आप सोचेंगे, उस बंदे पर क्या बीतती है जब कोई लड़की उससे सेनेटरी नेपकिन उधार मांगती है, बस में वो हमेशा बच के चलता है कि कहीं उसकी इज्जत से कोई खिलवाड़ न कर बैठे। बार-बार शर्ट के उपरे हिस्से के बटन को चेक करता है कि कहीं खुली तो नहीं रह गई, टाई से आगे के पोर्शन को ढंकता है कि कहीं देख न ले कोई। बार-बार अपने को सिकोड़ने की कोशिश करता है। फ्रेश होने के लिए लेडिज टॉयलेट जाता है।
टीवी पर ये एड मैं पिछले तीन-चार दिनों से लगातार देख रहा हूं। सहारा का फिरंगी नाम से कोई नया प्रोमो शायद चैनल आ रहा है जिसमें दुनिया भर की ऐसी कहानियों को दिखाने का दावा है। एक लड़के की वो तमाम हरकतें लड़कियों जैसी है जिसे कि अब लड़कियां भी छोड़ने लगी है। उस बंदे से लड़की एक्सट्रा नेपकिन होने पर उधार लेने की बात करती है। पुरुषों के इस रुप को देखकर आपको गुस्सा आए तो आपकी बला से लेकिन जोर-शोर से इसका प्रचार जारी है।
इधर दूसरी तरफ उसी एड में लड़की खड़ी होकर जेन्ट्स टॉयलेट में.....करती है औऱ लोगों को अजूबा लगता है। आज इसका ऑनएयर होना है। चैनल क्या मैसेज देना चाहता है इतना तो मुझे भी नहीं पता लेकिन संकेत के रुप में जो मैंने समझा वो ये कि-
एक घड़ी के लिए आपको हंसी आ सकती है कि जो बात किसी लड़की में होनी चाहिए वो लड़के में दिखाया जा रहा है और जो बात लड़के में होनी चाहिए वो लड़की में दिखाया जा रहा है। शायद ऐसा इसलिए कि चैनल लड़की को थोड़ा मैसकुलिन टच देना चाह रहा हो और लड़के को थोड़ा शॉफ्ट, शर्मिला और इन्सिक्योर। पौरुष की गाथा गाने वाले लोगों, संस्थाओं, राजनीतिक पार्टियों या फिर संगठनों को ये बात नागावार गुजर सकती है लेकिन इसे मैं लोगों के एप्रोच में बदलाव और स्त्री-पुरुष को लेकर बायनरी थॉट की जो अवधारणा विकसित की गई है कि एक पुरुष स्त्री की जगह अपने को रखकर सोच ही नहीं सकता, इसे दरकने का संकेत मान रहा हूं।
पता नहीं क्यों, जब भी मैं जूते,कपड़े या फिर एसेशरीज खरीदने जाता हूं तो लड़को की शेल्फ से ज्यादा लड़कियों की शेल्फ, उनके रंग और डिजाइन की तरफ खींचता हूं। अक्सर सेल्समैन कहा करते, सर ये लेडिज शू है और मैं मन मारकर रह जाता। ऐसी डिजाइन हम लड़कों के लिए क्यों नहीं बनाते। मुझे शॉफ्ट और छोटी लुक की चीजें पसंद आती है। लेकिन इधर मैं करीब सालभर से देख रहा हूं कि लगभग सारे अच्छे शो रुम में यूनिसेक्स का फंडा आ गया है। एक तो पिंक, पर्पल या फिर वो सारे रंग जो कभी लड़कियों के लिए पेटेंट माने जाते हैं उनमें लड़कों की शर्ट या फिर टीशर्ट आसानी से मिल जाएंगे और दूसरा जूते भी उऩकी तरह। यूनिसेक्स माने दोनों में चलेगा। पहले इन चीजों की भारी कमी थी। अब तो लगभग सारी चीजें यूनिसेक्स यानि लड़के-लड़की दोनों के लिए।
कानों में बालियां या फिर नग लड़कों के बीच कॉमन हो गया है लेकिन इधर एमटीवी पर एक गाना लगातार आ रहा है-हीपॉपर प्यार तो कर ले...ए हिप्पॉपर। ये जो हिप्पॉपर है न वो नाक में नग पहनता है और हाथ भी लड़कियों की तरह लहराता है।
