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कॉर्पोरेट मीडिया और टेलीविजन चैनलों के बीच समाचार4मीडिया की अपनी एक खास पहचान है। वो इनमें शामिल लोगों को अच्छा-खासा स्पेस देता आया है। तथाकथित नामचीन मीडियाकर्मी इस पर अपनी तस्वीर,इंटरव्यू या कोई खबर आने पर इसके लिंक शान से फेसबुक पर साझा करते हैं,मेल के जरिए लोगों को पढ़ने का अनुरोध करते हैं। कुल मिलाकर मीडिया इन्डस्ट्री में ये वेबसाइट एक ब्रांड है। अभी इस वेबसाइट के आए एक साल भी नहीं हुए लेकिन मीडिया से जुड़े लोगों के बीच इसने अपनी एक खास पहचान बना ली है। खासकर उनलोगों के बीच जो मीडिया को माध्यम से कहीं ज्यादा बिजनेस परफार्मेंस का हिस्सा मानते हैं। समाचार4मीडिया को इतने कम समय में जो पहचान मिली है उसकी बड़ी वजह उसकी खुद की कोशिश से कहीं ज्यादा exchange4media से विरासत के तौर पर मिली नेटवर्किंग है। बहरहाल

मीडिया इन्डस्ट्री के उपर के लेबल के गिने-चुने लोगों के बीच भले ही इसकी बेहतर पहुंच हो,बिजनेस परफॉर्मेंस में यकीन में रखनेवाले लोग इस साइट से अपने को नाक का सवाल जोड़कर देखते हों लेकिन आम इंटरनेट पाठकों, ब्लॉगरों और मीडिया की खबरों की जानकारी रखनेवाले लोगों के बीच इस साइट की कोई खास पहचान नहीं है। न तो लोग इसे रेगुलर पढ़ते हैं और न ही इसे अपनी मीडिया बहसों में शामिल करते हैं। इसकी बड़ी वजह है कि ये साइट मीडिया के मसलों पर बात करते हुए भी,उसकी खबरें छापते हुए भी उसके भीतर के सवालों को उठाने के बजाय उसकी पीआरगिरी में यकीन रखता है। मैंने कई बार महसूस किया कि उसने चैनलों औऱ मीडिया इन्डस्ट्री के भीतर जब कई ऐसे मामले आए जिसमें कि उसके लिए काम करनेवाले लोगों के पक्ष सामने आने चाहिए ,इस साइट ने इसे या तो पूरी तरह नजरअंदाज किया या फिर चैनल के आलाकमान की राय छापी। ये शायद सबसे बड़ी वजह है कि मीडिया के सामान्य स्तर के मीडियाकर्मी इसे कभी भी अपनी साइट नहीं मानते। ये मीडिया मालिकों और आकाओं की साइट है,मीडियाकर्मियों की नहीं।

 दूसरी तरफ मीडिया में दिलचस्पी रखनेवाले सामान्य इंटरनेट पाठक इस साइट पर रेगुलर नहीं आते,इसकी बड़ी वजह है कि ये उन्हें प्रेस रिलीज का अड्डा से ज्यादा कुछ नहीं लगता। इंटरव्यू भी आते हैं तो वो जानकारी कम,पीआरगिरी ज्यादा होती है। अगर पाठक को यहां आकर मीडिया के नाम पर वही सबकुछ पने को मिले तो कोई फिर चैनल या संबंद्ध मीडिया संस्थान की ऑफिशियल साइट पर जाकर क्यों न पढ़े। वैसे भी जो पाठक आए दिन मीडिया की गड़बड़ियों और भारी घपले से त्रस्त है,उसके बारे में चारण-चर्चा किए जाने पर भला कैसे रास आएगी? इसलिए अगर ये साइट लाखों रुपये खर्च इसकी पहुंच और आमलोगों के बीच लोकप्रिय बनाने के लिए करती भी है तो ये अपनी पकड़ मजबूत नहीं कर पाएगी। इसकी बड़ी वजह है कि ये पूरी तरह से मीडिया को लेकर अनक्रिटिकल साइट है। खैर
 हम इस साइट के अनक्रिटिकल और पीआरगिरी करने को लेकर यहां कोई सवाल खड़ी नहीं कर रहे। हमें पता है कि इस साइट की गर्दन लाखों रुपये की बिजनेस डील और विज्ञापन के बीच फंसी है। ऐसे में वो पीआरगिरी नहीं करेगी तो क्या करेगी? जिस मीडिया इन्डस्ट्री से इसके लिए धनवर्षा हो रही है,उस मीडिया को लेकर वो क्रिटिकल कैसे हो सकती है? ये उसकी अपनी समझ,बिजनेस पॉलिसी और मजबूरी है औऱ हो सकती है। हम यहां इससे अलग बिल्कुल दूसरी बात कर रहे हैं।

