर्फ पंडितजी ही बता सकते हैं वो यह कि- जब लड़की आएगी तो हमारे घर में बरकत तो होगी, पैसा और प्रोमोशन तो बढ़ेगा न। घर की दशा कैसी रहेगी, ये सारी बातें पंडितजी को छोड़कर भला और कौन बता सकता है।
इन पंडितों और इनके ज्योतिष के हिसाब से लड़कियों का भले ही अपना कोई भाग्य नहीं होता, पति के चरणों में बैठकर जो कुछ मिल जाए वो सब प्रसाद है लेकिन इसी पंडित के हिसाब से पुरुषों का भाग्य वामा यानि पत्नी यानि लड़की यानि चरणों की दासी के आने पर तय होती है। कई बार तो मैंने खुद देखा है कि लड़का मारा-मारा फिर रहा है, पंडित से जब उसकी कुंडली दिखाई गई तो बताया कि इसका स्त्री योग के बाद भाग्य उदय है। और आनन-फानन में शादी तय कर दी जाती है। भइया एक बेरोजगार लड़के को भी अगर पांच लाख कैश मिल जाए तो भाग्य तो चमकेगा ही।
लेकिन पंडित लड़की की सुंदरता और योग्य वधू की परिभाषा देता है उसमें ये सारी बातें शामिल नहीं है। उसमें तो शामिल है कि- मुस्कुराने पर मसूडे दिखाई दें तो स्त्री भाग्यहीन होती है। यानि जिस बंदे को अरेंज मैरज करनी हो जो कि दुर्भाग्य से अभी भी आदर्श स्थिति माना जाता है उसे झटके में शादी नहीं करनी चाहिए। पंडितजी की मदद से लड़की के एक-एक अंग की जानकारी लेनी चाहिए कि वो हर तरह से उसके मान-सम्मान को बढ़ाएगी कि नहीं।
अच्छा, एरेंज मैरेज में जो दूसरी बात जरुरी है वो ये कि वो शादी के बाद कब जल्द-से-जल्द खुशखबरी सुनाएगी। अगर देर होती है तो वो बुजुर्गों के हिसाब से कुलनाशिनी है। जब बच्चा ही नहीं तो फिर शादी किस बात की। लड़की बच्चे को जन्म देगी या नहीं इसे कैसे पता करें। ज्योतिष के हिसाब से-किसी स्त्री की एडी गोल, गदराई हुई और सुंदर हो तो उसके गुप्तांग भी बिल्कुल सही काम करने वाले होते हैं।
आप जब लड़की को देखने लड़केवाले के साथ पंडित आते हैं तो देखिए- आगे चलाएंगे,पीछे, हाथ दिखाओ, आखें बंद करो, खोलो, एडी उठाओ, पैर सटाकर दिखाओ, दोनों हाथें बंद करो...पता नहीं क्या-क्या। शरीर के एक-एक हिस्से की नुमाइश। मेरी चचेरी बहन तो फफक-फफककर रोने लगी थी और हमें पकड़कर कहती-सारा पढ़ा-लिखा बेकार चला गया विनीत।...और शादी के नाम से नफरत है उसे। लड़की को बुरा लगे तो बला से। पंडित को तो अपनी एजेंटी करनी है न और लड़केवाले किसी नसपीटी को कैसे ले आएं, ठोक-बजाकर ही तो लाएंगे।
मतलब ये कि ज्योतिष जिस रुप में सुंदर लड़की की व्याख्या करता है वो किसी कवि चित्रकार और हमारी-आपकी स्केल से बिल्कुल जुदा है। क्योंकि यहां आकर उसे पुरुष का भी भाग्य संवारना है।
सिद्धार्थजी ने तो पूरी बात बता दी कि कैसी होनी चाहिए कुंवारी लड़की(ज्योतिष के हिसाब से) लेकिन ये नहीं बताया कि अगर लड़की में कोई खोट है, शरीरी स्तर पर तो कैसे दूर करे या फिर उसका विकल्प क्या है। क्योंकि जब सारी बातें देह पर ही टिकी है तो समाधान भी देह के स्तर पर ही हो जाए।....लेकिन नहीं फिर पंडितों का चोर दरवाजा बंद हो जाएगा न- जब पुरुष अपने लंपटई के कारण कंगाल हो जाए तो बताने में कैसे बनेगा कि- इसकी पत्नी हंसती है तो मसूडे दिखते हैं, भाग्यहीन है, इसलिए लड़के की मति मारी जा रही है।