ऐसा हम जब छोटे थे,तब अपनी दीदी को पापा के मार से बचाने के लिए करते थे जब वो अपना होमवर्क किए बिना सो जाती। मेरी छोटी दीदी को पढ़ने में बिल्कुल मन नहीं लगता। हम दीदी का फ्रॉक पहन लेते और सो जाते। पापा सिर्फ फ्रॉक देखकर ही, जल्दी सोया देखकर पीट देते और बाद में जब देखते कि मैं हूं तो और गुस्सा होते और हमें पीटते कि भांड बनने का शौक होता है। इसमें मैं तो ठीक-ठाक से पिट ही जाता लेकिन पापा का ध्यान दीदी की ओर से हट जाता और सुबह मुझे इसके दीदी की तरफ से दो रुपये मिलते।
लेकिन अब फैशन और गेटअप में लड़के खुलेआम लड़कीनुमा दिखने लगे हैं। महिलाओं की पता नहीं इस पर क्या प्रतिक्रियाएं होंगी लेकिन इस यूनिसेक्स के कॉन्सेप्ट को सिर्फ फैशन के स्तर पर नहीं बल्कि मानसिकता के बदलने के स्तर पर भी देख रहा हूं।
आज का जो यूथ जेनरेशन है वो पहले के मुकाबले एग्रेसिव नहीं है,हिंसा में विश्वास नहीं रखता। एक तबका कह सकता है कि अब के लड़के दब्बू होते हैं लेकिन मुझे तो पहले से ज्यादा संवेदनशील और समझदार नजर आते हैं। समाजशास्त्रियों और साहित्यकारों को इस मान्यता को स्वीकार करने में हो सके थोड़ा वक्त लगे लेकिन बाजार ने इसे हमसे पहले समझ लिया है। शॉफ्ट लुक और यूनिसेक्स की चीजें बिक रहीं है तो इसकी वजह सिर्फ फैशन नहीं है, इसका संबंध साइको से भी है। स्त्रीवादी रचनाकार भी इसे फेमिनिज्म की डिस्टॉर्टेड होती इमेज मान सकती हैं। लेकिन थोड़ी देर के लिए स्त्री-पुरुष की पहचान और अस्मिता की राजनीति में न जाएं तो ये हैप्पीयर जेनेरेशन के चिन्ह हैं।
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http://taanabaana.blogspot.com/2008/02/blog-post_25.html?showComment=1203944760000#c6925369885685733932'> 25 फ़रवरी 2008 को 6:36 pm बजे
ह्म्म !
सोच रहे हैं भाई , क्या कह गये । समझ के बताते है ..अभी तो जल्दी मे पढ डाला सिर्फ..
http://taanabaana.blogspot.com/2008/02/blog-post_25.html?showComment=1203956280000#c5118824270406904964'> 25 फ़रवरी 2008 को 9:48 pm बजे
भई मसले को संजीदगी से समझा है आपने और अच्छा मुल्यांकन भी किया है। मुझे लगता है कि हमे बराबरी की बात समझनी चाहिए
http://taanabaana.blogspot.com/2008/02/blog-post_25.html?showComment=1203961740000#c8938644678574489'> 25 फ़रवरी 2008 को 11:19 pm बजे
दोपहर में मैने आपसे कहा था कि फुरसत में पढ़ूंगा, पढ़ा पर समझ नही पाया कि क्या कहूं, वैसे लगता है कि आपके अंतिम पैराग्राफ से मुझे सहमत होना चाहिए!!
http://taanabaana.blogspot.com/2008/02/blog-post_25.html?showComment=1203973380000#c4062517795023426799'> 26 फ़रवरी 2008 को 2:33 am बजे
एड तो हमने भी देखा अखबार में पर आपकी तरह गंभीरता से नहीं लिया।
http://taanabaana.blogspot.com/2008/02/blog-post_25.html?showComment=1204027440000#c6124259221607499521'> 26 फ़रवरी 2008 को 5:34 pm बजे
jaisa ki channal ke naam se he jaahir ho raha hai mujhe lagta ye firangi mansikta he hai, bharat ke sandarbh me ye baat theek nahi hai, mai india ki baat nahi kar raha hu