मीडिया की समीक्षा और उसकी आलोचना के लिए वर्चुअल स्पेस की अपनी दुनिया है जहां कई ऐसी वेबसाइट, ब्लॉग्स और फोरम बेबाक तरीके से अपनी बात रख रहे हैं। उनके आगे न तो कोई बिजनेस को लेकर मजबूरी है और न ही खेल खराब हो जाने की चिंता। समाचार4मीडिया की इन फोरम पर लगातार नजर बनी हुई है। अब उसने शुरु क्या किया है कि इन फोरम से माल उड़ाकर अपनी साइट पर छापना शुरु किया है। इससे उसे दो स्तर पर सीधा फायदा हो रहा है। एक तो मुफ्त में उसे बेहतर और काम के कंटेंट मिल जा रहे हैं,उसके लिए एक पैसा भी भुगतान नहीं करना पड़ रहा और दूसरा कि अगर किसी पोस्ट में कोई किसी चैनल के खिलाफ भी लिखता है तो उसका पूरा ठिकरा वो लिखनेवाले पर फोड़कर हाथ खड़ी कर देगा।.इधर थोड़ा क्रिटिकल होने की जो कमी है,उसकी भी भरपाई हो जाएगी।

इसी नीयत से अभी साइट ने रवीश कुमार की पोस्ट- हिन्दी न्यूज चैनलों की घड़ी ठीक हो गयी क्या? को अपनी साइट पर छापा। इतना ही नहीं साभार के साथ संपर्क भी दे डाला। बदले में उसने इसकी जानकारी न तो रवीश कुमार को दी और न ही पहले अनुमति ली और मुझे नहीं लगता कि इसके लिए उन्हें कुछ भुगतान ही किया होगा? यहां पर आकर कोई तर्क दे सकता है कि इंटरनेट में किसी का कुछ नहीं है,एक बार चीजें सार्वजनिक हुई नहीं कि आपका उस पर से कंट्रोव गया। सही बात है, लेकिन सवाल दूसरा है। सवाल ये कि कोई बिजनेस फोरम करोड़ों रुपये खर्च करता है,कंटेंट जेनरेट करनेवालों के लिए अलग से बजट रखता है और अब फ्री की सामग्री साभार छापता है तो इस पर बात होनी चाहिए कि नहीं? ऐसे में जो लेखक अपने ब्लॉग पर लिख रहा है,उसे यहां छपने का क्या लाभ मिलेगा? अगर साइट को फ्री की ही सामग्री छापकर अपनी दूकान चलानी है तो क्या वो इसकी चर्चा अपनी बैलेंस शीट में करेगा? मुझे याद है कि समाचार4मीडिया ने साइट लांच होने के पहले हम जैसे लोग जो कि इंटरनेट लेखन में कुछ ज्यादा ही सक्रिय है-मेल भेजा कि आप हमारी साइट के लिए लिखना चाहते हैं तो लिखें। मुझे इसमें दिलचस्पी नहीं थी सो हमने ज्यादा ध्यान नहीं दिया। लेकिन जो कुछ लोगों ने लिखना शुरु किया,हमें जानकारी मिली कि उसके लिए वो भुगतान करेंगे।..अब सवाल है कि तो इसी साइट पर अगर वो किसी का कहीं से कुछ लेकर छापते हैं तो वो लेखक भुगतान के दायरे में क्यों नहीं आता? इस पर गंभीरता से बात होनी चाहिए।
इस पूरे मामले में मेरी अपनी समझ है कि समाचार4मीडिया पूरी तरह बिजनेस करनेवाली साइट है इसलिए उसका चरित्र पूरी तरह बिजनेस के हिसाब से ही निर्धारित होते हैं। ऐसे में अगर वो फ्री में उठाकर सामग्री छापती है औऱ गैरव्यावसायिक फोरम को मिलनेवाली सुविधा का लाभ उठाती है तो इस पर उंगली उठाने की जरुरत है। इसका विरोध किया जाना चाहिए और अगर छापती है तो उसमें लेखक की शर्तें शामिल हों। उसक मर्जी शामिल हो कि वो ऐसी मीडिया की पीआरगिरी करनीवाली साइट पर छपना चाहता है भी या नहीं? कहीं यहां पर छपने से उसकी इमेज पर बट्टा तो नहीं लगता,उसके पाठक उसे अन्यथा तो नहीं ले रहे?
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4 Response to 'हम ब्लॉगरों का हक मार रहा है समाचार4मीडिया'
  1. पुष्कर पुष्प
    http://taanabaana.blogspot.com/2010/11/4_03.html?showComment=1288801523806#c7799231277292741763'> 3 नवंबर 2010 को 9:55 pm बजे