( इस पोस्ट को मैंने सिद्धार्थ जोशीजी की पोस्ट स्त्री की सुंदरता : ज्योतिषीय दृष्टिकोण को पढ़ने के बाद लिखा है। मेरी उनसे कोई व्यक्तिगत असहमति नहीं है क्योंकि उन्होंने व्यक्तिगत स्तर पर कुछ लिखा ही नहीं है शायद ज्योतिष में इसकी गुंजाइश न हो। मैं तो बस इतना ही समझता हूं ये पोस्ट उनके काम की है जो अपने सारे परिणामों को स्त्री पर लादने में कुशल हैं और लड़की से शादी कर घर लाने और कार खरीदकर घर लाने में कोई अंतर नहीं समझते।....वैसे पढ़-लिखकर अपना भाग्य बनाने और धूल- धुआं उड़ाकर चलनेवाली लड़कियों के लिए कोरा गप्प, यू नो गॉशिप।
देह विमर्श पर आधारित है ज्योतिष या यों कहें स्त्री विरोधी है ज्योतिष
Posted On 2:02 am by विनीत कुमार |
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http://taanabaana.blogspot.com/2008/02/blog-post_28.html?showComment=1204183380000#c5656349338050796176'> 28 फ़रवरी 2008 को 12:53 pm बजे
बहुत खूब विनीत ! सही पकडा तुमने । यही इंगित करना चाह रही थी । सिद्द्धार्थ जी किताब का नाम बता देते तो ज्ञान और बढता :-)
फिलहाल तो ये और भी प्रश्न खडे करता है चोखेर बालियों के लिये ।
http://taanabaana.blogspot.com/2008/02/blog-post_28.html?showComment=1204184880000#c2584659096264634630'> 28 फ़रवरी 2008 को 1:18 pm बजे
आइडिया तो बहुत अच्छा है । अब जिन लोगों ने नख से शिख तक पूरा निरीक्षण कर लिया उनसे लज्जा का तो प्रश्न ही नहीं उठता सो कपड़ों की पाबन्दियाँ तो नहीं रहेंगी । कुछ भी पहनो , कैसे भी बैठो । कितने भी दाँत , मसूड़े, तलवे दिखाओ । आँखें भी दिखा सकते हैं ।
कल लड़के का निरिक्षण लड़की के घर की स्त्रियाँ कैसे करती हैं जानने की उत्सुकता है ।
घुघूती बासूती
विनीत जी मैं तो अपने को रोकते रोकते भी यह टिप्पणी वहाँ कर ही आई थी ।
घुघूती बासूती
http://taanabaana.blogspot.com/2008/02/blog-post_28.html?showComment=1204191660000#c8792572165511523512'> 28 फ़रवरी 2008 को 3:11 pm बजे
बाबू मोशय इस देश में सबकी दुकान चलती है, लेकिन कभी कभी रोना आता है हमारी भोली भाली जनता और उन्हें बेवकूफ बनाने वालों पर
http://taanabaana.blogspot.com/2008/02/blog-post_28.html?showComment=1204211760000#c3476709821272614904'> 28 फ़रवरी 2008 को 8:46 pm बजे
भाई साहब मैं भी नकली ज्योतिषियों को जब-तब रगड़ता रहता हूँ, इनकी दुकानदारी बन्द करना ही होगी… एक नजर इधर भी डाल लीजियेगा
फ़लज्योतिष परखने के लिये कुछ प्रयोग (करके देखें)
http://sureshchiplunkar.blogspot.com/2007/11/experiments-for-astrology-try-yourself.html
ज्योतिष : अखबार और पत्रिकायें
http://sureshchiplunkar.blogspot.com/2007/11/astrology-newspaper-magazines.html
क्या ज्योतिषी उपभोक्ता संरक्षण कानून में आते हैं?
