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कमीना नहीं, कमीना नं वन बनना होगा

Posted On 4:21 am by विनीत कुमार |

बिंदास चैनल पर एक टैलेंट हंट कमीना नं-१ जिसमें सबसे ज्यादा कौन कमीना है या हो सकता है उसकी खोज चल रही है। कई कंटेस्टेंट पार्टिसिपेट करने आए। सबके मन में आस थी कि चैनल और उसके जज मिलकर देश का कमीना नं वन घोषित कर दें। सब अपने को कमीनों का बादशाह कहलाने के लिए बेताब हुए जा रहे थे। ऐसी कमीनगी देखी नहीं के बाद बारी आयी कि जज उनके नंबर बताएं। जज के पैनल में शेखर सुमन भी हैं। एक बंदे को ६ नंबर देते हुए कहा कि तुममें और कमीना होने की गुंजाइश थी लेकिन कम्बख्त हो नहीं पाए औऱ इसलिए वो कमीना नं वन नहीं हो पाया। लेकिन जिस बंदे को उससे ज्यादा नं मिले वो हो गया कमीना नं-वन।
जिन लोगों को नैतिकता की बीमारी लगी है और जो कहते-फिरते हैं कि ये गलत है ऐसा नहीं होना चाहिए, हो सकता है कि वो स्टूडियों में जाकर तोड़-फोड़ मचाएं,धरना प्रदर्शन करें, वो सब कुछ करें जो देश की गौरवशाली संस्कृति बचाने वाले लोग करते हैं, जिन मां-बाप को लगता है कि अगर मेरे बच्चे ने स्साला बोला है तो वो गाली है, वो तो इस टैलेंट हंट शो में पिछड़ जाएगा। बुद्धिजीवी समाज ये भी सोच सकता है कि जो सबसे ज्यादा कमीना होगा, चैनल उसे इनाम देगा। अब सब नं वन कमीने तो हो नहीं सकते लेकिन कोशिश तो लाखों में करेंगे और थोड़े-बहुत तो हो ही जाएंगे, ऐसे में समाज खड्डे में चला जाएगा। जिन्हें लगता है हमारी संस्कृति सबसे उम्दा संस्कृति रही है और हमारी भाषा तो देववाणी रही है, जहां हिन्दी बोल देने से भी छूत लग जाती है वे भड़क सकते हैं। लेकिन जो लोग प्रोडक्शन में लगे हैं, चाहे वो किसी कल्चरल प्रोडक्शन में लगे हों या फिर सड़को से बिनी हुई प्लास्टिक की थैलियों को गलाकर खिलौने बनाने की फैक्ट्री है, उनके लिए ये शो एक अच्छी सीख है।
देश में जब औद्योगिक क्रांति आई तो साथ में इस तकनीक का भी विकास हुआ कि प्रोडक्शन के बाद जो कचरा पैदा होगा उसका क्या किया जाएगा और कमोवेश उसका हल निकाल लिया गया। मीडिया ने भी इस तकनीक को समझा और फाइनल प्रोडक्ट यानि लिटिल चैम्स, इंडियन ऑयडल, बाथरुम सिंगर वगैरह बना लेने और बाजार मे सप्लाय कर देने के बाद जो बच गए उसका क्या होगा उसके बारे में सोचने लगे। एक बात तो समझना होगा कि ग्लैमर की दुनिया में तकदीर जितनी तेजी से बदलती है, असफल होने पर फ्रशटेशन भी उतनी ही जल्दी आती है। ये कोई रेलवे, बैंकिग या सिविल की कंपटिशन तो है नहीं कि इस बार नहीं तो अगले साल। इसमें तो नहीं नं वन हुए कि आप कूडा मान लिए गए, आप खुद ही अपने को समझने लगे। ये और बात है कि आपका एलबम निकलता रहेगा और शादी-ब्याह में रौनक लगाने के लिए आपको बुलाया जाता रहेगा। फिर भी नं वन न होने की टीस तो बनी रहती है। उसका क्या करें। आप दारु पीते हैं, मां-बहन की गालियां देते हैं, कभी जजेज को गरियाते हैं, कभी चैनल को जिसने सपने दिखाए तो कभी हम जनता को जिसने आपको तंगी की हालत में जीतने लायक एसएमएस नहीं किए। यानि आप कल्चरल वेस्टेज या कचरा हो गए।
इस कल्चरल कचरे को ठिकाने लगाने का काम चैनल को है क्योंकि पैदा भी उसने ही किया। चैनल भी अपनी इस जिम्मेवारी को बखूबी समझ रहा है इसलिए आपकी खपत कहां हो इसे लेकर सचेत हैं। बाथरुम सिंगर ने इसकी शुरुआत कर दी थी जहां कोई जरुरी नहीं कि आप मो।रफी बन जाएं, बस राग-झाग में वैलेंस बनाए रखना है। हो न हो आने वाले समय में कल्चरल वेस्टेज को ठिकाने लगाने के लिए ऐसे और प्रोग्राम आए। लेकिन इसमें चक्कर ये है कि सबसे ज्यादा फ्रस्टियाया और कमीना आदमी ही जीत सकेगा इसलिए रोज पीना, पीकर मां-बहन करना और कमीनेपन के नए नुस्खे आजमाते रहना जरुरी है। क्योंकि इसमें भी आपको नं-वन होने पर ही मामला बनेगा, अधूरा कमीना होने पर आप पिछड़ जाएंगे।
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1 Response to 'कमीना नहीं, कमीना नं वन बनना होगा'
  1. Rakesh Kumar Singh
    http://taanabaana.blogspot.com/2008/02/blog-post_10.html?showComment=1202710020000#c6814117469894494049'> 11 फ़रवरी 2008 को 11:37 am बजे

    क्या बात है! अच्छा मसला उठाया.

     

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