    कॉर्पोरेट मीडिया के खिलाडी अब वैकल्पिक मीडिया का भी मजा ले रहे हैं. समाचार4मीडिया इसका जीवंत उदाहरण है. लाखों - करोड़ों के टर्नओवर वाली ये कम्पनियाँ अब वैकल्पिक मीडिया के साधनों का इस्तेमाल कर पिआरगिरी से कमाए पैसों को बचा रहा है. लेकिन कोई इनसे पूछे पत्रकारों के हक में इन्होने आजतक कौन सा काम किया है. समाचार ४ मीडिया को लॉन्च हुए छह महीने से ऊपर हो गए हैं. कोई एक स्टोरी बताइए जब खुलकर पत्रकारों के हक में इसने आवाज़ बुलंद की है. फिर इस वेबसाईट को क्या हक है रवीश कुमार के ब्लॉग से लेख लेकर छापने का. क्या महज साभार लिख देने से आपको लेख छापने का अधिकार मिल जाता है. विनीत ने ठीक लिखा है - ये हमारा हक मार रहा है और इसपर रोक जरूरी है.

     

  2. पुष्कर पुष्प
    http://taanabaana.blogspot.com/2010/11/4_03.html?showComment=1288801734529#c6562884106167499642'> 3 नवंबर 2010 को 9:58 pm बजे

    समाचार4मीडिया जब लॉन्च हुआ था तब उसने बिना इजाजत के हंस के मीडिया विशेषांक को छाप दिया था. यह कोई पहली घटना नहीं है. कॉर्पोरेट मीडिया को वैकल्पिक मीडिया के साधनों का इस्तेमाल करने से रोकना जरूरी है.

     

  3. Anand Rathore
    http://taanabaana.blogspot.com/2010/11/4_03.html?showComment=1288845961250#c6847201737894467150'> 4 नवंबर 2010 को 10:16 am बजे

    dada.. aap dono sahi kah rahe hain... prob ye hai , ki ravishji aur hans..ya koi bhi patrkaar ho...ya patrika .. usse lagta hai..uski izzat badh rahi hai... free mein promotion ho raha hai..hum har jagah dikhayi de rahe hain... aap sahi kah rahe hain, ki kuch blog group aur sites ne mujhe bhi mail bheja... free content kaun nahi chahta ..aur free free publicity bhi sab chahte hain... ye hume sochna hai ye hume istemaal kar rahe hain ya hum inhe ... ya ..dono ek dusre ko istemaal kar raha hai...kaun kitna kisko istemaal kar raha hai.. aur kaun kama raha hai aur kaun gavan raha hai..ganda hai par dhandha hai...

     

  4. अनूप शुक्ल
    http://taanabaana.blogspot.com/2010/11/4_03.html?showComment=1289110004684#c3461439622199458760'> 7 नवंबर 2010 को 11:36 am बजे

    सही है! अगर साइट कमाई कर रही है तो वहां जिसके लेख छापे उसको भुगतान करना ही चाहिये।

     

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