http://sureshchiplunkar.blogspot.com/2007/11/astrology-consumer-protection-act.html
http://taanabaana.blogspot.com/2008/02/blog-post_28.html?showComment=1204216080000#c6182773389391725151'> 28 फ़रवरी 2008 को 9:58 pm बजे
एक बेहतरीन किताब है जो इस सन्दर्भ में पढ़ी जानी चाहिए. हरिमोहन झा की 'खट्टर काका'. लेखक ने हमारे मिथकों में भरे स्त्री विरोध की अच्छी ख़बर ली है.
http://taanabaana.blogspot.com/2008/02/blog-post_28.html?showComment=1204221420000#c5984370499058750072'> 28 फ़रवरी 2008 को 11:27 pm बजे
विनीत जी आपकी पोस्ट पढी। इसका इतना बढिया जस्टिफिकेशन शायद मैं खुद भी नहीं कर पाता। लेकिन कुछ बातें ऐसी है जो मैंने कही नहीं और मान ली गई। अपनी अगली पोस्ट में मैं पुरुषों के लक्षणों के वर्णन से पहले स्त्रियों वाली पोस्ट पर उठे सवालों के जवाब देने की कोशिश करूंगा। जहां तक पौंगे पंडितों का सवाल है वहां एक बात स्पष्ट है कि जो लोग सैक्स को सब्जेक्ट की तरह नहीं लेते वे खुद ही उलझ जाते हैं। शेष मेरे पोस्ट पर...
http://taanabaana.blogspot.com/2008/02/blog-post_28.html?showComment=1204440480000#c9084529053107878072'> 2 मार्च 2008 को 12:18 pm बजे
"खट्टर काका" का समर्थन मैं भी करूंगा, जरुर पढ़ें
http://taanabaana.blogspot.com/2008/02/blog-post_28.html?showComment=1205392800000#c2405765966375441265'> 13 मार्च 2008 को 12:50 pm बजे
hiiiiiiiiiiiiiiiiiiiii my aim worldpeace is a my life my dream&concentration as a breath to me.it is not a side of money/selfbenifit.i want do socialwork with honesty;not a only working for it but more harderwork.my book A NAI YUG KI GEETA..is completed.This is in hindi languages .nowadays im suffering many problems like.1.publishers says that u have no enough degree&b.tech students is not a enough for it.&who know you in your country/world so they advice me firstly you concentrate for degree because of at this stage nobody read your book but they also said that your book is good. 2.publishers wants to data for publishing the book.means from where points did you write your book but i have no data because of my book is based on my research.book chapter name is. 1.MAHILA AAJ BHI ABLA HAI KYO . 2. AIM PROJECT {AAP APNA AIM KA % NIKAL SAKTE HO }. 3. MY PHILOSPHEY 4.MERA AIM VISHVSHANTI. 5.POETRY. 6.NAYE YUG KI GITA VASTAV MAY KYA HAI. 7. WORLD {SAMAJ} KI BURAIYA. 8. VISHV RAJ-NITE. ALL THESE CHAPTER COVERD BY ME. 3.max. people told me that firstly u shudro than worry others. they told me now a days all lives for own .why u take tansen for world . i cant understands thease philoshpy. according to my philoshpy in human been charcter; huminity; honesty; worlrpeace &do good work. i have two problem 1. DEGREE. 2. LACK OF MONEY because my parents told me your aim is not any aim &u tents to many difficulties. PLEASE ADVICE ME. IF U CAN GIVE ME YOUR POSYAL ADDRESS &PHONE NO. THAT WILL BE GOOD . THANKS. " JAI HINDAM JAI VISHVATTAM " THANKS.
my e-mail id worldpeace9990006381@gmail.com
http://taanabaana.blogspot.com/2008/02/blog-post_28.html?showComment=1205392980000#c7081940828271768102'> 13 मार्च 2008 को 12:53 pm बजे
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